Natural Farming: प्राकृतिक खेती से आंध्र प्रदेश के इस किसान की लागत हुई कम और बढ़ा मुनाफ़ा

प्राकृतिक खेती न सिर्फ किसानों, बल्कि आम लोगों और पर्यावरण के लिए भी फ़ायदेमंद होती है। सही जानकारी के अभाव में किसान केमिकल युक्त खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल यह सोचकर करते हैं कि फ़ायदा अधिक होगा, जबकि आंध्र प्रदेश के एक किसान ने प्राकृतिक खेती अपनाकर न सिर्फ खेती की लागत कम की, बल्कि मुनाफ़ा भी अधिक कमाया।

Natural Farming: प्राकृतिक खेती से आंध्र प्रदेश के इस किसान की लागत हुई कम और बढ़ा मुनाफ़ा

आजकल ज़्यादातर किसान अधिक फसल लेने के लिए केमिकल युक्त खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। इससे धीरे धीरे मिट्टी की पौष्टिकता तो खत्म होती ही है, उसकी उर्वरता भी नष्ट  हो जाती है। फसलों की गुणवत्ता भी प्राकृतिक खेती के मुक़ाबले  कम होती है। प्राकृतिक खेती किसानों के साथ ही पर्यावरण के भी हित में है और धीरे-धीरे ही सही, बहुत से किसान इसकी अहमियत समझने लगे हैं और पूरी तरह से प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। ऐसे ही एक किसान हैं आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के रहने वाले गेड्डा अप्पलनाईडु। प्राकृतिक खेती अपनाने से गेड्डा की खेती में न सिर्फ लागत में कमी आई, बल्कि उनका मुनाफ़ा भी पहले के मुक़ाबले बढ़ गया।

क्या है प्राकृतिक खेती?

यह खेती पूरी तरह से नेचुरल यानी प्राकृतिक तरीके से की जाती है। इसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जगह गाय के गोबर की खाद और प्राकृतिक कीटनाशक जैसे नीम आदि का इस्तेमाल किया जाता है। ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती मूल रूप से खेती देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित है। खेती की इस तकनीक में देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर और मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और जामन बीजामृत बनाया जाता है। खेती में इनके इस्तेमाल से मिट्टी और उपजाऊ हो जाती है।

प्राकृतिक कृषि प्रोटोकॉल को अपनाया

श्री गेड्डा अप्पलनाईडु ने प्राकृतिक खेती की सभी चीज़ों को अपनाया जैसे बीजामृत, घनजीवामृत, द्रवजीवामृत, प्री-मानसून सूखी बुवाई (PMDS), ग्रोथ प्रमोटर्स (अंडे अमीनो एसिड, सप्तदान्यकुरा कश्यम और वानस्पतिक अर्क) और कीट प्रबंधन के लिए कषाय का उपयोग। प्री-मानसून सूखी बुवाई के तहत 18-20 फसलों की बुवाई की जाती है। इससे  गर्मियों के मौसम में खेत में विभिन्न तरह की फ़सलें  लगी होती हैं।  प्री-मानसून सूखी बुवाई के तहत फ़सलों  की बुवाई के 45-60 दिन बाद इसकी पशुओं द्वारा चराई की जाती है और अवशेषों को धान की रोपाई से  पहले मिट्टी में मिला दिया जाता है।

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सामुदायिक कैडर ने किया प्रेरित

श्री गेड्डा अप्पलनाईडु को सामुदायिक कैडर, जिसमें कि  मास्टर किसान आते  हैं, ने प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया। गेड्डा ने इसकी शुरुआत उपचारित  बीज़ों से की और पहले वर्ष में कीट नियंत्रण के लिए वानस्पतिक अर्क का उपयोग किया। दूसरे साल तक उनका इस पर विश्वास बढ़ गया तो उन्होंने पूरी तरह से प्राकृतिक खेती को अपना लिया।

इस तरह करते हैं प्राकृतिक खेती

श्री गेड्डा अप्पलनाईडु घनजीवामृत  को 400 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाते हैं। द्रवजीवामृत को 200 लीटर प्रति एकड़ की दर से 15 दिनों के अंतराल पर मिट्टी में डालते हैं। इसके अलावा उन्होंने प्राकृतिक खेती के अन्य तत्व जैसे बीज उपचार, पत्ती युक्तियों की कतरन, पीली चिपचिपी प्लेटें, फेरोमोन ट्रैप, बर्ड पर्च आदि को अपनाया। उपज बढ़ाने के लिए ग्रोथ प्रमोटर और कीट नियंत्रित करने के लिए वानस्पतिक अर्क का इस्तेमाल किया। मास्टर किसान जिन्हें कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRPs) कहा जाता है, से भी उन्हें लगातार तकनीकी  सहायता प्राप्त होती है।

Natural Farming: प्राकृतिक खेती से आंध्र प्रदेश के इस किसान की लागत हुई कम और बढ़ा मुनाफ़ा

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प्राकृतिक खेती के लाभ

इसे  अपनाने के खेती की लागत में कमी आई। मानसून सूखी बुवाई (PMDS) से मिट्टी की  सेहत में सुधार हुआ, पानी सहने की क्षमता बढ़ी, मिट्टी के ऑर्गेनिक कार्बन में वृद्धि हुई। वानस्पतिक अर्क के उपयोग से कीटों और रोगों का प्रकोप कम हुआ। कई फ़सलों की खेती से मधुमक्खी और ड्रैगन मक्खियों आदि की संख्या में वृद्धि हुई जो  खेती के लिए फायदेमंद है। मिट्टी में केंचुओं के आने से भी इसकी उर्वरता और फ़सल  का उत्पादन बढ़ता है।

Natural Farming: प्राकृतिक खेती से आंध्र प्रदेश के इस किसान की लागत हुई कम और बढ़ा मुनाफ़ा

कितना बढ़ा मुनाफ़ा 

वह धान की MTU 1121 किस्म की खेती करते हैं। पारंपरिक तरीके से खेती में जहां उनकी लागत 52500 रुपए आती थी, प्राकृतिक तरीका अपनाने पर 41250 रुपए की लागत आने लगी है। इसके अलावा,  मुनाफ़ा पारंपरिक खेती में सिर्फ 68638 रुपए होता था जो प्राकृतिक खेती में बढ़कर 96297 रुपए  हो गया।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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