कंद से करें प्याज़ बीज उत्पादन, मिलेगी अधिक फसल
पहले नर्सरी में प्याज़ की पौध तैयार की जाती है
प्याज़ एक प्रमुख सब्ज़ी और मसाला फसल है। इसकी खासियत यह है कि इसे सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल करने के साथ ही मसाले के तौर पर भी प्रयोग में लाया जाता है। कोई भी मसालेदार सब्ज़ी प्याज़ के बिना अधूरी है। प्याज़ की मांग पूरे साल बनी रहती है, इसलिए इसका उत्पादन किसानों के लिए फ़ायदेमंद है। प्याज़ की अच्छी फसल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपलब्ध होना ज़रूरी है।
कंद से प्याज़ बीज उत्पादन: कोई भी फ़सल तभी अच्छी होगी जब उनके बीज गुणवत्तापूर्ण होंगे। इसीलिए फसल उत्पादन के साथ ही किसानों को बीज उत्पादन पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है, खासतौर पर प्याज़ के। प्याज़ “ऐमारलीडेसी” परिवार का सदस्य है और इसका वैज्ञानिक नाम एलियस सेपा है। हमारे देश में प्याज़ की खपत बहुत अधिक है और इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन भी किया जाता है। किसान भाई अगर प्याज़ की फ़सल से अधिक मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं, तो फ़सल के साथ ही उन्हें इसके बीज उत्पादन की नयी तकनीकों को सीखना होगा। बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक अपनाकर वो प्याज़ की खेती से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
प्याज़ बीज तैयार करना
प्याज़ के बीज उसके कंद ही होते हैं और इनसे ही आगे फ़सल तैयार की जाती है। मगर फ़सल के लिए लगाये गए प्याज़ से ही बीज प्राप्त करना ठीक नहीं है। इसके लिए बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक अपनाना ज़रूरी है। इसके तहत कंदों को निकालकर और फ़िर छांटकर अलग कर लिया जाता है। शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाले कंदों की बीज के लिए दोबारा बुवाई की जाती है। ऐसा करने से अशुद्ध या किसी रोग व कीट से ग्रसित प्याज़ की बुवाई से किसान बच जाते हैं, और उन्हें अच्छी और स्वस्थ फसल मिलती है। बुवाई के समय फसल में 5 मीटर की दूरी होना ज़रूरी है। इसके साथ ही, एक हेक्टेयर के खेत में मधुमक्खी के 2-3 बक्से रखना ज़रूरी है, क्योंकि पौधों में फूल आने के दौरान परागकण इन्हीं से मिलते हैं।

प्याज़ बीज उत्पादन के लिए मिट्टी और जलवायु
प्याज़ के बीज उत्पादन के लिए दोमट, बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6 से 7.5 (pH 6 – pH 7.5) के बीच हो उचित होता है। साथ ही, अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए और मिट्टी में जीवांश पदार्थ भरपूर होने चाहिए। कंदों की रोपाई के समय दिन का तापमान 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट और रात का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेट रहना चाहिए।
ये भी पढ़ें- Onion Processing: प्याज़ की खेती के साथ ही इसकी प्रोसेसिंग से बढ़ेगी किसानों की आमदनी
प्याज़ बीज की कैसे करें रोपाई
प्याज़ के कंदों को पहले नर्सरी में बिजाई करके पौध तैयार की जाती है और फिर 60 दिनों के बाद इन पौध को खेतों में लगाया जाता है। जिन मातृकंदों (बीज के लिए चुने गए प्याज़) को चुना गया है उनके ऊपर के एक तिहाई भाग को काट दिया जाता है और फिर 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम व मैन्कोजेब के घोल में 5-10 मिनट तक भिगोकर रखने के बाद खेत में रोप दिया जाता है। कंदों को अच्छी तरह से तैयार खेत में समतल क्यारियां बनाकर 60X30 सें.मी. की दूरी पर, 6-7.5 सें.मी. की गहराई में लगाया जाता है। एक हेक्टेयर के लिए करीब 25-30 क्विंटल कंदों की ज़रूरत होती है।

खाद और उर्वरक
उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर ही करें। आमतौर पर खेत तैयार करते समय 50 टन गोबर की सड़ी खाद, 240 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाईट्रेट या 60 किलोग्राम यूरिया, 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 80 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 10-12 किलोग्राम पी. एस. बी. कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाया जाता है। इसके अलावा एक कि.ग्रा. यूरिया, कंद लगाने के 30 दिन बाद और 35 कि.ग्राम यूरिया कंद लगाने के 45 से 50 दिन बाद छिड़का जाता है। सिंचाई की संख्या, जलवायु और मिट्टी आदि पर निर्भर करती है। आमतौर पर नवंबर-दिसंबर में लगी फसल की सिंचाई 10 दिनों के अंतराल पर, जनवरी-फरवरी में लगी फसल की सिंचाई 7 दिनों के अंतर पर और मार्च में लगी फसल में 2-3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। सिंचाई के लिए टपक विधि का इस्तेमाल करना उचित होगा। खरपतवार नियंत्रण के लिए 4 से 5 हफ़्ते के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें।
फसल की कटाई
सारे प्याज़ बीज के डंठल एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं। ऐसे में इनकी 2-3 बार कटाई की जानी चाहिए। पके हुए डंठल को 4 से 5 सें.मी. लंबी डंडी के साथ काटें और जब ये पूरी तरह से सूख जाए तो खुदाई करके प्याज के बीज प्राप्त कर लें। इस सीज़न में प्राप्त बीजों का उपयोग अगले सीजन में किया जा सकता है।
ये भी पढ़ें- आधुनिक खेती में 3 फसल पैटर्न अपनाकर कैसे अमरजीत कौर बनी सफल किसान, जानिए किन बातों का रखती हैं ध्यान
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- सब्जियों की खेती: छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली इन भाजियों के बारे में जानते हैं आप?छत्तीसगढ़ में 36 तरह की अलग-अलग भाजियां पाई जाती हैं, जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी अच्छी हैं। इन सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर होती है। राज्य में बस्तर के जंगलों, दुर्ग की बाड़ियों, रायपुर के फ़ार्म्स, कवर्धा की घाटियां, अलग-अलग ज़िलों में अनेक किस्म की भाजियां उगाई जाती हैं।
- पॉलीहाउस में फूलों की खेती कर सालाना करीब 35 लाख का टर्नओवर, ये हैं हिमाचल के रवि शर्मारवि शर्मा ने अपने गांव आने के बाद फूलों की खेती को चुना। इसमें उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया हुआ है। वो पॉलीहाउस में फूलों की खेती करते हैं।
- Bio-Fertilizers: जीवाणु या जैविक खाद बनाने का घरेलू नुस्खाजैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इससे हरेक किस्म की जैविक खाद का उत्पादन हो सकता है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं।
- Saffron Farming: नोएडा के एक छोटे कमरे में केसर की खेती, किसानों को दे रहे हैं ट्रेनिंगरमेश गेरा ने अपनी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई 1980 में NIT कुरुक्षेत्र से की। इसके साथ ही रमेश ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब भी की। नौकरी के दौरान बाहर के देशों में उन्हें कृषि के नए-नए तरीके देखने को मिले। वहां से तकनीक देखकर भारत में केसर की खेती चालू की।
- Goat Farming: बकरी पालन से जुड़ी क्या हैं उन्नत तकनीकें और मार्केटिंग का तरीका? कैसे किसानों ने पाई सफलता?भारत में बकरी पालन में नवाचारों का उद्देश्य किसानों की आजीविका को बढ़ाना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बकरी उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करना है।
- पाले की समस्या से कैसे पाएं निजात? सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती को कैसे प्रभावित करती है?किसान सर्दियों की इन चुनौतियों से पार पाने के लिए रणनीतियां अपनाते हैं, और सरकार टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सहायता देती है।
- कैसे Startup India के तहत शुरू की मिलेट बेकरी? छत्तीसगढ़ की हेमलता ने Millets के दम पर खड़ा किया स्टार्टअपमिलेट से बने व्यंजनों की वैरायटी लिस्ट काफ़ी लंबी है। छत्तीसगढ़ की रहने वाली हेमलता ने Startup India के तहत मिलेट बेकरी (Millet Bakery) की शुरुआत की।
- Makhana Farming: मखाने की खेती में छत्तीसगढ़ के किसान गजेंद्र चंद्राकर ने अपनाई उन्नत तकनीकइस विधि द्वारा मखाने की खेती 1 फ़ीट तक पानी से भरी कृषि भूमि में की जाती है। किसान अब मखाने की खेती कर, धान से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के किसान इस सुपर फ़ूड मखाने की खेती को लेकर काफ़ी जागरूक हो गए हैं।
- Pearl Farming: मोती की खेती के साथ मछली पालन, ‘पर्ल क्वीन’ के नाम से जानी जाती हैं पूजा विश्वकर्मापूजा विश्वकर्मा ने 6 साल पहले 40 हज़ार रुपये की लागत से मोती की खेती का व्यवसाय शुरु किया। लगातार 2 साल तक संघर्ष करने के बाद उन्हें सफलता मिली।
- कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती): बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ, क्या है तरीका?ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करने के लिए सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा सबसे अच्छा विकल्प है। वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक ईज़ाद की है, जिसमें बिजली और फसल उत्पादन साथ-साथ होगा। इस तकनीक का नाम है कृषि-वोल्टीय प्रणाली (सौर खेती)।
- Biofertilizer Rhizobium: जैव उर्वरक राइज़ोबियम कल्चर दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने का जैविक तरीकादलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
- Seed Production: कैसे बीज उत्पादन व्यवसाय इन किसानों की आय का अच्छा स्रोत बन रहा है?बीज खेती का आधार है, तभी तो कहते हैं कि हर बीज एक अनाज है, लेकिन हर अनाज एक बीज नहीं हो सकता क्योंकि सभी अनाज में एक समान अंकुरण क्षमता नहीं होती। बीज उत्पादन के लिए किसानों को बीज के प्रकार और उत्पादन का सही तरीका पता होना चाहिए।
- Berseem Farming: बरसीम की खेती से जुड़ी अहम बातें, जानिए कीट-रोगों से कैसे बचाएं बरसीम की फसलबरसीम एक महत्वपूर्ण दलहनी चारा फसल है जो न सिर्फ़ पशुओं के लिए बेहतरीन है, बल्कि ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी सहायक है। इसका इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। पशुओं के लिए ये चारा बहुत पौष्टिक होता है, वैसे तो बरसीम की फसल पर रोगों का बहुत गंभीर परिणाम नहीं होता है, लेकिन कुछ रोग व कीट है जिनसे बचाव करना ज़रूरी है।
- डेयरी उद्योग (Dairy Farming): क्यों दूध उत्पादन क्षेत्र में फ़ार्म रिकॉर्ड रखना ज़रूरी है?जिस तरह से ऑफ़िस या घर में काम या डॉक्यूमेंट्स का रिकॉर्ड रखा जाता है, वैसे ही डेयरी उद्योग में पशुओं का रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
- Green Manure Crops: हरी खाद वाली फसलें कौन सी हैं और कितने प्रकार की होती हैं?खेती में हरी खाद का मतलब उन सहायक फसलों से है, जिन्हें खेत के पोषक तत्वों को बढ़ाने के मकसद से उगाया जाता है। ये मिट्टी की साथ-साथ फसलों को भी कई लाभ देती हैं।
- जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण: पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए फ़ायदेमंदबढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- Crop Residue Management: क्यों ज़रूरी है फसल अवशेष प्रबंधन? इससे जुड़े ये आंकड़ें जानते हैं आप?फसल अवशेष जलाने से हमारी ज़मीन में उपलब्ध पोषक तत्वों को हानि होती है। धीरे-धीरे ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम होती चली जाती है। साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी कई घटनाएं हम देख भी चुके हैं।
- जानिए कैसे कंद वर्गीय फसल अरारोट की खेती से किसान ले सकते हैं लाभ, क्या हैं इसके फ़ायदे?अरारोट की खेती के लिए रेतिली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए तापमान 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।
- Red Rice: विलुप्त होते लाल चावल को मिल रहा जीवनदान, दोबारा शुरु हुई खेतीसेहत और किसानों के लिए फ़ायदेमंद लाल चावल की खेती हिमाचल में फिर से बड़े पैमाने पर की जा रही है। जानिए लाल चावल से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
- Carp Fish: नर्सरी तालाब में कार्प मछली उत्पादन कैसे करें? किन बातों का रखें ध्यान?मछली पालन में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। पहले स्थान पर चीन है। हमारे देश में मछली उत्पादन में सबसे अधिक हिस्सेदारी कार्प मछलियों की है। कार्प मछली उत्पादन में मछली पालकों को इसके बीजों की गुणवत्ता पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत होती है।