क्यों खेती में सिर्फ़ अनाज उगाने से किसान अच्छी कमाई नहीं कर सकता?

20 एकड़ की खेती से 50 से ज़्यादा प्रोडक्ट तैयार करके कैलाश चौधरी सालाना एक करोड़ से ज़्यादा का कारोबार करते हैं

सिर्फ़ खेती करने और अनाज उगाने भर से किसान के बढ़िया मुनाफ़ा नहीं हो सकता। खेती में कमाई तभी है, जब हम इसे कॉमर्शियल फ़ार्मिंग, इन्नोवेशन, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और ब्रॉन्डिंग से भी जोड़ेंगे। इसे यदि किसान अकेले नहीं कर सकते तो उन्हें सामूहिक स्तर पर करना चाहिए और अपने इलाके की विशेषताओं का लाभ लेने के लिए नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद लेनी चाहिए।

खेती-किसानी में बढ़िया मुनाफ़ा कमाने का बेजोड़ नुस्ख़ा सिर्फ़ वही किसान बता सकते हैं जिन्होंने ख़ुद अपनी खेती का कायाकल्प करके दिखाया है। देश में ऐसी हज़ारों शख़्सियत हैं जिन्होंने तरह-तरह के आधुनिक उपायों को अपनाकर मिसाल क़ायम की हैं। ऐसी ही प्रेरक कहानी है राजस्थान में जयपुर के रहने वाले कैलाश चौधरी की। इन्होंने पारम्परिक खेती को इन्नोवेशन से जोड़कर उसे कॉमर्शियल फ़ार्मिंग से जोड़ा। 70 वर्षीय कैलाश चौधरी ने बीते दो दशकों में अपनी खेती-किसानी को आर्गेनिक फ़ार्मिंग, बाग़वानी, पशुपालन के अलावा फूड प्रोसेसिंग और ब्रॉन्डिंग जैसी वैल्यू एडिशन जैसी गतिविधियों से ऐसा जोड़ा कि अब इनके कारोबार का सालाना टर्न ओवर एक करोड़ रुपये को पार कर चुका है।

किसान को दाम कम क्यों मिला?

कैलाश चौधरी पुश्तैनी किसान हैं। 10वीं की पढ़ाई के बाद ये भी खेती करने लगे। तब गेहूँ, बाजरा जैसी फसलें उगाते थे और जयपुर मंडी में जाकर उपज बेचते थे। आमदनी ख़ास नहीं थी, लेकिन गृहस्थी चल जाती थी। लेकिन जब कैलाश करीब 50 साल के थे, तब एक दिन इन्होंने अख़बार में एक विज्ञापन देखा, जिसमें एक कम्पनी ने गेहूँ का दाम 6 रुपये प्रति किलो लिखा था, जबकि ये गेहूँ को महज दो रुपये प्रति किलो की दर से बेचते थे। यही बात इनके दिमाग में कौंधी कि आख़िर कम्पनी के गेहूँ में ऐसा क्या है जो उसका दाम ज़्यादा है?

विज्ञापन में कम्पनी का पता देख कैलाश अगले दिन वहाँ जा पहुँचे और उसके प्रोसेस को समझने के लिए हफ़्ते भर वहाँ पल्लेदारी की। तब उन्हें पता चला कि नॉर्मल गेहूँ की ही क्लीनिंग, ग्रेडिंग और पैकेज़िंग करके कम्पनी उसे ऊँचे दाम पर बेचती है। बस, फिर क्या था! कैलाश ने भी जल्द ही पूँजी का इन्तज़ाम करके ग्रेडिंग मशीन लगा ली और अगले सीज़न से जूट की बोरी में गेहूँ भरकर बेचने लगे। इससे अच्छा मुनाफ़ा हुआ तो बाक़ी फ़सलों को भी वैल्यू एडिशन से जोड़ना शुरू किया।

जैविक खेती, बाग़वानी और प्रोसेसिंग सीखी

2003 में कैलाश को एक दोस्त ने बताया कि ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती से न सिर्फ़ खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी बल्कि कमाई भी। तब उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग अपना लिया। थोड़े समय बाद नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक से बाग़वानी पर फोकस बढ़ाने की सलाह मिली तो उन्होंने वहीं से आँवले के 80 पौधे लेकर अपने खेत में लगा दिया। दो-तीन साल बाद फल आये लेकिन ज़्यादातर फल बिके नहीं। गाँव में मज़ाक उड़ा तो टीस पहुँची। फिर कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें प्रोसेसिंग की जानकारी दी।

बाग़वानी पर सलाह मिली तो आँवले के 80 पौधे से शुरू की खेती

इसे सीखने के लिए कैलाश ने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले का रुख़ किया जहाँ आँवले की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग सीखी और इससे कुशलता से अपनाने के लिए वो एक पारंगत व्यक्ति को लेकर अपने गाँव आ गये और यहाँ एक छोटी प्रोसेसिंग यूनिट चालू कर दी। इसमें उन आँवले से मुरब्बा, कैंडी, लड्डू और जूस वगैरह बनाकर बाज़ार में बेचने लगे, जो सीधे नहीं बिक पाते थे। प्रोसेसिंग से फ़ायदा हुआ तो सहजन, एलोवेरा और बेल की बाग़वानी भी करने लगे।

ऑनलाइन बिकते हैं कैलाश के उत्पाद

आज कैलाश 20 एकड़ पर खेती करके 50 से ज़्यादा प्रोडक्ट तैयार करते हैं। इनके उत्पाद बड़े शहरों के अलावा अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी बिकते हैं। यहाँ तक कि कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में निर्यात भी होता है। अपनी इन्हीं उपलब्धियों की वजह से कैलाश कई बार सम्मानित भी हुए हैं।

खेती-किसानी के व्यापक अनुभवों के आधार पर कैलाश चौधरी साफ़ मानना है कि सिर्फ़ खेती करने और अनाज उगाने भर से किसान की अच्छी कमाई नहीं हो सकती। खेती में मुनाफ़ा तभी है, जब हम मार्केटिंग और ब्रॉन्डिंग भी करेंगे। इसके लिए प्रगतिशील किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद लेनी चाहिए। आजकल तो सरकारें भी खेती की आधुनिक तकनीकों को खूब बढ़ावा देती हैं, मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी मिलती है और बैंकों से कर्ज़ मिल सकता है। कैलाश चौधरी का कहना है कि एक एकड़ पर आँवले की बाग़वानी करके सालाना तीन से चार लाख रुपये आसानी से कमाये जा सकते हैं। यदि आँवले के साथ औषधीय पेड़-पौधों की भी खेती की जाए तो और अधिक कमाई हो सकती है। 

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