चिया की खेती (Chia farming): लागत से दोगुनी कमाई चाहिए तो उपजाएँ चिया

चिया के किसानों को खेती में नुकसान होने की कोई चिन्ता नहीं सताती। चिया को मध्यम दर्ज़े वाली उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। चिया में अम्लीय मिट्टी को काफ़ी हद तक सहन करने की क्षमता होती है। अच्छे पौष्टिक उत्पादन के लिए चिया की जैविक खेती करना बेहतर रहता है।

चिया की खेती (Chia farming)

चिया या मेक्सिकन चिया, एक तिलहनी फसल है। ये भारतीय किसानों के लिए अपेक्षाकृत नयी है, लेकिन इसकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, चिया की खेती से मिलने वाली उपज का बाज़ार में लागत से दोगुने से ज़्यादा दाम मिल सकता है। यानी, खेती में बढ़िया मुनाफ़ा कमाने के लिए चिया एक शानदार विकल्प है। पोषक तत्वों से भरपूर चिया एक बेहद कम रखरखाव वाली फसल है। चिया की फसल रोगों और कीटों से मुक्त रहती है। इसकी फसल के ख़राब होने की आशंका भी नहीं रहती इसलिए चिया के किसानों को खेती में नुकसान होने की कोई चिन्ता नहीं सताती।

चिया, दक्षिण अमेरिका के मैक्सिको और ग्वाटेमाला की प्रमुख व्यावसायिक फसल है। वहाँ के पर्वतीय इलाकों से फैलते हुए इसकी खेती ने ऑस्ट्रेलिया, बोलीविया, कोलम्बिया, पेरू और अर्जेंटीना में भी अपनी धाक जमायी। भारत में इसकी वैज्ञानिक खेती मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और हरियाणा में हो रही है। चिया के तेल की बढ़ती लोकप्रियता की वजह है उसमें मौजूद पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड का उच्च स्तर। इसी वजह से परम्परागत खाद्य तेलों में इसे मिलाकर इस्तेमाल करने का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। चिया का नाता तुलसी के परिवार (लेमिऐसी) से है, इसीलिए इसमें तुलसी के गुण भी पाये जाते हैं।

चिया की वैज्ञानिक खेती

चिया को मध्यम दर्ज़े वाली उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। चिया में अम्लीय मिट्टी को काफ़ी हद तक सहन करने की क्षमता होती है। लेकिन ज़्यादा लवणीय और क्षारीय मिट्टी में इसकी उपज घट जाती है। चिया की अच्छी पैदावार के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। मध्य और दक्षिण भारतीय राज्यों के प्रगतिशील किसान चिया के बीजों के निर्यात के लिए भी इसकी खेती कर रहे हैं। अच्छे पौष्टिक उत्पादन के लिए चिया की जैविक खेती करना बेहतर रहता है।

चिया की बुआई का समय

जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय से सम्बद्ध मंडोर के कृषि अनुसन्धान केन्द्र के शोध से साबित हुआ है कि भारतीय जलवायु में चिया की बुआई का सबसे बढ़िया वक़्त 5 से 25 अक्टूबर के दौरान का है। बुआई के वक़्त 25 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान चिया के बीजों के उम्दा अंकुरण के लिए सबसे मुफ़ीद रहता है। वैसे तो चिया ठंड के प्रति अतिसंवेदनशील है, लेकिन दिसम्बर और जनवरी वाली ठंडक इसे बहुत पसन्द है। इसी मौसम में चिया में फूल आते हैं और बालियों में दाना भरने का सिलसिला शुरू होता है।

चिया की खेती (Chia farming)
तस्वीर साभार: villagesquare

चिया की खेती के लिए तैयारी और बुआई

चिया की बुआई से पहले खेत को तैयार करने के लिए एक गहरी जुताई करना पर्याप्त होता है। इसके बाद हैरो चलाकर पाटा लगाना चाहिए। बुआई के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज इस्तेमाल करना चाहिए। यदि आपके नज़दीकी बीज विक्रेता के पास चिया के बीज नहीं मिलें तो नज़दीकी कृषि विकास केन्द्र (KVK) से सम्पर्क करना चाहिए।

चिया की बुआई: चिया की बुआई सीडड्रिल या बुआई वाली मशीन से की जा सकती है। चिया के बीज बहुत छोटे होने के कारण सीड ड्रिल उपकरण में कुछ एडजस्मेंट करना पड़ सकता है। बुआई के लिए वांछित बीज दर को सुनिश्चित करने के लिए चिया के बीज में भुना हुए बाजरा को 7 अनुपात 3 की दर से मिलाया जा सकता है। बुआई के वक़्त पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

बीज की मात्रा: एक मानक सीडड्रिल से नियत दूरी पर सटीक बुआई करने पर एक हेक्टेयर में 500 ग्राम बीज की मात्रा ही पर्याप्त होती है। लेकिन आमतौर पर एक हेक्टेयर में चिया की बुआई के लिए 2 से 2.5 किलोग्राम बीज का उपयोग किया जाता है। अंकुरण के बाद खेत में चिया के पौधों के उगने के बाद उनके बीच की दूरी को सुधारने की ज़रूरत पड़ सकती है। बुआई के दो सप्ताह बाद पौधों को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर विरल किया जाता है।

चिया की खेती में खाद का इस्तेमाल

चिया की फसल के बढ़िया पोषण और अच्छी पैदावार पाने के लिए अच्छी तरह से सड़ी हुई 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर देना बहुत लाभकारी रहता है। हल्की मिट्टी में 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20-25 किलोग्राम फॉस्फोरस और 15-20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर बुआई के समय देना पौधों की आवश्यक वृद्धि के लिए फ़ायदेमन्द रहता है। ज़रूरत पड़ने पर बुआई के 30-45 दिन बाद 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर भी दिया जा सकता है।

चिया की फसल की सिंचाई

चिया को बीजों के अंकुरण के लिए बुआई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। सिंचाई की संख्या मिट्टी की किस्म और वातावरण के तापमान पर निर्भर करेगी। आमतौर पर रेतीली या रेतीली दोमट मिट्टी में बुआई के बाद 4-5 बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन चिया की फसल जब पकने वाली होती है तब उसमें नमी के प्रति संवेदनशीलता बहुत बढ़ जाती है, इसलिए उस दौर में सिंचाई नहीं करें।

चिया का पौधा 1 मीटर तक ऊँचा हो सकता है। इसकी पत्तियाँ 1.5 से 3 इंच लम्बी और 1 से 2 इंच चौड़ी होती हैं। इसमें सफेद या बैंगनी रंग के 3-4 मिलीमीटर की आकार वाले छोटे-छोटे फूल खिलते हैं। इनमें स्वपरागण का गुण होता है।  इसके अंडाकार और काले, भूरे और काले-सफ़ेद चिटकबरे रंग के होते हैं तथा उनका व्यास 1 से 2 मिलीमीटर का होता है।

खरपतवार और रोग-कीट नियंत्रण

चिया ख़ुद ही एक दमदार फसल है। इसे खरपतवारों से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता। फिर भी पौधों के विकास के शुरुआती दौर में खरपतवारों के प्रबन्धन से बहुत फ़ायदा होता है। बुआई के 25-30 दिनों बाद ट्रैक्टरचालित होईंग या हैन्ड हो से जुताई करने से खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है। चिया के पौधों पर कीटों और रोगों से कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन कई बार जब फसल पकने वाली होती है तब उसकी बालियों पर चीटियों का प्रकोप देखा गया है। इसकी रोकथाम के लिए खेत के चारों तरफ किसी कीटनाशी पाउडर की रेखा बनायी जा सकती है।

चिया का पाला से बचाव ज़रूरी है

चिया की फसल पर पाले का प्रभाव देखा गया है। दिसम्बर और जनवरी की ठंड के प्रति चिया संवेदनशील होती है। इससे उसकी कोमल पत्तियाँ और उभरती बालियाँ काली पड़ जाती हैं। पाले के असर से फसल में बीजों का भराव और उपज प्रभावित होती है। इसीलिए पाला पड़ने की आशंका वाले मौसम में खेत की हल्की सतही सिंचाई करके मिट्टी के तापमान को सहज बनाये रखना चाहिए।

कटाई, थ्रेसिंग, पैदावार और भंडारण

चिया की फसल 120-130 दिनों में पकती है। तब उसकी सारी पत्तियाँ झड़ जाती हैं तथा तने पर सिर्फ़ बालियाँ रह जाती हैं। विकसित देशों में इसकी कटाई अन्य छोटे बीज वाली फसलों जैसे बरसीम और रिजका की तरह मशीनों से की जाती है, लेकिन भारत में फसल को दरांती या हँसियाँ से काटा जाता है। थ्रेसिंग में चिया की बालियों को लकड़ी की इंडियों से दबाकर/ कूटकर बीजों को अलग करते हैं।

छोटे स्क्रीन का उपयोग करके मानक थ्रेसर में थोड़ा संयोजन करके भी चिया की थ्रेसिंग की जाती है। उपरोक्त सामान्य उत्पादन पद्धति के साथ चिया की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 6 से 8 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है। साफ़ और सूखे हुए बीजों को 3-4 महीने तक सामान्य खलिहान या गोदाम में रखा सकता है।

चिया की खेती (Chia farming): लागत से दोगुनी कमाई चाहिए तो उपजाएँ चिया

चिया के पोषक तत्व और उपयोग

चिया के दानों में 15 से 25 प्रतिशत प्रोटीन, 30 से 33 प्रतिशत वसा, 26 से 41 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 18 से 30 प्रतिशत उच्च आहारीय रेशों के अलावा, कई खनिज लवण, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट भी पाये जाते हैं। इसके तेल में पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड जैसे ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की भरपूर मात्रा होती है। चिया के तेल में अल्फा लिनोलेनिक वसीय अम्ल करीब 67 प्रतिशत तक होता है। यह सभी तेलों में सबसे ज़्यादा है।

चिया की खेती इसके बीजों से मिलने वाले तेल के लिए होती है, क्योंकि इसे परम्परागत खाद्य तेलों में मिलाकर उसकी पौष्टिकता बढ़ायी जाती है। वजन घटाने के लिए इसका सेवन डॉक्टर की राय से ही करना चाहिए। चिया को अंकुरित करके या कच्चा भी खाया जाता है। अमेरिका, कनाडा, चिली, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और मैक्सिको जैसे अनेक देशों में चिया को कुकीज स्नैक्स, बार, केक, योगर्ट तथा फलों के रस के साथ में खाया जाता है।

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