प्राकृतिक खेती कर रहे योगेश कुमार ने गन्ने की प्रोसेसिंग से खड़ा किया एग्री-बिज़नेस
योगेश कुमार मुख्य रूप से गन्ने की खेती करते हैं। गन्ने की प्रोसेसिंग कर वो गुड़, खांड, सिरका, कुल्फी, कोल्ड कॉफी जैसे कई उत्पाद तैयार करते हैं।
योगेश कुमार मुख्य रूप से गन्ने की खेती करते हैं। गन्ने की प्रोसेसिंग कर वो गुड़, खांड, सिरका, कुल्फी, कोल्ड कॉफी जैसे कई उत्पाद तैयार करते हैं।
योगेश जैन का फार्म प्राकृतिक खेती का एक सफल मॉडल है। उन्होंने रसायन मुक्त खेती को अपनाया है, जिससे प्राकृतिक खेती के लाभ के रूप में फसलों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
प्रस्तावना गांव से आने वाले युवा किसानों का अब खेती-बाड़ी की पारंपरिक विधियों से आगे बढ़कर नवाचारों की ओर रुख
बरेली के आयुष गंगवार ने अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती की शुरुआत की। उन्होंने सरकारी योजनाओं और स्थानीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाया।
जहां तक नाइट्रोजन प्रबंधन का संबंध है, कृषि क्षेत्र एक दुष्चक्र में है। मिट्टी में नाइट्रोजन मौजूद होता है जो पौधों और फसलों को बढ़ने में मदद करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उर्वरकों और कीटनाशकों में किया जाता है जो पौधों को बढ़ने में और बेहतर उपज पाने में मदद करते हैं।
यहां हम बाज़ार में मौजूद सरसों के बीजों की किस्मों (Varieties Of Mustard) के बारे में जानेंगे और ये भी समझेंगे कि सही किस्म को चुनते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
स्वदेशी प्रौद्योगिकियां अक्सर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाई जाती हैं जो उस जगह के पर्यावरण कारक, संसाधन और सांस्कृतिक प्रथाओं के हिसाब से होती हैं। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2024 पर, इन कृषि पद्धतियों के बारे में जानना अच्छा रहेगा। इन तकनीकों ने भारत में किसानों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल ढलने और उनकी उत्पादकता बढ़ाने में मदद की है।
कृषि अवशेष को अक्सर जला दिया जाता है या खेतों में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। हालांकि, टिकाऊ प्रथाओं की मदद से, इन अवशेषों के इस्तेमाल से अब खाना पकाने के लिए ऊर्जा के एक मूल्यवान स्रोत के रूप में किया जा सकता है।
NECTAR ने राज्य सरकार विभागों के सहयोग से पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और सिक्किम में केसर की खेती के लिए उपयुक्त जगहों की पहचान की है। NECTAR की केसर खेती परियोजना के परिणामस्वरूप, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के कुल 64 किसान अब इस परियोजना से लाभान्वित हो रहे हैं।
ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत पक्षियों की कई प्रजातियों का घर है। इनमें से कई पक्षी ऐसे हैं जो किसानों के दोस्त होते हैं। कीट नियंत्रण से लेकर परागण तक, पक्षी किसानों के लिए प्राकृतिक सहयोगी बन गए हैं। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इससे टिकाऊ और उत्पादक कृषि पद्धतियां बनाने में मदद मिल रही है।
शहद और मधुमक्खियों के बिना, कई फसलें प्रजनन करने में सक्षम नहीं होंगी। मधुमक्खियां फसलों को मजबूत और कीटों और बीमारियों को लेकर ज़्यादा प्रतिरोधी बनाने में भी मदद करती हैं। जानिए खेती और मधुमक्खी पालन से जुड़ी अहम बातें।
भारत में बकरी पालन में नवाचारों का उद्देश्य किसानों की आजीविका को बढ़ाना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बकरी उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करना है।
किसान सर्दियों की इन चुनौतियों से पार पाने के लिए रणनीतियां अपनाते हैं, और सरकार टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सहायता देती है।
वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी उपग्रह-आधारित तकनीक विकसित की है, जो भारत में कृषि अवशेष जलाने से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर प्रकाश डालता है।
पादप हॉर्मोन और पशु हॉर्मोन कई मायनों में समान हैं। दोनों प्रकार रासायनिक संदेशवाहक हैं जो अपने संबंधित जीवों के भीतर विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
फसल न सिर्फ़ बातें करती हैं बल्कि वो आपकी बातों का जवाब भी देती हैं। वो बात अलग है कि हमें उनकी आवाज़ सुनाई नहीं देती। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। दरअसल, पौधों की आवाज़ हमारी सुनने की शक्ति से कहीं ज़्यादा तेज़ होती है। इसलिए हम उनकी आवाज़ सुन नहीं पाते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम पौधों की बातों को नज़रअंदाज़ कर दें।
ये तो अब वैज्ञानिक रूप से भी साबित हो चुका है कि प्रकाश प्रदूषण पौधों के चक्र में बाधा पैदा करता है। परागण और कृषि पर गलत प्रभाव डालता है। कैसे इसके प्रभाव को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। पढ़िए इस लेख में।
मिशन का मक़सद किसानों की आय बढ़ाना और व्यावसायिक स्तर पर लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देना है। साथ ही लैवेंडर का तेल बनाना है जो 10,000 रुपये प्रति लीटर में बिकता है। अन्य लोकप्रिय उत्पादों में दवाएं, अगरबत्ती, साबुन और एयर फ्रेशनर शामिल हैं।
लैवेंडर की खेती बहुत फ़ायदेमंद होती है। लैवेंडर अपने गुणों के कारण इत्र, साबुन और व्यक्तिगत देखभाल के लिए इस्तेमाल होने वाली चीज़ें बनाने में काम आता है। लैवेंडर से बनने वाले तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे भारत जैसे देशों में लैवेंडर की खेती में वृद्धि हुई है।
एक अकेला लैवेंडर का पौधा 15 साल तक फूल देता है, कम रखरखाव की ज़रूरत होती है और इसे रोपने के दूसरे साल से ही इस्तेमाल किया जा सकता है। हाल के वर्षों में, लैवेंडर की खेती ने भारत में फ़ायदेमंद फसल के रूप में लोकप्रियता हासिल की है। लेकिन, इस पर कुछ ख़तरे भी मंडरा रहे हैं।