Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष

कुछ ही दिनों में नया साल (New Year 2022) नई उम्मीदों के साथ दस्तक देने वाला है, जानिए उन महिलाओं की कहानी जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों से खुशहाली की दास्तां लिखी है।

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष

जब भी वर्किंग वूमेन का ज़िक्र होता है, हमारे दिमाग में हाथ में बैग लिए ऑफ़िस जाती एक महिला की छवि छपती है। लेकिन महिलाओं की एक बड़ी आबादी खेती-किसानी से भी जुड़ी हुई है। ये महिला किसान अपना घर चलाने के साथ-साथ दूसरों के घरों की रोटी का भी बंदोबस्त करती हैं। महिला किसान भारत के कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों की रीढ़ हैं। भारतीय खेतों में पूरा दिन सुबह से लेकर शाम तक 75 प्रतिशत सिर्फ़ महिलाएं ही काम करती हैं। कृषि क्षेत्र में खेत की बुआई से लेकर फसल कटाई, पशुपालन से लेकर मछलीपालन, कई सारी गतिविधियों में आप कदम-कदम पर महिला किसानों (Women Farmers) के योगदान को देख सकते हैं। कभी पुरुष प्रधान माने जाने वाले कृषि क्षेत्र में अब महिलाएं लीक से हटकर अपनी पहचान बना रही हैं। अब जब साल 2021 बस कुछ ही दिनों में अलविदा (Goodbye 2021) कहने की कगार पर है और अगला साल 2022 (New Year 2022) नई उम्मीदों के साथ दस्तक देने वाला है, हम आपके लिए कुछ ऐसी ही 10 महिलाओं की कहानियां लेकर आयें हैं, जो आज हज़ारों लोगों के लिए प्रेरणा बनकर उभरी हैं। 

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष1. तबस्सुम मलिक, बांदीपोरा, कश्मीर (मधुमक्खी पालन)

तबस्सुम मलिक, बांदीपोरा, कश्मीर (मधुमक्खी पालन) beekeeping kashmir womanकश्मीर की सेंट्रल यूनिवर्सिटी से एमएससी कर रहीं तबस्सुम मलिक मधुमक्खी पालन से जुड़ी हैं। मधुमक्खी  पालन से न सिर्फ़ अब तबस्सुम किसी पर निर्भर नहीं है, बल्कि अपने घर का खर्च भी चलाती हैं। पढ़ाई के दौरान एपीकल्चर सेमेस्टर में तबस्सुम ने जाना कि अगर नौकरी न मिली तो कैसे खुद का काम कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी के ज़रिए एजाज़ नाम के शख्स  से उनकी मुलाकात हुई।  तबस्सुम ने उनसे 30 बक्से लेकर मधुमक्खी पालन शुरू किया। 

9 फ्रेम वाले बक्से से लगभग 20 से 30 किलो शहद निकल जाता है। प्रति किलो के हिसाब से बाज़ार में शहद 800 से हज़ार रुपये तक बिक जाता है। एक बक्से से एक साल में 15 हज़ार तक की आय हो जाती है। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में तबस्सुम ने बताया कि मधुमक्खी पालन कम लागत में ज़्यादा कमाई का अच्छा विकल्प है। आप एक फ्रेम से भी इसकी शुरुआत कर सकते हैं। इसका बाज़ार भी अच्छा खासा है क्योंकि शहद की मांग हमेशा रहती है।

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष2. नीलिमा चतुर्वेदी, कोरिया, छत्तीसगढ़ (स्वयं सहायता समूह)

नीलिमा चतुर्वेदी, कोरिया, छत्तीसगढ़ (स्वयं सहायता समूह) chhattisgarh SHG neelima chaturvedi
‘कोरिया महिला गृह उद्योग’ संगठन के अध्यक्ष पद पर कार्यरत नीलिमा चतुर्वेदी ने कोरिया ब्रांड की नींव रखी। कोरिया ब्रांड के तहत हल्दी, कोरिया अचार, कोरिया मसाला, कोरिया बड़ी, पापड़, मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, मुरमुरा, आटा, बेसन हर तरह के प्रॉडक्ट्स तैयार किए जाते हैं। आज उनके संगठन के साथ हज़ारों की संख्या में महिलायें जुड़ी हैं। कई विधवा, तलाकशुदा, गरीब और आदिवासी महिलायें उनके संगठन से जुड़कर सशक्त हुईं। 2001 में अपने पहले स्वयं सहायता समूह का गठन वालीं नीलिमा ने अपनी मेहनत से 15 हज़ार स्वयं सहायता समूहों का गठन किया। जो प्रोडक्टस कोरिया ब्रांड द्वारा तैयार किए जाते है, उसके लिए कच्चा माल सीधे किसानों से खरीदा जाता है। समूह की महिलायें प्रोसेस का काम करती हैं और फिर पैकेजिंग कर इन्हें बाज़ार में भेजा जाता है। 

ये सब उनके लिए आसान नहीं था। उन्होंने लोगों के ताने सुने कि महिला हो ये सब तुम्हें शोभा नहीं देता। 14 साल की ही उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी। शादी के एक-दो साल बाद उनके पति मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गए। 14 साल की छोटी उम्र में ससुराल की बागडोर संभालने लगीं। 10 साल तक ससुराल में रहीं। इस दौरान दो बेटियों को उन्होंने जन्म दिया। अपनी बेटियों के अच्छे भविष्य के लिए उन्होंने अपने मन की सुनी और आगे बढ़ती चली गईं। इस साल हाल ही में  कोरिया महिला गृह उद्योग को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा बेस्ट आजीविका अवॉर्ड से नवाज़ा गया। 

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष3. सरनजीत कौर, अमृतसर, पंजाब (डेयरी फ़ार्म)

सरनजीत कौर, अमृतसर, पंजाब (डेयरी फ़ार्म) punjab woman dairy farm
सरंजित कौर ने 2012 में डेयरी व्यवसाय में कदम रखा। सरंजित कौर ने शुरू में 10 क्रॉस ब्रीड गायें खरीदीं। एक क्रॉस ब्रीड की कीमत डेढ से दो लाख के आसपास पड़ती है। उनके पति रजिन्दर सिंह ने उनका हर कदम पर साथ दिया। ज़मीन के एक छोटे टुकड़े से डेयरी क्षेत्र में कदम रखने वालीं सरनजीत का फ़ार्म आज एक हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है। फ़ार्म का नाम AULCKH DAIRY FARM है। आज के वक़्त में उनके फ़ार्म में क्रॉस ब्रीड और HF की करीबन 100 गायें हैं। एक गाय औसतन रोज़ का 38 लीटर तक दूध देती है।

उनके डेयरी फ़ार्म में रोज़ का करीबन 1200 लीटर दूध का उत्पादन हो जाता है। उनके फ़ार्म में एक ऐसी HF गाय भी है, जो रोज़ाना का 60 लीटर तक भी दूध देती है। डेयरी का दूध 36 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिकता है। इसके अलावा, गाय के गोबर से जैविक खाद भी तैयार करते हैं। आज की तारीख में सरंजित को साल का 60 से 70 लाख का सीधा मुनाफ़ा होता है। 

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष4. मंजूषा सक्सेना, माउंट आबू, राजस्थान (खरगोश पालन)
मंजूषा सक्सेना, माउंट आबू, राजस्थान खरगोश पालन rabbit farming2006 में मंजूषा सक्सेना ने अंगोरा वुलन प्रॉडक्ट्स (Angora Woolen Products) के नाम से Rabbit Farm शुरू किया। अंगोरा नस्ल के खरगोश के बारे में जानकारी जुटाई। अंगोरा नस्ल के खरगोश के बाल, ऊनी कपड़े बनाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं।2006 में मंजूषा 5 से 6 खरगोश हिमाचल से माउंट आबू लेकर आईं। 2008 में अपने कुटीर उद्योग का विस्तार करते हुए उन्होंने 40 अंगोरा खरगोश और खरीदे। एक अंगोरा खरगोश की कीमत करीबन हज़ार रुपये के आसपास पड़ी। हैंडलूम का सेटअप फ़ार्म में लगवाया। क्षेत्र की कई आदिवासी और गरीब महिलाओं को ट्रेनिंग दी और अपने कुटीर उद्योग से जोड़ा। वो अब तक करीबन 60 से 70 महिलाओं को हैंडलूम की ट्रेनिंग मुहैया करवा चुकी हैं।

अंगोरा खरगोश के बाल कटाई के लिए 75 दिन में तैयार हो जाते हैं। ज़्यादा से ज्यादा 90 दिन के अंदर ही इनके  बालों की कटाई शुरू हो जाती है। खरगोशों के बाल काटने के बाद उन बालों को हिमाचल प्रदेश भेजा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहीं खरगोश के बालों से ऊन का उत्पादन किया जाता है। फिर तकरीबन डेढ़ महीने बाद बालों से तैयार किया गया ऊन उनके पास पहुंचता है। मंजूषा अपने अंगोरा वुलन प्रॉडक्ट्स फ़ार्म में शॉल, स्टोल, मफ़लर, टोपी, स्वेटर और स्कार्फ जैसे प्रॉडक्ट्स तैयार बनाती हैं। अंगोरा खरगोश के बाल 1600 से लेकर 2200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकते हैं। मंजूषा बताती हैं कि इनके बालों की कीमत बाज़ार की मांग पर निर्भर करती है। बाज़ार में प्रति किलो का कम से कम 1600 रुपये दाम तो रहता ही है। एक खरगोश से 100 से 300 ग्राम ऊन का उत्पादन हो जाता है।

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष5. कल्पना बिष्ट, देहरादून, उत्तराखंड (मशरूम उत्पादन)

कल्पना बिष्ट, देहरादून, उत्तराखंड kalpana bisht uttarakhand mushroom

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेषदेहरादून के ब्लॉक विकासनगर में क्लस्टर अध्यक्ष पद पर तैनात कल्पना बिष्ट ने कई महिलाओं को मशरूम की खेती के लिए प्रोत्साहित किया है। आज कल्पना बिष्ट के साथ 9 ग्राम संगठन जुड़े हुए हैं। बतौर फ़ैशन टेक्नीशियन दिल्ली में काम करने वाली कल्पना बिष्ट को पारिवारिक समस्या के कारण दिल्ली छोड़ना पड़ा। कल्पना बिष्ट ने बाकायदा देहरादून स्थित सर्किट हाउस में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली और फिर मशरूम की खेती की शुरुआत की। कॉर्पोरेट सेक्टर में 19 साल तक काम करने के बाद वो अपने गाँव पहुंची और गाँव की महिलाओं के उत्थान में लग गईं। बटन मशरूम से लेकर ढिंगरी मशरूम की खेती ये महिलाएं करती हैं। इन महिलाओं का कहना है कि इनका मशरूम बाज़ार में आसानी से बिक जाता है, लेकिन खेती के लिए पर्याप्त जगह न होने के कारण इसका विस्तार उतना नहीं हो पाता। इस कारण कल्पना बिष्ट का मकसद सरकार की योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाना है। 

कल्पना बिष्ट कहती हैं कि अगर एक महिला दिन का 100 रुपये भी कमाती है तो महिला समूह के लिए ये बहुत बड़ी बात है क्योंकि उनके गाँव में रोज़गार के अवसर न के बराबर हैं। ऐसे में कोई महिला अपनी मेहनत से पैसे कमाती है तो इससे अच्छी बात और भला क्या हो सकती है। 

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष6. रुबिना तबस्सुम,  बडगाम, कश्मीर (लैवेंडर उत्पादक)

दीपाली भट्टाचार्य, गुवाहाटी, असम assam guwahati pickle रुबिना ने 2006 में 500 कैनाल में लैवेंडर की खेती की शुरुआत की। लैवेंडर की खेती की सबसे खास बात है कि इसमें हर साल लागत नहीं आती। एक बार शुरुआती लागत आती है। इसके बाद सिर्फ़ घास की सफाई और फूल तोड़ने का खर्च रहता है। 14 साल तक इससे आय होती रहती है। कश्मीरी लैवेंडर की मांग दुनियाभर में है। इसका तेल बाज़ार में तकरीबन 10 हज़ार रुपये प्रति किलों तक बिक जाता है। रुबिना ने बाकायदा लैवेंडर की खेती करने की ट्रेनिंग ली और पाया कि इसका बाज़ार अलग है और इसमें कई संभावनाएं हैं। बैंक में आर्थिक मदद के लिए गई रुबिना को किसी भी तरह का सहयोग देने से मना कर दिया गया, लेकिन हालातों से हार मानने वालों में से रुबिना नहीं थी।

आज रुबिना न सिर्फ़ लैवेंडर का उत्पादन करती हैं, बल्कि इसकी नर्सरी भी चलाती हैं। साथ ही लैवेंडर के कई और उत्पाद बना खुद ही उनकी मार्केटिंग भी करती हैं। बिना बताती हैं कि लैवेंडर की प्राइमरी प्रोसेसिंग करना ज़रूरी होता है। लैवेंडर को सुखाकर बाज़ार में बेचा जा सकता है, जिसका इस्तेमाल चाय में, साबून बनाने में और भी कई तरह से किया जाता है। इससे निकलने वाले तेल से भारी मुनाफ़ा कमा सकते हैं।रुबिना बताती हैं कि पांच साल पहले उन्होंने अपना ब्रांड भी लांच किया है। इसमें लैवेंडर से उत्पादों की बॉटलिंग कर उन्हें रीटेल में बाज़ार में सप्लाई करते हैं। 

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष7. हिरेशा वर्मा, देहरादून, उत्तराखंड (मशरूम उत्पादन)

हिरेशा वर्मा, देहरादून, उत्तराखंड uttarakhand mushroom 2013 में जब केदारनाथ में बादल फटने से भयानक आपदा आई तो उन्हें एक NGO के साथ जुड़ कर पहाड़ों पर लोगों के लिए काम करने का फैसला किया। उन्होंने देखा कि कई जगहों पर परिवार में सिर्फ़ महिलायें और बच्चे ही रह गए थे। इसीलिए उन्होंने महिलाओं को इस संकट से उबारने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की ठानी। उन्होंने देखा कि उत्तराखंड का मौसम मशरूम की खेती के लिए अनुकूल है। इसके बाद उन्होंने मशरुम की खेती की ट्रेनिंग ली और मशरूम उगाना शुरू कर दिया। साथ ही दूसरी महिलाओं को भी वो ट्रेनिंग देने लगीं। अब तक 2,500 से भी ज़्यादा महिलायें उनके साथ जुड़ चुकी हैं।

हिरेशा वर्मा बताती हैं कि पहले उन्होंने 2000 रुपये की लागत से एक छोटे से कमरे में मशरुम उगाना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने अच्छे मुनाफे के लिए तीन हट्स लगाईं और हर हट में करीब 500 बैग रखे। धीरे-धीरे उनका बिज़नेस आगे बढ़ता चल गया। अब उन्होंने देहरादून में पूरा AC प्लांट बनाया है और इसमें हर दिन करीब 1 टन मशरूम का उत्पादन होता है। 

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष8. साक्षी भारद्वाज, भोपाल, मध्य प्रदेश (इन-हाउस मिनी फॉरेस्ट)

साक्षी भारद्वाज, भोपाल, मध्य प्रदेश (इन-हाउस मिनी फॉरेस्ट) sakshi bhardwaj madhya pradesh साक्षी भारद्वाज ने जंगलवास यानी मिनी फॉरेस्ट को अपने घर पर ही तैयार किया है। उन्होंने इसे ‘जंगलवास’ नाम दिया है। इस मिनी फॉरेस्ट की शुरुआत उन्होंने 2018 में की। 800 स्क्वायर फीट में बने इस मिनी फॉरेस्ट में 450 प्रकार की प्रजाति के चार हज़ार पौधे हैं। इस मिनी फॉरेस्ट की तमाम खासियत में से एक है नारियल के खोल में लगाए गए पौधे, जिनकी खूबसूरती देखने वालों का दिल जीत लेती है। आस-पास के लोग इस क्रिएटिव कान्सेप्ट को देखने साक्षी के घर अक्सर आते रहते हैं।

घर के कचरे और कबाड़ से ही इस पूरे मिनी फॉरेस्ट को बनाया गया है। जंगलवास की खासियत ये है कि इसे बनाने में लगने वाली चीजों को बाज़ार से नहीं खरीदा गया है। साक्षी घर में ही वर्मी कंपोस्ट से लेकर किचन वेस्ट कंपोस्ट, जैव एंजाइम, राइस वॉटर फेरमेंटशन और साथ ही नीम ऑयल घर पर ही तैयार करती हैं। 4000 पौधों के लिए फर्टिलाइज़र वो खुद बनाती हैं। उनका कहना है कि आज उनका ये जंगलवास उनके लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रहा है।

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष9.रीना नागर, भोपाल, मध्य प्रदेश 

रीना नागर, भोपाल, मध्य प्रदेश madhya pradesh woman farmer tractor
भोपाल के बकनिया गाँव की रीना नागर ने ट्रैक्टर और हार्वेस्टर जैसी खेती की मशीनें चलाने का हुनर सीखकर और अपनाकर उस क्षेत्र में अपनी ख़ास पहचान बनायी जिसमें आम तौर पर मर्दों का दबदबा माना जाता है। साल 2014 में एक हादसे में पिता मौत की मौत के बाद माँ, दादी, चार छोटी बहनें और एक भाई की ज़िम्मेदारी कंधों पर अए गई। रीना के पिता का कृषि उपकरणों का कारोबार था और गाँव में खेती-किसानी भी वहीं सम्भालते थे। परिवार पर 30 लाख रुपये का कर्ज़ था। 

रीना ने ना सिर्फ़ पिता के कारोबार को बल्कि परिवार की खेती-किसानी को भी बख़ूबी सम्भाला। छोटे-भाई बहन की पढ़ाई-लिखाई का ज़िम्मा उठाया तो माँ और दादी की ताक़त बनी। इसी दौरान रीना ने ट्रैक्टर और हार्वेस्टर चलाना सीखा। खेती-किसानी की बारीकियाँ सीखीं। आज उसके पास पिता की विरासत से मिली करीब 7 एकड़ ज़मीन के अलावा 15 एकड़ का बटाई का भी रक़बा है। पिता के ज़माने का 30 लाख रुपये का कर्ज़ अब तक चुकाया जा चुका है।

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेष10. दीपाली भट्टाचार्य, गुवाहाटी, असम

दीपाली भट्टाचार्य, गुवाहाटी, असम assam guwahati pickle

Year Ender 2021: साल 2021 में खेती-किसानी में इन महिलाओं ने कायम किया अपना दबदबा, किसान ऑफ इंडिया विशेषदीपाली भट्टाचार्य आज वो हर उस चीज का अचार बनाती है जिनका नाम भी आपने नहीं सुना होगा। उनकी सबसे बड़ी खास बात है कि वो हेल्थ फ्रेंडली अचार बनाती है। दीपाली बताती हैं कि कच्ची हल्दी-नारियल का अचार, मेथी का अचार, नारियल-मशरूम का अचार से लेकर कई तरह के अचार वो बनाती हैं, जो टेस्ट बढ़ाने के साथ-साथ इम्यूनिटी भी बढ़ाएगा।

दीपाली भट्टाचार्य ने बताया कि मेथी का अचार लोग बहुत ले जाते हैं क्योंकि ये डायबिटीज के रोकथाम के लिए अच्छा माना जाता है। स्थानीय बाज़ार में उनके वहां का अचार अच्छी मांग है। 
अगर हमारे किसान साथी खेती-किसानी से जुड़ी कोई भी खबर या अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो इस नंबर 9599273766 या [email protected] ईमेल आईडी पर हमें रिकॉर्ड करके या लिखकर भेज सकते हैं। हम आपकी आवाज़ बन आपकी बात किसान ऑफ़ इंडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हमारा मानना है कि देश का किसान उन्नत तो देश उन्नत।

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