Millet Dehuller Machine: मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों को 10 गुना लाभ देगी ये मशीन! डॉ. एस. बालासुब्रमण्यम से ख़ास बातचीत
जानिए इस मशीन की खूबियां और कैसे करती है काम
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी क्षेत्रीय केंद्र संस्थान ने बाजरा डाइहलर मशीन (Millet Dehuller Machine) विकसित की है। मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों के लिए ये मशीन कैसे उपयोगी हो सकती है, इस पर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग रीज़नल सेंटर कोयंबटूर के हेड डॉ. एस. बालासुब्रमण्यम से विशेष बातचीत।
देशभर में मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। हाल ही में रोम में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) मुख्यालय में अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 का शुभारंभ किया गया। किसानों के लिए मोटे अनाज की खेती को सुगम बनाने के लिए एक कृषि उपकरण विकसित किया गया है।
आज के समय में मशीनीकरण और कृषि तकनीकों ने खेती के हर एरिया में बहुत सी समस्याओं को हल किया है। खेती में मशीनीकरण के कारण गुणवत्ता युक्त उत्पादन और प्रोसेसिंग के ज़रिए किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। बस ज़रुरत है आधुनिक तकनीकों के बारे में सही जानकारी लेकर खेती में इस्तेमाल की जाएं।
आम तौर पर मिलेट्स यानी मोटे अनाज अपने उच्च पोषण मूल्य के लिए जाने जाते हैं। हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बाजरा और छोटे दाने वाले अनाजों की विकास संभावनाओं को देखते हुए देश में इसके उत्पादन को बढ़ावा भी मिल रहा है। लोगों में स्वास्थ्य संबधी जोखिमों को कम करने के लिए मोटे अनाज यानि ज्वार, मोती बाजरा, रागी, छोटा बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा, प्रोसो बाजरा, बरनार्ड बाजरा, कोदो अनाज को भोजन में शामिल करने की सलाह दी जा रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मोटा अनाज गेहूं और चावल की तुलना में सस्ते होने के साथ-साथ उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और आयरन जैसे कई मिनरल्स से युक्त होता है
बाजरे में सबसे बड़ी समस्या ये है कि किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। दाने छोटे होने के कारण छिलका निकालने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ती है। अगर किसान छिलके सहित बेचते हैं तो उन्हें बहुत कम कीमत मिलती है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए बाजरे की भूसी निकालने के लिए मिलेट डिहलर मशीन (Millet Dehuller Machine) विकसित की गई है।
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग रीज़नल सेंटर कोयंबटूर के हेड डॉ. एस. बालासुब्रमण्यम ने इस मशीन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मिलेट के दानों का छिलका उतारकर ही आहार में बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन दूसरी ओर समस्या ये है कि बाजरे के छिलके गोंद की तरह अनाज से चिपक जाते हैं। परंपरागत तरीके से मूसल या लकड़ी के स्टोनर ग्राइंडर का उपयोग करके छिलके को मैन्युअल रूप से हटाया जाता है। इसमें बाजरे के दानों में भूसा मिलाने से दाना टूट जाता है या आटे की गुणवत्ता खराब हो जाती है। इस प्रक्रिया में काफ़ी मेहनत और समय लगता है। इस वजह से बाजरे की खपत में भारी गिरावट आई है।

डॉ. सुब्रमण्यम ने कहा कि इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी क्षेत्रीय केंद्र संस्थान ने बाजरा के छिलके निकालने के लिए मिलेट डिहलर मशीन (Millet Dehuller Machine) विकसित की है। इससे छीलने का काम बहुत आसान हो गया है। अनाज टूटने की समस्या भी कम हुई है। उन्होंने कहा कि 100 किलो बाजरा से 60 से 65 किलो भूसी रहित अनाज प्राप्त होता है। बाजरे की मिलेट डिहलर मशीन को 10 बाई 12 फीट के कमरे में लगाया जा सकता है और सिंगल फ़ेज करंट से चलाया जा सकता है। इसे एक व्यक्ति आसानी से ऑपरेट कर सकता है। इस मशीन से 10 से 12 तरह के बाजरे के दाने आसानी से निकाले जा सकते हैं। एक घंटे में 60 से 70 किलो मिलेट के छिलके निकाले जा सकते हैं।
डॉ. सुब्रमण्यम ने आगे जानकारी दे कि इस मशीन की कीमत 80 हज़ार रुपये है, जो क्लीनर, स्टोनर, डेहलर का काम करती हैं। अगर इसमें ग्रेडर और पैनिंग तकनीक को जोड़ दिया जाए तो इस मशीन की कीमत 2 से 2.50 लाख हो जाती है। उन्होंने कहा कि बाजरे की प्रोसेसिंग के बाद इसकी कीमत दोगुनी होकर 10 गुना हो जाती है, जिससे किसानों को फ़ायदा होता है। देश में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और रेडी-टू-ईट उत्पादों की मांग में उछाल आया है। मोटे अनाज से कई तरह के रेडी-टू-ईट उत्पाद बाज़ार में बिक भी रहे हैं और लोग इसे पसंद भी कर रहे हैं।
मोटे अन्नज को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से technology transfer और मूल्य वर्धित उत्पादों के विकास के लिए संपूर्ण चैन विकसित की जा रही है। हाल के वर्षों में घरेलू और ग्लोबल स्तर पर मांग बढ़ने के कारण मोटे अनाज के उत्पादन में बढ़ोतरी तो हुई ही है बल्कि इसके निर्यात में भी इज़ाफ़ा हुआ है।
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