क्या है पादप हॉर्मोन और पशु हॉर्मोन के बीच अंतर, एक तुलनात्मक विश्लेषण
पादप हॉर्मोन और पशु हॉर्मोन कई मायनों में समान हैं। दोनों प्रकार रासायनिक संदेशवाहक हैं जो अपने संबंधित जीवों के भीतर विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
पादप हॉर्मोन और पशु हॉर्मोन कई मायनों में समान हैं। दोनों प्रकार रासायनिक संदेशवाहक हैं जो अपने संबंधित जीवों के भीतर विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो किसान अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
धान की सीधी बुआई तकनीक से 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। यानी, कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। इस तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है, क्योंकि पिछली फसल का अवशेष वापस खेत में ही पहुँचकर उसमें मौजूद कार्बनिक तत्वों की मात्रा में इज़ाफ़ा करता है। इस तकनीक से धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। खरीफ मौसम में धान की सीधी बुआई को मॉनसून के दस्तक देने से 10-12 दिन पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है।
चाहे घर हो, उद्योग-धंधे या कृषि हर क्षेत्र में ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती है, इसके बिना कोई काम नहीं चल सकता। मगर अफसोस कि तेज़ रफ्तार से बढ़ती इसकी मांग ने ऊर्जा का सकंट पैदा कर दिया है, ऐसे में ऊर्जा सरंक्षण के उपायों के बारे में जानकारी और उसे अपनाना बहुत ज़रूरी है।
मछली पालन, नारियल की खेती और टूरिज़्म के बाद अब समुद्री शैवाल की खेती लक्षद्वीप के लोगों की आमदनी का नया ज़रिया बन रही है। प्रशासन इसे एक उद्यम के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
राजस्थान, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में अब तक 93 प्रतिशत से ज़्यादा खेतीहर ज़मीन को सूक्ष्म सिंचाई विधियों के दायरे में लाया जा चुका है। इस लिहाज़ से राजस्थान की उपलब्धियाँ सबसे आगे है। फव्वारा सिंचाई विधि के आने वाले देश के कुल इलाकों में राजस्थान की हिस्सेदारी एक-तिहाई से ज़्यादा है। दूसरी ओर आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बूँद-बूँद सिंचाई वाली ड्रिप इरीगेशन के प्रति किसानों में ज़्यादा रुझान दिखाया है।
यदि गन्ना किसान गन्ने के साथ कुछ दूसरी फसलें लगाएँ तो उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है। पपीते की फसल जल्दी तैयार हो सकती है और ये गन्ने के खेत में जगह भी ज़्यादा नहीं लेती। इसीलिए गन्ने के साथ पपीता उगाने से दोहरा लाभ मिलता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में दोमट और बलुई मिट्टी की बहुतायत है। ऐसी मिट्टी न सिर्फ़ गन्ने के लिए बढ़िया है बल्कि पपीते के लिए भी बेहद मुफ़ीद होती है।
सालों से प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी हो रही है, मगर इसमें सफलता नहीं मिल पा रही और इसका कारण है प्लास्टिक का विकल्प न होना। ऐसे में गेहूं के भूसे से बने प्लास्टिक उत्पाद इसका अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
Rooftop organic farming (छत पर जैविक खेती): किचन गार्डेन की तरह घर की छत पर सब्जियाँ उगाकर पैसे की बचत के अलावा घरेलू पानी और कचरे का जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल हो सकता है। घर की छत पर सब्जियों की जैविक खेती करके पूरे साल ताज़ा सब्ज़ियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
पारंपरिक रूटस्टॉक वाले सेब के पौधों की मांग घटने से हिमाचल के रहने वाले पवन कुमार गौतम का सेब की नर्सरी का उद्योग डगमगा गया था, मगर इस तकनीक ने उन्हें नई राह दिखाई। जानिए क्या है रूटस्टॉक मल्टीप्लीकेशन तकनीक।
आज के समय में देश का युवा खेती-किसानी में अच्छे व्यवसाय के विकल्प तलाश रहा है, जो कि इस क्षेत्र के लिए बहुत अच्छी बात है। एक ऐसी ही महिला हैं कर्नाटक की रहने वाली आशमा। जानिए कैसे उन्होंने अपने क्षेत्र में सुपारी की खेती (areca nut farming) के साथ Integrated Farming मॉडल को अपनाते हुए तरक्की हासिल की।
एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने से पहले उन्हें सालाना सिर्फ़ करीबन 24,680 रुपये का ही लाभ होता था, लेकिन अब न सिर्फ़ उन्होंने आमदनी में बढ़ोतरी की है, बल्कि अपने क्षेत्र के कई युवकों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।
गोबर में ऊर्जा की मात्रा बहुत होती है। इस ऊर्जा को बायोगैस प्लांट में फ़र्मेंटेशन के ज़रिए निकाला जाता है। कैसे बायोगैस प्लांट्स लगाना किसानों के लिए फायदेमंद है? जानिए इस लेख में।
Nam Farmers एक मोबाइल आधारित डिजिटल स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जो कृषि से जुड़े सभी हितधारकों को जोड़ता है।
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी क्षेत्रीय केंद्र संस्थान ने बाजरा डाइहलर मशीन (Millet Dehuller Machine) विकसित की है। मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों के लिए ये मशीन कैसे उपयोगी हो सकती है, इस पर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग रीज़नल सेंटर कोयंबटूर के हेड डॉ. एस. बालासुब्रमण्यम से विशेष बातचीत।
कर्नाटक के तुमकुर ज़िले की रहने वाली शशिकला पहले अपनी फसल की बिक्री के लिए बेंगलुरू के बाज़ार जाती थीं, वहीं अब खरीदार उपज खरीदने खुद उनके पास आते हैं। सब्जियों की उन्नत किस्म की खेती के लिए वो अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रही हैं।
मछली बीज उत्पादन का व्यवसाय भी युवकों के लिए अच्छी कमाई का ज़रिया बन सकता है। जुलाई से अगस्त प्रजनन का सबसे अच्छा समय होता है। इन महीनों में मछली बीजों की ज़बरदस्त मांग रहती है। कैसे करें फिश हैचरी तैयार, कैसा है इसका बिज़नेस? इसपर किसान ऑफ़ इंडिया की बिन्ध्याचल मंडल मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश के मत्सय विभाग के उपनिदेशक डॉ. मुकेश सारंग से ख़ास बातचीत।
मध्य प्रदेश के आदिवासी ज़िले मंडला के रहने वाले अमृत लाल धनगर पहले किराए पर सीड रील मशीन लेकर खेती किया करते थे। लागत को कैसे कम किया जाए, इस पर काम करते हुए उन्होंने उपलब्ध संसाधनों से सीड ड्रिल मशीन बनाई।
भारत में उत्पादित कुल फल का करीब 50 फीसदी बर्बाद हो जाता है, जिससे फल उत्पादक किसानों को भारी नुकसान होता है। अब ये नई तकनीक फलों के सरंक्षण में कारगर साबित होगी और बर्बादी घटने से किसानों की आय भी बढ़ेगी।
आधुनिक खेती करने से पहले मथुरा दास अपनी 40 एकड़ ज़मीन पर अरहर, सोयाबीन, गेहूं और चने की फसल लिया करते थे। परिवार बढ़ रहा था। ऐसे में आमदनी को कैसे बढ़ाया जाए, वो इसके विकल्पों की तलाश में थे। कैसे पूरी हुई उनकी ये तलाश? जानिए इस लेख में।