मत्स्य विशेषज्ञ मुकेश कुमार सांरग ने बताया, बायोफ्लॉक तकनीक के तहत टैंकों में मछली पाली जाती है

बायोफ्लॉक तकनीक में  तालाब खोदने की ज़रूरत नहीं पड़ती

इस तकनीक में पानी की बचत के साथ-साथ मछलियों के फीड की भी बचत होती है

मछली जो भी खाती है उसका 75 फ़ीसदी वेस्ट के रूप में बाहर निकालती है, ये वेस्ट पानी के अंदर ही रहता है

इसी वेस्ट को शुद्व करने के लिए बायोफ्लॉक तकनीक का यूज़ किया जाता है

मछलियां जो वेस्ट निकालती हैं, उसको बैक्टीरिया के द्वारा प्यूरीफाई किया जाता है

ये बैक्टीरिया मछली के मल को प्रोटीन में बदल देता है मछलियां इस प्रोटीन को खाती हैं