हाइड्रोपोनिक तकनीक (Hydroponic Technique): वसंत और जीवन के स्टार्टअप ने ICAR-NIANP के साथ मिलकर बनाई कम लागत वाली मशीन ‘कंबाला’

एक कंबाला मशीन से एक दिन में 25 से 30 किलो हरा चारा निकलता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक से बनी यह मशीन छोटे और सीमांत किसानों के लिए भी फायदेमंद है। 

वसंत और जीवन के स्टार्टअप ने ICAR-NIANP के साथ मिलकर बनाई कम लागत वाली मशीन ‘कंबाला’

भारत भर में हरे चारे की कमी को जगह-जगह देखा जा सकता है। आधुनिक तकनीक जैसे हाइड्रोपोनिक तरीके से खेती इस समस्या को दूर करने में  लाभकारी हो सकती है। हरे चारे की कमी को दूर करने के लिए बेंगलुरु स्थित एग्री-टेक स्टार्टअप ‘हाइड्रोग्रीन्स’ ने ‘कंबाला’ डिजाइन किया है।

कृषि के क्षेत्र में ख़ास रूचि रखने वाले  वसंत किसानों की इस समस्या का  स्थायी समाधान देने में योगदान दिया है। कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और ओडिशा के किसानों  से उन्होंने बातचीत की। इसके अलावा छोटे और सीमांत डेयरी किसानों से भी बातचीत की। उन्होंने देखा कि जलवायु परिवर्तन, बार-बार सूखा पड़ना, ये सारी चीजें ज़मीनी स्तर पर किसानों को झेलनी पड़ती हैं।

कंबाला मशीन कैसे काम करती है?

वसंत ने हाइड्रोपोनिक्स की तर्ज पर कंबाला मशीन को बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने कई किसानों को बेहतर चारा उत्पादन के तरीकों और हाइड्रोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल करते देखा था। समय की आवश्यकता और मांग को देखते हुए, वह एक ऐसा मॉडल लेकर आए जो छोटे, सीमांत किसानों और छोटे – बड़े  परिवारों के लिए काम करेगा। 2019 में वसंत और उनके साथी जीवन एम ने ‘हाइड्रोग्रीन्स’ के नाम से अपने उत्पाद का पेटेंट करवाया।

कंबाला की तुलना हम एक बड़े रेफ्रिजरेटर से कर सकते हैं। इसकी चौड़ाई 3 फ़ीट, लंबाई 6 फ़ीट और ऊंचाई 7 फ़ीट है। इसके अंदर चारे को उगाने के लिए रैक लगाए जाते हैं। इसमें हर दिन एक रैक लगाई जाती है। हर रैक में चार ट्रे होती हैं जहां सप्ताह में एक दिन लगभग 700 ग्राम उच्च प्रोटीन वाले मक्के के बीज डाले जाते हैं। वैकल्पिक रूप से, गेहूं या जौ के बीज का भी उपयोग किया जा सकता है।

अगले कुछ दिनों के अंदर, रैक में ताज़ा हरा चारा मवेशियों को देने के लिए तैयार हो जाता है। रैक के अंदरूनी हिस्से को 14 माइक्रो-स्प्रिंकलर सिस्टम से जोड़ा जाता है और इसे बिज़ली से कनेक्ट किया जाता है। इसे ज़रुरत के हिसाब से कभी-कभी पानी के छिड़काव के लिए इस्तेमाल करते हैं।

कंबाला बनाने के लिए ली ट्रैनिंग

2019 में हाइड्रोग्रीन स्थापित करने से पहले, वसंत कामथ और जीवन एम ने आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु पोषण और शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु (ICAR-National Institute of Animal Nutrition and Physiology, Bengaluru) में मवेशियों और चारे के विकास पर प्रशिक्षण लिया। संस्थान ने मेसर्स हाइड्रोग्रीन्स एग्री सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (hydrogreens Agri Solutions Pvt. Limited) के साथ एक समझौते  पर हस्ताक्षर किए।

एग्रीनोवेट इंडिया के दिशानिर्देशों के अनुसार हाइड्रोपोनिक के किफायती मॉडल के लिए प्रमुख मापदंडों जैसे बीज घनत्व (Seed density), पानी की अनुसूची और मोल्ड संक्रमण (mold infestation) को कम करने के लिए एक उत्पादन इकाई बनाई गई। इस संयुक्त कार्यक्रम ने प्रतिकूल मौसम  के दौरान बेहतर बेहतर उत्पादकता लाने  के लिए किफायती हरे चारे के उत्पादन  उत्पादन में मदद की।

हाइड्रोपोनिक तकनीक (Hydroponic Technique): वसंत और जीवन के स्टार्टअप ने ICAR-NIANP के साथ मिलकर बनाई कम लागत वाली मशीन ‘कंबाला’
तस्वीर साभार: ICAR

हाइड्रोपोनिक तकनीक (Hydroponic Technique): वसंत और जीवन के स्टार्टअप ने ICAR-NIANP के साथ मिलकर बनाई कम लागत वाली मशीन ‘कंबाला’

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कंबाला मशीन के फ़ायदे

एक कंबाला मशीन से एक दिन में 25 से 30 किलो हरा चारा निकलता है। इससे एक हफ्ते में कम से कम 4 से 5 गायों के लिए पर्याप्त चारा बनता है। पारंपरिक खेती में सिर्फ 1 किलो चारा उगाने के लिए लगभग 70 से 100 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसकी तुलना में कंबाला को तीन दिन के लिए कम से कम लगभग 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

कंबाला को बाहर से एक काले जाल से ढका होना चाहिए। इससे अत्यधिक गर्मी से इसे बचाया जा सकता है और पर्याप्त वेंटिलेशन की अनुमति भी मिलती है। यह सिस्टम राजस्थान के अंदरूनी गावों, जहाँ तापमान बहुत ज़्यादा रहता है, वहां भी लगने के लिए अनुकूल है।

कंबाला मशीन कितने की मिलती है?

एक कंबाला की कीमत 30,000 रुपये है।  संस्थापकों ने इस मशीन का एक सौर-संचालित संस्करण (solar powered version) भी चालू किया है। इसकी कीमत अभी 45,000 रुपए है। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में सौर कंबाला की लगभग 41 इकाइयाँ स्थापित की गई हैं। इसके अलावा कई अन्य इकाइयाँ पहले से ही राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में सक्रिय हैं। कुल मिलाकर, हाइड्रोग्रीन्स ने पूरे देश में लगभग 130 कंबाला इकाइयाँ स्थापित की हैं, जिससे हजारों किसानों को लाभ मिल रहा है।

राजस्थान के एक किसान और सामाजिक कार्यकर्ता पुखराज जयपाल ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मशीन संचालन में सुविधाजनक है और कई बार चारा उपलब्ध कराती है। मशीन ने चारे की बेहतर गुणवत्ता प्रदान करने में भी मदद की जिससे मवेशियों में दूध उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।

सामुदायिक चारा स्टेशन (Community Fodder Station)

वर्तमान में, हाइड्रोग्रीन कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में लगभग 25 सामुदायिक चारा स्टेशन स्थापित करने में लगा हुआ है। ये छोटी इकाइयाँ हैं, जिन्हें  खेती से जुडी स्थानीय  ग़ैर-सरकारी  संस्थाओं द्वारा चालू किया गया है। डेयरी किसान और मवेशियों के साथ ग्रामीण हर सुबह स्टेशन पर आ सकते हैं और अपने मवेशियों के लिए आवश्यक मात्रा में उच्च प्रोटीन वाला हरा चारा खरीद सकते हैं।

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