Goat Farming: इस महिला ने अपनाया Slatted Floor बकरी पालन, फ़ार्म बना दूसरे किसानों के लिए मॉडल
परिवार का खर्च चलाना हो जाता था मुश्किल, आज कई किसानों को दे रहीं ट्रेनिंग
तमिलनाडू के इरोड ज़िले की रहने वाली बृंदादेवी स्लेटेड फ्लोर बकरी पालन तकनीक से बकरी पालन कर रही हैं। इस तरीके से बकरीपालन करने से उनकी आमदनी दोगुनी हो गई।
बकरीपालन हमेशा से किसानों का एक पसंदीदा व्यवसाय रहा है। कम लागत के साथ ही बकरियों को अन्य पशुओं के मुकाबले रखने के लिए भी कम जगह की आवश्यकता होती है। लेकिन बकरियों के साथ समस्या आती है चराने की। खुले मैदानों की कमी के कारण उन्हें चराना बड़ी समस्या बनती जा रही है, लेकिन इसका समाधान भी है। बाड़े यानी शेड में बकरी पालन या बकरी पालन के लिए स्लेटेड फ्लोर का इस्तेमाल जैसे कई विकल्प हैं। तमिलनाडू के इरोड ज़िले की रहने वाली बृंदादेवी स्लेटेड फ्लोर बकरी पालन शेड में बकरी पालन कर रही हैं। इस तरीके से बकरीपालन करने से उनकी आमदनी दोगुनी हो गई।
खेती के साथ बकरीपालन
बृंदादेवी 2010 से खेती और इससे संबंधित अन्य गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं। उनके परिवार की आमदनी सालाना 2 लाख रुपये हुआ करती थी। परिवार और बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा था। वो ऐसे विकल्पों की तलाश में थी, जो कम लागत में शुरू किया जा सके। बृंदादेवी को स्लेटेड फ्लोर बकरी पालन (Slatted Floor Goat Rearing) के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने इरोड के कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर बकरीपालन का काम शुरू कर दिया। ट्रेनिंग में उन्हें स्लेटेड फ्लोर शेड कंट्रक्शन यानी स्लेटेड फर्श के साथ शेड कैसे बनाते हैं, बकरी के नस्ल का चुनाव, हरा चारा उत्पादन, बीमारियों का प्रबंधन और बाज़ार से जुड़ने के तरीकों के बारे में बताया गया।
सिर्फ़ दस बकरियों से की शुरुआत
बृंदादेवी ने 10 स्थानीय बकरियों के साथ Slatted Floor Goat Rearing की शुरुआत की। उनके लिए स्लेटेड फ्लोर/फर्श वाला शेड बनवाया। कुछ दिनों बाद स्थानीय बकरियों की जगह उन्होंने तेल्लीचेरी नस्ल (Tellicherry Goat Breed) की बकरियों का पालन शुरू कर दिया। यह नस्ल मुख्य रूप से केरल और तमिलनाडू में मिलती है। ख़ासतौर पर मांस उत्पदान के लिए पाली जाती हैं। बृंदादेवी शुरुआत में अपने क्षेत्र में ही नर बकरी और बच्चों को प्रजनन व मांस के लिए बेचती थी, फिर धीरे-धीरे उन्होंने बड़े स्तर पर इन्हें बेचना शुरू किया।
वजन के हिसाब से तय होता है दाम
वह नर बकरे को वजन के हिसाब से 250 रुपये प्रति किलो औरमादा बकरी को 300 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बेचती हैं। उनके पास 60 व्यस्क बकरी, 45 बच्चे और 30 एचएफ क्रॉस डेयरी गाय हैं। इससे उन्हें सालाना करीबन साढ़े चार लाख की आमदनी होती है।
चारा भी खुद करती हैं तैयार
कृषि विज्ञान केंद्र ने उनके बकरी फ़ार्म को एक मॉडल स्लेटेड फ्लोर बकरी पालन इकाई के रूप में स्थापित किया है। बृंदादेवी कम्बू नेपियर (सीओ-5), चारा ज्वार COFS-31 और हेज ल्यूसर्न जैसे हरे चारे की भी खेती करती हैं।
जैसे मिश्रित चारा की खेती शुरू की। बकरीपालन के साथ ही उन्होंने 20 एचएफ डेयरी गाय क साथ डेयरी फार्मिंग भी शुरू की। उन्होंने चारे की लागत को कम करने के लिए छोटी केंद्रित चारा बनाने वाली इकाई स्थापित की।
ये भी पढ़ें: बकरी पालन में मुनाफ़ा कमाना है तो ‘गोटवाला फ़ार्म’ से लीजिये ट्रेनिंग, ‘बकरी पंडित पुरस्कार’ से सम्मानित दीपक पाटीदार को बनाइये गुरू
बन चुकी हैं सरकारी टीचर
2016-17 में बृंदादेवी को मुंबई के ASPEE फाउंडेशन द्वारा ‘बेस्ट महिला उद्यमी’ का सम्मान मिल चुका है। यही नहीं, 2015 से वह बतौर सरकारी शिक्षिका भी काम कर रही हैं।
दूसरे किसानों को मिली प्रेरणा
कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से इरोड ज़िले में 46 स्लेटेड बकरी इकाईयां स्थापित हो चुकी है। 2400 से अधिक किसान अपने कौशल को बढ़ाने के लिए बृंदादेवी के फ़ार्म का दौरा कर चुके हैं।
तेल्लीचेरी नस्ल की ख़ासियत
बकरी की इस नस्ल को दूध और मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है। हर तरह के मौसम में ये रह सकती है। यह बकरियां मध्यम आकार की होती हैं। इनमे अधिकांश बकरियां सफेद रंग की होती हैं। हालांकि, यह काले और भूरे रंग में भी पाई जाती है। ये बकरियां 90 दिनों में 20 से 25 किलोग्राम वजन प्राप्त कर सकती हैं। अगर इनको अच्छा चारा दिया जाए तो मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- Agriculture Drone क्या है? कृषि ड्रोन में सब्सिडी के लिए कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं?Agriculture Drone की खरीद के लिए महिला समूह को ड्रोन की कीमत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की मदद दी जा रही है। योजना के तहत SC-ST, छोटे व सीमांत, महिलाओं और पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को ड्रोन का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 लाख रुपये अनुदान दिया जा रहा है।
- कैसे महुआ के उत्पाद बनाकर महिलाओं के इस समूह ने कमाल किया है? Bastar Foods आज बना ब्रांडमहुआ एक तरह का फूल है जिसमें बहुत ही तेज़ महक होती है, आमतौर पर इसे शराब बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इससे कई तरह की स्वादिष्ट और हेल्दी चीज़ें बनाई जा रही हैं। जानिए कैसे महुआ के उत्पाद (Mahua Products) बनाकर बस्तर की गुलेश्वरी ठाकुर और उनकी टीम ने इससे लाखों का बिज़नेस खड़ा कर दिया है।
- अगरवुड पेड़ की खेती (Agarwood Farming): सोने-हीरे से भी ज़्यादा महंगी अगरवुड की लकड़ी!अगरवुड पेड़ की खेती में एक एकड़ में 400 से 450 पौधे लग सकते हैं। 12 फ़ीट चौड़ाई और 10 फ़ीट लंबाई की दूरी पर पौधे को रोपना चाहिए। अगरवुड प्लांट की कीमत 200 रुपए होती है।
- Rose Varieties: छत पर उगा दी गुलाब की 150 किस्में, जानिए Terrace Gardening की टिप्स अनिल शर्मा सेफूलों की सुंदरता भला किसे आकर्षित नहीं करती, मगर हर कोई इसे घर में उगा नहीं पाता है। क्योंकि इसमें मेहनत लगती है, मगर झांसी के अनिल शर्मा ने अपने शौक को पूरा करने के लिए एक दो नहीं, बल्कि छत पर 700 गमले लगाए हुए हैं। जानिए उनसे गुलाब की किस्मों से लेकर Terrace Gardening के टिप्स।
- Hybrid Tomato Varieties In India: हाइब्रिड टमाटर की इन 10 उन्नत किस्मों की खेती कितनी फ़ायदेमंद?भारत में उच्च उपज वाली टमाटर की किस्मों (High Yield Tomato Varieties In India) की खेती से किसान अच्छा लाभ ले सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की ओर से ऐसी कई किस्में तैयार की गई हैं। पढ़िए ऐसी ही किस्मों में से उन 10 हाइब्रिड टमाटर की किस्मों के बारे में जो टमाटर की अच्छी उपज देने के लिए जानी जाती है।
- Krishi Vigyan Kendra: किस मकसद के साथ शुरू हुए कृषि विज्ञान केन्द्र? देश भर में मनाई गई स्वर्ण जयंतीकृषि विज्ञान केन्द्र (Krishi Vigyan Kendra, KVK) भारत में कृषि और कृषि से जुड़े अन्य आयामों के टेक्नोलॉजी विस्तार का एक केन्द्र है। जहां पर किसानों को खेती-किसानी की नई तकनीकों से लेकर किस्मों की ट्रेनिंग या फ़ार्म विज़िट के माध्यम से नई-नई जानकारियां दी जाती हैं।
- जानिए कैसे FPO गठन के ज़रिए आदिवासी किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे जगन्नाथ तिलगामकिसान उत्पादक संगठन यानी Farmers Producer Organization (FPO) छोटे किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है। इससे जुड़कर किसानों को न सिर्फ़ फसल की अच्छी कीमत मिलती है, बल्कि दूसरी सुविधाएं भी मिलती हैं। छत्तीसगढ़ के एक किसान जगन्नाथ तिलगाम ने अपने इलाके में FPO की शुरुआत की और FPO गठन के ज़रिए कैसे कउन्होंने आदिवासी किसानों को नई राह देखिए, पढ़िए इस स्टोरी में।
- मक्के की फसल का इस्तेमाल कई चीज़ों के लिए किया जाता है, जानिए मक्के की खेती से जुड़ी अहम जानकारीमक्के की फसल की खेती रबी, खरीफ़ और जायद सीज़न में आराम से की जा सकती है, लेकिन खरीफ़ के मौसम में मक्के की फसल बारिश पर निर्भर करती है। मक्के की फसल 3 महीने का वक्त लेती है।
- Pig Farming In India: सूअर पालन व्यवसाय को लेकर क्या है बाज़ार? सरकार देती है सब्सिडी और लोनसूअर की खाल से मैट, पैराशूट, मोम, उर्वरक, क्रीम, मलहम और रसायन बनाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। बटन, जूते के फीते, दवाइयां, सॉसेज, थाइमस, अग्न्याशय, अग्न्याशय, थायरॉयड, अग्न्याशय से संबंधित दवाईयां इससे बनती हैं। पशु चारा, उर्वरक, और कपड़ों की रंगाई और छपाई के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। सूअर पालन के लिए सरकार लोन देती है।
- Jowar Crop: ज्वार की फसल की उन्नत खेती करके कम लागत में पाएं ज्यादा मुनाफ़ा, जानें संपूर्ण जानकारीभारत में ज्वार की फसल प्रमुख उपज है और ये खरीफ़ सीजन में उगाई जाती है। ये फसल वर्षा आधारित होती है। ज्वार में पौष्टिक तत्व कूट-कूट कर भरे होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं।
- Foxtail Millet: कैसे कंगनी फसल की उन्नत खेती से बिहार के किसानों को लाभ, कैसे करें बुवाई? जानें पूरी जानकारीकंगनी फसल की उन्नत खेती: जिस रफ़्तार से मोटे अनाज भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं की थाली से दूर हुए थे, अब उसी रफ़्तार से वो वापस आ रहे हैं। सरकार और वैज्ञानिकों की कोशिशों का ही नतीजा है कि अब न सिर्फ़ उपभोक्ता इसे अपनी डेली डाइट में शामिल करने के लिए बेताब हैं, बल्कि किसान भी इसकी खेती से मुनाफ़ा कमा रहे हैं। मोटे अनाज में एक बहुत ही ख़ास अनाज है कंगनी जिसे Foxtail Millet भी कहा जाता है।
- Kodo Millet: कोदो की उन्नत खेती में बीजोपचार से लेकर खाद व उर्वरक की अहम भूमिकाकोदो की उन्नत खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। कोदो को चावल की तरह खाया जा सकता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, खनिज, आयरन, कैल्शियम और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होता है। कोदो मिलेट (Kodo Millet In Hindi) और इसकी उन्नत खेती में बारे में जानिए।
- Dangerous Plants: जानिए क्यों बेहद ज़रूरी है बबूल, गाजरघास और पंचफूली जैसी आतंकी फ़सलों का फ़ौरन सफ़ायाविलायती बबूल, गाजरघास और पंचफूली – जैसे पर्यावरण के दुश्मन बुनियादी तौर पर विदेशी घुसपैठिये हैं। लेकिन आज इनका साम्राज्य देश में करोड़ों हेक्टेयर तक फैल चुका है। ये तेज़ी से हमारी मिट्टी को बंजर बनाकर हज़ारों देसी पेड़-पौधों की प्रजातियों को ख़त्म कर चुके हैं। इसके प्रकोप से खेती की उत्पादकता भी बहुत कम हो जाती है। ऐसे आतंकियों का फ़ौरन सफ़ाया बेहद ज़रूरी है।
- Elaichi Plant: कैसे तैयार होता है इलायची का पौधा? जानिए इलायची की उन्नत खेती का तरीकाइलायची को मसालों की रानी भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी खुशबू बहुत अच्छी होती है और बाज़ार में महंगी भी बिकती है। इसलिए इलायची की उन्नत खेती किसानों को अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है। साथ ही इस लेख में जानिए कैसे इलायची का पौधा (Elaichi Plant) तैयार किया जाता है।
- जायद की फसल का चयन कैसे करें? फसल की देखरेख और बुवाई के बारें में जानिए एक्सपर्ट विशुद्धानंद सेजायद की फसल के लिए 6 से 7 घंटे की सूरज की रोशनी की ज़रुरत पड़ती है। जायद की फसल में सब्जियों का उत्पादन लेने के लिए किसानों को लोम मिट्टी (दोमट मिट्टी) का इस्तेमाल करना चाहिए। जानिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. विशुद्धानंद से जायद फसलों के बारे में विस्तार से जानकारी।
- अनाज भंडारण प्रबंधन: भंडारित अनाज में लगने वाले मुख्य कीट कौन से हैं? कैसे रोकें फसल बर्बादी?फसल का अच्छा उत्पादन होने भर से ही किसानों की मुश्किलें कम नहीं हो जाती, क्योंकि अच्छे उत्पादन के बावजूद अगर भंडारण ठीक तरह से नहीं किया जाए, तो फसल के एक बड़े हिस्से को कीट नष्ट कर देते हैं। इससे अनाज की बर्बादी के साथ ही उसकी पौष्टिकता भी कम हो जाती है। जानिए अनाज भंडारण प्रबंधन के बारे में कि कैसे कीटों के प्रकोप से फसल को बचाया जा सकता है।
- गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाई पटियाला के इस इंजीनियर ने, जानिए कीमत और ख़ासियतअगर आप इनोवेटिव है, तो कमाई का कोई न कोई ज़रिया आप निकाल ही लेंगे। इस बात की बेहतरीन मिसाल हैं पंजाब के पटियाला के रहने वाले इंजीनियर कार्तिक पाल, जिन्होंने गोबर का अनोखा इस्तेमाल करके पर्यावरण और किसानों की बेहतरी की दिशा में अच्छा प्रयास किया है। उन्होंने गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाई और ख़ासतौर पर पशुपालकों की एक बड़ी समस्या हल करने की कोशिश की।
- Nitrogen Management: कैसे स्मार्ट नाइट्रोजन प्रबंधन सफल कृषि की कुंजी है?जहां तक नाइट्रोजन प्रबंधन का संबंध है, कृषि क्षेत्र एक दुष्चक्र में है। मिट्टी में नाइट्रोजन मौजूद होता है जो पौधों और फसलों को बढ़ने में मदद करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उर्वरकों और कीटनाशकों में किया जाता है जो पौधों को बढ़ने में और बेहतर उपज पाने में मदद करते हैं।
- Hydroponic Farming At Home: हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती में घर की छत पर उगाएं फल-सब्जियांHydroponic Farming At Home | सब्जियों को हाइड्रोपोनिकली उगाने वाली ये विदेशी तकनीक है। 1859-1875 में जर्मन वनस्पतिशास्त्री जूलियस वॉन सैक्स और विल्हेम नोप की खोज से मिट्टी रहित खेती की ये तकनीक ईज़ाद हुई। बता दें कि हाइड्रोपोनिक एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब होता है बिना मिट्टी और सिर्फ़ पानी के जरिए खेती करना। जानिए हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती के बारे में।
- वर्मीवॉश उत्पादन: जैविक खेती की उपज बढ़ाने और भूमि-सुधार में बेजोड़जैविक खेती की ओर लौटने के लिए वर्मीवॉश, एक बेहद शानदार, किफ़ायती और घरेलू विकल्प है। पैदावार बढ़ाने वाली जैविक खाद के अलावा वर्मीवॉश, एक प्राकृतिक रोगरोधक और जैविक कीटनाशक की भूमिका भी निभाता है। इसका उत्पादन केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) निर्माण के दौरान ही या फिर अलग से भी किया जाता है। जानिए वर्मीवॉश उत्पादन से लेकर इसके बारे में अन्य जानकारियां।