– परमेंद्र मोहन, खेती-किसानी और राजनीतिक विश्लेषक: संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब दिया। 6 फरवरी को किसानों का चक्का जाम था और किसान आंदोलन अभी भी जारी है, ऐसे में उम्मीद के मुताबिक प्रधानमंत्री के संबोधन का केंद्र बिंदू तीनों नए कृषि कानून और ये आंदोलन ही रहा। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में जो कहा, उसमें नया कुछ भी नहीं था, बावजूद इसके ये महत्वपूर्ण है।
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प्रधानमंत्री मोदी ने नए कृषि कानूनों को अच्छा बताया और कहा कि एक बार इन्हें आजमाकर देखना चाहिए, अगर कमियां सामने आएंगी तो उन्हें दूर किया जाएगा, अगर ढिलाई दिखेगी तो उन्हें कसा जाएगा। उन्होंने देश में 86 फीसदी किसानों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम ज़मीन होने की बात कही, जिनकी संख्या 12 करोड़ है। एक तरह से उन्होंने इन 12 करोड़ कम जोत वाले किसानों के प्रति सरकार की जिम्मेदारी का अहसास कराया और नए कानूनों को इनके हित में बताया।
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प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के जारी रहने और मंडियों को और आधुनिक बनाए जाने की बात कही। एमएसपी पर उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ये लागू था, लागू है और लागू रहेगा। पीएम मोदी ने किसान आंदोलन को हालांकि उनका अधिकार बताया, आंदोलनकारी किसानों को साथ लेकर चलने की बात कही और सदन से उन्हें बातचीत के लिए आगे आने का न्यौता भी दिया। किसान आंदोलन में सिख किसानों की बड़ी संख्या है और प्रधानमंत्री ने सिखों के योगदान की भी तारीफ की। आंदोलन में दिल्ली की सीमाओं पर बैठे बुजुर्ग किसानों को वापस उनके घर भेजने की संवेदनशील अपील करके उन्होंने किसानों से अपनत्व का संदेश देने की भी कोशिश की।
आंदोलनकारी किसानों की ओर से सबसे ज्यादा चिंता एमएसपी को ही लेकर जताई गई है और उनकी मांग है कि सरकार एमएसपी जारी रहने की जो बात जुबानी तौर पर करती रही है, उसे कानून बनाकर सुनिश्चित कर दे। आज भी भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेता राकेश टिकैत ने यही कहा है कि एमएसपी खत्म होने की बात तो किसानों ने की ही नहीं है, इसपर कानून बनाने की हमारी मांग है। टिकैत का कहना है कि एमएसपी पर कानून नहीं होने का नुकसान देश भर के किसानों को होता है और इसका फायदा ट्रेडर्स को मिलता है। ट्रेडर्स अपनी मर्जी के मुताबिक कीमतें तय करते हैं और किसानों को औने-पौन दाम पर मज़बूरी में अपना अनाज बेचना पड़ता है, इसलिए एमएसपी कानून ज़रूरी है।
राकेश टिकैत ने हालांकि इस बात पर एतराज़ जताया कि छोटे किसानों को लुभाने की कोशिश सरकार कर रही है। टिकैत के मुताबिक पहले किसान आंदोलन को पंजाब और हरियाणा का आंदोलन बताया गया, फिर इसे जाट किसानों का बता दिया गया और अब बड़े-छोटे किसानों की बात कही जा रही है, जबकि एमएसपी कानून देश भर के किसानों के हित से जुड़ा है।
टिकैत ने किसान आंदोलन को कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल के समर्थन के बारे में ये कहा है कि बाहर से किसी का भी समर्थन भले हो, लेकिन आंदोलन के भीतर किसी भी तरह का राजनीतिक समर्थन नहीं है। उन्होंने कृषि मंत्री से भी पूछा है कि वो बताएं कि कृषि कानूनों में सफेद क्या है? ये कृषि मंत्री के उस सवाल के जवाब में है, जिसमें ये पूछा गया था कि कानून में काला क्या है?
सवाल ये है कि अब गेंद किसके पाले में है? प्रधानमंत्री के जवाब से इतना तो साफ हो चुका है कि सरकार कृषि कानूनों पर यू-टर्न लेने के मूड में नहीं है। दूसरी ओर, राकेश टिकैत के जवाब से भी ये संकेत आ रहा है कि एमएसपी कानून की मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। कुल मिलाकर अब यही केंद्रीय मुद्दा दिख रहा है और दोनों पक्षों यानी सरकार और किसान नेताओं के बीच होने वाली बातचीत में भी MSP पर ही बीच का रास्ता निकालना होगा, क्योंकि समाधान की गुंजाइश इसी बीच के रास्ते में नज़र आ रही है।