पॉलीहाउस तकनीक से खेती क्यों है सबसे बेहतर? कैसे करें पॉलीहाउस में खेती की शुरुआत? जानिए इस ‘इंजीनियर’ किसान से

पॉलीहाउस तकनीक से खेती न सिर्फ़ पर्यावरण के लिए सही है, बल्कि किसानों को अच्छा मुनाफ़ा भी देती है। भारत सरकार भी पॉलीहाउस के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी देती है। ध्रुव कहते हैं कि अगर कोई पॉलीहाउस तकनीक से खेती में इन्वेस्ट करना चाहता है तो यही सबसे सही वक़्त है।

ध्रुव शर्मा, पेशे से इंजीनियर, बीटेक की डिग्री, कॉर्पोरेट नौकरी कर लाखों में पैसा कमाने का ऑप्शन, लेकिन कुछ अलग करना था, तो बस निकल पड़े अपने  फ़ील्ड से हटकर कुछ अलग करने की तलाश में। और ये तलाश खेती पर जाकर रुकी। आज वो अपने गो ग्रीन मिशन के साथ पॉलीहाउस तकनीक से खेती करके लोगों की थाली तक पौष्टिक सब्जियां पहुंचा रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता गौरव मनराल ध्रुव से मिलने मेरठ निकल पड़े, उनके इस मिशन के बारे में जानने के लिए।

क्यों बने इंजीनियर से किसान?

ध्रुव को कुछ अपना करना था और अपने में कुछ कर गुजरना था। उन्हें खेती में अपार संभावनाएं दिखीं। ध्रुव कहते हैं कि किसी और पेशे में एक लिमिट तक ही प्रोफ़ेशनल ग्रोथ है, लेकिन खेती में संभावनाएं बहुत हैं। हम जितना विस्तार कर सकते हैं, उतना ही विकास कर सकते हैं। ध्रुव कहते हैं कि उन्होंने पॉलीहाउस खेती को कम जगह में पानी की बचत के साथ ज़्यादा उत्पादन करने के मकसद से चुना। पर्यावरण को बेहतर बनाने के मिशन के साथ वो खेती-किसानी से जुड़े हैं।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

पर्यावरण को है बचाना, लोगों की सेहत का भी रखना है ख्याल

ध्रुव शर्मा के फ़ार्म में दो पॉलीहाउस हैं। एक में लाल-पीली शिमला मिर्च और दूसरे में बेल्जियम ककड़ी की खेती होती है। गुणवत्ता को ध्यान में रखकर खेती की जाती है। फसलों पर किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इससे पर्यावरण के साथ-साथ उपभोक्ताओं की सेहत भी दुरुस्त रहती है।

बेवजह छिड़काव से फसल को हो सकता है नुकसान

फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव को लेकर ध्रुव कहते हैं कि कई लोग हर तीन दिन में बिना किसी वजह के फसलों पर कीटनाशक का छिड़काव कर देते हैं। केमिकल कीटनाशकों की जगह कई जैविक चीजों के इस्तेमाल से फसल पर लगने वाले रोग और कीटों का उपचार किया जा सकता है। केमिकल युक्त फसल सीधा  शरीर में पहुंच कर उसे धीरे-धीरे अंदर से खोखला बना देती है। ध्रुव अपनी फसलों को रोग और कीटों  से बचाने के लिए ऑर्गेनिक का ही इस्तेमाल करते हैं।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

कैसे करें पॉलीहाउस में खेती की शुरुआत?

इन्वेस्टमेंट, ज़मीन और जुनून के बिना पॉलीहाउस तकनीक से खेती मुमकिन नहीं है। ध्रुव ने बताया कि जो कोई भी पॉलीहाउस में खेती करना चाहता है, उसके पास ज़मीन और पैसे के साथ-साथ इस फ़ील्ड में उतरने का जुनून होना चाहिए। इन्वेस्टमेंट बैकअप होना भी होना ज़रूरी है। भारत सरकार भी पॉलीहाउस के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी देती है। ध्रुव कहते हैं कि अगर कोई पॉलीहाउस तकनीक से खेती में इन्वेस्ट करना चाहता है तो यही सबसे सही वक़्त है।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

पॉलीहाउस तकनीक से खेती क्यों है सबसे बेहतर? कैसे करें पॉलीहाउस में खेती की शुरुआत? जानिए इस 'इंजीनियर' किसान सेबेमौसमी फसल की खेती देती है मुनाफ़ा

फ़ार्म में एक एकड़ के पॉलीहाउस में 12 हज़ार पौधे लगे हुए हैं। ध्रुव कहते हैं कि इस सीज़न में बाहर का खीरा नहीं आता। ऐसे में पॉलीहाउस तकनीक की मदद से पर्यावरण को कंट्रोल करके खीरा उगा सकते हैं। हर पौधे की तीन से पांच किलो उपज देने की क्षमता है। इस तरह एक पौधे से औसतन अगर चार किलो की उपज होती है तो 12 हज़ार पौधों से करीब 44 हज़ार किलो की उपज मिल सकती है।  इसे आप मंडी में बेच सकते हैं या किसी कंपनी से टाई-अप कर सीधा अपनी फसल उन्हें बेच सकते हैं। ध्रुव कहते हैं कि जैसे जैसे आपका बिजनेस ज्यादा होने लगे, पॉलीहाउस की संख्या 7 से 8 हो जाए तो आप दूसरे देशों को निर्यात भी कर सकते हैं।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

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बाज़ार में मिलता है अच्छा दाम

पॉलीहाउस में तैयार होने वाली फसल को बाज़ार में अच्छा दाम भी मिलता है। जब मंडी में आपको सामान्य खीरा भी नहीं मिलेगा तो दाम ऊपर होंगे। आज कल बाज़ार में खीरे का रेट 40 रुपये प्रति किलो चल रहा है। अगर एक आम किसान इस समय खीरे को बाज़ार में बेचता है तो उसे मुनाफ़ा होगा।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

हाइब्रिड या सेमी हाइब्रिड पॉलीहाउस, कौन सा है बेहतर?

सेमी हाइब्रिड पॉलीहाउस बनाने में 25 से 50 लाख तक की लागत आती है। किसान साथियों को सलाह देते हुए ध्रुव कहते हैं कि पॉलीहाउस का सेटअप अलग-अलग रेट में हो जाता है, लेकिन एक बार लें तो अच्छा लें।

हाइब्रिड पॉलीहाउस  फैन पैड और कूलर से लैस होते हैं। ये बिजली की खपत ज़्यादा करते हैं। ग्रामीण इलाकों में बिजली की समस्या रहती है। जनरेटर के इस्तेमाल से ईंधन में पैसा खर्च होता है वो तो अलग, साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है।

इससे अलग,  सेमी हाइब्रिड में बिजली की खपत बहुत कम होती है। ध्रुव बताते हैं कि उनके पॉलीहाउस में चारों तरफ़ पर्दे लगे हुए हैं। इन पर्दों को ऊपर नीचे करके तापमान को नियंत्रित किया जाता है। ऊपर शेड नेट लगी है। शेड नेट कई तरह के आते हैं। ध्रुव ने अपने दोनों पॉलीहाउस में एल्युमिनेट शेड नेट लगाई हुई हैं। ध्रुव कहते हैं कि एल्युमिनेट शेड नेट क्वालिटी में सबसे अच्छा होता है। इसीलिए ध्रुव  सेमी हाइब्रिड पॉलीहॉउस तकनीक से खेती को ही ज़्यादा अच्छा मानते हैं।  

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

नमी और तापमान को कंट्रोल करने के लिए पॉलीहाउस में फ़ॉगर्स की मदद से आर्टिफ़िशियल बारिश कराई जाती है। फ़ॉगर्स,   नमी अगर कम है तो उसे बढ़ा देते हैं और  तापमान अगर बढ़ा हुआ है तो वो नीचे ले आते हैं । ऊपर की तरफ़ पॉली फिल्म में स्प्रिंकलर यानी पानी की फुहार करने वाला सिस्टम लगा है।   ज़्यादा धूप में पन्नी जब गरम हो जाती है तो स्प्रिंकलर चलाकर ही पॉली फिल्म को ठंडा किया जाता है। इस तरह से  पॉलीहाउस के तापमान को नियंत्रित किया जाता है। बेड  70 mm की ऊंचाई पर होता है। इतनी ही दूरी दो पौधों के बीच होती है। बेल पर लगने वाली फसलों को ट्रेसलिंग वायर की मदद से सपोर्ट दिया जाता है।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

बीमारी से बचाव के लिए क्या हैं उपाय?

फसलों पर लगने वाली व्हाइट फ्लाई, माईट, थ्रिप्स जैसी कई बीमारियां हैं। हर रोग का अपना इलाज है। व्हाइट फ्लाई का उपचार अगर सही वक़्त रहते नहीं किया जाए तो वो पूरे पॉलीहाउस को नुकसान पहुंचा सकती है। थ्रिप्स रोग में फसल की पत्ती अंदर की तरफ़ मुड़ जाती है। अगर ऐसी कोई पत्ती दिखती है तो उसका तुरंत इलाज करने की ज़रूरत होती है क्योंकि थ्रिप्स रोग फसलों में वायरस ला सकता है। एक बार वायरस लग गया फिर इसे कंट्रोल नहीं किया जा सकता। वो पौधा खराब हो जाता है। ऐसे ही माईट रोग में मकड़ियां पौधे को खाती हैं और पत्तियों के नीचे अपने अंडे देती हैं। इसमें भी पत्ती अंदर की तरफ़ मुड़ जाती है।

इन बीमारियों से फसलों को बचाने के लिए किसान कई तरह के स्प्रे करते हैं।  तीन-तीन दिन में छिड़काव कर देते हैं, जिसकी ज़रूरत नहीं होती। ध्रुव शर्मा कीटों  से फसल को बचाने के लिए हफ़्ते-हफ़्ते भर नीम तेल का छिड़काव करते हैं। ध्रुव शर्मा कहते हैं कि अगर नीम के तेल की परत पौधों की पत्तियों पर होगी तो उस पर किसी कीट या बीमारी का प्रकोप होना न के बराबर होता है। अगर इन सब बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए तो दवाइयों का खर्च बचाया जा सकता है। कई बायो दवाइयां  बाज़ार में उपलब्ध हैं। ध्रुव की सलाह है कि केमिकल कीटनाशकों की जगह बायो प्रॉडक्ट्स को ज़्यादा इस्तेमाल में लायें।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

पॉलीहाउस तकनीक से खेती क्यों है सबसे बेहतर? कैसे करें पॉलीहाउस में खेती की शुरुआत? जानिए इस 'इंजीनियर' किसान से

गो-ग्रीन मिशन के साथ कर रहे हैं काम

ध्रुव शर्मा कहते हैं कि हम अच्छी उपज लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। फसलों में ऐसी-ऐसी दवाइयां डाली जा रही हैं, जिनका छिड़काव नहीं होना चाहिए। केमिकल कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। ध्रुव शर्मा बताते हैं कि हर क्षेत्र में गो ग्रीन मुहीम के साथ काम करने की ज़रूरत है। खेती में पानी की बचत, कम जगह में ज़्यादा उपज, जैविक खेती के जरिए गो ग्रीन को बढ़ावा मिल रहा है। ध्रुव मानते हैं कि अगर अब कदम नहीं उठाया, तो आगे आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचेगा। ग्लोबल वार्मिंग से लेकर प्रदूषण से हो रहे नुकसान को पॉलीहाउस तकनीक  से खेती कर कम किया जा सकता है। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिए ध्रुव किसानों से गुज़ारिश  करते हैं कि लालच में न आकर अच्छी उपज का चुनाव करें। कम समय में बंपर उत्पादन के झांसे में न आयें।

फ़ार्म के कर्मचारी एक परिवार की तरह

ध्रुव के लिए ये पौधे बच्चों की तरह हैं।जैसा सामान्य खेती में होता है कि एक बार पानी दिया और एक हफ़्ते बाद जाकर देखा। वैसा पॉलीहाउस में नहीं होता। एक घंटे में स्थिति बदल सकती है। ध्रुव अपने पॉल हाउस के रखररखाव का क्रेडिट अपने कर्मचारियों को देते हैं। वो कहते हैं कि उनके पास इतना समय नहीं होता कि वो दिन-रात इसकी देखभाल कर सकें। ऐसे में फार्म के कर्मचारी ही पूरी लगन से सब कुछ संभालते हैं। ध्रुव अपने कर्मचारियों को अपनी रीढ़ की हड्डी मानते हैं। ध्रुव कहते हैं कि इन कर्मचारियों से ही उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। ये सब कर्मचारी अब उनके परिवार का हिस्सा हैं।

पॉलीहाउस तकनीक से खेती ( polyhouse technique farming dhruv sharma)

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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