रेशम कीट पालन (Sericulture): कर्नाटक की ‘सिल्क लेडी’ कहलाती हैं सत्याकुमारी, कभी बच्चों की स्कूल फ़ीस देने के लिए नहीं होते थे पैसे

रेशम उत्पादन के साथ ही करती हैं सब्जियों की खेती

कर्नाटक के वडेराहल्ली गांव की रहने वाली सत्याकुमारी के लिए बुनियादी ज़रूरतों को भी पूरा करने में मशक्कत करनी पड़ती थी। जानिए कैसे रेशम कीट पालन और सब्जियों की अंतर-वर्ती खेती ने उन्हें कामयाब महिला उद्यमी बनाया।

कर्नाटक के रामनगर ज़िले में एक गाँव पड़ता है, जिसका नाम है वडेराहल्ली गांव। ये गाँव महिला साक्षरता के मामले में पिछड़ा हुआ है। यहां महिला साक्षरता दर केवल 23.9 फ़ीसदी है। बावजूद इसके यहां की महिलाएं आत्मनिर्भरता के मामले में किसी से पीछे नहीं है। इसी गांव की एक महिला किसान ने रेशम कीट पालन और सब्जियों की अंतर-वर्ती खेती (Intercropping Farming) से अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर मिसाल पेश की है।  

कभी स्कूल फीस भरना भी मुश्किल था

कर्नाटक के वडेराहल्ली गांव की रहने वाली सत्याकुमारी के लिए बुनियादी ज़रूरतों को भी पूरा करने में मशक्कत करनी पड़ती थी। बच्चों की स्कूल फीस भरना भी मुश्किल होता था, लेकिन रेशम कीट पालन से उनकी जीवनशैली में सुधार आया। 

रेशम के कीड़ों का पालन कर्नाटक का मुख्य कुटीर उद्योग है। सत्याकुमारी ने मुश्किल हालातों का सामना करते हुए शहतूत (मलबेरी) की खेती शुरू की और इसके साथ ही सब्ज़ियों की अंतर-वर्ती खेती को लेकर भी वह बहुत उत्साहित थीं।

15 साल पहले की थी शुरुआत

सत्याकुमारी ने 15 साल पहले घर से ही रेशम कीट पालन का काम शुरू किया था। धीरे-धीरे नई तकनीक अपनाने से उनकी आमदनी में इज़ाफा हुआ और अब वह कीड़ों का पालन भी अलग से बनाए गए शेड में करती हैं।

रेशम कीट पालन (Sericulture)
तस्वीर साभार: krishivistar

ट्रेनिंग से मिली मदद

जब सत्याकुमारी ने शहतूत के साथ सब्ज़ियों की खेती का फैसला किया, तो वो दुविधा में थी। उन्हें आशंका थी कि कहीं सब्ज़ियों की अंतर-फसल खेती से शायद उन्हें अच्छा उत्पादन न मिले। इस बीच उन्होंने रेशम उत्पादन विभाग और Karnataka State Sericulture Research & Development Institute, KSSRDI  द्वारा रेशम उत्पादन पर आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। 

कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें 3*3 फीट की सामान्य जगह की बजाय 5*5 की जगह में खेती के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही सिंचाई की ड्रिप तकनीक अपनाने की सलाह दी। इसके अलावा, अलग-अलग तरह की सब्ज़ियां उगाने की सलाह दी। सत्याकुमारी शहतूत (V1 किस्म) के साथ पालक, क्लस्टर बीन के साथ कई और अन्य सब्जियों की खेती करने लगीं। खेत के चारों ओर नीलगिरी के पेड़ भी लगाएं।

रेशम कीट पालन (Sericulture)
शहतूत के साथ अन्य सब्जियों की खेती (तस्वीर साभार: krishivistar)

साल में 5-6 बार शहतूत की कटाई की जाती है

सत्याकुमारी 70 दिनों के अंतराल पर साल में करीब 5 से 6 बार शहतूत के पत्तों की कटाई करती हैं। इन पत्तों को वह 8 दिन के लार्वा को खिलाती हैं, जिसे वह नज़दीकी चौकी पालन केंद्र से खरीदती हैं। फिर 15 दिनों के लिए उसे शेड में पालती हैं। प्रत्येक बैच के लिए 200 अंडे पाले जाते हैं। कुल मिलाकर, सालाना 1000 अंडे पाले जाते हैं। प्रत्येक बैच से 150-160 किलोग्राम कोकून काटा जाता है। 450 रुपये प्रति किलो की दर से इसे बेचा जाता है। अपनी खेती को विस्तार देने के लिए उन्होंने डेढ़ एकड़ खेत लीज़ पर भी ले रखे हैं। 

रेशम कीट पालन (Sericulture)

खुद करती हैं सारा काम

सत्याकुमारी खाद डालने से लेकर सिंचाई, मलबरी के पत्तों की कटाई, सब्ज़ियों की बुवाई, सिंचाई, और कटाई तक का सारा काम वह खुद करती हैं। कोकून बेचने के बाद उन्हें रखने वाले बेड की सफाई में उनके पति भी हाथ बटाते हैं। 

कितनी होती है आमदनी?

रेशम कीट पालन में सत्याकुमारी को लगभग 2 लाख रुपये की लागत आती है। इससे उन्हें सालाना 5 लाख रुपये की आमदनी होती है यानी तकरीबन 3 लाख का मुनाफ़ा वो कमाती हैं। उन्होंने 2 दुधारू पशु भी रखें हैं, जिससे उन्हें हर महीने 10 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा होता है। 

रेशम कीट पालन (Sericulture)

महिलाओं के लिए बेहतरीन रेशम कीट पालन

उनका कहना है कि रेशम कीट पालन एक ऐसी गतिविधि है, जिसे महिलाएं घर के अंदर ही कर सकती हैं। इसमें बड़े पैमाने पर परिवार की महिलाएं शामिल हो सकती हैं और यह महिलाओं के लिए सुविधाजनक है। वह अपनी घेरलू ज़िम्मेदारियों के साथ भी इसे कर सकती हैं।

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