नागालैंड में Rani Pig के साथ सुअर पालन बना ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मज़बूत आधार

Rani Pig और वैज्ञानिक तकनीक से नागालैंड के सुअर पालन को मिल रही है नई दिशा, जानिए कैसे किसानों की आय में हो रही है वृद्धि।

नागालैंड में रानी सुअर Rani Pig in Nagaland

नागालैंड भारत का वह राज्य है जहां प्रति व्यक्ति पोर्क (सूअर का मांस) की खपत सबसे ज़्यादा होती है। यहां की जनजातियां ताजा और घर में पाले गए सुअर के मांस को ही प्राथमिकता देती हैं। उनका मानना है कि घर में पाले गए सुअर का मांस न सिर्फ़ स्वाद में बेहतर होता है, बल्कि वह स्वास्थ्य के लिए भी ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है।

यहां ख़ासकर काले रंग के सुअरों की मांग बहुत अधिक होती है। इसके पीछे सामाजिक और सांस्कृतिक कारण जुड़े हैं। कई पारंपरिक रीति-रिवाजों, त्योहारों और ख़ास मौकों पर काले सुअर का मांस ज़रूरी माना जाता है। इसी वजह से सुअर पालन यहां सिर्फ़ व्यवसाय नहीं, बल्कि परंपरा और संस्कृति का एक अहम हिस्सा बन चुका है।

राज्य में हर साल लगभग 60,000 मीट्रिक टन पोर्क की मांग होती है। लेकिन इसका उत्पादन केवल 30,000 मीट्रिक टन के आसपास ही हो पाता है। इसका मतलब है कि नागालैंड में करीब 50% पोर्क की कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य को पंजाब, हरियाणा और दक्षिण भारत जैसे दूर-दराज के राज्यों से जीवित सुअर मंगवाने पड़ते हैं।

समाधान बना Rani Pig – वैज्ञानिक तकनीक की नई दिशा (Rani Pig became the solution – a new direction of scientific technology)

नागालैंड में पोर्क की भारी मांग और उत्पादन में कमी की समस्या को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने इस दिशा में कदम उठाया। साल 2009 में ‘ICAR-मेगा सीड प्रोजेक्ट ऑन पिग’ की शुरुआत की गई। यह प्रोजेक्ट नागालैंड के मेदज़ीफेमा (Medziphema) में स्थित ICAR-Research Complex for NEH Region सेंटर के ज़रिए चलाया गया।

इस परियोजना के तहत वैज्ञानिकों ने एक ख़ास नस्ल का विकास किया, जिसे Rani Pig नाम दिया गया। यह नस्ल दो अलग-अलग प्रजातियों – Hampshire और Ghungroo – को मिलाकर तैयार की गई है। Rani Pig की ख़ासियत यह है कि यह तेजी से बढ़ती है, इसकी प्रजनन क्षमता अच्छी होती है और यह नागालैंड की जलवायु के लिए उपयुक्त भी है।

Rani Pig की ख़ास विशेषताएं (Special features of Rani Pig)

Rani Pig नस्ल को वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया है, और इसकी कई खूबियां इसे बाकी नस्लों से अलग बनाती हैं। यह नस्ल ख़ासकर उन किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है जो कम समय में ज़्यादा मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं।

  • दैनिक वजन बढ़ने की दर: ये नस्ल हर दिन लगभग 280 से 350 ग्राम तक वजन बढ़ा सकती है। इसका मतलब है कि सुअर जल्दी बड़ा होता है और जल्दी बाज़ार में बेचा जा सकता है।
  • यौन परिपक्वता (Sexual Maturity): ये सुअर लगभग 7 से 10 महीने की उम्र में प्रजनन के लिए तैयार हो जाता है, जिससे जल्दी-जल्दी नई पीढ़ी तैयार की जा सकती है।
  • बच्चों की संख्या: एक बार में ये मादा सुअर 8 से 12 पिगलेट्स (सुअर के बच्चे) को जन्म देती है, जो उत्पादकता को काफी बढ़ाता है।
  • प्रजनन चक्र: ये नस्ल साल में दो बार बच्चों को जन्म दे सकती है, जिससे लगातार उत्पादन बना रहता है।
  • 5 वर्षों में कुल उत्पादन: एक Rani Pig से 5 साल में लगभग 80 से 120 पिगलेट्स तक मिल सकते हैं, जो किसी भी किसान के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

इन सभी खूबियों की वजह से Rani Pig सुअर पालन को ज़्यादा लाभदायक बनाती है। इससे किसान को साल भर एक स्थिर और अच्छी आय मिल सकती है, जो उसकी आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने में मदद करती है।

सुअर पालन में प्रशिक्षण और सहायता (Training and assistance in pig farming)

ICAR नागालैंड केंद्र ने अब तक करीब 6,500 Rani Pig के बीज सुअर (गर्मप्लाज्म) वितरित किए हैं और 1,000 से ज़्यादा लोगों को आधुनिक सुअर पालन में प्रशिक्षण दिया है। इससे राज्य में Pig Breeder Farms की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है।

सेवे वाडेओ किसान को सूअर पालन से मिली सफलता (Seve Vadeo farmer gets success from pig farming)

सेवे वाडेओ, नागालैंड के डिमापुर जिले के सेइथेकेमा गांव के एक युवा उद्यमी हैं। उन्होंने 2017 में ICAR नागालैंड के संपर्क में आकर वैज्ञानिक पद्धति से सुअर पालन सीखने का फैसला किया। उन्हें Rani Pig के पिगलेट्स दिए गए और Artificial Insemination (AI) तकनीक में भी प्रशिक्षण मिला।

उन्होंने अपने फार्म में पिग ब्रिडिंग यूनिट तैयार की और सभी सुअरों को कृत्रिम गर्भाधान (AI) से प्रजनन कराना शुरू किया। इससे उन्हें अलग-अलग उम्र के नर सुअरों को पालने की आवश्यकता नहीं पड़ी, जिससे खर्च भी कम हुआ और सुविधा भी बढ़ी।

सुअर पालन से कैसे बढ़ा मुनाफ़ा (How to increase profit from pig farming)

आज सेवे वाडेओ सालाना लगभग 250 से 300 पिगलेट्स बेचते हैं। हर पिगलेट ₹7,000 से ₹8,000 की क़ीमत पर बिकता है, जिससे वे सालाना ₹3.5 से ₹4 लाख तक की कमाई कर रहे हैं। अब तक वह करीब 1,000 पिगलेट्स बेच चुके हैं और 250 को अपने फार्म में ही आगे पालन के लिए रखा है।

उनकी ये सफलता दिखाती है कि अगर Rani Pig जैसी वैज्ञानिक नस्ल और आधुनिक तकनीक का सही इस्तेमाल किया जाए तो सुअर पालन से आत्मनिर्भरता और अच्छी आय पाना बिल्कुल संभव है।

नागालैंड के लिए क्यों ज़रूरी है वैज्ञानिक सुअर पालन? (Why is scientific pig farming important for Nagaland?)

  • स्थानीय मांग की पूर्ति हो सकेगी
  • बाहरी राज्यों पर निर्भरता घटेगी
  • ग्रामीण युवाओं को स्वरोज़गार मिलेगा
  • पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का समन्वय होगा
  • महिलाएं भी इस व्यवसाय से जुड़ सकती हैं

निष्कर्ष (Conclusion)

सुअर पालन को नागालैंड में नई दिशा मिल रही है – और यह संभव हुआ है Rani Pig जैसी उन्नत नस्ल और ICAR जैसी संस्थाओं के सहयोग से। आज जब पशुपालन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मज़बूत स्तंभ माना जा रहा है, तब ऐसे उदाहरण न केवल आय बढ़ाने के साधन हैं, बल्कि युवाओं के लिए एक प्रेरणा भी हैं।

अगर देशभर के किसान भी इस मॉडल को अपनाएं, तो न केवल उनकी आमदनी बढ़ेगी बल्कि स्थानीय पोषण जरूरतों को भी पूरा किया जा सकेगा।

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