जी हां, आम के आम साथ में मुर्गियों के भी दाम! उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद क्षेत्र के किसान आम की खेती और मुर्गीपालन एक साथ कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश का मलिहाबाद क्षेत्र अपने दशहरी आमों के लिए मशहूर है, लेकिन 28 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र में आम की खेती वाले मलिहाबाद में पिछले कुछ समय से जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को ज़्यादा फ़ायदा नहीं मिल पाता। साथ ही बदलते वक़्त के साथ आम के उत्पादन की लागत में इज़ाफ़ा और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने छोटे और सीमांत किसानों की आय को सीमित कर दिया है।
आम का कारोबार साल में तीन से चार महीने का होता है, बाकी के महीनों में किसानों के पास कोई काम नहीं रहता। जानकारी के अभाव में किसान आय के अन्य स्रोतों को अपना नहीं पाते। इसी को देखते हुए केन्द्र सरकार की फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना के तहत केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने किसानों की आमदनी में इज़ाफ़ा करने के उद्देश्य से इस दिशा में कदम उठाया।
आम आधारित मुर्गीपालन के प्रशिक्षण ने रखी बुनियाद
किसानों को अपनी उपज से अधिक आमदनी हासिल हो, इस उद्देश्य से किसानों को आम आधारित मुर्गीपालन यानी आम की खेती के साथ मुर्गीपालन अपनाने को लेकर प्रशिक्षण दिया गया। यही वो बुनियाद है, जिसका नतीजा ये है कि मलिहाबाद क्षेत्र के कई किसान मुर्गीपालन कर साल के 12 महीने आय अर्जित कर रहे हैं। इस लेख में आगे आप जानेंगे कि कैसे आम की खेती के साथ मुर्गीपालन करके किसान अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं।
फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना के तहत हुई शुरुआत
लखनऊ स्थित केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मनीष मिश्रा ने किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में बताया कि 2017 में किसानों की आय दोगुना करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना चलाई गई। फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना पूरे देश में लगभग 52 जगहों में चल रही है। इसमें से एक क्षेत्र मलिहाबाद भी है। मलिहाबाद में इस परियोजना को इसलिए लाया गया क्योंकि ये एक फल उत्पादक क्षेत्र है। यहां का दशहरी आम पूरी दुनिया में मशहूर है। 2017 में फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना को मलिहाबाद के तीन गांवों में एक प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया।
डॉ. मनीष मिश्रा ने आगे बताया कि बरेली स्थित केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (CARI) की सहभागिता के साथ मलिहाबाद के गांवों में आम की खेती के अनुकूल मुर्गियों की जो उपयुक्त नस्ल होती हैं, वो CARI से लाई गईं। कड़कनाथ, कैरी निर्भीक, कैरी देबेंद्र जैसी कई देसी नस्ल की मुर्गियों को आम की बागवानी करने वाले किसानों को दिया गया और इनके रखरखाव को लेकर पूरी ट्रेनिंग दी गई।
फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना में छोटे किसानों को दिया गया प्रशिक्षण
इन तीन गांवों के लगभग 2 हज़ार किसानों को बागवानी की उन्नत तकनीकों के बारे में जानकारी दी गई। इन्हीं तकनीकों में से एक है आम आधारित मुर्गीपालन। इसकी हर बारीकी किसानों को बताई गई। शुरुआत में आम आधारित मुर्गीपालन को 10 किसानों ने अपनाया। कई किसानों में इस तकनीक को लेकर शंका थी क्योंकि ये उनके लिए नया था।
किसानों के बीच मुर्गी की देसी किस्मों जैसे निरभिक, कड़कनाथ, श्यामा और देवेन्द्र को पालने को लेकर जानकारी दी गई। इनके पोषक तत्वों की मांग को बेहद सस्ते उपलब्ध साधनों से पूरा किया गया। मुर्गियों को आम के कीट और कम मात्रा में दाने दिए गए।
मुर्गियां खा जाती हैं कीट, फसल को होता नहीं नुकसान
आम आधारित मुर्गीपालन में मुर्गियों को बतौर कीट नियंत्रक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। ये मुर्गियां आम के पेड़ के नीचे की मिट्टी में छिपे कीटों के अंडे, मैगट, प्यूपा को खा जाती हैं। इस तरह से इन मुर्गियों के पोषण का खर्च 70 से 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है। आम आधारित मुर्गीपालन में गुजिया, तना भेदक और जाला कीट की संख्या में भी कमी आती है। ये मुर्गियां इन कीटों को खाकर अपना पोषण ले लेती हैं, साथ ही आम के पेड़ों को नुकसान होने से बचाती हैं।
लागत कम, मुनाफ़ा ज़्यादा
क्षेत्र के किसानों का कहना है कि पहले जहां उपज के रखरखाव के लिए बाग में स्प्रे के छिड़काव पर प्रति एकड़ 15 से 16 हज़ार रुपये का खर्च आता था, वो अब तीन से चार हज़ार रुपये हो गया है। कुल मिलाकर मुर्गियां आम के बाग को एक अच्छा वातावरण देती है। दिन के वक़्त इन मुर्गियों को बागों में चरने के लिए छोड़ दिया जाता है और रात में फिर से दड़बों में बंद कर दिया जाता है। लगभग 300 मुर्गियों के लिए 8 फुट ऊंचे, 15 फ़ीट चौड़े और 20 फ़ीट लंबे दड़बे की ज़रूरत होती है। इस दड़बे को तैयार करने में 8 से 10 हज़ार का खर्चा आता है।
सालभर होती रहती है आय
एक बार में एक एकड़ में 250 मुर्गी के चूजे पाले जा सकते हैं। ये चूजे तीन से चार महीनों में डेढ़ किलो तक वजनी हो जाते हैं, जिन्हें फिर किसान बेच देते हैं। मुर्गा तैयार होने के बाद 1000 से 1200 रुपये में बिक जाता है। किसान कहते हैं कि आम के साथ मुर्गीपालन उनके लिए एटीएम की तरह है। आम आधारित मुर्गीपालन तकनीक द्वारा किसानों को सालभर अंडों, मुर्गों और आम के फलों से आय प्राप्त होती है।
15 हज़ार से डेढ़ लाख पहुंची आमदनी
आम आधारित मुर्गीपालन से हो रहे लाभ को देखते हुए अब कई किसान इससे जुड़ गए हैं। पहले बाग से आमदनी 15 से 20 हज़ार रुपये प्रति एकड़ हुआ करती थी, लेकिन जब से किसानों ने मुर्गीपालन की भी शुरुआत की है तब से लगभग आमों के उत्पादन, अंडों और मुर्गियों से कुल मिलाकर लगभग डेढ़ लाख तक आमदनी हो जाती है।
वहीं इन प्रयासों से उत्साहित होकर कुछ किसान मुर्गी की देसी नस्लों का प्रजनन भी कर रहे हैं। डॉ. मनीष मिश्रा ने बताया कि वहां के किसानों ने स्वंय सहायता समूह बनाया हुआ है, जिसका नाम सहभागिता है। किसान बार-बार बरेली से मुर्गी नहीं ला सकते, इसलिए किसानों ने खुद अपने पैसों से क्षेत्र में 3-3 हज़ार अंडों की दो हैचरी लगाई हैं। CARI द्वारा दी गई देसी नस्लों की मुर्गियों के बच्चों का उत्पादन इन हैचरी में किया जाता है। अब ये किसान मास्टर ट्रेनर हो गए हैं और अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं।
संस्थान के वैज्ञानिक करते हैं किसानों की समस्या का हल
डॉ. मनीष मिश्रा ने आगे बताया कि समाज का किन्नर वर्ग भी मुर्गीपालन से जुड़ा है। वो भी अपना पेशा छोड़ मुर्गीपालन कर अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। वहीं आम आधारित मुर्गीपालन में मुर्गियों को कोई बड़ी बीमारी का खतरा नहीं रहता। मुर्गी पालन में अगर कोई समस्या आती है तो क्षेत्र के किसानों को व्हाट्सऐप ग्रुप ‘फ़ार्मर फ़र्स्ट लखनऊ’ ग्रुप से जोड़ा गया है। इस ग्रुप में संस्थान के कई वैज्ञानिक और खुद निदेशक जुड़े हुए हैं जो किसानों की समस्याओं को जानकर उन्हें हल करते हैं।
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