भारत में कार्बन फ़ार्मिंग: क्या छोटे किसान कार्बन पकड़कर कमाई कर सकते हैं? 

आज की दुनिया में “जलवायु परिवर्तन” और “कार्बन उत्सर्जन” जैसे शब्द आम हो गए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इससे भारतीय किसान भी फायदा उठा सकते हैं? कार्बन फ़ार्मिंग (Carbon Farming) एक ऐसी तकनीक है, जिससे किसान न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं।

What Is Carbon Farming भारत में कार्बन फ़ार्मिंग

आज की दुनिया में “क्लाइमेट चेंज” (जलवायु परिवर्तन) और “कार्बन एमिशन” (कार्बन उत्सर्जन) जैसे शब्द हर जगह सुनाई देते हैं- न्यूज़ से लेकर सरकारी नीतियों तक। लेकिन इसका मतलब भारतीय किसानों के लिए क्या है? चौंकाने वाली बात ये है कि किसानों के लिए नई कमाई का मौका हो सकता है।

कार्बन फ़ार्मिंग के बढ़ते चलन के साथ, छोटे और सीमांत किसान जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं और इसके लिए पैसे भी कमा सकते हैं। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं। 

कार्बन फ़ार्मिंग क्या है? (What Is Carbon Farming?)

कार्बन फ़ार्मिंग का मतलब है खेती के ऐसे तरीके अपनाना, जिनसे वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को खींचकर मिट्टी या पेड़ों में जमा किया जाता है। पौधे वैसे भी हवा से CO₂ खींचते हैं, जब वो बढ़ते हैं। कुछ खेती के तरीके इस कार्बन को मिट्टी या पेड़ों में “सील” कर देते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसें घटती हैं।

उदाहरण:

• कवर क्रॉप्स (जैसे दालें या घास) लगाना

• एग्रोफॉरेस्ट्री (खेत में पेड़ और फसल साथ लगाना)

• मिट्टी की सेहत को ऑर्गेनिक तरीकों से सुधारना

• मिट्टी को कम जोतना (मिनिमम टिलेज)

ऐसा करने से किसान कार्बन को ज़मीन में बंद कर लेते हैं, जो फिर हवा में वापस नहीं जाता।

कार्बन संचारण (सेक्वेस्ट्रेशन) का विज्ञान ( Science Behind Carbon Sequestration)

ये कैसे काम करता है?

• पौधे फोटोसिंथेसिस में CO₂ सोखते हैं।

• इसका कुछ हिस्सा पौधे इस्तेमाल करते हैं और कुछ जड़ या जैविक पदार्थ में जमा हो जाता है।

• जब फसल सूखती है या पत्ते गिरते हैं तो वो मिट्टी में मिल जाते हैं।

• जैविक पदार्थ से भरपूर स्वस्थ मिट्टी प्रति हेक्टेयर टन में कार्बन संभाल सकती है।

खाद डालना, मल्चिंग करना, रासायनिक खाद घटाना, और बारहमासी पौधे लगाना, ये सब मिट्टी में कार्बन को लंबे समय तक संभालने की ताकत बढ़ाते हैं।

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ग्लोबल स्तर पर कार्बन फ़ार्मिंग क्यों ज़रूरी है? (Global Importance of Carbon Farming)

दुनिया में खेती से करीब 25% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। लेकिन अगर सही किया जाए, तो यही खेती उस नुकसान को कम कर सकती है।

पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौते और नेट-ज़ीरो टारगेट ने कार्बन हटाने की मांग बढ़ाई है। कंपनियां और सरकारें किसानों और ज़मीन के मालिकों को कार्बन स्टोर करने के लिए पैसा दे रही हैं और यहीं से कार्बन क्रेडिट की कहानी शुरू होती है। 

कार्बन क्रेडिट क्या होता है? (What Is a Carbon Credit?)

मान लीजिए अगर किसी किसान की ज़मीन हर साल 1 टन CO₂ हटाती है या उत्सर्जन से बचाती है, तो वो 1 कार्बन क्रेडिट कमा सकती है।

ये क्रेडिट कार्बन मार्केट्स में उन कंपनियों या देशों को बेचे जाते हैं, जिन्हें अपनी कार्बन उत्सर्जन को “ऑफसेट” करना होता है।

उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी अपनी फ़ैक्ट्री से निकलने वाली गैसें पूरी तरह कम नहीं कर पा रही, तो वो किसानों से क्रेडिट खरीदकर अपने लक्ष्य पूरे कर सकती है।

वैश्विक स्तर पर क्रेडिट की कीमत $5 से $30 प्रति टन तक होती है, जो प्रोजेक्ट, जगह, और क्वालिटी पर निर्भर करता है। 

भारतीय किसान कैसे जुड़ सकते हैं? (How Can Indian Farmers Get Involved?)

कई छोटे किसान सोचते होंगे,“क्या मेरी छोटी ज़मीन से मैं ग्लोबल कार्बन मार्केट में शामिल हो सकता हूं?” इसका जवाब है अपनी खेती में कार्बन-संचयन (सेक्वेस्ट्रिंग) प्रैक्टिस अपनाएं। किसानों को खेती के ऐसे तरीके अपनाने होंगे, जो मिट्टी और पौधों में ज़्यादा कार्बन जमा करें जैसे:

• नो-टिल फ़ार्मिंग (मिट्टी कम जोतना)

• खाद या बायोचार डालकर मिट्टी सुधारना

• खेत में पेड़ या झाड़ियां लगाना (एग्रोफॉरेस्ट्री)

• मुख्य फसल के बीच कवर क्रॉप्स लगाना

• मवेशियों के लिए चराई का बेहतर प्रबंधन

जितना ज़्यादा कार्बन स्टोर होगा, उतना ज़्यादा क्रेडिट कमा सकते हैं।

अकेला छोटा किसान ये सब नहीं कर सकता क्योंकि:

• अकेले की ज़मीन पर कम कार्बन स्टोर होता है।

• मॉनिटरिंग, पेपरवर्क, और सर्टिफिकेशन में ज़्यादा खर्च आता है।

इसलिए, किसानों को सहकारी समितियों, NGOs, या एग्रीगेटर कंपनियों से जुड़ना चाहिए।

जब कई किसान मिलकर काम करते हैं:

• हर किसान का खर्च कम होता है।

• बड़ा प्रोजेक्ट बनता है, जो खरीददारों को आकर्षित करता है।

• सर्टिफ़िकेशन और प्रबंधन आसान हो जाता है।

सर्टिफिकेशन कराएं

क्रेडिट बेचने के लिए आपको आधिकारिक तौर पर सर्टिफ़ाइड होना होगा।

कुछ प्रमुख सर्टिफिकेशन प्रोग्राम हैं:

• वेरा (VCS)

• गोल्ड स्टैंडर्ड

• भारतीय सरकारी योजनाएं (विकासाधीन)

सर्टिफ़िकेशन से ये साबित होता है कि:

• कार्बन स्टोर करना असली और मापने योग्य है।

• कार्बन लंबे समय तक जमा रहेगा।

• दोहरी गिनती (डबल काउंटिंग) नहीं होगी।

क्रेडिट बेचें:

सर्टिफ़ाइड प्रोजेक्ट दो प्रकार की मार्केट में क्रेडिट बेच सकता है:

• वॉलंटरी मार्केट (कंपनियाँ अपनी मर्जी से खरीदती हैं)

• कंप्लायंस मार्केट (कानूनन खरीदना अनिवार्य होता है)

किसान को पेमेंट मिलता है:

• हर टन कार्बन के हिसाब से

• पूरे प्रोजेक्ट की कुल कमाई में हिस्से के रूप में

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भारत में कार्बन फ़ार्मिंग के उदाहरण (Examples of Carbon Farming in India)

• एग्रोफॉरेस्ट्री- नीम, आम, सहजन, या लकड़ी के पेड़ खेत में लगाना।

फ़ायदे: छाया, चारा, लकड़ी, जैव विविधता, और कार्बन स्टोर।

• कवर क्रॉपिंग- मूंग, उड़द जैसी दालें मुख्य फसल के बीच लगाना।

फ़ायदे: मिट्टी सुधार, खरपतवार कम, कार्बन बढ़ोतरी।

• मिट्टी सुधार- खाद या गोबर डालना, रासायनिक खाद घटाना, मिनिमम टिलेज करना।

फ़ायदे: मिट्टी में कार्बन बनाना, पानी रोकने की क्षमता बढ़ाना, उपज बढ़ाना।

• चराई प्रबंधन- चराई घुमावदार तरीके से करना ताकि घास नष्ट न हो।

फ़ायदे: घास के मैदान में कार्बन स्टोर होता है, मवेशियों की सेहत सुधरती है।

छोटे भारतीय किसानों की चुनौतियां (Challenges Faced by Small Indian Farmers)

हालांकि, कार्बन फ़ार्मिंग में बड़ा वादा है, लेकिन छोटे किसानों के सामने कई चुनौतियां हैं:

• छोटी ज़मीनें- ज्यादातर किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन होती है, जो अकेले प्रोजेक्ट के लिए पर्याप्त नहीं।

• शुरुआती निवेश- जैसे पेड़ लगाना, जिसमें समय और पैसा लगता है, लेकिन नतीजे तुरंत नहीं मिलते।

• जानकारी की कमी- कई किसानों को कार्बन मार्केट, योग्य प्रैक्टिस, या मापन की जानकारी नहीं है।

• सर्टिफिकेशन जटिलता- सटीक मापन, सैटेलाइट मॉनिटरिंग, कागज़ी कार्रवाई- ये छोटे किसानों के लिए कठिन हो सकता है।

भारतीय सरकार और NGOs की भूमिका (Role of Indian Government and NGOs)

• सरकारी मदद- एग्रोफॉरेस्ट्री, बायोचार, खाद के लिए सब्सिडी या प्रोत्साहन देना।

• NGO और निजी क्षेत्र की भागीदारी- किसानों को जागरूक करना, ज़मीन को इकट्ठा करना, पायलट प्रोजेक्ट शुरू करना।

• शोध और नवाचार- ICAR, ICRISAT जैसे संस्थानों से क्षेत्रीय समाधान विकसित करना, डिजिटल टूल्स (ऐप्स, सैटेलाइट) से मॉनिटरिंग आसान बनाना।

किसान कितनी कमाई कर सकते हैं? (How Much Can Farmers Earn from Carbon Farming?)

ध्यान रखें:

• यह सामान्य खेती के ऊपर अतिरिक्त कमाई है।

• कमाई कार्बन क्रेडिट के दाम, सर्टिफिकेशन लागत, और मार्केट डिमांड पर निर्भर करती है।

वैश्विक उदाहरण जिनसे हम सीख सकते हैं (Global Best Practices in Carbon Farming)

दुनिया में कई देश हैं जहाँ छोटे किसान कार्बन फ़ार्मिंग से फायदे उठा रहे हैं।

उदाहरण:

• केन्या- छोटे किसान पेड़ लगाकर ज़मीन सुधारते हैं और कार्बन स्टोर करते हैं।

• पेरू- अमेज़न जंगल की रक्षा कर कार्बन क्रेडिट कमाने वाली स्थानीय कम्युनिटीज़।

• ऑस्ट्रेलिया- चराई भूमि पर मिट्टी सुधार कर मिट्टी कार्बन क्रेडिट।

• वियतनाम- चावल के खेतों में मछली पालन जोड़कर मीथेन घटाना और कार्बन बढ़ाना।

• रवांडा- ज़मीन सुधार परियोजनाएँ जो खराब हुई ज़मीन को ठीक करती हैं।

• नेपाल- पहाड़ी जंगलों की रक्षा करने वाले सामुदायिक समूह, जो कार्बन क्रेडिट से रोज़गार पाते हैं।

ये उदाहरण दिखाते हैं कि छोटे किसान और समुदाय भी सफलतापूर्वक कार्बन मार्केट में भाग ले सकते हैं — बशर्ते उनके पास मजबूत साझेदारी, तकनीकी सहायता, और स्थानीय सहयोग हो। भारतीय किसान इन अंतरराष्ट्रीय मॉडल से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

क्या कार्बन फ़ार्मिंग भारतीय छोटे किसानों के लिए काम कर सकती है? (Can Carbon Farming Work for Small Indian Farmers?)

भारतीय छोटे किसानों के लिए कार्बन मार्केट की यात्रा में टीमवर्क, ट्रेनिंग, और समर्थन की ज़रूरत है।

कार्बन फ़ार्मिंग से लंबी अवधि में मौका मिलता है:

• जलवायु परिवर्तन से लड़ने का

• खेत और मिट्टी की सेहत सुधारने का

• अतिरिक्त कमाई का स्रोत खोलने का

सही तरीकों और साझेदारियों के साथ, भारतीय किसान न सिर्फ जलवायु की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अपने परिवारों के लिए नई आमदनी भी बना सकते हैं।

अगर सही किया जाए, तो भारत के 10 करोड़ छोटे और सीमांत किसान क्लाइमेट हीरो बन सकते हैं — ग्रह को बचाते हुए अपनी आजीविका मजबूत करते हुए। 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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