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तेंदू पत्ता: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) वनोच्छादित राज्य है। वन सम्पदा से समृद्ध होना, राज्य के लिए किसी वरदान से कम नहीं। ये वन जीव-जंतुओं और आदिकाल से प्रकृति के साथ सामंजस्य बना के रखने वाले आदिवासियों को आश्रय देते हैं। जल, जंगल और ज़मीन से जुड़े ये आदिवासी अपने भरण-पोषण के लिए खेती के साथ-साथ इन वनों पर आश्रित हैं।
तेंदू पत्ता आदिवासियों के लिए हरे सोने के समान है, जिससे इनकी आजीविका जुड़ी हुई है। ये बांस और साल बीज की तरह एक राष्ट्रीयकृत उत्पाद है। ये राज्य में सबसे महत्त्वपूर्ण गैर-लकड़ी वनोपज में से एक है। तेंदू पत्ता का वानस्पतिक नाम डाइऑस्पिरॉस मेलानॉक्सिलॉन (Diospyros Melanoxylon) है। स्थानीय लोगों के बीच इसकी पत्तियों का उपयोग बीड़ी निर्माण उद्योग के लिये प्रचलित है।

तेंदू पत्ते का उत्पादन करने वाले राज्य
भारत में तेंदू पत्तियों से बीड़ी का उत्पादन करने वाले राज्यों में मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, गुजरात और महाराष्ट्र हैं।
तेंदू पत्ता उत्पादन में छत्तीसगढ़ की भागीदारी
छत्तीसगढ़ में तेंदू पत्ता का उत्पादन लगभग 16.7 लाख मानक बोरा प्रति वर्ष है जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत है।

तेंदू पत्ता व्यवसाय- आजीविका का प्रमुख स्रोत
आदिवासी गांवों के लिए तेंदू के पत्ते आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं, क्योंकि ये राज्य की सबसे प्रमुख लघु वन उपज है। लघु वन उत्पादों में पौधे के सभी गैर-लकड़ी वन उत्पाद और बांस, बेंत, चारा, पत्ते, गोंद, मोम, डाई, रेजिन और कई प्रकार के भोजन व नट, जंगली फल, शहद, लाख, टसर आदि शामिल हैं।

तेंदू पत्ता की तुड़ाई और संग्रहण का काम
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को तेंदू पत्ता संग्रहण के माध्यम से रोज़गार उपलब्ध होता है। तेंदूपत्ता संग्रहण लोगों के जीवनयापन का अच्छा साधन बनता जा रहा है। यही कारण है इन पत्तों की कीमत लगभग 400 रुपये प्रति सैकड़ा होती है।

तेंदू पत्ता की तुड़ाई
ये काम हर साल अप्रैल-मई महीने शुरू किया जाता है। तेंदू पत्ता तुड़ाई करने के पहले तेंदू पेड़ की छटनी की जाती है। तेंदू पेड़ में जो पुराने पत्ते होते हैं उसको काट दिया जाता है, जिससे पेड़ पर नई पत्तियां निकल जाये और उसमें किसी तरह की खराबी ना हो। इस छटनी के कार्य के लिए कुछ पैसा भी दिया जाता है। काम 3 से 4 दिन में पूरा हो जाता है। ये काम जनवरी फरवरी महीने में कर लिया जाता है क्योंकि मई महीने के आने तक उसमे नई पत्तियां आ चुकी होती है।
इसके बाद सरकार द्वारा दी गई राशि को छटनी करने वाले लोगो में बांट दिया जाता है। इसकी पारिश्रमिक राशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा होती है।
आदिवासी तेंदू पत्ता का संग्रहण करने के लिए सुबह-सुबह ही निकल जाते हैं। संग्रहण कर लेने के बाद उन पत्तों को इकठ्ठा बांधा जाता है। इसे पुडा कहते हैं, एक पुडा में 50 पत्ते होते हैं। पुडा बांधने के लिए भी जंगल की रस्सियों का इस्तेमाल किया जाता है। जंगल में पाए जाने वाले मोहलाइन, डिंडोल, और गोंजा जैसे पेड़ों के छाल को काटकर पतली-पतली रस्सी बनाई जाती है।
जब सारे तेंदू पत्तों को पुडा में बांध लिया जाता है, उसे फड़ में बेचा जाता है। फड़ एक तरह का बाज़ार होता है, जहां पंक्तियों में तेन्दु पत्ते के बंडल्स रखे जाते हैं वहीं रखकर सुखाया जाता है, इसे चट्टा कहा कहते हैं। एक चट्टा में 100 पुडा को सुखाया जाता है और फड़ मुंशी द्वारा इनका निरीक्षण किया जाता है।
पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ही इस कार्य में ज़्यादा दिलचस्पी रखती हैं। महिलाएं तेंदू पत्ता तुड़ाई में समय भी कम लेती हैं और पत्ते भी ज़्यादा तोड़ती हैं। जिन घरों में ज़्यादा महिलाएं होती है वो और भी ज़्यादा पत्ते तोड़ लेती हैं।
तेंदू पत्ता का कार्ड
फड़ मुंशी पत्तों को चेक कर हितग्राहियों के पास बुक में एंट्री करता है। सभी तेंदू पत्ता संग्राहकों के पास तेंदू पत्ता का कार्ड बना होता है। जब भी संग्राहक अपनी-अपनी तेंदू पत्ता को बेचने जाते हैं तो कितने पत्ते तोड़े हैं, उसको उनके कार्ड में मुंशी डाल देते हैं। मुंशी अपने रजिस्टर में भी उसको लिखता है, जिससे किसी तरह की गलती न हो। संग्राहकों के तेंदू पत्ता की गुणवत्ता को देखने के लिए एक चेकर नियुक्त किया जाता है, जो संग्राहकों के तेंदू पत्ता को चेक करते हैं कि कहीं उनके पत्ते में कोई खराबी तो नहीं है।
तेंदू पत्ता संग्राहकों को लाभ
कोरबा के जंगलों में बसा गांव है ठाकुरखेता, जहां घर के सभी सदस्य तेंदू पत्ता तोड़ कर परिवार का खर्च तो चला ही रहे हैं, बल्कि बच्चों की पढ़ाई, सुख-सुविधा के संसाधन और खेती के लिए भी तेंदू पत्ता से और उसके बोनस से मिले पैसों से अपने जीवन स्तर में सुधार कर रहे हैं।
ठाकुरखेता की रहने वाली 65 साल की रामशिला बाई बताती हैं कि वो बचपन से ही तेंदू पत्ता तोड़ने का काम करती हैं। पति की मृत्यु के बाद घर भी संभालना था। बच्चों की पढ़ाई और शादी के खर्च की ज़िम्मेदारी उठाना आसान नहीं था लेकिन तेंदू पत्ता बेच कर इतने पैसे मिलते है कि घर के साथ-साथ खेती भी करना संभव हो जाता है।

प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति ठाकुरखेता के उपप्रबंधक गोविन्द राम यादव बताते हैं कि ठाकुरखेता के अंतर्गत 7 फड़ आते हैं। इन फड़ों के हिसाब रखने के साथ-साथ हितग्राहियों को पैसा देने की प्रक्रिया भी अब ऑनलाइन हो गई है। अब हितग्राहियों के खाते में ही पैसे आ जाते हैं। लाइन में खड़े होने की जद्दोजहद ख़त्म हो गई है।

तेंदूपत्ता का रेट क्या चल रहा है?
62 साल के कुवित राम यादव संयुक्त परिवार के मुखिया हैं। नाती पोतों से भरा पूरा परिवार खुशहाल है क्योंकि सास-ससुर, बेटे-बहू सब मिलकर तेंदू पत्ता तोड़ते हैं। दिन की 1600 रुपये से ज़्यादा की आमदनी हो जाती है। तेंदू पत्ता के पैसे से ही कुवित राम ने मोटर साइकिल खरीदी है और अपने बच्चों की धूम धाम से शादी कराई है।

36 साल के अमर सिंह राठिया और उनकी पत्नी दोनों ही तेंदू पत्ता के काम में सुबह उठते ही लग जाते हैं। तेंदू पत्ता बेचकर इन्होने एक छोटी किराना की दुकान खोली है। घर के लिए टीवी सेट ख़रीदा है। बच्चों के स्कूल की फ़ीस भर रहे हैं। तेंदू पत्ता के बोनस के पैसों से एक बाइक भी खरीदी है। ये दम्पति दिन के 1600 रुपये तेन्दु पत्ता बेचकर कमा रहे हैं।

हालांकि, तेंदू पत्ता खरीदी को लेकर राज्य में अलग-अलग सरकारों ने अलग अलग योजनाओं से हितग्राहियों को लाभान्वित करने का प्रयास भी किया है चरण पादुका वितरण हो या शहीद महेंद्र कर्मा योजना हितग्राहियों को तेन्दु पत्ते से लाभ ही हुआ है।
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