हल्दी की खेती से खड़ा किया बिज़नेस, पाकिस्तान से भारत में आकर बसे किसान धुंडा सिंह की कामयाबी की कहानी
पारंपरिक फसलों की खेती में नहीं हो रहा था ज़्यादा लाभ, वैज्ञानिक तकनीकों के इस्तेमाल से ऊंचाई पर पहुंचा कारोबार
देश के कई हिस्सों की मिट्टी बहुत उपचाऊ नहीं है। ऐसे में पारंपरिक तरीके से सिर्फ़ अनाज उगाने पर न तो उपत्पादकता बढ़ेगी और न ही मुनाफ़ा। जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले के किसान धुंडा सिंह ने वैज्ञानिकों की सलाह पर हल्दी की खेती की शुरुआत की थी और आज वो अपने इस व्यवसाय की बदौलत सफल किसानों में गिने जाते हैं।
1971 की भारत-पाक लड़ाई के दौरान विस्थापित हुए लोगों में एक नाम धुंडा सिंह का भी है।धुंडा सिंह मूल रूप से पाकिस्तान के रहने वाले हैं, जो 1971 में पाकिस्तान से भारत में विस्थापित हो गए। वह जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले में आकर बस गए। यहाँ के सुल्तानपुर गाँव में राज्य सरकार ने उन्हें आजीविका कमाने के लिए 4 एकड़ भूमि आवंटित की। इस पर उन्होंने कई अनाज फसलों की खेती शुरू कर दी। जो उत्पादन होता था, उससे घर का खर्च चलाना मुश्किल होता था। फिर कृषि विभाग की सलाह पर धुंडा सिंह ने वैज्ञानिक तरीके से हल्दी की खेती शुरू की। इससे उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई और वह एक सफल किसान बनने में कामयाब रहे।
अनाज की खेती से मुश्किल हो पाता था गुज़ारा
जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से मिली 4 एकड़ भूमि पर धुंडा सिंह खरीफ़ मौसम में मक्का, बाजरा, मैश और हरा चारा उगाते थे, जबकि रबी सीज़न में गेहूं और सरसों की खेती करते थे। चूंकि भूमि सींचित और उपजाऊ नहीं थी, इस वजह से खेती से धुंडा सिंह को बहुत कम आमदनी होती थी। मुश्किल से दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त हो पाता था। फिर कुछ समय बाद सरकार की ओर से सिंचाई के लिए नहर और बोरवेल बनाए गए, जिसके बाद धुंडा सिंह ने धान व कुछ सब्ज़ियों की खेती शुरू कर दी, जिससे आमदनी में थोड़ा इज़ाफा हुआ।

हल्दी की खेती से आया बदलाव
2012 में कृषि विभाग ने धुंडा सिंह को हल्दी की खेती की सलाह दी। उन्हें बीज उपलब्ध कराए गए। साथ ही छोटे स्तर पर ग्राइंडिंग व प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए केंद्र द्वारा प्रायोजित योजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (Rashtriya Krishi Vikas Yojana, RKVY) के तहत 3.80 रुपये की सब्सिडी भी मुहैया कराई गई।
हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग से धुंडा सिंह को अच्छी आमदनी हुई, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। इसके बाद वह अपने लेबल ‘BDS ब्रांड’ के तहत हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग करने लगें।

फिर 2019 में धुंडा सिंह ने भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (IISR) कोज़िकोड, केरल में 15 दिन के प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहाँ उन्हें विशेषज्ञों ने हल्दी की खेती में बेहतर पैकेजिंग और एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीति अपनाने की सलाह दी। ICAR-IISR संस्थान द्वारा सुझाई गई तकनीकें कुछ इस प्रकार हैं:
- राइज़ोम जिसे प्रकंद भी कहा जाता है, बुवाई के लिए स्वस्थ राइजोम का ही इस्तेमाल करना चाहिए, वरना फसल रोग के कारण नष्ट हो सकती है।
- भंडारण और रोपण से पहले बीज प्रकंदों को 30 मिनट के लिए मैनकोजेब (0.3%) या कार्बेन्डाजिम (0.3%) से उपचारित करें। इससे रोग व कीटों से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
- हल्दी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। इसलिए जल निकासी का ख़ास ध्यान रखें।
- मिट्टी की नमी को बनाए रखने और खरपतवार को कम करने के लिए मल्चिंग का उपयोग करना अच्छा होता है।
- पौधों को रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा हर्जियानम को नीम की खली के साथ मिलाकर लगाना चाहिए।
- हल्दी की अधिक फसल प्राप्त करने के लिए जैविक और रासायनिक खाद की संतुलित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए।

IISR की उपरोक्त तकनीकों का इस्तेमाल करने पर धुंडा सिंह को हल्दी की फसल में आश्यर्चजनक वृद्धि हुई और उनका मुनाफ़ा भी बढ़ गया। अब धुंडा सिंह खुद इन तकनीकों को अपनाने के साथ ही अन्य किसानों को भी इसे अपनाने की सलाह दे रहे हैं। IISR की उन्नत तकनीकों को अपनाकर कठुआ और सांभा ज़िले के किसान खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं।
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- कैसे करें औषधीय गुणों से भरपूर कासनी की खेती? क्यों कहा जाता है इसे प्रकृति का वरदान?हमारे देश में औषधीय गुणों से भरपूर वनस्पतियों की भरमार है, इन्हीं में से एक वनस्पति है कासनी, जो हरे चारे के साथ ही औषधि बनाने में भी इस्तेमाल की जाती है। किसानों के लिए कासनी की खेती फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।
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