वैज्ञानिकों ने बताए ऐसे फलदार पेड़ जो बंजर ज़मीन और किसान, दोनों की तक़दीर बदल सकते हैं

उपजाऊ मिट्टी तो सबको खुशहाली देती है लेकिन क़माल तो तब है जबकि ऊसर में भी आ जाए जान

ऊसर भूमि में ‘आगर होल तकनीक’ का इस्तेमाल करके आँवला, अमरूद, बेर और करौंदा के फलदार पेड़ों को न सिर्फ़ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, बल्कि इसकी खेती लाभदायक भी हो सकती है। लागत और आमदनी के पैमाने पर आँवला, करौंदा और अमरूद बेहतरीन रहते हैं। आँवले के मामले में लागत से 2.48 गुना आमदनी हुई तो अमरूद के मामले में ये अनुपात 2.15 गुना और करौंदा के लिए 1.96 गुना रहा।

अच्छे का अच्छा करना तो आम बात है। ख़ास तो है कि ख़राब भी अच्छा बन जाए। मिट्टी से जुड़ी ऐसी ही चुनौती को क़रीब दो दशक पहले केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान यानी Central Soil Salinity Research Institute (ICAR-CSSRI) के वैज्ञानिकों ने अपने हाथों में लिया। लम्बे शोध के बाद लखनऊ स्थित क्षेत्रीय अनुसन्धान केन्द्र ने पाया कि कई ऐसे फलदार पेड़ हैं जो न सिर्फ़ ऊसर ज़मीन में भी अच्छी कमाई दे सकते हैं, बल्कि इनकी खेती करने से ऊसर मिट्टी को उपजाऊ भी बनाया जा सकता है।

खेती-किसानी में ख़ुशहाली के पीछे सबसे ज़्यादा योगदान किसानों उपजाऊ मिट्टी का होता है, इसीलिए क़माल की खेती तो वो है जब ऊसर में नयी जान फूँकी जा सके, उसे उपजाऊ बनाया जा सके और उससे बढ़िया कमाई की जा सके। मिट्टी के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने जो नुस्ख़े बताएँ हैं यदि उसमें किसानों की मेहनत भी जुड़ जाए तो देखते ही देखते देश की 67 लाख हेक्टेयर ऊसर ज़मीन का कायाकल्प होने लगेगा। वैज्ञानिकों ने 10 वर्षों के परीक्षण में पाया कि ऊसर भूमि में ‘आगर होल तकनीक’ का इस्तेमाल करके आँवला, अमरूद, बेर और करौंदा के फलदार पेड़ों को न सिर्फ़ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, बल्कि इससे लाभदायक कृषि भी हो सकती है।

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67 लाख हेक्टेयर है ऊसर ज़मीन

वैज्ञानिकों ने पाया कि ‘आगर होल तकनीक’ से 10.2 pH मान तक की अनुपजाऊ मिट्टी पर अनेक फलदार पेड़ों का बाग़ीचा लगाया जा सकता है। इन पेड़ों की बदौलत ऊसर भूमि को सुधारकर उसे उपजाऊ मिट्टी में बदला जा सकता है। ये तकनीक कितनी युगान्तरकारी साबित हो सकती है, इसे समझने के लिए ये जानना ज़रूरी है कि भारत में प्रति व्यक्ति खेती योग्य ज़मीन का अनुपात लगातार घट रहा है, क्योंकि शहरीकरण और तमाम विकास योजनाओं में अक्सर खेती की उपजाऊ ज़मीन का परित्याग करना पड़ता है।

राष्ट्रीय कृषि आयोग ने क़रीब 4 करोड़ हेक्टेयर बंजर ज़मीन पर वन विकसित करने की सिफ़ारिश की है। कुल बंजर ज़मीन में से ऊसर भूमि की हिस्सेदारी क़रीब 67.3 लाख हेक्टेयर है। इसके अलावा देश में ऐसा भी बहुत बड़ा भूभाग है जहाँ भूजल की गुणवत्ता इतनी ख़राब है कि उससे सिंचाई नहीं हो सकती। कृषि उत्पादन बढ़ाने में ये अत्यधिक बाधक साबित होता है, क्योंकि जहाँ सिंचाई के लिए साफ़ पानी नहीं मिलता वहाँ न सिर्फ़ पैदावार गिरती है, बल्कि उपज भी प्रदूषित और घटिया स्तर वाली ही मिलती है। जहाँ मिट्टी और पानी की क्वालिटी बढ़िया नहीं होती वहाँ जंगली वनस्पतियाँ भी ढंग से नहीं पनपतीं।

फलदार वृक्ष लगाने के लिए ट्रैक्टर जनित आगार होल
फलदार वृक्ष लगाने के लिए ट्रैक्टर जनित आगार होल

क्या है ‘आगर होल तकनीक’?

ऊसर भूमि में लवणों की अधिकता होती है। इसकी सतह से नीचे करीब 80 से लेकर 150 सेंटीमीटर तक कंकड़ की परत मिलती है। पौधों की जड़ों के विकास में ऐसी कठोर ज़मीन भारी अवरोधक बनती है। इसीलिए वृक्षारोपण की सफलता के लिए कंकड़ की परत को तोड़ना बेहद ज़रूरी होता है। इसी काम के लिए ‘आगर होल तकनीक’ का इस्तेमाल करते हैं ताकि पौधों की जड़ों का पर्याप्त विकास हो सके। इस तकनीक में ट्रैक्टर चालित उपकरण से आगार होल या ऐसा गड्ढा खोदा जाता है जिसमें 6-9 महीने के परिपक्व पौधों की रोपाई करते हैं वो करीब एक फुट ज़मीन के नीचे स्थापित हो सकें।

दरअसल, ऊसर ज़मीन में सफल वृक्षारोपण के लिए ज़रूरी है कि जहाँ पौधा रोपा जाए वहाँ उन्हें ठीक से जमने के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व भी उपलब्ध करवाए जाएँ। मिट्टी में मौजूद ऐसे लवणों के प्रभाव को कम किया जाए जो ऊसर का सबब बनते हैं। इसके लिए उचित मात्रा में कार्बनिक और अकार्बनिक सुधारक तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकि लवणों की अधिकता के कारण पौधों की मौत की दर को कम से कम करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

ऊसर में पेड़ लगाने से पहले भूमि की तैयारी

ऊसर भूमि में पानी को सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। वहाँ लम्बे समय तक जल जमाव की दशा पैदा होती है। इससे पौधों का विकास प्रभावित होता है। इसीलिए ऊसर में फलदार पेड़ों को लगाने से पहले उसे समतल करना अति आवश्यक है। इसका उद्देश्य जल निकासी की ऐसी व्यवस्था करना होता है जिससे फ़ालतू पानी खेत में जमा नहीं हो सके।

ऊसर के लिए पौधों का चयन

ऊसर भूमि में वृक्षारोपण के लिए रोपाई की विधि सामान्य भूमि की अपेक्षा काफ़ी अलग होती है। चूँकि ऊसर की अत्यन्त लवणीय मिट्टी में पौधों की मृत्युदर बहुत ज़्यादा होती है, इसलिए वृक्षारोपण के वक़्त ऐसे फलदार किस्मों का पहचान करना बेहद ज़रूरी है जो ऊसर की चुनौतियों का मुकाबला करते हुए न सिर्फ़ जीवित रहें बल्कि उपज भी ऐसी दें जिससे सारी मेहनत और निवेश को लाभकारी बनाया जा सके। इसी कठिन चुनौती को देखते हुए केन्द्रीय भूमि लवणता अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अनार, अमरूद, करौंदा, आम, इमली, जामुन, आँवला और बेर जैसे फलदार पौधों को 10.2 pH मान वाली ऊसर ज़मीन पर उगाने की कोशिश की।

फिर दस साल तक इसके हरेक पहलू का अध्ययन करके पाया कि वृक्षारोपण के सफल होने से ऊसर भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में काफ़ी सुधार आया। मिट्टी में पौधों की जड़ों के गहराई तक जाने से निचली सतहों तक नमी के पहुँचने की प्रवृति में सुधार हुआ। पौधों की पत्तियों के झड़ने से बनी खाद की वजह से मिट्टी की लवणीयता में कमी आयी और उसमें कार्बनिक तत्वों का अनुपात बढ़ा। मिट्टी के गुणों में सबसे बढ़िया सुधार आँवला के पौधों के मामले में नज़र आया तो इमली और अनार के पौधों के नीचे आया बदलाव सबसे कम रहा।

आँवले ने किया सबसे शानदार प्रदर्शन

आम और अनार को छोड़कर अन्य सभी फलदार पेड़ों में मृत्युदर 5 प्रतिशत से कम रही। सबसे अच्छा विकास आँवला और जामुन के पौधों में हुआ। आँवले का तने की मोटाई भी सबसे ज़्यादा पायी गयी। अध्ययन से स्थापित हुआ कि उपरोक्त सभी किस्में ऊसर में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। दस वर्षीय उत्पादकता के लिहाज़ से आँवला, अमरूद, बेर और करौंदा की उपज बेहतरीन रही। लेकिन अनार, इमली और जामुन का उत्पादन बहुत कम रहा।

लागत और आमदनी के पैमाने पर आँवला, करौंदा और अमरूद बेहतरीन रहे। आँवले के मामले में लागत से 2.48 गुना आमदनी हुई तो अमरूद के मामले में ये अनुपात 2.15 गुना और करौंदा के लिए 1.96 गुना रहा। जबकि इमली, अनार और जामुन के मामले में लागत और कमाई का अनुपात नकारात्मक पाया गया। लेकिन जल भराव की दशा में इन सभी पेड़ों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव भी देखा गया।

कैसे करें ऊसर में वृक्षारोपण?

सबसे पहले वृक्षारोपण के लिए ऊसर ज़मीन के इलाके की पहचान करनी चाहिए। इसके बाद ज़मीन का इस ढंग से समतलीकरण किया जाना चाहिए जिससे वहाँ जल भराव की दशा पैदा नहीं हो सके। अब बारी आएगी मिट्टी का परीक्षण करवाने की। इसके लिए एक हेक्टेयर के खेत में कम से कम 3 स्थानों पर क़रीब 1.5 मीटर गहराई तक ज़मीन को खोदा जाए। फिर उन गड्ढों की विभिन्न सतहों का नमूना लेकर उनका pH मान, विनिमय योग्य सोडियम प्रतिशत एवं कार्बनिक कार्बन के स्तर का परीक्षण किया जाए। ऊसर में कंकड़ की परत किस गहराई पर है? इसका भी आँकलन किया जाये। फिर ऐसे सभी तथ्यों को आधार बनाकर वृक्षारोपण की योजना बनायी जाए।

ऊसर में वृक्षारोपण के लिए सितम्बर के पहले सप्ताह का मौसम सबसे अनुकूल है। बाग़वानी के सामान्य नियमों का ध्यान रखते हुए ऐसे निश्चित ढंग से आगर होल करना चाहिए जिससे पौधे से पौधे की दूरी 5 मीटर और कतार से कतार के बीच 4 मीटर का फसला रहे। इन गड्ढों में पौधों की रोपाई के बाद आगर होल के भराव के लिए ऐसे ख़ास मिश्रण का इस्तेमाल किया जाना बेहद ज़रूरी है जिसे मिट्टी के गुणों को देखते हुए बनाया गया हो।

आम तौर पर ऊसर ज़मीन में भराव के लिए जो मिश्रण बनाया जाए उसमें 7.5 किग्रा जिप्सम, 10 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद, 20 किग्रा नदी की तह में जमी मिट्टी (सिल्ट) और 10 ग्राम ज़िंक सल्फेट तथा गड्ढे से निकली गयी मिट्टी होनी चाहिए। पौधों के सही जमाव और विकास के लिए रोपाई के बाद पहली सिंचाई होनी चाहिए। फिर अगले दिन महीने तक ज़रूरत के हिसाब से सिंचाई हो, ताकि पौध अच्छी तरह स्थापित हो जाएँ।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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