काजू की खेती: एक महिला किसान की इस नयी तकनीक से काजू उत्पादकों की सबसे बड़ी मुश्किल हुई हल

भारत में हर साल लगभग 7.53 लाख टन काजू ( Cashew ) का उत्पादन होता है। कई किसान अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं। कीटों के प्रकोप के अलावा, भारत के समुद्र तटीय राज्यों में काजू की खेती लगातार तीव्र चक्रवातों से भी प्रभावित होती है। इससे काजू उत्पादक किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।

काजू उत्पादक किसान ( cashew farmers kerala

एक-एक पैसा जोड़कर किसान अपनी फसल तैयार करता है, लेकिन कई बार उसे मौसम की मार और कीटों के प्रहार से नुकसान झेलना पड़ता है। केरल की एक महिला ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से काजू के पेड़-पौधों को कीटों से बचाया जा सकता है। साथ ही चक्रवाती तूफ़ान से काजू की फसल को बचाने में भी ये तकनीक कारगर साबित हुई है। इस तकनीक के बारे में खुद विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने जानकारी दी है। इस लेख में आगे आप जानेंगे कि  इस नयी तकनीक से  न सिर्फ़ कीटों के प्रकोप से छुटकारा मिल सकता है, बल्कि उत्पादन क्षमता में भी इज़ाफ़ा हो सकता है।

इस तकनीक को अब सरकार देगी बढ़ावा

इस नयी तकनीक का नाम ‘काजू मल्टीपल रूटिंग प्रोपेगेशन मेथड’ (Cashew Multiple Rooting Propagation Method) है, जिसे केरल की रहने वाली महिला किसान अनियम्मा बेबी ने खासतौर पर काजू के पेड़ों के लिए विकसित किया है। इस तकनीक में एक बड़े काजू के पेड़ में कई जड़ें पैदा की जाती हैं। इस नयी तकनीक को कर्नाटक के पुत्तूर स्थित ICAR- काजू अनुसंधान निदेशालय और केरल कृषि विश्वविद्यालय की ओर से वेरिफ़ाइड भी किया गया है। किसान इस तकनीक को अपनाकर अपनी काजू की फसल को रोग मुक्त रख सकते हैं और प्राकृतिक आपदाओं से बचा सकते हैं।

कैसे विकसित हुई ये नयी तकनीक?

2004 में काजू की कटाई के दौरान अनियम्मा की नज़र पेड़ की एक शाखा पर पड़ी, जो ज़मीन से सटी हुई थी। अनियम्मा ने देखा कि ये शाखा ज़मीन पर कई जड़ें पैदा कर रही थी। इस जड़ से निकलने वाले नये पौधे का विकास सामान्य काजू के पौधे की तुलना में तेज़ी से होने लगा। फिर एक साल बाद तना छेदक कीट के कारण मूल पेड़ तो नष्ट हो गया, लेकिन जो नया पौधा विकसित हुआ, उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा। ये नया पौधा किसी तरह के रोग की चपेट में नहीं आया। तना और जड़ बेधक कीट, पेड़ों को अंदर से खोखला कर देते हैं। ये कीट थोड़े समय में ही पेड़ों को नष्ट कर देते हैं, लेकिन नये पौधे के साथ ऐसा नहीं हुआ।

काजू उत्पादक किसान ( cashew farmers kerala
तस्वीर साभार: PIB India

काजू की खेती: एक महिला किसान की इस नयी तकनीक से काजू उत्पादकों की सबसे बड़ी मुश्किल हुई हलइस नयी तकनीक से किये गए दोनों प्रयोग रहे सफल

ये नई चीज अनियम्मा के दिमाग में घर कर गई। उन्होंने गमलों में डाली जाने वाली मिट्टी को थैलियों में भरकर, निचली समानांतर शाखाओं की गांठों (Nodes ) पर इन थैलियों को बांध दिया। अपने दूसरे प्रयोग में उन्होंने सुपारी के खोखले तने की मदद से नई जड़ को ज़मीन की ओर करके, शाखाओं में वजन डालकर उन्हें जमने के लिए मिट्टी से ढक दिया। उनके ये दोनों ही प्रयोग सफल रहे। अनियम्मा पिछले सात साल से अपने पुराने काजू के बागानों में इन दो तरीकों से खेती कर रही हैं। इससे उनके उत्पादन में भी इज़ाफ़ा हुआ है। मंत्रालय ने कहा कि इस नयी तकनीक ने पुराने बागान वाले काजू उत्पादकों में अतिरिक्त उपज की नई उम्मीद पैदा की है।

चक्रवाती समुद्री तूफ़ान से फसल को बचाती है ये तकनीक

कीटों के प्रकोप के अलावा, भारत के समुद्र तटीय राज्यों में काजू की खेती लगातार तीव्र चक्रवातों से भी प्रभावित होती है।  इस नयी तकनीक की मदद से तेज हवाओं से होने वाले नुकसान से बचाव होता है और चक्रवाती समुद्री तूफ़ानों के खिलाफ मज़बूत टेक भी मिलती है।

काजू उत्पादक किसान ( cashew farmers kerala
तस्वीर साभार: PIB India

काजू की खेती: एक महिला किसान की इस नयी तकनीक से काजू उत्पादकों की सबसे बड़ी मुश्किल हुई हलभारत में इतना होता है काजू का उत्पादन

भारत में काजू की खेती लगभग 10.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है। ये काजू उगाने वाले देशों में सबसे ज़्यादा है। भारत में हर साल लगभग 7.53 लाख टन काजू का उत्पादन होता है। कई किसान अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं।

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