अरहर की फसल ‘सहजीवी विधि’ की बदौलत नाइट्रोजन की अपनी आवश्यकता को पूरा करती है

अरहर की जो पत्तियां पौधों से झड़कर मिट्टी पर गिरते हैं वो भी सड़कर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाते हैं

अरहर के पौधों में स्व-परागण (self pollination) और पर-परागण (cross pollination) दोनों करने की ख़ूबियाँ होती हैं

अरहर की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है। हालाँकि, लवणीय या क्षारीय मिट्टी में इसकी खेती सम्भव नहीं है

सख़्त मिट्टी व ज़्यादा बारिश वाले इलाकों में अरहर के पौधों में ‘फाइटोफ्थोरा’ बीमारी लगने का ख़तरा बढ़ जाता है

अगेती अरहर, मध्यम अवधि वाली अरहर और दीर्घकालिक अरहर ये तीन तरीके प्रचलित हैं

आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु  और उत्तर प्रदेश उत्पादक राज्य हैं