16 तालाब खोदकर गांवों को दिया पानी, पढ़िए कामे गौड़ा की प्रेरणादायी कहानी

कहते हैं जहां चाह वहां राह… अगर ठान लो तो असंभव काम भी संभव हो जाता है। वैसे तो ऐसे […]

motivational story of kame gauda pani anna

कहते हैं जहां चाह वहां राह… अगर ठान लो तो असंभव काम भी संभव हो जाता है। वैसे तो ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलने हैं जो असंभव काम को संभव कर दिखाते हैं। लेकिन इनमें से कुछ की प्रेरणादायी कहानी जग जाहिर होती है तो वहीं कुछ यूं ही गुमनाम रह जाते हैं। उन्ही गुमनाम नामों में शामिल है एक नाम-पानी अन्ना। पानी अन्ना नाम से तो लोग इन्हें पहचानते हैं लेकिन इनका असली नाम कामे गौड़ा है। तो चलिए आपको बताते हैं पानी अन्ना नाम से मशहूर शख्स की प्रेरणादायी कहानी जिन्होंने अपने दम पर तालाब खोदकर इलाके में पानी की किल्लत को दूर कर दिया। इसीलिए कामे गौड़ा के जब्बे की खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में सराहना करते हुए योद्धा करार दिया था।

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कौन हैं पानी अन्ना

दरअसल 84 साल के कामे गौड़ा मूल रुप से कर्नाटक के मंडया जिले के देशनाडोडी गांव के रहने वाले हैं। आर्थिक तौर पर कामे गौड़ा बेशक कमजोर हैं लेकिन इनके हौसले बेहद मजबूत हैं। कामे गौड़ा चरवाहा समुदाय से आते हैं। जिनके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। पानी अन्ना के जज्बे को सलाम करते हुए कर्नाटक की सरकार ने उन्हें आजावीन निःशुल्क पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने का पास दिया है।

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मजबूरी ने बनाया मांझी

84 साल के पानी अन्ना की उम्र अब आराम करने की है। लेकिन गांव में पानी की किल्लत ने उन्हें तालाब खोदने पर मजबूर कर दिया। पानी अन्ना के गांव में पानी की बेहद किल्लत है। पानी सिर्फ इतना मिल पाता है जिससे लोग अपना गुजारा कर पाते हैं। लोगों के सामने चुनौती होती है कि या तो वो खुद प्यास बुझा लें या फिर पालतू जानवरों की। लोगों की बेबसी कामे गौड़ा से देखी नहीं गई और इसीलिए उन्होंने हाथ में फावड़ा उठाया और बिना किसी सरकारी मदद के 14 तालाब खोद दिए। कामे गौड़ा में इस कदर जुनून पैदा हो गया था कि वो रात में भी तालाब खोतने निकल जाते थे। ऐसा कामे गौड़ा इसीलिए करते थे क्कि उन्होंने तालाब खोदने का समय निर्धारित कर लिया था। इस तरह 40 साल में कामे गौड़ा की मेहनत रंग लाई और आज उनकी जी तोड़ मेहनत से गांव पानी से लबालब है।

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कैसे सूझी कामे गौड़ा को तरकीब

जब इस बारे में कामे गौड़ा से पूछा गया कि उन्हें लाताब खोदने की तरकीब कैसे मिली तो उन्होंने बताया कि वो जानवरों को चराने पहाड़ी इलाके में जाते थे तो गर्मी की वजह से पानी सूख जाता था। जिसे देख उनका मन विचलित हो जाता था। क्षेत्र में जितनी बारिश होती थी वो पानी पहाड़ों से नीचे बह जाता था। जिसे देखकर मुझे तालाब खोदने की तरकीब सूझी।

इस तरह इकट्टा किया पैसा

कामे गौड़ा ने तालाब खोदने की तो ठान ली लेकिन पैसा न होना भी सबसे बड़ी चुनौती थी। इसके लिए भी उन्होंने एक रास्ता निकाला और खुदाई का सामान खरीदने के लिए कुछ भेड़ बेच दीं। इन औजारों की मदद से उन्होंने पहले 6 महीने में 1 तालाब खोदा। धीरे-धीरे पासा बचाकर मजदूर रख लिए और इस तरह 16 तालाब खोद दिए। मजदूरों के साथ कामे गौड़ा खुद भी काम करते थे। अब ये तालाब सालभर पानी से भरे रहते हैं। जिनकी देखभाल के लिए कामे गौड़ा अब तक 10 से 15 लाख रुपए भी खर्च कर चुके हैं। खास बात तो ये है इन तालाबों का नाम कामे गौड़ा ने अपने पोते पोतियों के नाम पर रखा है।

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