विलायती बबूल या काबुली कीकर, गाजरघास और पंचफूली किसानों, पालतू, जंगली जानवरों, पक्षियों के साथ ही पर्यावरण के लिए बेहद घातक है
19वीं सदी के पहले तक भारत में विलायती बबूल, गाजरघास और पंचफूली को घातक नहीं माना जाता था
विलायती बबूल का वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा है, इसका मूल स्थान मैक्सिको, दक्षिण और मध्य अमेरिका व कैरीबियाई देशों को माना गया है
बूल या कीकर को ‘रक्त-बीज’ कहा गया, ये अपने आस-पास किसी भी दूसरी वनस्पति को पनपने नहीं देता है
बबूल या कीकर का कांटा सबसे नुकीला होता है, जिसकी वजह से इंसानों के साथ ही पक्षियों और जानवरों को घायल कर देता है
जैव विविधता के लिए संकट बन चुके बबूल से पर्यावरण दूषित होता है, ये सबसे ज़्यादा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने विलायती बबूल पर शोध किया है, ये क़रीब 500 पेड़-पौधों की प्रजातियों को ख़त्म कर चुका है
प्रोफेसर बाबू के अनुसार, इसे हटाकर नीम, वट, आंवला, आम, पीपल जैसे देसी प्रजातियां लगानी चाहिए
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