कैसे मानसून की भविष्यवाणी बनी किसानों के लिए सबसे अच्छी ख़बर?

भारत में आज भी 60 फ़ीसदी ज़मीन असिंचित ज़मीन की खेती, मानसून के भरोसे ही है

तमाम तरक्की के बावजूद भारत आज भी एक कृषि प्रधान देश ही है। आज भी देश की 65 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग खेती या खेती-आधारित पेशों पर ही निर्भर हैं। इसीलिए मॉनसून के सामान्य रहने का सीधा असर यदि किसानों पर पड़ता है तो परोक्ष रूप से अर्थव्यवस्था का कोई भी तबका इससे अप्रभावित नहीं रहता।

मानसून की भविष्यवाणी (Monsoon Forecast): देश के आम लोगों की तरह 11 करोड़ से ज़्यादा बड़ा किसानों का परिवार भी कोरोना भी मौजूदा लहर से बुरी तरह प्रभावित हैं। लेकिन तनाव और मायूसी भरे इस माहौल में किसान के लिए अच्छी सूचना ये है कि इस साल मॉनसून सामान्य रहेगा।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मॉनसून के सामान्य रहने का अनुमान लगाया है। ये एक वैज्ञानिक अनुमान है। इसमें कहा गया है कि उत्तर-पश्चिम मॉनसून के दीर्घकालिक औसत की तुलना में इस बार 98 प्रतिशत बारिश होगी। मौसम विभाग का ये पूर्वानुमान खरीफ की फसलों के लिए बहुत खुशगवार बात है क्योंकि भारत में आज भी करीब 60 फ़ीसदी ज़मीन असिंचित है और इसकी खेती मानसून पर ही निर्भर रहती है।

देश के ज़्यादातर किसान रबी की फसलों की कटाई के बाद मॉनसून का इन्तज़ार करते हैं। ऐसे किसानों को इस बात से काफ़ी तसल्ली मिलती है कि जून से लेकर सितम्बर तक होने वाली खरीफ की फसलों की बुआई के दौरान मेघराज की मेहरबानी सामान्य बनी रहेगी। मानसून की भविष्यवाणी से किसानों को लगता है कि अबकी बार धान, गन्ना, मक्का, कपास, सोयाबीन जैसे अनेक फसलें अच्छी रहेंगी।

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दोधारी तलवार है मॉनसून

दरअसल, किसान हमेशा इस आशंका में जीते हैं कि पता नहीं इस बार का मॉनसून कैसे रहेगा? किसानों के लिए मॉनसून, दोधारी तलवार की तरह है। किसानों के लिए ज़्यादा बारिश भी तबाही लेकर आती है तो कम वर्षा का डर भी दर्दनाक होता है। किसान की सेहत से देश की सामान्य सेहत का भी बहुत करीबी नाता है, क्योंकि तमाम तरक्की के बावजूद भारत आज भी एक कृषि प्रधान देश ही है। आज भी देश की 65 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग खेती या खेती-आधारित पेशों पर ही निर्भर हैं। इसीलिए मॉनसून के सामान्य रहने का सीधा असर यदि किसानों पर पड़ता है तो परोक्ष रूप से अर्थव्यवस्था का कोई भी तबका इससे अप्रभावित नहीं रहता।

सामान्य मानसून की भविष्यवाणी से जहाँ कम वर्षा वाले राजस्थान के किसान कपास, मूँग और मोठ (Moth) वग़ैरह की खेती की तैयारी करते हैं, वहीं ज़्यादा बारिश वाले इलाकों में धान की खेती के लिए तैयारियों की जाती हैं। बारिश की पानी का इन्तज़ार उन किसानों को भी खूब होता है जो सिंचित क्षेत्र में खेती करते हैं, क्योंकि वर्षा की बूँदों से प्रकृति का नाइट्रोजन चक्र संचालित रहता है। बारिश के साथ घुलकर ज़मीन पर गिरने वाली नाइट्रोजन ही मिट्टी की सबसे बड़ी ताक़त है। ये प्रकृति के खाद का काम करती है।

मॉनसून से पहले किसान अपने खेतों की गहरी जुताई करके एक ओर खरपतवार का नियंत्रण करते हैं तो दूसरी ओर मिट्टी को ज़्यादा से ज़्यादा भुरभुरा बनाते हैं ताकि वो बारिश में अधिक से अधिक नमी सोख सके। इसके लिए बारिश से पहले हैरो, कल्टीवेर, रोटावेटर जैसे उपकरणों से जुताई करके खेत को तैयार करते हैं। मॉनसून के दस्तक देने से पहले किसान जुताई के अलावा खेतों के मेड़ों की सफाई-बँधाई और चौड़ाई को ठीक करते हैं।

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