Vegetable Farming: सब्ज़ियों की खेती में किसान निंगथौजम इंगोचा सिंह ने नई तकनीक के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता वाली पौध तैयार की, कम जमीन में हुआ ज़्यादा मुनाफ़ा

मणिपुर का बिष्णुपुर जिला सब्ज़ी का केंद्र माना जाता है, क्योंकि यहां के किसान नई और उन्नत तकनीक से सब्ज़ियों की खेती के लिए पौध तैयार कर रहे हैं। इससे खेती की लागत कम और मुनाफा अधिक होता है।

सब्ज़ियों की खेती में किसान ने नई तकनीक के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता वाली पौध तैयार

सब्ज़ियों की खेती में यदि नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो कम जगह से भी अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए अच्छी क्वालिटी के बीजों  के साथ ही नर्सरी बनाते समय खास देखभाल की ज़रूरत होती है। दरअसल, ज़्यादा सब्ज़ियों की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए पहले नर्सरी में उनकी पौध तैयार की जाती है।

इसके लिए उनकी अच्छी तरह देखभाल की जाती है क्योंकि यह बहुत नाज़ुक होती है। मणिपुर का बिष्णुपुर जिला सब्ज़ी का केंद्र माना जाता है, क्योंकि यहां के किसान नई और उन्नत तकनीक से सब्ज़ियों की पौध तैयार कर रहे हैं। इससे खेती की लागत कम और मुनाफ़ा अधिक होता है। जानिए कौन सी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं यहाँ के किसान।

क्या है नालीदार जस्ती चादर?

सब्ज़ियों की नर्सरी तैयार करते समय क्यारियों में बीज लगाने के बाद अंकुरण तक उन्हें टाट के बोरे या तिनकों से ढंका जाता है। इससे उनका अंकुरण जल्दी होता है।  बिष्णुपुर जिले के कुंबी तेराखा गांव के एक किसान निंगथौजम इंगोचा सिंह अपनी 0.5 हेक्टेयर भूमि में विभिन्न सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं। इसके लिए पारंपरिक तरीकों के साथ ही वैज्ञानिक तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

सब्ज़ियों की खेती में किसान ने नई तकनीक के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता वाली पौध तैयार
तस्वीर साभार: ICAR

Vegetable Farming: सब्ज़ियों की खेती में किसान निंगथौजम इंगोचा सिंह ने नई तकनीक के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता वाली पौध तैयार की, कम जमीन में हुआ ज़्यादा मुनाफ़ा

बीज बोने के बाद नर्सरी में सब्ज़ियों की क्यारियों को ढंकने के लिए वह पारंपरिक टाट के बोरे की बजाय नालीदार जस्ती चादरों (Corrugated Galvanized Sheets) का इस्तेमाल करते हैं। उनकी यह खोज बेहतरीन है क्योंकि इससे गुणवत्ता पूर्ण पौध तैयार होती है और सब्ज़ियों की अधिक फसल प्राप्त होती है।

इस तकनीक का कैसे होता है इस्तेमाल?

  • नर्सरी की जगह चुनने के बाद उसकी सफाई की जाती है और बेकार की चीज़ों को हटाने के बाद खुदाई  की जाती है।
  • नर्सरी की क्यारियों की  हाथों से ही कुदाल की मदद से खुदाई की जाती है। जिस जगह का चुनाव किया गया है उसके अनुसार नर्सरी की क्यारियों का आकार अलग-अलग हो सकता है।
  • फिर गोबर की खाद और रेत को मिलाकर मिट्टी तैयार की जाती है।
  • बीज लगाने से  पहले क्यारियों को समतल कर लिया जाता है। करीब 8 सेंटीमीटर की दूरी पर लकड़ी की मदद से लाइन खींचकर अलग-अलग निशान लगाए जाते हैं  ताकि एक कतार में बीज लगाया जा सके।
  • बुवाई के बाद खाद की पतली परत से उसे ढंक दिया जाता है और पानी देने वाले छोटे फव्वारे रोजकेन (Rosecan), की मदद से पानी दिया जाता है।
  • इसके बाद क्यारियों को नालीदार जस्ती चादर से ढंक दिया जाता है, जिससे मिट्टी को गर्मी मिलती है और उसकी नमी भी बनी रहती है। इससे बीजों के जल्दी अंकुरण  में मदद मिलती है।
  • बीजों के अंकुरित होने के बाद नालीदार जस्ती चादरों को हटा दिया जाता है और दोबारा इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख दिया जाता है।

इस तकनीक के फ़ायदे 

इसके उपयोग से मिट्टी की नमी बनी रहती है जिससे कम सिंचाई की ज़रूरत होती है। मिट्टी का विघटन नहीं होता  और उसका  पोषण बना रहता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाली पौध तैयार होती है और अंकुरण जल्दी होता है। जस्ती चादरों का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे लागत कम होती है।

इस तकनीक को इजाद करने का मकसद ही  सब्ज़ियों की खेती में लागत कम करके आमदनी बढ़ाना था। इसमें यह तकनीक पूरी तरह से सफल रही है। निंगथौजम इंगोचा सिंह न सिर्फ अपने लिए पौध तैयार कर रहे हैं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण पौध तैयार करके स्थानीय बाज़ार और पड़ोस के किसानों को बेचकर भी कमाई कर रहे हैं। 2018-19 के दौरान अपनी मात्र 0.5 हेक्टेयर भूमि से उन्होंने 5.25 लाख रुपए का मुनाफा अर्जित किया था।

आप भी इस तकनीक का इस्तेमाल करके अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं।

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