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देसी गाय का दूध, गोबर और गौमूत्र सभी चीज़ें किसी वरदान से कम नहीं है। इनकी बदौलत ही जैविक खेती की जाती है, मगर देसी गायों की संख्या हमारे देश में लगातार कम होती जा रही है। गौपालक देसी की बजाय क्रॉस ब्रीड और जर्सी गायों को ज़्यादा तवज्जो देते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि जर्सी गाय दूध कम देती जिससे इन्हें पालना घाटे का सौदा साबित हो सकता है, मगर इन सब बातों को झुठलाते हुए एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर असीम रावत ने देसी गौपालन से ही करोड़ों का उद्योग स्थापित कर दिया है, जहां आज 1100 से अधिक गाय हैं और 100 से अधिक लोग नौकरी कर रहे हैं।
HETHA Dairy नामक उनकी संस्था शायद देश में देसी गायों की सबसे बड़ी संस्था है, सबसे ख़ास बात ये कि उनकी ये संस्था एथिकल गौपालन करती हैं। तो क्या है एथिकल गौपालन और कैसे एक इंजीनियर 14 साल की नौकरी छोड़ बन गया गौपालक… आइए, जानते हैं।
एक कार्यक्रम ने बदली ज़िंदगी (One program changed life)
HETHA Dairy के संस्थापक असीम रावत उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं, उनके पिता सीविल इंजीनियर थे और दादा। वो कहते हैं कि उस दौर डॉक्टर और इंजीनियर बनना बहुत शान की बात होती थी और खेती-किसानी को अच्छा सौदा नहीं माना जाता था। तो पढ़ाई पूरी करके वो भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गए। असीम बताते हैं कि उन्होंने कोलाकता से नौकरी शुरू की कुछ साल वो बैंग्लोर में भी रहें। इसके अलावा वो विदेशों में भी रहें और कई अच्छी कंपनी व लोगों के साथ काम किया। नौकरी के करीब 14 साल बाद उन्होंने देसी गायों पर एक प्रोग्राम देखा। जिसमें देसी गाय के पक्ष और विपक्ष में तर्क चल रहा था।
विपक्ष में बोलने वाला शख्स कहता है गाय पूजा पाठ तक तो ठीक है, लेकिन डेयरी उद्योग के लिए ठीक नहीं है। फिर वो प्रश्न करता है कि देसी गायों की कोई सफल डेयरी है क्या? उसकी ये बात असीम रावत को गहराई तक छू गई, उन्हें महसूस हुआ कि ये व्यक्ति बोल तो सही रहा है। फिर उनके मन में आया कि क्यों न देसी गायों की एक ऐसी संस्था बनाएं जहां स्वदेशी गायों का एथिकल तरीके से पालन किया जाए और इस तरह से HETHA Dairy जन्म हुआ।
2 से 1100 गौवंश तक का सफ़र (The journey from 2 to 1100 cattle)
असीम रावत बताते हैं कि उन्होंने 2 गायों से इस संस्था की शुरुआत की और ये बढ़ता चला गया। आज उनकी संस्था के पास1100 से ज़्यादा गौवंश हो चुके हैं। उनकी संस्था की पांच यूनिट्स हैं, जिसमें 100 से ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। ख़ास बात ये है कि HETHA Dairy पूरी तरह से एथिकली तरीके से डेयरी उद्योग को चला रही है।
वो बताते हैं कि उनका मकसद सिर्फ़ दूध, मिठाई, घी बेचना ही मकसद नहीं है, बल्कि इन सबके पीछे क्या होता है, उसे वो पूरी पारदर्शिता के साथ सामने रखते हैं। उनका कहना है कि उनकी संस्था ने 10 साल काम करके प्रूफ कर दिया है कि देसी गायों की संस्था को एथिकली सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है, जिसमें किसी को मारने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
एथिकल गौपालन क्या है? (What is ethical cow rearing?)
एथिकल गौपालन का मतलब है कि गायों के साथ किसी तरह की क्रूरता नहीं की जाती है। असीम कहते हैं कि आप गाय की सेवा सिर्फ़ तब तक न करें जब तक आप उससे कुछ लेते हैं। जब गाय को कुछ समस्या हो जैसे वो बूढ़ी हो जाए, दूध देना बंद कर दे या कोई और समस्या हो जाए तो आपको लगने लगता है कि ये तो ज़िम्मेदारी बनती जा रही है, तो ऐसे में आप सोचें कि इसे मैं बेच दिया जाए ताकि कुछ पैसे मिले जाए तो ये मानवता नहीं है। HETHA Dairy में गायों का जन्म से लेकर मृत्यु तक ध्यान रखा जाता है और उनके साथ किसी तरह की क्रूरता नहीं होती है।
असीम आगे बताते हैं कि उनके यहां गाय का दूध निकालते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सिर्फ़ दो थन से दूध निकाले और दो थन बच्चे के लिए छोड़ दिया जाए ताकि गाय का बच्चा भी स्वस्थ रहे और उसका अच्छा विकास हो। वो कहते हैं कि गाय हमें बहुत कुछ देती है और हमें भी गाय को कुछ देना चाहिए। असीम का कहना है कि न सिर्फ़ वो बल्कि संस्था से जुड़ा हर व्यक्ति पूरे मन से इस काम को कर रहा है और उन्हें गायों का आशीर्वाद मिला हुआ है तभी वो लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
देसी गायों की किन प्रजातियों का करते हैं पालन (Which species of Desi cows are reared)
असीम रावत बताते हैं कि पहले भारत में गायों की 50 से भी अधिक प्रजातियां हुआ करती थी, मगर अब 20 के आसपास ही रह गई है। उनकी संस्था में गिर, साहीवाल के साथ ही राजस्थान के थार जिले से आने वाली थारपारकर गाय भी हैं। इसके अलावा एक गौवंश है हिमालयन बद्री जो उत्तराखंड की ब्रीड है। ये गाय मात्र 1 लीटर दूध देती है, जो 5000 रुपए लीटर तक बिकता है। यही नहीं इसके घी और गौमूत्र को दवा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। असीम कहते हैं कि उनकी संस्था में दूध बंद होने पर गायों को बेचा नहीं जाता है, बल्कि उन्हें अंतिम समय तक पाला जाता है।
जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तो उसके गौमूत्र, गोबर का इस्तेमाल करके कई उत्पाद बनाए जाते हैं। उनकी संस्था फिलहाल 130 से भी अधिक उत्पाद बना रही है और इस दिशा में अभी और रिसर्च चल रहा है। असीम बताते हैं कि उनके पास संसाधनों की कमी थी, इसलिए गाय के दूध के अलावा गोबर व गौमूत्र से क्या कुछ बनाकर बेचा जा सकता है, इसके लिए उन्होंने बहुत रिसर्च की। आयुर्वेदिक ग्रंथ पढ़ें, लोगों से बातचीत करके जानकारी जुटाई, फिर कुछ लोगों को साथ में जोड़ा जिन्हें गायों से प्यार था। इस तरह उन्होंने एक अच्छी टीम तैयार की।
उत्पादों की कैटेगरी तय करना भी है ज़रूरी (It is also important to decide the category of products)
असीम कहते हैं कि देसी गाय के दूध से बने पनीर को आप पनीर नहीं कह सकते, सुनने में शायद ये अजीब लगे मगर सच है। दरअसल, देसी गाय के दूध में उतना फैट नहीं होता है। इसलिए इससे बना पनीर मीडियम या लो फैट पनीर में की कैटेगरी में आता है, तो इसे पैकेट पर लिखना होता है। इन सब चीज़ों को काम करते उन्होंने सीखा है क्योंकि ये सब सीखाने के लिए कोई इंस्टीट्यूट नहीं था। दूध से घी, पनीर, फ्लेवर मिल्क, मक्खन, चीज़ आदि बनाने के अलावा वो औषधियां भी बनाते हैं।
50 से अधिक औषधि बनाते हैं (Make over 50 potions)
असीम रावत का कहना है कि उनकी संस्था 50 से अधिक पंचगव्य औषधियां बनाती है। पंचगव्य का मतलब है गाय की पांच चीज़ें दूध, घी, दही छाछ और गोबर गौमूत्र एक ख़ास अनुपात में इस्तेमाल किया जाता है, जहां ज़रूरी हो दूसरी दवाएं भी इसमें मिलाकर औषधी बनाई जाती है। वो बताते हैं कि वो लोग क्लासिकल और पेटेंटेड दोनों तरह की औषधियां बनाते हैं। इसमें आंख, त्वचा, पेट, बाल, कैंसर तक की दवाएं शामिल हैं। वो एक ख़ास तरह की क्रीम भी बनाते हैं।
इसकी प्रक्रिया है शत धौत घृत यानी घी को सौ बार धोना… इस तरीके से आयुर्वेदिक क्रीम तैयार होती है जो विश्व की पहली फेस क्रीम या मल्टीपर्पस क्रीम है। जिसे त्वचा पर लगाने के साथ ही यदि स्किन जल गई है तो वहां भी लगाया जा सकता है। आगे वो बताते हैं कि गौमूत्र का इस्तेमाल दवाओं के अलावा और भी कई काम के लिए होता है, लेकिन जब दवा में उसका इस्तेमाल करना होता है तो इसे साफ बर्तन में सीधे इकट्ठा किया जाता है ताकि किसी तरह की मिलावट न हो पाए।
कितना सही है गाय का कृत्रिम गर्भाधान (How accurate is artificial insemination of cow)
असीम कहते हैं कि डेयरी सेक्टर में अगर कोई ये सोचता है कि आज मैंने 10 रुपए लगाए हैं तो तुरत ही मुझे इसके 20 मिल जाएंगे तो इस सोच के साथ इसे नहीं चलाया जा सकता। बहुत से लोग जल्दी फ़ायदे के लिए गायों का कृत्रिम गर्भाधान (AI) कराते हैं, लेकिन इससे कई समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। कुछ लोगों को सिर्फ़ मादा गाय ही चाहिए तो भी वो इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका मानना है कि नेचुरल गर्भाधान का विकल्प चुनना ही बेहतर होता है, हां, कई बार ये तकनीक ज़रूरी हो जाती है, तो बेहद ज़रूरी स्थितियों में ही इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
मैकेनाइजेशन आज के समय की ज़रूरत है? (Is mechanization the need of the hour?)
मशीनीकरण समय की ज़रूरत तो है, मगर ये तब तक ही सही है जब तक इसका आपके शरीर पर बुरा असर नहीं पड़ता। असीम कहते हैं डेयरी सेक्टर में मैकेनाइजेशन का उतना ही इस्तेमाल करना चाहिए जितना की ज़रूरी है और इसका कोई नुकसान न हो। आइडियल कंडिशन क्षेत्र के हिसाब से हो सकती है। जैसे उत्तराखंड के बहुत से गांव है जहां पलायन हो रहा है, तो लोगों की कमी है, ऐसे में मशीनरी का इस्तेमाल ज़रूरी है। इंडस्ट्रिलाइजेशन या मैकेनाइजेशन तब तक अच्छा है जब तक उसका आपके शरीर पर कोई बुरा असर न हो।
किस तरह करें दूध की पहचान? (How to identify milk?)
असीम कहते हैं कि ग्राहक को ये जानने का हक है कि वो कैसा दूध पी रहा है। पहचान के लिए पैकेट या बोतल पर जो जानकारी लिखी होती है उसे पढ़ ले। वैसे तो देसी गाय का दूध ही सर्वोत्तम होता है, लेकिन वो नहीं मिल रहा तो भैंस, बकरी का दूध, फिर जर्सी का ए वन टाइप दूध भी ले सकते हैं। आगे वो बताते हैं कि पैकेट वाले दूध में ये पता नहीं चलता कि किस गाय का दूध है, क्योंकि वो लोग अलग-अलग जगह से दूध एकत्र करके मिक्स कर लेते हैं और आगे उसकी सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए उसे प्रोसेस किया जाता है तो ये दूध अनहाइजिनिक भी हो सकता है।
वो कहते हैं कि हमारे देश में दूध में मिलावट भी की जाती है, इसे प्लांट फैट या एनिमल फैट मिलाया जाता है, जो सेहत के लिए ठीक नहीं है ऐसे में इसके लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए ताकि मिलावट न हो। साथ ही वो लोगों को सलाह देते हैं कि कोशिश करें कि वो देसी गाय का दूध ही इस्तेमाल करें, क्योंकि ये सबसे हेल्दी होता है।
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा (Promoting women empowerment)
HETHA Dairy की एक ख़ासियत यह भी है कि यहां काम करने वाली अधिकांश महिलाए ही हैं। बहुत से पढ़ाई करने वाली लड़कियां भी संस्था के साथ जुड़कर पार्ट टाइम जॉब करती हैं। असीम का कहना है कि किसी भी संस्था की सफलता वहां काम करने वाले लोगों से हैं। आप कैप्टन हो सकते हैं और आपका एक अहम रोल है, मगर आप सबकुछ नहीं है। उनकी संस्था में अलग-अलग राज्यों से आने वाली महिलाएं बहुत लगन से काम करती हैं। उनके यहां महिलाओं की संख्या 90 प्रतिशत है। उनकी 5 यूनिट्स मे से 4 यूनिट्स महिलाएं ही चला रही हैं।
इसमें दो तरह के लोग हैं एक वो लड़कियां है जो पढ़ाई के साथ काम कर रही हैं और दूसरी वो जो पढ़ाई पूरी करने के बाद फुल टाइम काम करती हैं। आगे वो बताते हैं कि उन्हें लोगों को ढूंढ़ने में दिक्कत होती है क्योंकि एग्रीकल्चर कॉलेजों में प्लेसमेंट सेल नहीं है, उनका मानना है कि कृषि से जुड़े क्षेत्रों के लिए भी प्लेसमेंट सेल होना चाहिए। वो खुद दूर-दराज के इलाकों में जाकर लोगों को ढूंढ़ते हैं, इसके अलावा उनकी संस्था में IIM और पतंनगर यूनिवर्सिटी के भी बच्चे काम कर रहे हैं।
देसी गाय की पहचान कैसे करें? (How to identify a Desi cow?)
असीम का कहना है कि देसी गायों के ऊपर हमारे यहां बहुत शोध नहीं हुआ है और न ही इसे ठीक तरह से डॉक्यूमेंट किया गया है, मगर आमतौर पर देसी गायों में कूबड़ होना ज़रूरी है, हालांकि सबमें ये एक जैसा नहीं होता। किसी जगह की गाय में ये अधिक ऊभरा होता है तो कहीं कम होता है। इसके अलावा देसी गाय का बैक कर्व होता है, जर्सी का स्ट्रेट होता है। देसी गाय की ख़ासियत है कि ये 50 डिग्री तापमान में भी रह रह सकती है। इसकी सींग सुंदर होती हैं, मगर बहुत धारदार नहीं होते हैं। देसी गाय देखने में बहुत सुंदर होती हैं।
क्या सिर्फ़ देसी गाय से पर्याप्त दूध उत्पादन हो पाएगा? (Will sufficient milk be produced from only the Indian cow?)
आमतौर पर माना जाता है कि देसी गाय कम दूध देती है, मगर असीम रावत इस धारणा को गलत बताते हैं। उनका कहना है कि देसी गाय जितना खाती है उस हिसाब से दूध देती है। उनका कहना है कि ऐसी भी देसी गाय है जो 18-20 लीटर दूध देती हैं और औसतन एक दिन में 10-11 लीटर दूध देने वाली भी देसी गाय है।
जर्सी गाय ज़्यादा खाती हैं फिर ज़्यादा दूध देती है और उनका दूध A1 टाइप दूध होता है जिससे कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। देसी गाय का दूध A2 टाइप है जो आसानी से पच जाता है। देसी गाय को अगर सही तरीके से हरा चारा और सूखा चारा दिया जाए तो वो अच्छा दूध देती हैं।
गायों को अंकुरित अनाज भी देना चाहिए, क्योंकि जो चीज़ बीज के रूप में सिर्फ़ कुछ तरीके का पोषण देती है उसे अंकुरित करके देने पर उसकी पौष्टिकता कई गुणा बढ़ जाती है। इसे देने से दूध और गाय की सेहत दोनों अच्छी रहती है। आगे वो कहते हैं कि हमारी बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए देसी गाय की ज़्यादा दूध देने वाली नस्लों की ब्रीडिंग अधिक की जानी चाहिए, इसके लिए तकनीक का सहारा लिया जा सकता है।
कितनी होती है कमाई? (How much is the earning?)
असीम रावत बताते हैं कि उनकी संस्था प्रोफेशनल कंपनी की तरह ऑपरेट होती है, सबको सैलरी मिलती है। जहां तक टर्नओवर का सवाल है तो देसी गायों की इस संस्था का एक साल का टर्नओवर 10 करोड़ रुपए है। ये एक प्रॉफिटेबल ऑर्गनाइजेशन हैं, जो जीएसटी, आइटीआर फाइल करती है और अच्छा-ख़ासा टैक्स भी भरती हैं। ये पूरी तरह से एथिकल संस्था है। तो असीम रावत ने इस धारणा को झुठला दिया है कि देसी गायों से सफल बिज़नेस नहीं किया जा सकता।
देसी गायों की देखभाल (Caring for Desi Cows)
असीम बताते हैं कि आमतौर पर गर्मियों में देसी गाय का दूध उत्पादन अधिक होता है और सर्दियों में कम होता है। देसी गायों को स्वस्थ रखने के लिए उन्हें साफ पानी, हरा चारा, 70-30 के अनुपात में यानी 70 प्रतिशत हरा और 30 प्रतिशत सूखा चारा देन चाहिए। इसके अलावा अंकुरित चारा, खली भी दिया जाना चाहिए। सरसों की खली सबसे अच्छी होती है, ग्वार की चूरी भी उनके लिए प्रोटीन रिच फूड का काम करती है।
देसी गाय को सूखा, गर्म मौसम ज़्यादा पसंद है। देसी गायों की डीवॉर्मिंग के लिए नीम और सहजन के पत्ते दिए जा सकते हैं। इसके अलावा उन्हें गाजर भी बहुत पसंद है तो मौसमी चारा और सब्ज़ियों के साथ ही उन्हें गाजर भी दें, इससे दूध भी अच्छा होता है। देसी गाय की एक ख़ासियत ये भी है कि वो ओवर फीडिंग नहीं करती हैं।
गौपालन में बुल का अहम रोल होता है (Bull plays an important role in cattle rearing)
असीम का कहना है कि एक अच्छा नंदी आपके पास है तो आपके पूरे गौवंश का सुधार हो जाएगा। किसानों की आय बढ़ाने में ब्रीडिंग बहुत महत्वूपर्ण भूमिका निभा सकती है। ब्राजील में लोग अच्छी बुल और गाय लेकर गए और बढ़िया नस्ल बनाती चली गई।
गायों को होने वाली बीमारियां (Diseases of cows)
असीम कहते हैं कि गायों में होने वाले ब्रुसेलोसिस रोग से गायों में एबॉर्शन होने लगता है। अगर एबॉर्शन बंद भी हो जाए तो भी इसका संक्रमण गाय के अंदर तक रहता है। अब इसका टीकाकरण होने लगा है। क्योंकि इससे बहुत नुकसान होता है। अगर किसी गाय को ये बीमारी होती है तो उसे बाकियों से दूर रखकर उसकी सेवा करनी होती है। थनैला रोग और माउथ एंड फुट डिसीज भी गायों में आम हैं।
फुट एंड माउथ रोग देसी गायों में नहीं होती है, जर्सी को ज़्यादा होती है, हालांकि इसका टीकाकरण होता है। थनैला रोग थन में दूध रह जाने पर होता है। दूध निकालने के तुरंत बाद गाय नीचे बैठ जाती है तो उनको ये रोग होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि थन के छिद्र खुले होते हैं जिससे संक्रमण हो सकता है। एलोवेरा, हल्दी लगाकर भी इसे कंट्रोल किया जा सकता है। अगर इससे ठीक नहीं होता है तो दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए। असीम रावत भविष्य में देसी गायों को और बेहतर बनाने की दिशा में और काम करना चाहते हैं। देसी गायों के लिए काम करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय गोपाल रत्न अवॉर्ड भी मिल चुका है।
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