बिहार के किसानों पर नीलगाय का कहर, लगाई सरकार से गुहार

बाढ़ की तबाही तो बरसात के मौसम में ही आती है, जबकि नीलगायों की कहर सालों-साल या कहें कि कई दशकों से जारी है। जंगलों में रहने वाली नीलगाय जब किसानों के खेतों में पहुँचने लगे तो ये खड़ी फसल तो बहुत नुकसान पहुँचाती हैं। चूँकि इन्हें मारा नहीं जा सकता, इसलिए बिहार के किसानों के लिए ये भयंकर संकट बन चुकी हैं। नीलगाय झुंड में बहुत तेज़ दौड़ती हैं। इनके सड़कों और रेलवे ट्रैक पर आने दिन से आये दिन दुर्घटनाएँ भी होती रहती हैं और तमाम लोग मारे भी जाते हैं।

किसानों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी नीलगाय - Kisan of India

बिहार के 31 ज़िलों की खेती-बाड़ी पर नीलगायों का कहर इतना ज़बरदस्त है, जितना शायद बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा का भी नहीं हो। राज्य में लाखों किसानों और वन विभाग के लिए नीलगायें तक़रीबन लाइलाज़ समस्या बन चुकी हैं। इसीलिए बिहार सरकार ने अब किसानों को ऐसे ध्वनि यंत्र मुहैया करवाने की रणनीति बनायी जो नीलगायों को भगा सकें। इसके अलावा, खेतों की ताड़बन्दी में किसानों को सब्सिडी देने और नर नीलगायों की नसबन्दी करने का अभियान चलाने पर भी वन्य जीव विशेषज्ञ विचार कर रहे हैं।

बिहार के किसान नीलगाय से परेशान - Kisan Of India
भारत में नीलगायें संरक्षित वन्य जीव हैं

संरक्षित वन्य जीव है नीलगाय

भारत में नीलगायें संरक्षित वन्य जीव हैं। इनका शिकार करना ज़ुर्म है। नीलगाय के सिर्फ़ नाम में गाय है, वर्ना उसका गाय से कोई नाता नहीं है। ये मूलतः हिरण की प्रजाति है। इसमें में हिरणों वाली ही तेज़ी और झुंड में रहने की खूबी होती है। हिरण की सभी एशियाई प्रजातियों में नीलगाय सबसे बड़ी है। इसका क़द 5 फ़ीट ऊँचा और लम्बाई 6-7 फ़ीट तक होती है। नीलगाय का क़द घोड़े से काफ़ी मेल खाता है, इसीलिए बिहार में इसे घोड़परास भी कहा जाता है।

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नीलगायों की उच्च प्रजनन दर

संरक्षित जंगलों के भोजन चक्र में बड़े शिकारी प्राणियों का चहेता भोजन हैं नीलगाय। इनका प्रजनन चक्र बकरियों की तरह है। बकरियों की तरह ही मादा नीलगायें एक बार में दो से तीन बच्चों को जन्म देती हैं। इसीलिए इसे वनबकरी भी कहते हैं। जंगल में तो शिकारी जीव इनकी आबादी को सन्तुलित रखते हैं, लेकिन यदि ये ऐसे इलाकों में रहने लगें जहाँ इनका प्राकृतिक शिकार नहीं हो सके तो फिर वहाँ के किसानों की फसल के लिए नीलगायों के झुंड दैवीय आपदा से भी भयानक साबित होते हैं, क्योंकि शिकार नहीं होने की वजह से नीलगायों के झुंड का दायरा आये दिन नये-नये इलाकों की ओर बढ़ता रहता है।

किसानों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी नीलगाय

बाढ़ की तबाही तो बरसात के मौसम में ही आती है, जबकि नीलगायों की कहर सालों-साल या कहें कि कई दशकों से जारी है। जंगलों में रहने वाली नीलगाय जब किसानों के खेतों में पहुँचने लगे तो ये खड़ी फसल तो बहुत नुकसान पहुँचाती हैं। चूँकि इन्हें मारा नहीं जा सकता, इसलिए बिहार के किसानों के लिए ये भयंकर संकट बन चुकी हैं। नीलगाय झुंड में बहुत तेज़ दौड़ती हैं। इनके सड़कों और रेलवे ट्रैक पर आने दिन से आये दिन दुर्घटनाएँ भी होती रहती हैं और तमाम लोग मारे भी जाते हैं।

बिहार के किसानों पर नीलगाय का कहर, लगाई सरकार से गुहार
किसान ऑफ़ इंडिया ने बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह से बात की

कृषि मंत्री और वन अधिकारी के क़दम

नीलगायों के कहर के सिलसिले में किसान ऑफ़ इंडिया ने बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह से बात की। उन्होंने बताया कि नीलगायों को भगाने के लिए किसानों को ध्वनि यंत्र मुहैया करवाने, खेतों की ताड़बन्दी के लिए सब्सिडी देने और नर नीलगायों की नसबन्दी करने की नीति पर काम हो रहा है। उम्मीद है कि इससे अपेक्षित सफलता मिलेगी।

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नीलगायों के प्रकोप के बारे में बिहार के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एस के चौधरी का कहना है कि अब सूबे के 31 ज़िलों में नीलगायों को प्रतिबन्धित की सूची से बाहर कर दिया गया है। पर्यावरण और वन मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक अब किसान अपनी फसल या सम्पत्ति की रक्षा के लिए ख़ुद निर्णय ले सकते हैं।

पटना हाईकोर्ट ने भी दिये सख़्त आदेश

बिहार के नीलगाय समस्या पर पटना हाईकोर्ट ने भी बेहद गम्भीरता दिखायी है। साल 2010 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि नीलगायों से होने वाला नुकसान इतना व्यापक है कि ग़रीब किसान और ग़रीब होते जा रहे हैं। अगले साल 2011 में हाईकोर्ट ने बिहार वन और पर्यावरण मंत्रालय को 3 महीने के भीतर नीलगायों की समस्या का समाधान निकालने का आदेश भी दिया था।

अव्यावहारिक सरकारी शर्तें

2012 में बिहार सरकार ने नीलगायों के सीमित शिकार की अनुमति दी, लेकिन ऐसे शिकार से पहले ज़िला मजिस्ट्रेट की लिखित अनुमति और शिकार के बाद नीलगाय के शव के अन्तिम संस्कार की अनिवार्यता वाली कठिन शर्तों ने समस्या के निवारण में कोई ख़ास भूमिका नहीं निभायी। नतीज़ा ये रहा कि जब किसानों को नीलगायों के कहर से अपेक्षित राहत नहीं मिली तो उन्होंने आन्दोलन किया। किसानों के अनेक आन्दोलन को देखते हुए आख़िरकार 2015 में नीलगायों के शिकार पर लागू प्रतिबन्ध को हटा तो लिया गया, लेकिन इसकी मियाद एक साल तय कर ही सीमित रखी गयी।

भले राशन न दे सरकार, इससे बचा ले

एक साल में नीलगायों का सफ़ाया नहीं हुआ। उल्टा, उनकी आबादी और कहर लगातार बढ़ता गया। यही वजह है कि बिहार के वैशाली ज़िले के डभैच प्रखंड के असवारी गाँव में किसानों ने हमारी टीम के ज़रिये प्रदेश और देश की सरकारों से गुहार लगायी कि वो सरकार भले ही उन्हें मिलने वाला सस्ता राशन देना बन्द कर दे, लेकिन नीलगायों की समस्या से उन्हें मुक्ति दिला दे।

वैशाली के ही तिसीऔता पंचायत के मुखिया मनोज चौधरी और प्रगतिशील किसान तथा पूर्व इंजीनियर आनन्द मोहन ने बताया कि नीलगायों की समस्या का हल निकलता नहीं देख काफ़ी किसानों ने मौसमी फसलों को छोड़कर आम का बाग लगाने की रणनीति अपनायी, लेकिन ये जुगत भी किसी काम नहीं आयी।

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