पारंपरिक खेती छोड़ आम की बागवानी ने बदली सांचौर की तस्वीर, किसानों की आर्थिक स्थिति हुई मज़बूत
राजस्थान का सांचौर क्षेत्र (Sanchore Area Of Rajasthan ) के किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर आम की बागवानी (Mango Horticulture) को अपनाया है
राजस्थान का सांचौर क्षेत्र (Sanchore Area Of Rajasthan ) के किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर आम की बागवानी (Mango Horticulture) को अपनाया है
क्या आप जानते हैं कि आम की फ़सल (Mango Cultivation) भारत में 5,000 साल पहले शुरू हुई थी? और आज भी दुनिया के लगभग 50 फीसदी आम भारत में ही उगाए जाते हैं। हर साल 22 जुलाई को राष्ट्रीय आम दिवस (National Mango Day 2025) मनाया जाता है।
सूरज तिवारी एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने के बावजूद (The mechanical engineer who became Lucknow’s ‘Mango King’) ने खेती और फ़लों के व्यवसाय को चुना और आज वे आम, अमरूद, लीची और आंवले की खेती से लाखों का टर्न ओवर कमा रहे हैं।
सबसे पहले आम के फूलों और डंठलों पर छोटे भूरे या काले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। अगर सही समय पर किसान इस रोग का उपचार नहीं करते हैं तो ये फूल धीरे-धीरे मुरझानें लगते हैं और सूख कर गिर जाते हैं। इस कारण फसल का उत्पादन कम हो जाता है। ये रोग ज्यादा पानी भरने, नमी और आद्र मौसम में सबसे तेजी से फैलता है, खासकर जब तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच हो।
आम की खेती में अधिक समय, कीटों के प्रकोप और मौसम की मार के कारण होने वाली फसल हानि के चलते कर्नाटक में बहुत कम किसान ही आम की खेती कर रहे हैं। हालांकि, कुछ किसान ऐसे भी हैं जो वैज्ञानिकों की सलाह पर नई तकनीक और तरीके अपनाकर आम की खेती में अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं। एक ऐसे ही किसान हैं सत्यनारायण रेड्डी।
फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना के अंतर्गत आम आधारित मुर्गीपालन तकनीक की शुरुआत की गई। आज आम की खेती के साथ मुर्गीपालन करने की इस तकनीक को अपनाकर मलिहाबाद के कई किसान साल के 12 महीने अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं।
महिला किसान तारावती जिस क्षेत्र से आती हैं, वहां अक्सर आंधी तूफ़ान के कारण 20 से 25 फ़ीसदी आम की फसल को नुकसान पहुंच जाता है। इससे आम की खेती कर रहे इलाके के किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
आम का स्वाद तो हर किसी को भाता है, लेकिन कार्बाइड से पके आम सेहत के लिए अच्छे नहीं होते। ऐसे में आम की खेती कर रहे कर्नाटक के किसान रेवन्नासिद्दैया आम को कुदरती तरीके से पकाकर बेच रहे हैं। इससे उनके आम न सिर्फ़ हाथों हाथ बिक जाते हैं, बल्कि ग्राहक हर साल उनसे आम की डिमांड करते हैं।
ICAR-Central Institute for Subtropical Horticulture के रिसर्च एसोसिएट डॉ. मनोज कुमार सोनी से आम के बागों के प्रबंधन पर किसान ऑफ़ इंडिया से विशेष बातचीत की।