सबई घास और खजूर के पत्ते से इको फ्रेंडली उत्पाद बना ओडिशा की पारंपरिक कला को बढ़ावा दे रहे पंकज कुमार
सबई घास से ओडिशा के कलाकार बना रहे अनोखे हस्तशिल्प, जो राज्य की संस्कृति और विरासत को दुनिया भर में पहचान दिला रहे हैं।
सबई घास से ओडिशा के कलाकार बना रहे अनोखे हस्तशिल्प, जो राज्य की संस्कृति और विरासत को दुनिया भर में पहचान दिला रहे हैं।
आजकल टेक्नोलॉजी की मदद से खेती को स्मार्ट और प्रॉफिटेबल बनाया जा सकता है। खेती को आधुनिक तरीके से मैनेज (Top Farm Management Software in India) करना चाहते हैं? तो ये आर्टिकल आपके बहुत काम आएगा।
AgriSURE Fund के ज़रिए सरकार कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले स्टार्टअप्स (Startups) को वित्तीय सहायता दे रही है। चाहे आप ड्रोन टेक्नोलॉजी, सोलर एनर्जी, वेस्ट मैनेजमेंट, फूड प्रोसेसिंग या फार्म मशीनीकरण (Drone technology, solar energy, waste management, food processing or farm mechanization) से जुड़े हों, AgriSURE Fund आपको आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि में नई प्रौद्योगिकियों का बढ़ता प्रभाव (Promotion of New Technologies in Agriculture)एक अहम इशारा है। जो बताता है कि कृषि बदलते समय के साथ बदल रही है। पारंपरिक कृषि पद्धतियों (Traditional Agricultural Practices)में आधुनिक तकनीकों का समावेश हो रहा है। जिससे उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हो रही है और किसान सशक्त बनने की राह पर है।
ई-ट्रैक्टर (E-tractor) एक हाईटेक इनोवेशन है जो पारंपरिक डीजल और पेट्रोल-आधारित ट्रैक्टरों का एक पर्यावरण के अनुकूल ऑप्शन पेश करता है। इसे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) Council of Industrial Research (CSIR) के एक भाग लेबोरेटरी, केंद्रीय यांत्रिक इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान यानी central mechanical engineering research institute (CMERI), दुर्गापुर द्वारा विकसित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को कम लागत, ज़्यादा काम करने का ताकत और पर्यावरण के अनुकूल ट्रैक्टर (E-tractor) देना है।
BCS इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कई कृषि उपकरण बनाती है। जिसमें एक प्रमुख उत्पाद है रीपर बाइंडर (Reaper Binder Machine)। कंपनी से जुड़े एक प्रतिनिधि ने मशीन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रीपर बाइंडर गेहूं, जौं, धान जैसी फसलों को काटकर इसके बंडल बनाती है।
रानी दुर्गावती FPO अब एक सशक्त मिशन में बदल चुका है, जो गांवों को बदलाव ला रहा है किसानों को आत्मनिर्भर बना रही है। सरकार उनको पूरा समर्थन दे रही है। इसकी मदद से छोटे पैमाने के उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है साथ ही आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर प्रदान करता है।
कृषि स्टार्टअप के तहत गुडलाइफ कंपनी बेकरी व्यवसाय के लिए विशेष मशीनें बना रही है, जो कम लागत में तेजी से उत्पादन और स्वरोजगार के अवसर प्रदान करती हैं।
अगर आप मशरूम की खेती के लिए एक बिज़नेस प्लान के साथ काम करें तो आप इस मार्केट में अपनी पकड़ रख सकते हैं। इस लेख में हम मशरूम उगाने के बिजनेस प्लान मॉडल (Mushroom Farming Business Plan) की ज़रूरी डीटेल्स शेयर कर रहे हैं।
करन सिंह बतातें हैं कि कोई भी व्यक्ति गाय के गोबर से सजावटी सामान बनाने का बिज़नेस दो हज़ार से तीन हज़ार रुपए से शुरू कर सकता हैं। इसमें लागत इसलिए कम आती है कि किसान गांव में रहता है और गाय का गोबर भी आसानी से मिल जाता है।
कम लागत और समय में मुनाफ़ा कमाने का एक अच्छा विकल्प है मधुमक्खी पालन जिसे मौन पालन भी कहा जाता है। ख़ासतौर पर पहाड़ी इलाकों में, उत्तराखंड के किसानों और युवाओं को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित करने में सरकारी संस्थाएं मदद कर रही हैं।
तेंदूपत्ता की खेती में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का नाम सबसे आगे आता है। इन दोनों राज्य में इसे हरा सोना भी कहते हैं। इस पत्ते का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल बीड़ी बनाने में किया जाता है। तेंदूपत्ता बेचने के बिज़नेस को शुरू करने के लिए लाइसेंस अनिवार्य है। जिसके लिए नगर निगम में जाकर अप्लाई किया जाता है।
रमेश गेरा ने अपनी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई 1980 में NIT कुरुक्षेत्र से की। इसके साथ ही रमेश ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब भी की। नौकरी के दौरान बाहर के देशों में उन्हें कृषि के नए-नए तरीके देखने को मिले। वहां से तकनीक देखकर भारत में केसर की खेती चालू की।
वर्मीकम्पोस्ट जिसे केंचुआ खाद भी कहा जाता है, पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद होती है। जिसे गोबर और केंचुए की मदद से तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में केंचुए बहुत अहम होते हैं। इसलिए केंचुए की सही देखभाल करके बिज़नेस से अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
पेड़-पौधे न सिर्फ़ आंखों को सुकून देते हैं, बल्कि हमें ऑक्सीजन की सप्लाई करने के साथ ही पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाते हैं। ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के मकसद से ही नागुपर की अलका साहनी ने शुरू किया नर्सरी बिज़नेस।
पर्यावरण और प्रकृति के प्रति बढ़ती जागरुकता का ही नतीजा है कि लोग अब जैविक उत्पादों का ज़्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। गोबर से बने उत्पादों में भी लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। छत्तीसगढ़ में तो गोबर से बने उत्पाद ख़ास शोरूम गोधन एम्पोरियम में बिक रहे हैं।
वाराश्री फ़ार्म एंड नर्सरी में करीबन 50 लोग काम करते हैं। नर्सरी बिज़नेस में श्रुति की सफलता के लिए उन्हें महिंद्रा एग्रीकल्चर अवॉर्ड 2016’, ‘उद्यान रत्न अवार्ड 2015’ जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
गायें सिर्फ़ दूध उत्पादन तक ही सीमित नहीं हैं। देसी गाय के पशुधन से कई चीज़ें बनाई जा सकती हैं। स्वप्निल कुंभार गाय की इसी इकोनॉमिक्स को किसानों तक पहुंचा रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने उनके इस मिशन और कॉन्सेप्ट पर उनसे ख़ास बातचीत की।
ओडिशा के भुवनेश्वर की रहने वालीं इन महिलाओं ने साथ मिलकर स्वयं सहायता समूह बनाया। फिर एक के बाद एक कृषि से जुड़े कई एग्री-बिज़नेस शुरू किए। आइए आपको बताते हैं कि कैसे ये महिलाएं काम करती हैं।
केले के पौधे से बड़ी मात्रा में रेशा निकलता है, जिसका इस्तेमाल कागज़ और कपड़ा उद्योग में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। केले के रेशे से कई उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। ऐसा ही कर रही हैं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की ये महिलाएं।