कुसुम की खेती (Safflower Cultivation): जानिए, सूखे की आशंका वाले या असिंचित खेतों के लिए क्यों वरदान है ये तिलहनी फ़सल?

कुसुम एक ऐसा तिलहन है जो उन इलाकों के किसानों को भी ख़ुशहाल कर सकता है जहाँ सिंचाई के साधन नहीं है या फिर जहाँ सूखा पड़ने की आशंका बनी रहती है। इसीलिए कुसुम की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार ने 2016 में कुसुम को न सिर्फ़ सरसों के बराबर कर दिया बल्कि उसके बाद भी लगातार सरसों के मुक़ाबले कुसुम के लिए ज़्यादा MSP यानी न्यूनतन समर्थन मूल्य तय हुआ।

कुसुम की खेती safflower cultivation kusum ki kheti

दुनिया में भारत, कुसुम (safflower) का मुख्य उत्पादक देश है। देश के 2095 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। इसकी कुल पैदावार 1095 लाख टन है। ये ऐसा तिलहन है जिसका दाम सरसों से ज़्यादा है। तिलहनी फ़सलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार भी कुसुम की खेती (Safflower Cultivation) को ख़ूब प्रोत्साहित करती है। तभी तो साल 2015 तक जहाँ कुसुम का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सरसों से 50 रुपये प्रति क्विंटल कम हुआ करता था, वहीं नरेन्द्र मोदी सरकार ने 2016 में कुसुम को न सिर्फ़ सरसों के बराबर कर दिया बल्कि उसके बाद भी लगातार सरसों के मुक़ाबले कुसुम के लिए ज़्यादा MSP तय हुआ।

कुसुम की खेती को सरकारी प्रोत्साहन

कुसुम की MSP में लगातार ऐसी बढ़ोत्तरी होती रही कि साल 2022-23 के लिए इसका दाम सरसों से क़रीब 400 रुपये प्रति क्विंटल ज़्यादा रखा गया है। सरसों का MSP जहाँ 5050 रुपये प्रति क्विंटल है, वहीं कुसुम के बीजों का दाम 5441 रुपये तय किया गया है। सरसों और कुसुम के दाम में ऐसा फ़ासला तब है जबकि साल 2021-22 के बाद सरसों के MSP में 400 रुपये का इज़ाफ़ा किया गया तो कुसुम के मामले में ये बढ़ोत्तरी 114 रुपये प्रति क्विंटल की ही थी।

वैसे, सभी तिलहनों की तरह कुसुम का भी सही भाव पाने के लिए किसानों को MSP का सहारा नहीं लेना पड़ता। उन्हें आमतौर पर कृषि विक्रय मंडियों में व्यापारियों से MSP से ज़्यादा दाम ही मिलता है, क्योंकि देश में तिलहनों की पैदावार से हमारी घरेलू माँग भी पूरी नहीं होती। भारत में अभी सालाना क़रीब 250 लाख टन खाद्य तेलों की खपत है। जबकि हमारा घरेलू उत्पादन क़रीब 80 लाख टन का ही है। बाक़ी दो-तिहाई खाद्य तेल की माँग की भरपाई आयात से होती है।

मोदी सरकार के कार्यकाल में रबी फ़सलों की MSP (रुपये प्रति क्विंटल में)
वर्ष

अनाज

2013-14 2014-15 2015-16 2016-17 2017-18 2018-19 2019-20 2020-21 2021-22 2022-23 उत्पादन लागत 2022-23*
गेहूँ 1400 1450 1525 1625 1735 1840 1925 1975 1975 2015 1008
जौ 1100 1150 1225 1325 1410 1440 1525 1600 1600 1635 1019
चना 3100 3175 3500 4000 4400 4620 4875 5100 5100 5230 3004
मसूर 2950 3075 3400 3950 4250 4475 4800 5100 5100 5500 3079
सरसों 3050 3100 3350 3700 4000 4200 4425 4650 4650 5050 2523
कुसुम 3000 3050 3300 3700 4100 4945 5215 5327 5327 5441 3627

*उत्पादन लागत में किसान के परिवार का श्रम, जुताई, बीज, खाद, सिंचाई, दवाई, खेत का किराया, श्रमिकों की मज़दूरी, खेती के उपकरणों तथा सभी पूँजीगत खर्च शामिल है।  (स्रोत – पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार)

कुसुम के बेजोड़ गुण

जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के पौध संरक्षण विभाग के वैज्ञानिक प्रमोद कुमार गुप्ता और जबलपुर के ही खरपतवार अनुसन्धान निदेशालय (ICAR-Directorate of Weed Research) की वैज्ञानिक योगिता घरडे के अनुसार, कुसुम एक सूखा सहनशील फसल है। बुआई के बाद खेत में कुसुम के बीजों के अंकुरित होने के बाद आम तौर पर फसल कटने तक सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। क्योंकि कुसुम के पौधे मिट्टी की सतह पर अपेक्षाकृत धीरे-धीरे बढ़ते हैं, जबकि मिट्टी के नीचे इसकी जड़ें काफ़ी तेज़ी से बढ़ती हैं और जल्द ही नमी की ज़रूरतें पूरी करने लायक बनकर कुसुम के पौधों को स्वावलम्बी बना देती हैं।

कुसुम की खेती में असिंचित इलाकों की तस्वीर बदल देने की क्षमता है। इस तथ्य की अहमियत का सीधा नाता हमारे कृषि क्षेत्र की स्थिति से है। क्योंकि केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2020-2021 में लिखे Land use statistics यानी ‘भूमि उपयोग सांख्यिकी 2016-17’ के अनुसार, देश में खेती-बाड़ी की कुल ज़मीन में से सिंचित क्षेत्र का इलाका 6.86 करोड़ हेक्टेयर है, जो भारत की कुल खेती योग्य ज़मीन का 34.26 फ़ीसदी है और जितनी ज़मीन पर देश में खेती हो पाती है उसका 49.2 प्रतिशत है।

इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.87 करोड़ हेक्टेयर है। इसमें से 20.02 करोड़ हेक्टेयर (60.9%) ज़मीन पर खेती-बाड़ी हो सकती है। लेकिन फसलों की पैदावार सिर्फ़ 13.94 करोड़ हेक्टेयर में ही होती है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 42.4 फ़ीसदी और देश की कुल खेती योग्य ज़मीन का 69.6 फ़ीसदी है। इसका मतलब है कि अब भी देश की कुल खेती योग्य ज़मीन में से 30 फ़ीसदी से ज़्यादा पर खेती नहीं हो रही है।

कुसुम की खेती safflower cultivation kusum ki kheti
तस्वीर साभार: ICAR-Indian Institute Of Oilseeds Research

कुसुम की खेती (Safflower Cultivation): जानिए, सूखे की आशंका वाले या असिंचित खेतों के लिए क्यों वरदान है ये तिलहनी फ़सल?औषधीय गुणों से भरपूर है कुसुम

कुसुम एक ऐसा तिलहन है जो औषधीय गुणों से भरपूर है। कुसुम के तेल का सेवन उच्च रक्त चाप और हृदय रोगियों के लिए बहुत फ़ायदेमन्द है, क्योंकि इसमें कॉलेस्ट्रॉल बहुत कम होता है। कुसुम के तेल की मालिश से माँसपेशियों की चोट, सिर दर्द और जोड़ों के दर्द में बहुत राहत मिलती है। कुसुम के बीजों से 30 से लेकर 36 प्रतिशत तक पौष्टिक खाद्य तेल यानी वसीय तत्व निकलता है। कुसुम की पंखुड़ियों से बनी चाय का उपयोग शक्तिवर्द्धक के रूप में किया जाता है, तो मानसिक रोगियों के लिए कुसुम के हरे पौधों के रस का प्रयोग उत्तम पाया गया है। जिन इलाकों में जंगली जानवरों से फसलों को नुकसान पहुँचने का ख़तरा रहता है, वहाँ खेतों की बाड़बन्दी के लिए कुसुम की कंटीली किस्मों की फसल लेने से दोहरा फ़ायदा होता है।

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सेहत के लिए उत्तम है कुसुम का तेल

अन्य खाद्य तेलों की तुलना में कुसुम के तेल में असंतृप्त वसीय अम्ल (unsaturated fatty acids) जैसे Linoleic acid (76%) और Oleic acid (14%) की मात्रा अधिक होती है। बता दें कि वसा (fat) हमारे भोजन का एक प्रमुख और आवश्यक स्रोत है। वसीय तत्वों से जहाँ शरीर को ख़ूब ऊर्जा (कैलोरी) मिलती है, वहीं ये कुछेक विटामिनों और खनिजों के पाचन में भी जटिल भूमिका निभाते हैं। लेकिन ज़्यादा वसीय तत्व के सेवन से शरीर का वजन बढ़ाता है और सेहत सम्बन्धी अनेक समस्याएँ पैदा होती हैं।

रसायन शास्त्र की भाषा में वसा अम्ल (fatty acids) ऐसे कार्बनिक यौगिक हैं जिसके अणु, कार्बन और हाइड्रोजन के परमाणुओं की जटिल शृंखला से बनते हैं। ये संतृप्त (saturated) तथा असंतृप्त (unsaturated) दोनों तरह के होते हैं। जिन वसा अम्लों के अणुओं में सभी परमाणु बन्धन एकल होते हैं उसे संतृप्त तथा जिसके अणुओं में एकल के अलावा द्विबन्ध या त्रिबन्ध परमाणु भी होते हैं उसे असंतृप्त कहा जाता है। जानवरों का माँस और डेयरी उत्पाद जहाँ संतृप्त वसीय अम्लों के मुख्य स्रोत हैं वहीं खाद्य तेलों में असंतृप्त वसीय अम्लों की भरमार होती है।

कुसुम की खेती safflower cultivation kusum ki kheti
तस्वीर साभार: jivabhumi

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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