ज्वार (sorghum) से बने महंगे उत्पादों ने बदली सोलापुर के किसानों की किस्मत

कृषि विज्ञान केंद्र, सोलापुर ने ज्वार से बने उत्पादों को बनाने के लिए महिला किसानों के कौशल को विकसित करने में मदद की।

ज्वार (sorghum) से बने महंगे उत्पादों ने बदली सोलापुर के किसानों की किस्मत

यदि आप खेती से अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो बस किसी एक फसल के उत्पादन तक ही सीमित न रहें, बल्कि नई-नई तकनीकों  के बारे में जानकारी जुटाने के साथ ही, उस फसल से बनने वाले महंगे उत्पादों के बारे में पता लगाएं और उन्हें बनाने की कोशिश करें। इससे लोगों को वैरायटी तो मिलेगी ही, आपको डबल मुनाफा भी होगा। ज्वार जैसी कई ऐसी फसलें होती हैं जिनसे पारंपरिक रूप से सिर्फ रोटी ही बनाई जाती है।

यह पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है और इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है। यह डायबिटीज  के मरीज़ों से लेकर मोटोपा कम करने की चाह रखने वालों तक के लिए बहुत फायदेमंद है। लेकिन ज्वार की रोटी  ज़्यादातर लोगों और खासतौर पर बच्चों को पसंद नहीं आती। इसीलिए सोलापुर के किसानों ने कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से ज्वार से ढेरों मूल्य संवर्धन उत्पाद बनाना सीख लिया।

मूल्य संवर्धन की नई तकनीक

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में बड़े पैमाने पर ज्वार जिसे सोरगम भी कहते हैं, की खेती की जाती है। करीब 4.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में  इसकी फसल लगाई जाती थी, लेकिन उत्पादन की तुलना में आमदनी बहुत कम होती थी, क्योंकि इसकी बाज़ार मांग अधिक नहीं थी। हालांकि यह बहुत पौष्टिक होता है और इसमें मिनरल्स और विटामिन्स की प्रचुरता होती है। इसीलिए कृषि विज्ञान केंद्र ने आईसीएआर-आईआईएमआर, हैदराबाद और एमपीकेवी, राहुरी द्वारा विकसित ज्वार के मूल्य वर्धित उत्पादों को बढ़ावा देने वाली नई तकनीक के बारे में जागरूकता पैदा करने का फैसला किया।

दरअसल, सोलापुर जिले में एक परंपरा है जब ज्वार मकई (कॉर्न) हरे रंग की होती है,  तो किसान अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को खेत में हुर्दा खाने के लिए बुलाते हैं। ज्वार में दाना भरने के  बाद हरे दानों को छोटा-सा गड्ढा खोदकर डाला जाता है और गाय के गोबर से ढक कर भूना जाता है।  भूनने के बाद इसकी थ्रेसिंग की जाती है। भुने हुए दानों को मूंगफली की चटनी के साथ परोसा जाता है। इसे तैयार होने में सामान्य ज्वार से 30-40 दिन कम का समय लगता है। कृषि विज्ञान केंद्र सोलापुर ने हुर्दा की वैरायटी को किसानों के बीच लोकप्रिय करने का बीड़ा उठाया।

कृषि विज्ञान केंद्र, सोलापुर ने इन संवर्धित  उत्पादों को बनाने के लिए महिला किसानों में कौशल विकसित करने का प्रयास किया
कृषि विज्ञान केंद्र, सोलापुर ने इन संवर्धित  उत्पादों को बनाने के लिए महिला किसानों में कौशल विकसित करने का प्रयास किया, तस्वीर साभार: Ministry of Agriculture and Farmers Welfare

ज्वार (sorghum) से बने महंगे उत्पादों ने बदली सोलापुर के किसानों की किस्मत

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महिला किसानों को बनाया कुशल

चूकि ज्वार की खेती आमतौर पर सभी किसानों द्वारा की जाती है, इसलिए प्रोसेसिंग के लिए यह आसानी से उपलब्ध है। प्रोसेस करके इससे ज्वार कड़क रोटी, रोटी, केक, बिस्कुट, हुर्दा (भुना  हुआ हरा अनाज) बनाया जा सकता है। कृषि विज्ञान केंद्र, सोलापुर ने इन संवर्धित उत्पादों को बनाने के लिए महिला किसानों में कौशल विकसित करने का प्रयास किया। कई स्थानों पर व्यवसायिक प्रशिक्षण आयोजित करके किसानों और उद्यमियों को लाभान्वित करने की कोशिश की गयी।

मूल्य संवर्धिन उत्पादों में हुई वृद्धि

कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा लगातार सलाह और तकनीकी सहयोग प्रदान करने की वजह से इलाके में ज्वार के मूल्य संवर्धन उत्पादों में बढ़ोतरी हुई। कृषि विज्ञान केंद्र ‘शबरी फ्रेश’ के नाम से पंजीकृत ट्रेडमार्क  के रूप में ज्वार रवा, ज्वार केक, ज्वार बिस्कुट आदि को ब्रांडेड किया है। साथ ही केवीके सोलापुर के ज्वार उत्पादों का FSSAI रजिस्ट्रेशन भी किया गया और महिला उद्यमियों को ज्वार प्रसंस्करण की सुविधा प्रदान की गयी।

हुर्दा के लिए इस किस्म की ज्वार का उत्पादन

हुर्दा बनाने के लिए फुले मधुरा किस्म का उत्पादन किया जाता है। जिले में कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र ने इस किस्म के 450 किलो बीज को 219 किसानों के बीच वितरित किया। इस किस्म का औसत क्षेत्रफल 0.10 हेक्टेयर है। ग्रामीण युवाओं को 0.10 हेक्टेयर क्षेत्र से औसतन 20 हज़ार 500 रुपये का शुद्ध लाभ यानी 2 लाख 5 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ मिला। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता और लोकप्रिय प्रसंस्कृत उत्पादों के कारण बहुत कम कीमत वाला ज्वार लोगों में काफी लोकप्रिय है।

ज्वार के मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की नई तकनीक का फ़ायदा 102 गावों के करीब 42000 परिवारों को हो चुका है। सामान्य ज्वार 110-130 दिनों में तैयार होती है और 25 से 30 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। वहीं हुर्दा 85-90 दिनों में ही तैयार हो जाती है और इसे 210 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है। यानी 90 दिनों में 7 गुना अधिक कीमत पर यह बिकता है।

फुले मधुरा किस्म की पैदावरा भी अच्छी है। एक ग्रामीण युवा 0.10 हेक्टेयर क्षेत्र से 20 हज़ार 500 रुपये का लाभ कमा सकता है यानी प्रति हेक्टेयर 2 लाख 5 हज़ार रुपये। चूंकि अब लोग सेहत के प्रति अधिक जागरुक हो रहे हैं ऐसे में पौष्टिक तत्वों से भरपूर ज्वार से बने उत्पादों की मांग और बढ़ेगी।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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