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एकीकृत कृषि: झूम खेती पर निर्भर थे किसान, सही तकनीक के इस्तेमाल से मिली तरक्की

जानिए झूम खेती के क्या-क्या हैं नुकसान

मिज़ोरम के आदिवासी इलाकों में खेती की पारंपरिक तकनीक यानी झूम खेती लोकप्रिय है, मगर इससे न सिर्फ़ मिट्टी की उर्वरता कम होती है, बल्कि वनस्पतियों को जलाने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मिज़ोरम के किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है।

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मिज़ोरम के लुसी जनजातिय किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिेए सबसे ज़रूरी था खेती की पुरानी तकनीक यानी झूम खेती के तरीके को बदलना। झूम खेती में एक ही खेत में कई फसल उगाई जाती है। जब खेत को परती छोड़ा जाता है, तो उग आए जंगल झाड़ को जलाने के बाद खेती की सफाई और जुताई पारंपरिक तरीके से की जाती है। इससे पर्यावरण को हानि पहुंचती है। मिट्टी की उर्वरता कम होती है और उपज भी कम मिलती है। इससे किसानों को ज़्यादा फ़ायदा नहीं हो पाता। इसलिए ICAR ने मिज़ोरम के आदिवासी किसानों को एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) अपनाने के लिए प्रेरित करने के मकसद से Tribal Sub Plan (TSP) यानी आदिवासी उप योजना की शुरुआत की।

IFS की ज़रूरत क्यों पड़ी?

मिज़ोरम की पहाड़ियों की पारंपरिक झूम खेती आदिवासी किसानों के बीच लोकप्रिय है, मगर इससे मिट्टी की उर्वरता कम होने के साथ ही, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण और फसल की उत्पादकता भी कम होती है। किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा था। ऐसे में उनकी स्थिति में सुधार के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) ही एकमात्र उपाय था। किसानों को इसके प्रति जागरुक करने का ज़िम्मा ICAR ने उठाया। एनईएच क्षेत्र के लिए ICAR रिसर्च कॉम्प्लेक्स, मिज़ोरम सेंटर, कोलासिब ने आदिवासी उप योजना के तहत कोलासिब ज़िले में मॉडल चावल आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) शुरू की। इसके लिए कॉन्ट्रास्टिंगि लैंडफॉर्म (Contrasting Landforms) के रूप में ज़िले के दो किसानों लालसंगखीमा और महिला किसान लालमिंगमावी की ज़मीन का इस्तेमाल किया गया। दोनों के खेत को तकनीक आधारित IFS के डेमोनस्ट्रेशन के लिए चुना गया। दरअसल, मिज़ोरम में चावल की ही खेती अधिक होती है। एकीकृत कृषि प्रणाली में पशुधन बेहद ज़रूरी तत्व है।

तस्वीर साभार- ICAR

क्या हुआ बदलाव?

डेमोंस्ट्रेशन के लिए चुने गए दोनों ही किसान 2016 तक वर्षा आधारित झूम खेती पर निर्भर थे। सर्दियों के मौसम में छोटे पैमाने पर किचन गार्डनिंग के ज़रिय सब्ज़ियां उगाते थे। मगर 2016 के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई। खेती के साथ ही वो खेती से जुड़ी बहुत सी अन्य गतिविधियों में व्यस्त हो गए। उन्हें 2016-17 से 2020-21 तक समय-समय पर कॉमन कार्प, ग्रास कार्प की फिंगरलिंग्स उपलब्ध कराए गए। सिंचाई की बुनियादी सुविधाओं का विकास किया गया, जिससे किसानों की वर्षा पर निर्भरता खत्म हो। इसके अलावा, घास की देसी प्रजातियां जैसे झाडू घास, कांगो सिग्नल, हाइब्रिड नेपियर और गिनी घास उगाने की सलाह दी गई। इसका इस्तेमाल स्लोप स्थिरीकरण, मिट्टी के कटाव को रोकने और पूरे साल चारे की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किया गया।

तस्वीर साभार- ICAR

बढ़ा उत्पादन और मुनाफ़ा

सिंचित सघन फसल प्रणाली (Irrigated Intensified Cropping Systems) को अपनाकर, विभिन्न पशुओं के पालन, अधिक उपज देने वाली फसलों के उत्पादन और बागवानी फसलों को उगाकर दोनों किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई। वो अब केले और सुपारी की भी खेती करने लगे हैं। धान की देर से तैयार होने वाली फसल की बजाय 130 दिनों में तैयार होने वाली गोमती किस्म का उत्पादन कर रहे हैं। साथ ही परती समय में वो खेतों में वाणिज्यिक सब्ज़ियों की खेती से लाभ कमा करे हैं।

गर्मियों के मौसम में स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं। TSP योजना के तहत सिंचाई की सुविधाओं का विकास किया गया ताकि हर मौसम में किसान फसल उगा सके। IFS के तहत खेत से निकलने वाले अपशिष्टों से खाद बनाई जाती है या चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। इसी तरह पशु फ़ार्म से से निकलने वाले कचरे का इस्तेमाल भी खेतों में खाद के रूप में किया जाता है। हैम्पशायर क्रॉसब्रेड सुअर और वनराजपोल्ट्री पालन जैसी उन्नत नस्लों के पालन से मुनाफ़ा बढ़ गया। दोनों ही किसान IFS मॉडल से लाभ कमा रहे हैं और ICAR के मार्गदर्शन और मदद की बदौलत अपने ज़िले के मॉडल किसान बन चुके हैं। अब बाकी किसान भी उनके नक्शे-कदम पर चलने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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