लैवेंडर की खेती: एक बार लगाएं फसल फिर सालों साल तक कमाई

लैवेंडर की खेती सिंचाई पर निर्भर नहीं है। सिंचित क्षेत्र हो या असिंचित, ज़्यादा ऊंचाई वाला इलाका हो या कम, इसकी खेती हर क्षेत्र में संभव है। लैवेंडर की खेती का एक फ़ायदा ये भी है कि पूरी तरह से जैविक है।

किसान अब पारंपरिक खेती के अलावा नई फसलों की खेती का भी रूख कर रहे हैं। लैवेंडर से बने उत्पादों की बाज़ार में अच्छी मांग रहती हैसाथ ही इन्हें अच्छे मुनाफ़े पर बेचा जाता है। बारहमासी फसल लैवेंडर एक बार लगने के बाद करीबन 14 साल तक उपज देती है। ये एक ऐसी उपज हैजिसमें हर साल लागत नहीं आती। एक बार शुरुआती लागत आती है। इसके बाद सिर्फ़ घास की सफाई और फूल तोड़ने का खर्च रहता है। 14 साल तक इससे आय होती रहती है। यही वजह है कि इसके फ़ायदों को देखते हुए कई किसान आज लैवेंडर की खेती का रूख कर रहे हैं।

लैवेंडर की खेती ( Lavender farming )

 

बेस्ट लैवेंडर फ़ार्मर सम्मान ने वैकल्पिक खेती को बढ़ावा दिया

कश्मीर के बडगाम के कनीर गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान मोहिउद्दीन मीर भी लैवेंडर की खेती करते हैं। उन्होंने लैवेंडर की खेती उस वक़्त शुरू की, जब उनके इलाके में इस फसल को लेकर अन्य किसानों को कोई जानकारी नहीं थी।

किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में गुलाम मोहिउद्दीन मीर ने बताया कि जब उन्होंने चार से पांच साल पहले लैवेंडर की खेती शुरू की थी, लोगों ने उन्हें समझाया था कि पशुपालन के साथ ये कैसे करोगे। मीर काफ़ी दूर से इसकी पौध लेकर आए और लैवेंडर की खेती शुरू कर दी। आज मोहिउद्दीन मीर 40 कैनाल से भी ज़्यादा में लैवेंडर की खेती करते हैं और अब वो दूसरों को भी पौधे देते हैं। लैवेंडर की खेती को लेकर उनके प्रयासों और उपलब्धि के लिए उन्हें इस साल कृषि विभाग ने बेस्ट लैवेंडर फ़ार्मर सम्मान से भी नवाज़ा गया।

60 हज़ार की लागत में से सवा तीन लाख का मुनाफ़ा

गुलाम मोहिउद्दीन मीर ने बताया कि साल 2020 में उन्हें 60 हज़ार की लागत में चार लाख की आमदनी हुई, जिससे उन्हें सीधे तौर पर तीन से सवा तीन लाख का मुनाफ़ा हुआ। साल 2021 में भी उन्हें अच्छा मुनाफ़ा होने की पूरी उम्मीद है क्योंकि लैवेंडर की खेती एक साल की तुलना में दूसरे साल में ज़्यादा फसल देती है।

लैवेंडर की खेती ( Lavender farming )

 

10 हज़ार रुपये प्रति लीटर बिकता है लैवेंडर का तेल

गुलाम मोहिउद्दीन मीर बताते हैं कि इस साल कोरोना के कारण देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से थोड़ी समस्या ज़रूर आई, लेकिन राज्य से बाहर उनके बनाए गए प्रोडक्ट को बाज़ार मिल जाता है। गुलाम मोहिउद्दीन मीर 10 हज़ार प्रति लीटर की दर से लैवेंडर का तेल बेचते हैं। देश के अन्य राज्यों मुंबई, दिल्ली, कोलकाता से उनके तेल के खरीदार कई ज़्यादा हैं।

कीटनाशक की ज़रूरत नहींजानवर नहीं पहुंचाते नुकसान 

गुलाम मोहिउद्दीन कहते हैं कि लैवेंडर की खेती बहुत फायदेमंद है। उन्होंने सेब के बागान भी लगाए हुए हैं, लेकिन उन्हें सेब की खेती से कहीं ज़्यादा फायदा लैवेंडर की खेती में हुआ। गुलाम मोहिउद्दीन मीर ने बताया कि सेब के बागान के रखरखाव में लागत बहुत आती है, लेकिन लैवेंडर में किसी तरह के कीटनाशक छिड़कने की ज़रूरत नहीं होती। वहीं खेती को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर लैवेंडर को नुकसान भी नहीं पहुंचाते।

लैवेंडर की खेती: एक बार लगाएं फसल फिर सालों साल तक कमाई

लैवेंडर की खेती: एक बार लगाएं फसल फिर सालों साल तक कमाई

कृषि विभाग द्वारा लैवेंडर की खेती को किया जा रहा प्रोत्साहित

अब कृषि विभाग भी लैवेंडर की खेती को प्रोत्साहित कर रहा है। कृषि विभाग की ओर से भी इलाके के किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है। अब कृषि विभाग की सक्रियता से किसानों तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंच रहा है। किसानों को प्रोत्साहन राशि और सब्सिडी के रूप में सहायता मिल रही है। गुलाम मोहिउद्दीन मीर कहते हैं अगर क्षेत्र में ही कई प्रोसेसिंग प्लांट्स लगा दिए जाएं तो खुद किसान अपनी उपज को प्रोसेस कर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। अब मीर खूद की तेल निकालने की मशीन लगाने की तैयारी में है।

लैवेंडर की खेती ( Lavender farming )

 

लैवेंडर की खेती में इन बातों का रखें ध्यान

लैवेंडर की खेती में कई बातों का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। दो लाइनों के बीच 4 फुट और दो पौधों के बीच 2 फुट की दूरी होनी चाहिए। लैवेंडर के पौधे लगाने का सही वक़्त फरवरी, मार्च और अप्रैल है। गर्मी के वक़्त लैवेंडर के पौधे लगाना सही नहीं रहता। इसके बाद नवंबर और दिसंबर में पौधे लगते हैं। इसके फूल जून-जुलाई में आते हैं। जब लैवेंडर के फूल की पंखुड़ी 60 फ़ीसदी तक खिलती है तो ये इसके कटाई का सही समय होता है।

लैवेंडर की खेती ( Lavender farming )

लैवेंडर की खेती: एक बार लगाएं फसल फिर सालों साल तक कमाई

हर तरह की मिट्टी में हो सकती है लैवेंडर की खेती

लैवेंडर की खेती हर तरह की मिट्टी में संभव है। पथरीली ज़मीन से लेकर रेतीली ज़मीन तक और पहाड़ी क्षेत्रों पर भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।

लैवेंडर की खेती सिंचाई पर निर्भर नहीं

सब डिविज़नल एग्रीकल्चर ऑफिसर अब्दुल हमीद शाह ने किसान ऑफ इंडिया को बताया कि कृषि विभाग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने के उद्देश्य के साथ काम कर रहा है। ब्दुल हमीद शाह बताते हैं कि लैवेंडर की खेती सिंचाई पर निर्भर नहीं है। सिंचित क्षेत्र हो या असिंचित, ज़्यादा ऊंचाई वाला इलाका हो या कम, इसकी खेती हर क्षेत्र में संभव है। लैवेंडर की खेती का एक फ़ायदा ये भी है कि पूरी तरह से जैविक है। कश्मीरी लैवेंडर की मांग दुनियाभर में है। कश्मीर का साफ वातावरण है, इसलिए यहां के तेल की खुशबू बाकी जगहों से अच्छी मानी जाती है। इसलिए खरीदार कश्मीरी लैवेंडर लेना पसंद करते हैं।

लैवेंडर की खेती: एक बार लगाएं फसल फिर सालों साल तक कमाई

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