Table of Contents
किसानों के नज़रिये से देखें तो बेबीकॉर्न बहुत कम समय में उपज मिलने लगती है। खरीफ़ वाले बेबीकॉर्न की उपज जहाँ दो-ढाई महीने में मिल जाती है, वहीं रबी की उपज करीब चार महीने बाद मिलती है। बेबीकॉर्न की देखभाल की लागत भी ज़्यादा नहीं है। बेबीकॉर्न की फ़सल को पूर्णतः शुद्ध माना जाता है, क्योंकि पत्तियों में लिपटा होने की वजह से ये कीटनाशक दवाईयों के दुष्प्रभाव से मुक्त होते हैं। वैसे बेबीकॉर्न में किसी तरह का रोग या कीट नहीं लगता। इसकी बालियाँ पत्तियों के कवच में रहने की वजह से घातक कीटों और बीमारियों से मुक्त रहती हैं। इसीलिए बाज़ार में इसका दाम भी बढ़िया मिलता है। कुलमिलाकर, कम वक़्त में ज़्यादा कमाई देने के लिहाज़ से बेबीकॉर्न की खेती लाज़बाब है।
बेबीकॉर्न की बड़े शहरों में ख़ूब माँग रहती है, इसीलिए जो किसान इनके नज़दीक रहते हैं उनके लिए बेबीकॉर्न की खेती बढ़िया कमाई का सबब बन सकती है। रबी की फसलों के रूप में बेबीकॉर्न के साथ आलू, मटर, राजमा, मेथी, धनिया, गोभी, शलजम, मूली, गाजर इत्यादि अन्तः फ़सल (intercropping) के रूप में ली जाती हैं। अन्तः फ़सल से जो उपज प्राप्त होती है उससे बेबीकॉर्न की खेती में चार चाँद लग जाते हैं क्योंकि किसानों के लिए ये अतिरिक्त लाभ होता है।
स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार है बेबीकॉर्न
देश की शहरी आबादी में सेहतमन्द और पौष्टिक खाद्य सामग्रियों की ख़ूब माँग देखी जाती है। इसीलिए बेबीकॉर्न की खपत में लगातार और तेज़ी से वृद्धि हो रही है। बेबीकॉर्न से ढेरों उत्पाद बनाये जाते हैं। इसलिए भी इसकी खेती में काफ़ी सम्भावनाएँ देखी जा रही हैं। स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार होने की वजह से बेबीकॉर्न को सेहत के लिए शानदार और सुरक्षित पाया गया है। बेबीकॉर्न का उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार, कैंडी, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी, लड्डू, हलवा, खीर इत्यादि के रूप में होता है।
बेबीकॉर्न के पोषक तत्व
बेबीकॉर्न को मक्के के अनिषेचित पौधे (unfertilized plants) से ही प्राप्त किया जाता है। इसे मक्के की फ़सल में रेशमी बाल यानी ‘सिल्क’ के उगले के 2-3 दिनों के भीतर तोड़ लिया जाता है। इसलिए ये काफ़ी मुलायम होता है। बेबीकॉर्न को तोड़ने में यदि देरी की जाती है कि वक़्त बढ़ने के साथ इसकी गुणवत्ता भी गिरने लगती है। बेबीकॉर्न, कॉलेस्ट्रॉल रहित और बेहद कम कैलोरी वाला आहार है, इसीलिए हृदय रोगियों के लिए काफ़ी लाभदायक है। इसमें भरपूर फॉस्फोरस पाया जाता है तथा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह तल्व और विटामिन भी ख़ूब होता है। ये रेशेदार तत्वों यानी फ़ाइबर से भी भरपूर होते हैं इसीलिए सुपाच्य (digestible) होते हैं।
कैसे करें बेबीकॉर्न की खेती?
बेबीकॉर्न की खेती के लिए जीवांशयुक्त (germy) दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसकी बुआई से पहले खेत की तैयारी करने के तहत पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाक़ी जुताई देसी हल या रोटावेटर या कल्टीवेटर से करने के बाद पाटा लगाकर करना चाहिए। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी के साथ-साथ खेत पलेवा करके तैयार करना चाहिए। बेबीकॉर्न की खेती के लिए कम समय में पकने वाली और मध्यम ऊँचाई वाली एकल क्रॉस संकर किस्में ज़्यादा बेहतर होती हैं, क्योंकि रबी की फसल में इनमें सिल्क आने की अवधि 70 से 75 दिन की होती है तो खरीफ़ में इसकी मियाद 45 से 50 दिन की होती है। इस तरह से बेबीकॉर्न की खेती करने पर दो से ढाई महीने के बीच उपज मिलने लगती है।
बेबीकॉर्न के बीज की उन्नत किस्में किस्में | ||||
किस्म | गुल्ली का रंग | जीरा निकलने की अवधि (दिन) | उत्पादन क्षमता (क्विंटल/हेक्टेयर) | |
छिलका सहित | छिलका रहित | |||
आज़ाद कमल | क्रीमी सफ़ेद गुल्ली | 70-75 | 42-45 | 15-20 |
HM-4 | क्रीमी सफ़ेद गुल्ली | 80-85 | 45-50 | 15-20 |
BL-42 | सफ़ेद गुल्ली | 70-75 | 42-45 | 17-20 |
प्रकाश | सफ़ेद गुल्ली | 70-75 | 45-50 | 16-18 |
ये भी पढ़ें: इस साल पद्मश्री से सम्मानित सुंडाराम वर्मा की एक तकनीक ने बदल दी कई किसानों की तकदीर
बेबीकॉर्न के लिए बुआई का मौसम, विधि और बीज दर
उत्तर भारत में बेबीकॉर्न को फरवरी से नवम्बर के बीच किसी भी वक़्त बोया जा सकता है। बुआई विधि के लिहाज़ से देखें तो बेबीकॉर्न को मेड़ों पर बोना फ़ायदेमन्द रहता है। इसके लिए एक मेड़ से दूसरे मेड़ की दूसरी करीब 2 फ़ीट और एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी करीब 6 इंच रखनी चाहिए। बेबीकॉर्न की उन्नत किस्मों के लिए बीजों के आकार पर बीज दर निर्भर करेगी, लेकिन मोटे तौर पर 22-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की बीज दर उपयुक्त होती है।
बेबीकॉर्न की खेती में खाद का इस्तेमाल
बेबीकॉर्न की बढ़िया उपज पाने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञों की ओर से खाद के इस्तेमाल को उपयोगी और आवश्यक बताया गया है। इसके लिए फॉस्फोरस, पोटाश, ज़िंक सल्फेट और नाइट्रोजन की एक तिहाई को बुआई के समय इस्तेमाल करना चाहिए। बाक़ी बचे दो तिहाई भाग में से एक तिहाई का इस्तेमाल बुआई के 25 दिनों के बाद तथा शेष एक तिहाई हिस्से को को 40 दिनों की फसल होने पर डालना चाहिए। यदि बेबीकॉर्न की रबी मौसम वाली फसल हो तो उपरोक्त खाद को तीन हिस्से की जगह चार भाग में करके देना चाहिए। इस चौथाई मात्रा में से पहला हिस्सा बुआई के समय, दूसरा बुआई के 25 दिन बाद, तीसरा हिस्सा 60 से 80 दिनों के बीच और चौथा हिस्सा 80 से 110 दिनों पर देना चाहिए।
बेबीकॉर्न की खेती के लिए खाद | |
खाद | प्रति हेक्टेयर मात्रा |
गोबर की खाद | 8-10 टन |
नाइट्रोजन | 150 किग्रा |
फॉस्फोरस | 60 किग्रा |
पोटाश | 60 किग्रा |
ज़िंक सल्फेट | 25 किग्रा |
खरपतवार नियंत्रण और फसल सुरक्षा
बुआई के 15-20 दिनों बाद पहली बार तथा 30-35 दिनों बाद दूसरी बार निराई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए। इससे जड़ों में हवा का संचार होता है और उन्हें दूर तक फैलकर पौधों के लिए पोषक तत्व जुटाने में मदद मिलती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए सीमाजीन की 105 किग्रा प्रति हेक्टेयर को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। ये छिड़काव खेत में बेबीकॉर्न के बीजों के अंकुरण से पहले करना चाहिए। इससे जहाँ खरपतवार नहीं जमते, वहीं फ़सल तेज़ी से बढ़ती है। फसल सुरक्षा के लिहाज़ से बेबीकॉर्न की खेती में किसी ख़ास चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि इसमें आसानी से किसी रोग या कीट का हमला नहीं होता है। इस लिहाज़ से पत्तियों में लिपटी रहने के कारण बेबीकॉर्न की फसल बेहद सुरक्षित रहती है।
बेबीकॉर्न की तुड़ाई, पैदावार और बिक्री
बेबीकॉर्न की गुल्ली को उस वक़्त ज़रूर तोड़ लेना चाहिए, जब इसके सिल्क यानी जीरा की लम्बाई 3-4 सेमी की हो जाए। गुल्ली की तुड़ाई के वक़्त उसके ऊपर की पत्तियों को हटाना नहीं चाहिए। वर्ना, मुलायम बेबीकॉर्न बहुत जल्दी ख़राब हो जाएँगी। रबी के मौसम में एक से दो दिन के फ़ासले पर गुल्ली की तुड़ाई करनी चाहिए। एकल क्रॉस संकर मक्का में 3 से 4 बार तुड़ाई करना ज़रूरी है। अभी तक की प्रक्रिया से छिलकेदार बेबीकॉर्न हासिल होगा। इसके बाद बेबीकॉर्न का छिलका उतारने और उन्हें प्लास्टिक की टोकरी, थैले या कंटेनर में रखने का काम अलग से करना चाहिए। फिर उपज को यथाशीघ्र मंडी पहुँचाकर बेचना चाहिए। इस तरह खेती करने से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल बेबीकॉर्न की छिलका-रहित उपज प्राप्त होती है। इसके अलावा 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पशुओं के लिए हरा चारा भी मिल जाता है।
‘पद्मश्री’ कंवल सिंह चौहान की उपलब्धि
खेती-किसानी में नवाचारों (नये प्रयोग करने) के शौक़ीन और ‘पद्मश्री’ से सम्मानित हरियाणा के सोनीपत ज़िले के अटेरना गाँव के निवासी कंवल सिंह चौहान ने अपने गाँव में सबसे पहले बेबीकॉर्न की खेती की शुरुआत की। उन्होंने अपने खेत पर बेबीकॉर्न की HM-4 संकर किस्म की बुआई के बाद सही वक़्त पर फसल की देखभाल से जुड़े बाक़ी सभी काम किये। उन्हें बेबीकॉर्न की खेती की लागत क़रीब 10 हज़ार रुपये प्रति एकड़ पड़ी। लेकिन जब उन्होंने अपनी उपज को दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में बेचा तो उन्हें 30 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा हुआ।
ये भी पढ़ें: पद्मश्री कंवल सिंह चौहान दे रहे हजारों किसानों को दाम की गारंटी
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Top 10 Desi Cow Breeds In India: गौपालन से जुड़े हैं तो जानिए देसी गाय की 10 उन्नत नस्लेंउन्नत नस्ल की देसी गायों को पालने पर दूध का उत्पादन अन्य देसी गायों के मुक़ाबले अधिक होता है। ज़ाहिर है, इससे आपकी आमदनी भी बढ़ेगी। एक बात का ध्यान ज़रूर रखें। हर क्षेत्र के हिसाब से कौन सी देसी गाय उन्नत नस्ल की है, इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद ही उस नस्ल को पालें।
- Mung Ki Kheti: मूंग की खेती में उन्नत बुवाई और प्रबंधन का तरीका, जानिए विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. शर्मा सेMung Ki Kheti | देश के कई हिस्सों में मूंग दाल की बुवाई हो चुकी है। मूंग दाल दलहनीय फसलों में मुख्य फसल है। मूंग की जायद के सीज़न में बुवाई की जाती है। किसानों के मन में मूंग दाल की खेती को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं। मूंग की कौन सी किस्म… Read more: Mung Ki Kheti: मूंग की खेती में उन्नत बुवाई और प्रबंधन का तरीका, जानिए विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. शर्मा से
- Rose Gardening Tips: घर की बगिया में ऐसे उगाएं गुलाब, हमेशा महकती रहेगी ताजा खुशबूGulab ki Kheti – आइए जानते हैं गुलाब का पौधा लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि घर की बगिया में पूरे साल गुलाब के फूल खिलते रहे और उसकी खुशबू से आपका घर महकता रहे।
- Potato Varieties: आलू की 10 बेहतरीन किस्में, जिन्हें उगाने से बढ़ सकती है कमाईये आलू की खुदाई का मौसम है। वैसे हमारे देश के कई इलाकों में तो पूरे साल आलू की पैदावार होती है। यदि आप भी आलू की खेती कर रहे हैं और इससे अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो आलू की कुछ खास किस्मों की खेती करें जिसमें पैदावर अधिक होती है।
- Fish Farming RAS Technique: मछली पालन की RAS तकनीक कैसे काम करती है? 30 गुना बढ़ सकता है उत्पादन!Fish Farming RAS Technique: बड़े स्तर पर अगर कोई मछली पालन करने की सोच रहा है तो मछली पालन की RAS तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। बशर्ते इसकी पूरी जानकारी हो। जानिए RAS तकनीक में कितना खर्चा लगता है और क्या हैं इससे जुड़े अहम फ़ैक्टर्स।
- Lady Finger Varieties: भिंडी की 10 उन्नत किस्में, जिसे लगाकर किसान कर सकते हैं लाखों की कमाईभिंडी की खेती हर मिट्टी और मौसम में होती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 6.8 हो, और गर्म जलवायु हो तो सबसे अच्छी पैदावार होती है।
- Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछइतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।
- Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेतीआज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।
- Rice Bran Oil vs Sunflower Oil: जानिए राइस ब्रान ऑयल-सनफ्लॉवर ऑयल में अंतर और ख़ूबियों के साथ इसका बाज़ारराइस ब्रान ऑयल को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार नेफेड के फोर्टिफाइड ब्रैन राइस ऑयल को ई-लॉन्च किया है।राइस ब्रैन ऑयल की मार्केटिंग सभी नेफेड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हो रही है।वहीं साल 2024-2032 के दौरान इंडियन सनफ्लावर ऑयल मार्केट 7 फीसदी की CAGR प्रदर्शित करेगा।
- Lemongrass: जानिए लेमनग्रास की खेती में जुड़ी अहम बातें प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज लवानिया से, उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तकबुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की समस्या है और बड़ी मात्रा में ज़मीन बंजर पड़ी रहती है, लेमनग्रास की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती कम पानी में भी आसानी से की जा सकती है।
- Eucalyptus Farming: सफेदा की क्लोनल किस्मों से किसान कर सकते हैं बढ़िया कमाई, जानिए खेती की तकनीकसफेदा की खेती लकड़ी के लिए की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग बड़े सामान की लदाई करने वाली पेटियां बनाने के साथ ही ईंधन, फर्नीचर, हार्डबोर्ड और पार्टिकल बोर्ड बनाने में किया जाता है। इसकी मांग हमेशा ही रहती है।
- कैसे औषधीय पौधों की खेती पर किसानों की मदद करता है ये कृषि विश्वविद्यालय, प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बातचीतबुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है।
- Aeroponic Technique से बंद कमरे में केसर की खेती, हिमाचल के गौरव ने इंटरनेट से सीख कर शुरू किया केसर उत्पादनगौरव Aeroponic Technique से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है।
- Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी… Read more: Soil Health Management: मिट्टी की जांच से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप? मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन कितना ज़रूरी?
- Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरणखेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।
- क्या हैं Urban Farming Trends? कैसे शहरी खेती बन रही कमाई का ज़रिया?जब शहरों में लोग अपने शौक से थोड़ा आगे बढ़कर घर की छत, बालकनी, कम्यूनिटी गार्डन और घर के नीचे की जगह या घर के अंदर की खाली जगह में वर्टिकल गार्डन बनाकर खेती करने लगते हैं, तो इसे ही शहरी खेती कहा जाता है।
- Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ सेखेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।
- Agriculture Equipment : Bed Maker Machine किसानों के लिए है कितनी उपयोगी और मिलेगी कितनी Subsidy?मल्टी पर्पस Bed Maker Machine किसानों के समय की बचत करने के साथ-साथ उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करती है।
- Fish Farming Business: मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी अहम जानकारी, जानिए क्या है विशेषज्ञों और अनुभवी मछली पालकों की राय?मछली पालन उद्योग का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। देश के मछुआरों और मछली पालन उद्योग एक बड़े सेक्टर के रूप में उभर कर आया है। भारतीय मत्स्य पालन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1980 के दशक में जो मछली उत्पादन 36 फ़ीसदी था, वो बढ़कर आज के वक्त में 70 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। जानिए मछली पालन से जुड़े अहम बिंदुओं के बारे में।
- Ragi Crop: रागी की फसल से क्या-क्या तैयार किया जा सकता है? रागी की खेती से जुड़ी अहम जानकारीरागी की फसल (Ragi Crop) मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा खेती होती है। केरल, कर्नाटक राज्यों में इसे मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है।