अपनी पुश्तैनी खेतीबाड़ी को जारी रखते हुए कश्मीर की मिट्टी को सुरक्षित बनाने और यहां के किसानों की आमदनी बढ़ाने में लगे हैं कश्मीर के दो भाई बिलाल और मुनीर। इनकी खासियत कश्मीर का हर वो शख्स जानता है जो कृषि और बागवानी की उन्नति से जुड़ा हुआ है। सेब के बाग़ में बने अपने घर को ही इन्होंने कुदरती तरीके से बेहतरीन खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनाने से लेकर पौधों की दवाएं बनाने की यूनिट में तब्दील कर दिया है। इतना ही नहीं, यहीं पर बनाई अपनी आधुनिक लेबोरेटरी के ज़रिए किसानों को सस्ते में मिट्टी की जांच (Soil Testing) करके देने से लेकर पौधों पर तरह तरह के प्रयोग करना इनके किरदार को दिलचस्प बना देता है। इनका पूरा नाम है बिलाल अहमद शेख़ और मुनीर अहमद शेख़। ये जम्मू-कश्मीर पुलिस में 38 साल की सेवा के बाद रिटायर हुए हवलदार गुलाम रसूल के बेटे हैं। इनके शानदार काम और जज़्बे का ज़िक्र खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ में किया था। कश्मीर में इस तरह का काम करने वाला ये पहला प्राइवेट यूनिट है।
केन्द्र शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से तकरीबन 30-35 किलोमीटर के फासले पर मुरन गाँवके बाहरी हिस्से में मुख्य सड़क के किनारे शेख परिवार का घर है। अंदर प्रवेश करते ही सेब से लदे पेड़ और दूर तक एक दूसरे से सटे और तिरपाल से ढके कम्पोस्ट खाद के ढेर देखने को मिलते हैं। इन्हें पार करके जैसे ही मकान के पीछे के हिस्से में पहुंचे तो ऐसा लगा जैसे किसी विज्ञान संस्थान की मॉडर्न लेबोरेटरी में आ गए हों। यहां तरह-तरह की मशीनें, रोशनी ओर टेम्प्रेचर कंट्रोल करने के यंत्र, दवाएं, शीशियाँ, टेस्ट ट्यूब, ओवन नुमा छोटी बड़ी अलमारी जैसी मशीन और भी न जाने क्या-क्या रखा है। इस जगह पर आने के लिए ज़रूरी है कि अंदर जाने से पहले दरवाज़े पर जूते उतारिये और वहां रखी चप्पल पहनकर या फिर शू कवर से अपने जूते-चप्पल ढककर फिर अंदर जाइए। ये वैसा ही है जैसे आमतौर पर अस्पतालों में आईसीयू या ऐसी संवेदनशील जगहों पर जाने से पहले करना होता है।
शानदार पढ़ाई का फ़ायदा, बनाई पहली ऐसी लैब
साल 2000 तक शेख परिवार धान की खेती करता था जो पानी के प्राकृतिक स्त्रोत पर आधारित थी। ग्लोबल वार्मिंग से मौसम में बदलाव के कारण जब फसल को सही समय पर ज़रूरी पानी नहीं मिला तो पैदावार कम होने लगी। तब सेब कश्मीर के किसानों के लिए आमदनी के एक अच्छे विकल्प के तौर पर उभर रहा था। लिहाज़ा इस परिवार ने भी कई अन्य परिवारों की तरह 12 कनाल में धान के खेतों में सेब के पौधे लगा दिए। कुछ साल में ये काम चल निकला। इस बीच बिलाल अहमद ने एमए, बीएड किया। मकसद टीचर बनने का था और विज्ञान के छात्र रहे मुनीर अहमद ने एमएससी (बायो टेक्नोलॉजी) की पढ़ाई पूरी की। इस बीच मुनीर ने भोपाल स्थित सेंटर फ़ॉर माइक्रो बायोलॉजी एंड बायो टेक्नोलॉजी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट से बायो फ़र्टिलाइज़र प्रोडक्शन का कोर्स भी किया। 2017 में उन्होंने पुलवामा के कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से मिट्टी जांच करने की लेबोरेटरी स्थापित की। मात्र 500 रुपये की फ़ीस में ये लेबोरेटरी मृदा की जांच करके किसानों को सरकारी संस्थान से मान्यता प्राप्त सॉइल कार्ड बनाकर देती है। इस तरह का काम करने वाली कश्मीर की मान्यता प्राप्त ये पहली निजी लैबोरेटरी है, जो शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं तकनीकी विश्वविद्यालय से सम्बद्धित है। मुनीर बताते हैं कि कई प्राइवेट प्रयोगशालाएं किसानों से इस जांच के 3000 से 5000 रुपये लेती हैं।
शुरू में चुनौतियां कम नहीं थीं
बिलाल व मुनीर ने 2018 में वर्मीकम्पोस्ट बनाना शुरू किया। घर में गाय पाली जाती है इसलिए गाय के गोबर को इसमें इस्तेमाल किया गया। इसके बाद उन्होंने बायो फ़र्टिलाइज़र बनाना शुरू किया। तकरीबन 6 साल की मशक्कत के बाद वे ट्रायकोडरमा नाम से बनाया ताकि बायो कंट्रोल एजेंट व स्टिमुलेटर एजेंट लॉन्च कर सकें।
मुनीर बताते हैं कि उच्च तकनीकी क्षेत्र का काम करने में यहां ब्यूरोक्रेसी सिस्टम में अड़चन इसलिए भी आती रही क्योंकि यहां के सरकारी तंत्र के काफ़ी ऐसे सवाल होते थे जिनके जवाब देकर उन्हें संतुष्ट कर पाना मुश्किल होता था। हरेक प्रयोग के नतीजे या प्रभाव को विस्तार से लिखना भी उनको संतुष्ट नहीं कर पाता था। तब उन सरकारी अफसरों को लैब में बुलाकर सब कुछ दिखाना पड़ता था। लैब में ऐसे टेस्ट होते थे जिनके परिणाम जानने के लिए नमूने को 24 घंटे या उससे ज़्यादावक्त तक लगातार मशीन में लगाकर प्रक्रिया पूरी करनी होती है। ये मशीन बिजली से चलती हैं और कई बार यहां देर तक लाइट गायब हो जाती थी। लिहाज़ा उन्हें काफी खर्चा तो सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिए करना पड़ा। बाहर से मशीन आयात करना बड़ा महंगा था और जब ऐसी मशीन मुनीर खुद बनाते तो यहां के सरकारी सिस्टम से उसे मान्यता दिलवाना आसान नहीं होता था। दूसरी चुनौती ये भी थी कि मशीन ऐसी तैयार करनी है जिससे बिजली की खपत कम से कम हो।
अब लोग मानते हैं लोहा
अब तो मुनीर की लेबोरेटरी में रिसर्चर भी आते हैं। कृषि विज्ञान और खाद निर्माण से जुड़े लोग उनकी यूनिट को देखने आते हैं। पीएम मोदी के प्रोग्राम में ज़िक्र होने के बाद उनके काम की लोकप्रियता में भी इज़ाफ़ा हुआ है। मुनीर कहते हैं कि शुरू-शुरू में लोग कम्पोस्ट को लेकर बिलकुल दिलचस्पी नहीं दिखाते थे लेकिन ये न सिर्फ़ फसल की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाता है।
एक ख़ास बात ये भी कि इसमें पढ़े-लिखे उन ग्रामीण नौजवानों के लिए आमदनी की अच्छी सम्भावनाएं हैं जिनके पास ज़मीन है और गोबर का इंतजाम है। शुरुआत में तो शेख बन्धुओं ने अपने घर की रसोई का गीला कचरा, फ़ालतू की घास और यहां तक कि सड़े हुए सेब तक वर्मी कम्पोस्ट बनाने में इस्तेमाल किये। उन्होंने इसे महज़ किसानों की गलतफहमी बताया कि गलने वाले सेब का खाद में इस्तेमाल नहीं होता है। पहले उन्होंने 2 कर्मचारियों की मदद से काम शुरू किया था। अब उन्होंने 8 लोगों को तो सीधा नौकरी दी है। वहीं उनके कारोबार से जुड़े 20 से ज्यादा लोगों की आमदनी होती है।
अब कइयों को रोज़गार भी दे रहे हैं
वर्मी कम्पोस्ट को लेकर कुछ सालों के अंदर ही किसानों में आई जागृति का असर यहां दिखाई देने लगा है। मुनीर बताते हैं कि जब कम्पोस्ट बनाने के लिए उनको अपनी जगह कम पड़ी तो पड़ोस की जगह किराये पर ली। वहीं आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से बिलाल और मुनीर का काम करना कई ऐसे नौजवानों को प्रभावित कर रहा है जो वर्मीकम्पोस्ट बनाने या खेतीबाड़ी से जुड़े काम से दूर भागते थे।
मुनीर बताते हैं कि वो वर्मीकम्पोस्ट की ट्रेनिंग भी देते हैं। साथ ही अब तक वो 20 वर्मीकम्पोस्ट सब यूनिट लगवा चुके हैं। औसतन हर यूनिट में 2 से 5 लोगों को रोज़गार मिलता है। तकरीबन 300 टन कम्पोस्ट बनता है, जिसको बेचने से करीब 50 लाख रुपये की बिक्री होती है। उन लोगों का तैयार खाद भी शेख भाई बिकवाते हैं क्योंकि उनके पास तो ग्राहक हमेशा तैयार होते हैं। मुनीर बताते हैं कि गाय के गोबर से भरी एक ट्रॉली 3500 रुपये में मिलती है। इससे 8 क्विंटल कम्पोस्ट तैयार होता है जो 1500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। उनकी सलाह पर जिन्होंने यूनिट लगाई है उनमें कई पढ़े-लिखे नौजवान हैं। 500 क्विंटल कम्पोस्ट बनाकर बेचने के लिए किसी तरह के रजिस्ट्रेशन आदि औपचारिकता की ज़रुरत नहीं होती है।
नये-नये आइडिया जिन पर चल रहा है काम
जैविक खाद और जैविक कीटनाशक बनाने में विशेषज्ञता हासिल करने वाले मुनीर ने अब पौधों पर भी कुछ प्रयोग करना शुरू किया है। उन्होंने बीज से कीवी की पौध तैयार करनी शुरू की है। कहते हैं कि ये कई ऐसे लोगों के लिए आमदनी का ज़रिया हो सकता है जिनके पास कम ज़मीन है। ये पौधे तो गमलों तक में तैयार करके बेचे जा सकते हैं। एक पौधा 300 रुपये का बिकता है। दो साल बाद ये फल देना शुरू कर देता है। ये काम तो गृहणियाँ भी कर सकती हैं। मुनीर अहमद शेख एक ऐसे प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं जिससे बिना कोई ख़ास लागत लगाए ग्रामीण घरों से निकलने वाले कचरे से वर्मीकम्पोस्ट बनाकर महिलाएं भी कुछ आमदनी कर सकती हैं।
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