धान और गेहूं की तुलना में परम्परागत मोटे अनाज काफ़ी कम पानी और खाद से उग जाते हैं
मोटे अनाज की खेती में महंगे रासायनिक खाद और कीट नाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती
गेहूं-चावल की बढ़ी हुई पैदावार का परम्परागत खान-पान की आदतों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है
आज ज़्यादा से ज़्यादा डॉक्टर वापस मोटे अनाज को भोजन की थाली में शामिल करने की सलाह देते हैं
मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, जौ, कोदो, सामा, सावां, जई, कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल हैं
समाज में बढ़ते कुपोषण को देखते हुए सरकार भी मोटे अनाज की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है
मानव पोषण की ज़रुरतों के लिहाज़ से मोटा अनाज हमारी सेहत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है
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