बम्पर पैदावार से सस्ता हुआ आलू, किसानों को लागत निकालने के पड़े लाले

हमारा सालाना उत्पादन करीब 5 करोड़ टन है, जबकि खपत 3.5 करोड़ टन आलू की है। इसीलिए नयी फसल आते ही आलू के किसानों की बदहाली के किस्से सामने आते हैं। वजह साफ़ है कि माँग के मुकाबले आलू की सप्लाई ख़ासा ज़्यादा है और इसी से नयी फसल के आते ही भाव औंधे मुँह गिर जाते हैं।

आलू की खेती करने वाले देश के 60 बड़े आलू उत्पादक क्षेत्रों में से 25 इलाकों के लाखों किसानों को इन दिनों अपने बुरे दिनों की दस्तक सुनाई दे रही है। इसकी वजह है आलू की अच्छी पैदावार। क्योंकि इससे आलू का भाव क़रीब 50% तक लुढ़क गया है।

केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय यानी फूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री के मुताबिक, आलू की शानदार पैदावार आने की वजह से मंडियों और खुदरा बाज़ार में इसका दाम 5 से 6 रुपये प्रति किलो कम हो गया है। इससे आलू से उपभोक्ताओं को भले राहत मिली हो, लेकिन किसानों के लिए मुनाफ़ा तो छोड़िए, आलू की उत्पादन लागत की भरपायी भी मुहाल हो रही है।

कौन से इलाके हैं प्रभावित?

उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार में फैले करीब 25 आलू बेल्ट हैं पिछले साल के इसी मौसम के मुकाबले किसानों आधा भाव ही मिल पा रहा है। दिल्ली समेत 16 प्रमुख खपत क्षेत्रों में से 12 इलाकों से प्राप्त आँकड़ों से पता चला है कि उत्तर प्रदेश के सम्भल और गुजरात के दीशा में आलू का दाम तो 3 साल के औसत थोक भाव से भी 6 रुपये प्रति किलो नीचे चला गया है।

रिटेल मार्केट में भी आलू अभी 10 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है, जबकि पिछले मार्च में इसका दाम 20 रुपये प्रति किलो के आसपास हुआ करता था। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में कुछ ज़िलों में पिछले मार्च में आलू की थोक भाव 8-10 रुपये प्रति किलो था तो कुछ मंडियों में 23 रुपये प्रति किलो तक की बोली लगी।

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क्या है किसानों का दुखड़ा?

उत्तर प्रदेश में बुलन्द शहर इलाके के एक किसान का कहना है कि बीज, पानी, खाद, मज़दूरी और भाड़ा वगैरह को लेकर आलू की प्रति एकड़ लागत क़रीब 70 हज़ार रुपये बैठती है। इससे 10,000 किलो आलू पैदा होता है, जिसका मंडी में दाम करीब 40 हज़ार रुपये मिल पा रहा है। यदि कोल्ड स्टोरेज़ में आलू रखने वाले किसानों को 50 किलो की बोरी पर 150 रुपये और खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन बाज़ार के भाव को देख आलू की लागत निकालना भारी पड़ रहा है।

उपभोक्ता मामलों की सचिव लीना नन्दन कहती हैं कि ग्राहकों के लिहाज़ से दाम पर नज़र रखते हैं। इस बार आलू की फसल काफ़ी अच्छी है। मंडियों में आवक भी अच्छी है। इससे दाम गिरा है। उपभोक्ताओं को फ़ायदा मिल रहा है। रही बात किसानों के मुनाफ़े की तो इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को देखना है।

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खपत से ज़्यादा पैदावार

भारत में 21 लाख एकड़ में आलू की खेती होती है। आलू की पैदावार से जुड़े क्षेत्रफल के लिहाज़ से दुनिया में भारत का तीसरा स्थान है। जबकि आलू की खपत में हमारा स्थान चीन के बाद दूसरा है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब और गुजरात आलू के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

आलू मुख्यतः सर्दियों की फसल है। इसीलिए रबी के दौरान मार्च-अप्रैल में बुआई वाले आलू का करीब 60 से 70 फ़ीसदी हिस्सा कोल्ड स्टोरज़ में रखा जाता है। ताकि नवम्बर तक आने वाले ख़रीफ़ वाले आलू के आने तक इसका इस्तेमाल हो सके।

हमारा सालाना उत्पादन करीब 5 करोड़ टन है, जबकि खपत 3.5 करोड़ टन आलू की है। इसीलिए नयी फसल आते ही आलू के किसानों की बदहाली के किस्से सामने आते हैं। वजह साफ़ है कि माँग के मुकाबले आलू की सप्लाई ख़ासा ज़्यादा है और इसी से नयी फसल के आते ही भाव औंधे मुँह गिर जाते हैं।

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