रागी की खेती (मंडुआ) (Ragi Cultivation): बारानी और सूखा आशंकित इलाकों में भी देती है बढ़िया कमाई

प्रतिकूल परिस्थितियों में और कम देखभाल होने पर भी अच्छी पैदावार देने वाली फसलों में रागी की ख़ास पहचान है। धान की फसल नहीं लगा पाने की अवस्था में रागी की खेती को आकस्मिक फसल की तरह कर सकते हैं। सेहत के लिए शानदार है पौष्टिक तथा सुपाच्य अनाज रागी का सेवन।

रागी की खेती

रागी यानी मंडुआ खरीफ़ की फसल है। रागी की खेती अनेक राज्यों में होती है। रागी की फसल सूखा और खरपतवार के प्रति काफ़ी सहनशील होती है। रागी में सामान्य जल भराव को बर्दाश्त करने की क्षमता होता है। इसका यही गुण इसे बारानी यानी वर्षा-निर्भर और सूखा आशंकित इलाकों के लिए बहुत उपयोगी बना देता है। इसीलिए बुन्देलखंड जैसे कम बारिश वाले इलाकों में भी रागी की फसल से अच्छी पैदावार मिल जाती है। हालाँकि, मंडुआ का प्रमुख उत्पादक झारखंड है।

उपजाऊ खेतों में इसे धान के साथ अन्त: फसल की तरह भी उगा सकते हैं। इस तरह, रागी प्रतिकूल परिस्थितियों में और कम देखभाल होने पर भी अच्छी पैदावार देने वाली फसल के रूप में अपनी ख़ास पहचान रखती है।  

धान की फसल नहीं लगा पाने की अवस्था में रागी को आकस्मिक फसल की तरह लगा सकते हैं। पौष्टिकता से भरपूर यह अनाज स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों का ख़ूब ध्यान आकर्षित कर रहा है।

रागी में प्राकृतिक रूप से काफ़ी मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। इससे बच्चों में हड्डियों का विकास बढ़िया होता है तथा वयस्कों की हड्डियों में मज़बूती मिलती है। यह पौष्टिक होने के अलावा सस्ता और सुपाच्य भी होता है। रेशा-तत्वों से भरपूर रागी के सेवन से क़ब्ज़ की शिकायत दूर होती है।

रागी की खेती को यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो किसानों को इससे शानदार उपज और कमाई मिल सकती है। रागी का वानस्पतिक नाम एलुसिन कोरकाना है।

रागी की खेती का वैज्ञानिक तरीका

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, रागी की खेती को लेकर हुए प्रयोगों का निष्कर्ष है कि यदि धान की दो पंक्तियों के साथ रागी की दो पंक्तियाँ एक साथ रोपी जाएँ तो दोनों की अच्छी उपज प्राप्त होती है। समय रहते धान की फसल नहीं लगा पाने की दशा में रागी को आकस्मिक फसल की तरह लगाया जा सकता है।

रागी की फसल के लिए खेती की तैयारी

रागी की फसल सभी किस्म की मिट्टी में उगाई जा सकती है। लेकिन ज़्यादा जीवांश वाली मिट्टी में पैदावार ज़्यादा मिलती है। रागी के लिए मिट्टी की pH मान 4.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेत की तैयारी के लिए तीन से चार बार खेत की अच्छी तरह से जुताई करके पाटा चला दें। गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर 2.5 टन की दर से खेत में मिला दें।

रागी की खेती
तस्वीर साभार: ICAR-CCARI

रागी की उन्नत किस्में

रागी की उन्नत किस्में हैं – GPU 45, शुवा (OUAT-2), चिलिका (IOB-10), भैरवी (BM 9-1) और VL-149. ये किस्में 105-120 दिनों में तैयार होकर 22-37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती हैं। रागी की उपज क्षमता प्रजातियों तथा उनकी परिपक्वता अवधि पर निर्भर करती है। रागी का मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य 3377 रुपये प्रति क्विंटल है।

रागी की बुआई की विधियाँ

रागी की बुआई का सही समय वही है जो धान का है। यानी, जून-जुलाई में मॉनसून के शुरू होने का समय। रागी की बुआई के लिए दो विधियाँ प्रचलित हैं। सीधी बुआई और पौधरोपण यानी धान की फसल की तरह रोपाई करना। रोपाई वाले पौधों को 25 से 28 दिनों का होना चाहिए। यदि सीधी बुआई की बात करें तो पंक्तियों में 20 सेमी की दूरी रखते हुए इसकी बुआई की जा सकती है। इसके लिए 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ेगी, जबकि रोपाई विधि में प्रति हेक्टेयर 7 से 8 किग्रा बीज पर्याप्त है। रोपाई के वक़्त पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 20 सेमी तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखना चाहिए।

रागी का बीजोपचार और खाद

बुआई से पहले रागी के बीजों का उपचार ज़रूर करना चाहिए। इसके लिए प्रति किग्रा बीज को 2 से 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम/ कार्बोक्सिन/क्लोरोथेलोनिल से उपचारित करने के बाद ही बुआई करनी चाहिए। रागी की खेती में खाद का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी की जाँच ज़रूर करवानी चाहिए। वैसे सामान्य खेतों के लिए प्रति हेक्टेयर 2.5 टन गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट को अन्तिम जुताई के वक़्त देना ठीक रहता है।

कम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों की यदि सीधी बुआई करनी हो तो नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम को 20:30:20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए। लम्बी अवधि वाली किस्मों के लिए इसकी मात्रा 40:30:20 होनी चाहिए। बुआई या रोपाई के समय नाइट्रोजन की एक-चौथाई मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटेशियम की पूरी मात्रा को खेतों में डालना चाहिए। बुआई या रोपाई के 25 दिनों बाद नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा तथा 35 से 40 दिनों बाद बाक़ी बची एक-चौथाई मात्रा डालनी चाहिए।

kisan of india instagram
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रागी की फसल में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवारों के नियंत्रण के लिए रागी की फसल में बुआई के 21 से 25 दिनों बाद पहली निराई और इसके 15 दिनों बाद दूसरी गुराई करनी चाहिए। यदि खरपतवार का नियंत्रण रसायनों से करना हो तो आइसो प्रोटोरॉन नामक दवा की एक लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 48 घंटों के भीतर छिड़काव करना चाहिए। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की अधिकता होने पर 24-डी नामक दवा की एक किग्रा मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर 20-25 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए।

रागी की फसल में रोग नियंत्रण

धान की तरह रागी की फसल में भी झुलसा रोग का प्रकोप पाया जाता है। कभी-कभी यह बहुत हानिकारक होता है। इसमें पत्तियों पर गोल-गोल या अंडाकार भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। बाद में ये धब्बे राख जैसे दिखने लगते हैं। इसके लिए रोगरोधी किस्मों को बीजोपचार के बाद इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा साफ नामक दवा 2 ग्राम या प्रति लीटर पानी में कार्बोडाजिम की 1 ग्राम मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

रागी की खेती में कीट नियंत्रण

रागी की फसल में कीट कभी-कभी समस्या पैदा कर देते हैं। इससे उत्पादन में कमी आ जाती है।

कटुआ कीट: ये कीट जड़, तना और पत्तियों को काटकर नुकसान पहुँचाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। फसल अवशेष और खरपतवार को नष्ट करते रहना चाहिए। प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम की दर से लाभकारी फफूँद बवेरिया बेसियाना का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। रसायनों में क्लोरपायरीफॉस एक लीटर दवा 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से भी अच्छे परिणाम मिलते हैं।

गुलाबी तनाछेदक: इस कीट का लार्वा रागी के तने में छेदकर उसे अन्दर से खोखला कर देता है। इससे मध्य वाला तना भूरा हो जाता है। कल्लों के निकलने की अवस्था में डेड हर्ट के लक्षण प्रदर्शित होते हैं। गुलाबी तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए प्रकाश प्रपंच का उपयोग प्रति हेक्टेयर में तीन से चार बार किया जा सकता है। ट्राइकोडर्मा पैरासाइट के अंडों से से बनी ट्राइकोकार्ड को पत्तों में स्टैपल किया जा सकता है। इनसे निकलने वाले परजीवी गुलाबी तनाछेदक के लार्वा को नष्ट करते हैं। इसके रोकथाम के लिए फॉस्फोमिडोन दवा की 500 मिली मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यह दवा इस कीट के नियंत्रण में सक्षम पायी गयी है।

लाही कीट: यह समूह में रहने वाला कीट है। ये रागी फसल की पत्तियों, कोमल डंठलों तथा तने का रस चूसकर फसल को कमज़ोर बना देते हैं। पौधों पर चींटियों की उपस्थिति इसके आक्रमण को इंगित करती है। लाही कीट के नियंत्रण के लिए डायमेथोएट दवा का एक मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाने के बाद छिड़काव कर देना चाहिए।

रागी की फसल की कटाई

रागी की फसल कम दिनों में तैयार होकर अच्छी उपज देती है। फसल पकने के बाद कटाई करके रागी की बालियों को तीन से चार दिनों तक खलिहान की धूप में सुखाने के बाद दाने निकालने चाहिए। फिर साफ़-सफ़ाई करके इसे भंडारित करना चाहिए या बाज़ार में बेचना चाहिए।

रागी की खेती
तस्वीर साभार: ICAR-CCARI

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