Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती से महके आम और महुआ के बागान, यूनुस ख़ान का खेत कहलाता है ‘मॉडल फ़ार्म’

साल दर साल आमदनी में हुई बढ़ोतरी

मध्य प्रदेश के रहने वाले यूनुस ख़ान सीमित संसाधनों से आमदनी को बढ़ाने के तरीकों पर अक्सर रिसर्च किया करते थे। इस दौरान उन्हें ऐसी तकनीक के बारे में पता चला, जो उनके लिए नयी थी। उन्होंने अपने आम और महुआ के बागान में हल्दी की खेती शुरू कर दी। आज की तारीख में उनका फ़ार्मिंग मॉडल देखने के लिए दूर-दूर से किसान आते हैं।

हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation): उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके कैसे आमदनी में इज़ाफ़ा किया जाए, मध्य प्रदेश के उमरिया ज़िले के रहने वाले यूनुस ख़ान ने इसका बेहतरीन उदाहरण अपने क्षेत्र में पेश किया है। देवगाँव से आने वाले यूनुस ख़ान अपने आम, महुआ और कटहल के बागानों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हल्दी की खेती के साथ-साथ आम और महुआ की खेती शुरू की। 

आमदनी को सीमित संसाधनों से बढ़ाने के तरीकों के बारे में वो अक्सर रिसर्च करते रहते थे। एक बार किसी किसान मेले में वो पहुंचे। वहाँ उन्हें पेड़ों के नीचे ही अन्य फसलों का उत्पादन लेने की तकनीक के बारे में पता चला। उन्हें इस तरह की खेती भी की जा सकती है, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इस सिलिसले में फिर उन्होंने 2008-09 में उमरिया स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया। 

पेड़ों के नीचे की हल्दी की खेती

यूनुस ख़ान ने मिश्रित खेती यानी Mixed Cropping की ट्रेनिंग ली। इसके बाद कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और मार्गदर्शन पर उन्होंने अपने फ़ार्म में आम और महुआ के पेड़ों के नीचे हल्दी की खेती शुरू कर दी। उन्होंने हल्दी की किस्म सुरोमा लगाई। पेड़ों के नीचे की मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से युक्त थी, जो हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त थी। 

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हल्दी की खेती turmeric cultivation
तस्वीर साभार: jawaharlal nehru krishi vishwavidyalaya

साल दर साल आमदनी में हुई बढ़ोतरी

पहले साल 11 हज़ार के निवेश के साथ उन्हें करीब 78 हज़ार का मुनाफ़ा हुआ। साल दर साल उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होती चली गई। उन्होंने खेती से निकलने वाले कचरे को भी रीसाइकल कर खेती की लागत को कम किया। भूमि का सही इस्तेमाल करने से लेकर पानी का सदुपयोग, वर्मीकम्पोस्ट यूनिट और बायोगैस यूनिट, उनके फ़ार्मिंग मॉडल का मुख्य आकर्षण हैं। 

खेत बना मॉडल फ़ार्म 

हर साल सैकड़ों किसान उनका वर्किंग मॉडल देखने उनके फ़ार्म पर आते हैं। उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा जा चुका है। उनके फ़ार्म को शहडोल के आयुक्त द्वारा ‘मॉडल फार्म’ भी घोषित किया गया है। उन्हें उमरिया के ज़िला कलेक्टर द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ किसान’ का भी अवॉर्ड मिल चुका है। 

हल्दी की खेती turmeric cultivation
तस्वीर साभार: jawaharlal nehru krishi vishwavidyalaya

 

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हल्दी की किस्म ‘सुरोमा’

हल्दी की किस्म सुरोमा 250 दिन में तैयार होती है। प्रति हेक्टेयर करीबन 20 टन इसकी उत्पादन क्षमता है। इसमें से शुष्क हल्दी 26.0 प्रतिशत, ओलियोरोजीन 13.1 प्रतिशत, करकुमीन 9.3 और एसेंशियल ऑयल 4.4 प्रतिशत होता है। हल्दी में मौजूद ये करकुमीन (Curcumin) और ऑयल अपच के लक्षणों को कम करने में मददगार होते हैं। 

मिट्टी और जलवायु

अच्छी बारिश वाले गर्म और आर्द्र क्षेत्र हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त होते हैं। फसल के विकास के समय गर्म और नम जलवायु अच्छी होती है। गांठ बनने के समय 25-30 डिग्री सेल्सियस जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी अच्छी उपज के लिए दोमट या काली मिट्टी अच्छी होती है। हल्दी की खेती में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

खेत कैसे करें तैयार? 

इसकी गांठ ज़मीन के अन्दर बनती हैं, इसलिए दो बार मिट्टी पलटने वाले हल से और तीन से चार बार देसी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके एवं पाटा चलाकर मिट्टी को भूरभूरी तथा समतल बना लें।

कब करनी चाहिए रोपाई? 

कम समय में तैयार होने वाली किस्मों की रोपाई मई में, मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्मों की रोपाई जून में और लंबी अवधि में तैयार होने वाली किस्म की रोपाई जून-जुलाई में करनी चाहिए। 

हल्दी की खेती turmeric cultivation
तस्वीर साभार: ICAR

हल्दी की किस्में

हल्दी की फसल 7 से 10 महीने में तैयार हो जाती है। हल्दी की उपज किस्म और उत्पादन के तौर तरीकों पर निर्भर करती है। हल्दी की औसत उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टर है।

अगर आप हल्दी की उन्नत किस्मों की खेती करते हैं, तो आपको अपनी फसल से अच्छा लाभ होता है। सोनिया, गौतम, रश्मि, सुरोमा, रोमा, कृष्णा, गुन्टूर, मेघा, सुकर्ण, कस्तूरी, सुवर्णा, सुरोमा और सुगना, पन्त पीतम्भ हल्दी की उन्नत किस्मों में शामिल हैं।

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हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत

भारत में गुजरात, मेघालय, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम आदि में हल्दी की खेती की जाती है। अगर बात सूखी हल्दी की कीमत की बात करें तो बाज़ार में इसकी कीमत 60 से 100 रुपये प्रति किलो है। 

भारत दुनिया में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दुनिया भर में हल्दी की जितनी खपत होती है, भारत अकेले उसका 80 फ़ीसदी उत्पादन करता है। भारत से फ्रांस, जापान, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, अरब और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हल्दी का निर्यात किया जाता है। 

हल्दी के फ़ायदे

हल्दी को औषधि के रूप में देखा जाता है। शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने में मददगार साबित होता है। आजकल ब्यूटी प्रोडक्ट के कई उत्पादों में भी हल्दी का इस्तेमाल होता है। हल्दी में एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक गुण होते हैं। हल्दी में कैल्शियम, आयरन, सोडियम, ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन ई, विटामिन सी, और फाइबर की भरपूर मात्रा पाए जाते हैं।

ये भी पढ़ें- Intercropping Farming: अरहर के साथ हल्दी की खेती करके पाएँ दोहरी कमाई

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