सुपारी के पत्तों की प्लेट्स बनाकर अच्छी कमाई कर रहीं मिज़ोरम की आदिवासी महिलाएं

थर्मोकॉल और कागज़ की प्लेट अब पुराने ज़माने की बात हो गई है, वैसे भी प्लास्टिक बैन के बाद से बाज़ार में थर्मोकॉल के प्लेट्स मिलना बंद हो गए हैं। ऐसे में लोगों को एक अच्छे विकल्प की तलाश है, जिसे सुपारी के पत्ते पूरा कर रहे हैं। सुपारे के पत्तों से बनी प्लेट्स की आजकल बाज़ार में अच्छी मांग है और मिजोरम की आदिवासी महिलाओं के लिए ये वरदान बन गया है।

सुपारी के पत्तों से बनी प्लेट betel leaf plates

मिजोरम की आदिवासी महिलाएं इन दिनों खुद को आर्थिक रूप से मज़बूत बना रही हैं, सुपारी के पत्तों से प्लेट बनाकर। दरअसल, मिजोरम में जूम खेती के बाद छोड़ा हुआ क्षेत्र जो बेकार पड़ा हुआ था, वहां अब बड़े पैमाने पर सुपारी जिसे स्थानीय भाषा में कहवा भी कहा जाा है, की खेती की जा रही है।

किसानों के बीच ये बहुत लोकप्रिय भी हो चुकी है, खासतौर पर कोलासिब और रेंगदिल जिले में। इसकी एक बड़ी वजह है स्थानीय बाज़ार में इसकी बढ़ती मांग और कटाई के बाद प्रोसेसिंग की बहुत कम ज़ररूत। इसके साथ ही पड़ोसी राज्य असम में सुपारी के पत्तों से बनी प्लेट के निर्यात की संभावनाएं भी बहुत अधिक है।

सुपारी की खेती को लोकप्रियता का एक और कारण है इसके वेस्ट यानी बेकार पत्तों से उपयोगी प्लेट बनाना। और इस तरकीब ने न सिर्फ गरीब आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि उनके लिए रोज़गार सृजन भी किया है।

सुपारी के पत्तों की प्लेट्स बनाकर अच्छी कमाई कर रहीं मिज़ोरम की आदिवासी महिलाएं

ईको फ्रेंडली प्लेट (Eco Friendly Disposable Plates)
शादी-पार्टी, पूजा-पाठ और त्योहारों में प्लास्टिक की प्लेट्स का बहुत इस्तेमाल होता है और इस्तेमाल के बाद इन्हें यू ही कचरे में फेंक दिया जाता है जिससे कचरे का अंबार लगता जाता है और ये प्लेट्स जल्दी नष्ट भी नहीं होती है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है।

लेकिन अब इस समस्या को सुपारी के पत्तों के आवरण से प्लेट्स बनाकर दूर किया जा सकता है। मिजोरम में ये काम बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इस तरकीब से न सिर्फ खेती से निकलने वाला कचरा कम हो रहा है, बल्कि उसकी रिसाइकलिंग से बेहतरीन उत्पाद भी तैयार हो रहा है जिससे गरीब किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने का मौका मिल रहा है।

चूंकि ये प्लेट्स यूज़ करने के बाद जब फेंक दी जाती है, तो धूप और मिट्टी में पड़े-पड़े ये धीरे-धीरे नष्ट होकर खाद बन जाती है। अच्छी बात ये है कि ये प्लेट्स मज़बूत होती है और इसमें आसानी से खाना पड़ोसा जा सकता है।

सुपारी के पत्तों से बनी प्लेट
सुपारी के पत्तों से बनी प्लेट (तस्वीर साभार: ecplaza)

ICAR की पहल
सुपारी की पत्तियां और इसके आवरण आसानी से उपलब्ध हैं, ऐसे में आदिवासियों के लिए इनके इस्तेमाल आसान है। यही सोचकर एनईएच क्षेत्र के लिए ICAR रिसर्च कॉम्प्लेक्स, मिजोरम केंद्र ने कावनपुई कोलासिब और रेंगदिल, ममित जिले में मोटर से चलने वाली सेमी ऑटोमेटिक मशीन लगवाई, ये मशीन बायोडिग्रेडेबल ईकोफ्रेंडली सुपारी की पत्तियों से प्लेट्स बनाती है। इन मशीनों की स्थापना ICAR ने जनजातीय उप योजना (टीएसपी) के तहत की।

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स्किल डेवलपमेंट के लिए बनाएं स्वयं सहायता समूह
आदिवासी किसानों खासतौर पर महिलाएं सुपारी के पत्तों से बेहतरीन प्लेट्स बना सके इसके लिए उनका कौशल विकास ज़रूरी थी। इस मकसद को पूरा करने के लिए फरवरी 2019 में कवन्पुई महिला किसान क्लब (43 सदस्य) और रेंगदिल ग्राम संगठन (182 सदस्य) नाम से दो स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया।

इन समूहों में शामिल महिलाओं को सुपारी की पत्तियों के आवरण से प्लेट्स बनाने संबंधी कौशल सिखाया गया। इसके लिए महिला सदस्यों को अपने कॉमन बैंक अकाउंट में बस एक मामूली सी रकम जमा करने के लिए कहा गया।

सुपारी के पत्तों से बनी प्लेट
सुपारी के पत्तों से बनी प्लेट (तस्वीर साभार: ICAR)

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प्लेट बनाने की प्रक्रिया
प्लेट्स बनाने के लिए सबसे पहले महिलाएं गिरे हुए सुपारी के पत्तों को उठाती हैं और उसके बाद उनमें से खराब पत्तों को अलग किया जाता है। फिर उन्हें करीब एक हफ्ते तक धूप में सुखा जाता है। जिसके बाद इन्हें प्लेट्स बनाने वाली मशीन में डालकर 30 और 20 से.मी. साइज़ की प्लेटे बनाई जाती हैं। चूकिं मार्केट में 30 से.मी. साइज़ की प्लेट्स की मांग अधिक है इसलिेए इनका उत्पादन अधिक किया जाता है।

महिलाओं की आजीविका में सुधार
पिछले तीन सालों में कवन्पुई महिला किसान क्लब ने 570653 प्लेटों और रेंगदिल ग्राम संगठन ने 1046639 प्लेटों का निर्माण किया। जनजातीय उप योजना कार्यक्रम की ‘वेस्ट टू वेल्थ’ पहल के तहत महिलाओं को सुपारी के पत्तों से प्लेट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और इसके नतीजे उत्साहजनक रहें। इससे न सिर्फ कृषि कचरे का सदुपयोग हो रहा है, बल्कि इसने महिलाओं को आजीविका के साधन प्रदान करके उन्हें सशक्त भी बनाया है।

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