किसान ऑफ़ इंडिया की टीम आपके लिए देश के अलग-अलग कोनों से खेती-किसानी की कहानियां लाता रहा है। हाल ही में मैं अपनी टीम के साथ उत्तराखंड पहुंची। यहां मेरी मुलाकात भीमताल के गाँव अलचौना के रहने वाले प्रगतिशील किसान आनन्द मणि भट्ट से हुई। उनसे मिलने का समय पहले से ले रखा था। उत्तराखंड में जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देने में उनके कार्यों को सराह जाता रहा है। आनंद मणि भट्ट से प्रेरित होकर उनके गाँव के करीबन 70 फ़ीसदी किसान जैविक खेती का रूख कर चुके हैं। उन्होंने जल संरक्षण और जल प्रबंधन को लेकर बेहद ही सराहनीय कदम उठाए हैं। इसके अलावा, आनंद मणि भट्ट अपने नए-नए प्रयोगों के लिए भी जाने जाते हैं। इस लेख में मैं आपको आनंद मणि भट्ट के खेती के सफर से लेकर उनके इनोवेशन्स और खेती की तकनीकों के बारे में बताऊंगी।
आनंद मणि भट्ट किसान परिवार से ही आते हैं और एमकॉम पास हैं। उन्होंने कई साल मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की, लेकिन शुरू से ही उनका लगाव खेती-किसानी से रहा। उन्होंने नौकरी छोड़ 2013 से खेती में कदम रखा। आज वो एक एकड़ क्षेत्र में मटर, टमाटर, बंद गोभी, बीन्स, आलू, शिमला मिर्च, सलादी मिर्च, अचारी मिर्च जैसी कई सब्जियों की खेती करते हैं। आनंद मणि भट्ट ने बताया कि उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र, पंत यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों, कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के अधिकारियों और ज़िले के उद्यान विभाग के अधिकारियों का भरपूर सहयोग मिला।
खेत में लगाया काला आलू
आनंद मणि भट्ट ने अपने खेत में पिछले साल मार्च में प्रयोग के तौर पर ढाई किलो काला आलू लगाया था। आनंद मणि भट्ट बताते हैं कि इस काले आलू की फसल का उत्पादन उन्हें काफ़ी अच्छा मिला। जून में इसकी खुदाई की गई। ढाई किलो से उन्हें 50 किलो काले आलू का उत्पादन हुआ।
सड़े हुए आलू से भी कर दिखाया उत्पादन
आनंद मणि भट्ट अपने इस इनोवेशन पर कहते हैं कि पहाड़ में आलू को लंबे समय के लिए स्टोर करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक दिक्कत का सामना उन्हें भी करना पड़ा। आनंद मणि बताते हैं कि उनके द्वारा स्टोर किए गए काले आलू में बहुत लंबे अंकुरण आ गए थे, जिनको मजबूरन उन्हें आलू के बीज से तोड़कर अलग फेंकना पड़ा। उनके द्वारा तोड़े गए आलू को जब स्टोर किया गया, वह आलू कुछ समय बाद सड़ गए। इससे उन्हें झटका लगा क्योंकि वो अपने क्षेत्र के किसानों को इसका बीज उपलब्ध कराकर आलू की खेती को बढ़ावा देना चाहते थे। उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने आलू में आए अंकुरण को प्रयोग के तौर पर देखा।
उन्होंने कूड़े के ढेर में फेंके हुए आलू के 1 मीटर लंबे अंकुरण की कटिंग कर अपने खेत में लगाए। इसका सफल परिणाम उन्हें मिला। आनंद मणि भट्ट कहते हैं कि किसान साथी अपने आलू में आए हुए अंकुरण को लगाकर भी आलू का उत्पादन कर सकते हैं और साथ ही उस आलू को भी लगा सकते हैं, जिसमें अंकुरण आया था।
खुद तैयार करते हैं जैविक खाद
इसके बाद आनंद मणि भट्ट ने हमें अपनी जैविक खाद की यूनिट्स दिखाईं। जैविक खाद को बनाने के लिए किन-किन चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है, उसके बारे में बताया। खरपतवार को खाद में तब्दील करने के लिए वो वेस्ट डीकम्पोजर (Waste Decomposer) का इस्तेमाल करते हैं। वेस्ट डीकम्पोजर फसलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
आनंद मणि भट्ट कुनाब जल भी खुद ही बनाते हैं। वो कुनाब जल बनाने के लिए खरपतवार, गुड़, सरसों की खली, नीम की खली, गौमूत्र, गाय का गोबर, बेसन और अंकुरित दालों का प्रयोग करते हैं। कुनाब जल फफूंद नाशक दवा का काम करता है। कुनाब जल फसलों पर लगने वाले कई तरह के रोगों को नियंत्रित करने में कारगर है।
आनंद मणि भट्ट कीट रोधी कुनाब जल भी तैयार करते हैं। इस कीट रोधी कुनाब जल को मिर्च, तंबाकू, गुड़, सरसों की खली, नीम का तेल, गाय के गोबर और गौमूत्र के मिश्रण से तैयार किया जाता है। आनंद मणि भट्ट ने बताया कि ये तरीके कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों और आत्मा संस्था के अधिकारियों द्वारा बताए गए। कृषि विकास योजना के तहत उनके क्षेत्र के किसानों को जैविक खाद के बारे में जानकारी दी गई।
जल प्रबंधन पर कर रहे सराहनीय काम
आनंद मणि भट्ट ने अपने क्षेत्र में पानी के प्रबंधन की भी अच्छी व्यवस्था की है। कई वॉटर टैंक बनाए हुए हैं। ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा हुआ है। आनंद मणि भट्ट कहते हैं कि वर्तमान में किसानों को सूक्ष्म सिंचाई पद्धति के लिए सब्सिडी मिल रही है। इसका लाभ किसान ले सकते हैं।
फव्वारा सिंचाई और टपक सिंचाई की तकनीक अपनाई
इस सब्सिडी के अंतर्गत उन्होंने अपने खेतों में फव्वारा सिंचाई और टपक सिंचाई की व्यवस्था की हुई है। इस तकनीक से किसान पानी को 60 से 70 फ़ीसदी तक बचा सकते हैं। इस तरह से किसान खेती से ज़्यादा मुनाफ़ा ले सकते हैं। फव्वारा सिंचाई और टपक सिंचाई पद्धति से किसान फसल को उसकी ज़रूरत के हिसाब से पानी दे सकते हैं। इससे फसल को सही मात्रा में पानी तो मिलता ही है, साथ ही पानी भी बर्बाद नहीं होता।
बिना रेशे वाली बीन्स का किया उत्पादन
आनंद मणि भट्ट ने बीन की फसल में भी प्रयोग किया। उन्होंने बिना रेशे वाली बीन्स का उत्पादन किया। उन्होंने महाराष्ट्र की एक कंपनी से बीज मंगवाया और उसे अपने खेत में बो दिया। आनंद मणि भट्ट कहते हैं कि उनके क्षेत्र के किसानों को इस किस्म की पहले कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने अपने खेत में प्रयोग के तौर पर 200 ग्राम बीज लगाए। इससे जो उत्पादन हुआ, उससे उन्हें करीबन 40 हज़ार की आमदनी हुई। उन्होंने 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से अपनी बीन की उपज बेची। एक पौधे से 5 से 7 किलो तक बीन्स का उत्पादन हुआ। अब उनके क्षेत्र के कई किसान अपने खेतों में इसी बीन का उत्पादन ले रहे हैं।
बद्री गाय के घी की डिमांड
आनंद मणि भट्ट ने बद्री गायें और पहाड़ी भैंसें भी पाली हुई हैं। वो अपने पशुओं को केमिकल रहित पशु आहार खिलाते हैं, जिसमें गेहूं, चावल, चोकर आदि का प्रयोग करते हैं। इन मवेशियों के पशुधन से ही वो जैविक खाद तैयार करते हैं। दूध से कई बाय-प्रॉडक्ट्स भी वो बनाते हैं।
पहाड़ी भैंस और बद्री गाय के घी के अलावा ताज़ा मट्ठा और दही भी बाज़ार में बेचते हैं। इसकी बाज़ार में बहुत डिमांड है। आनंद मणि बताते हैं कि डिमांड कभी इतनी बढ़ जाती है कि पूर्ति करना मुश्किल हो जाता है। बता दें कि बद्री गाय का 250 ग्राम घी लगभग 350 रुपये में बिकता है। इस गाय का घी स्वास्थ्य के लिए काफ़ी अच्छा माना जाता है।
कई पुरस्कारों से सम्मानित
आनंद मणि भट्ट को कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2017 में ज़िले का ‘किसान भूषण पुरस्कार’, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 2019 में ‘प्रगतिशील किसान पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया। साथ ही, कई सामाजिक संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित किया है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।