Multilayer Farming का कॉन्सेप्ट लाने वाले ये हैं आकाश चौरसिया, जानिए इस स्मार्ट फ़ार्मिंग की हर तकनीक

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) तकनीक से आकाश चौरसिया ने शुरू की क्रांतिकारी खेती, 10 डेसिमल से 28 एकड़ तक का सफर बना मिसाल।

Multilayer Farming मल्टीलेयर फ़ार्मिंग

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मल्टीक्रॉपिंग के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, लेकिन क्या आपने मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) के बारे में सुना है? दरअसल, मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की तर्ज पर ही मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) भी होती है और इस ककनीक की शुरुआत की है आकाश चौरसिया ने। युवा इनोवेटिव किसान आकाश ने सिर्फ़ 10 डेसिमल ज़मीन से खेती की शुरुआत की थी और अब वो 28 एकड़ में खेती कर रहे हैं, यहीं नहीं वो  4700 से ज़्यादा प्रयोग कर चुके हैं, वो पौधों और पशुओं को संगीत सुनाते हैं और अपने खेतों में ही कुदरती तरीके से खाद बनाते हैं।

डॉक्टर बनने की राह पर निकले आकाश ने PMT की परीक्षा भी पास कर ली थी, मगर उसके बावजूद उन्होंने खेती को चुना और आज लाखों किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। आकाश की खेती के दिलचस्प तरीकों से रू-ब-रू हुए किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली।

मेडिकल की पढ़ाई छोड़ क्यों बने किसान? (Why did you leave medical studies and become a farmer?)

आकाश बताते हैं कि वो बचपन से ही लोगों के स्वास्थ्य के लिए काम करना चाहते थे, इसलिए साइंस सब्जेक्ट लिया और PMT का एग्ज़ाम दिया। इस परीक्षा में वो पास भी हो गए और वो भारत के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज एम्स से एमबीबीएस करना चाहते थे। उनका कहना है कि उनके आसापस जब भी कोई व्यक्ति बीमार पड़ता था, तो वो उसके पास जाते और उससे बातें करते थें। इस तरह उनका अस्पताल आना-जाना लगा रहता था। उन्होंने देखा कि अस्पताल में मरीजों की संख्या और बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है।

इन सबको देखकर मन में ख्याल आया कि शायद डॉक्टर बनकर इन चीज़ों को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि पहले से ही इतने डॉक्टर होने के बावजूद बीमारियां बढ़ रही है। तो उन्हें बुंदेलखंड की एक कहावत याद आई कि जैसा खाएंगे अन्न वैसा होगा मन, और जैसा होगा मन वैसा तन। यानी खानपान हमारे शरीर के स्वास्थ्य में बहुत अहम रोल प्ले करता है। जैसे गाड़ी को ठीक रखने के लिए हम इंजन में अच्छा फ्यूल डालते हैं, उसी तरह शरीर को ठीक रखने के लिए अच्छा खानपान होना ज़रूरी है।

उनका कहना है कि उन्हें लगा कि डॉ. बनकर बीमारी को तो ठीक कर सकते हैं, लेकिन बीमारी के कारण को नहीं। बीमार पड़ने का कारण खानपान है तो इसे ठीक करने के लिए फैक्ट्री खोलने की नहीं खेती करने की ज़रूरत है। इसलिए आकाश ने खेती का रुख किया और उनका मकसद लोगों को अच्छा अन्न खिलाकर बीमार होने से रोकना है। 

परिवार नहीं चाहता था कि किसान बने (The family did not want him to become a farmer)

परिवार अपने जिस बेटे के डॉक्टर बनने का ख्वाब बुन रहा हो, वो अचानक से फावरा उठा ले तो इसे स्वीकार करना किसी के लिए आसान नहीं होता। आकाश के माता-पिता को उनका ये निर्णय पसंद नहीं आया। आकाश बताते हैं कि उनका परिवार खेती-किसानी से ही जुड़ा है, तो उन्हें खेती की चुनौतियों के बारे में पता था, क्योंकि उन्होंने सारी ज़िंदगी इसे झेला है, इसलिए वो नहीं चाहते थे कि उनका बेटा खेती करे।

साथ ही समाज में खेती से जुड़े लोगों की जो सामाजिक और आर्थिक स्थिति है उसे देखते हुए भी उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो खेती से जुड़े। लेकिन धीरे-धीरे जब लो अपने काम में सफल होते गए, तो उनके परिवार ने भी उनके मिशन को स्वीकार कर लिया। आकाश कहते हैं कि जब आप लीक से हटकर कुछ करते हैं तो विरोध तो होता ही है। 

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग का कॉन्सेप्ट कैसे आया? (How did the concept of multilayer farming come about?)

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) की शुरुआत के बारे में आकाश का कहना है कि समस्या ही अविष्कार की जननी है और उनके इस अविष्कार के पीछे जो समस्या थी वो सिर्फ़ उनकी ही नहीं, बल्कि ज़्यादातर किसानों की है और ये समस्या है ज़मीन की कमी। वो कहते हैं कि उनके दादाजी के पास एक एकड़ ज़मीन थी जिसके10 हिस्से हुए तो उनके पिता जी के हिस्से में सिर्फ़ 10 डिसमल ज़मीन आई। अब इतनी कम ज़मीन में कैसे खेती की जाए कि कुछ अच्छी आमदनी हो जाए ये बात हमेशा उनके मन में रहती थी।

फिर उनके जीवन की कुछ घटनाओं से उन्हें मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) का आइडिया मिला। जंगल में उन्होंने एक साथ कई तरह के पौधों को उगते देखा था, जैसे नीचे घास उग रही है, उसके ऊपर झाड़ियां, उसके ऊपर पेड़ और उसके ऊपर वट वृक्ष यानी 4 लेयर। उसके बाद उन्होंने शहरों में बहुमंजिली इमारतें देखी, तो उनके मन में आया कि जगह की कमी के कारण जब लोग एक के ऊपर एक घर बना सकते हैं, तो क्यों न इसी तर्ज पर कम ज़मीन में एक के ऊपर एक फ़सलें उगाई जाए और इस तरह मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) का कॉनसेप्ट धरातल पर उतरा।

सफल रहा पहला प्रयोग (The first experiment was successful)

आकाश कहते हैं कि उन्होंने इस कॉन्सेप्ट को टमाटर की खेती के साथ शुरू किया और वो बहुत सफल रहा। इसे देखने के लिए दूर-दूर से किसान आए। उनका टमाटर का पौधा 15 फीट ऊंचा गया और एक पेड़ से 32 किलो टमाटर का उत्पादन हुआ। जब लोग उनके खेत पर आने लगे तो वो लोगों से भी ऐसा करने की सलाह देने लगे। फिर लोगों ने उन्हें अपनी समस्याएं बताई जैसे पानी की कमी, पशुओं से फ़सल को हानि, खरपतवार की समस्या, बाज़ार की समस्या आदि। फिर उन्होंने इन सारी समस्याओं पर काम करना शुरू किया और 2009 से एक्सपेरिमेंट शुरू किया।

खास स्ट्रक्चर है ज़रूरी (A special structure is necessary)

आकाश बताते हैं कि मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) में थीड़ी सी जगह में ही 4 से 5 फ़सल उगाने की व्यवस्था की जाती है और इसके लिए खास स्ट्रक्चर बनाने की ज़रूरत होती है। एक स्ट्रक्चर डिज़ाइन किया जाता है फिर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की तरह ही एक फ़सल को ग्राउंड फ्लोर, दूसरे को सरफेस फ्लोर, तीसरे को फर्स्ट फ्लोर और चौथे को सेकंड फ्लोर में लगाया जाता है। इसके अलावा जंगल के आधारभूत सिद्धांत को भी अपनाया जाता है।

यानी जगंल के पौधे जैसे एक-दूसरे पर निर्भर हैं उसी तरह ऐसी फ़सलों को चुना जाता है जो एक दूसरे पर निर्भर रहे। फ़सलों के चुनाव और मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) के सफल मॉडल को बनाने के लिए आकाश 16 सालों में करीब 4700 प्रयोग कर चुके हैं, जिसमें से 370 सफल रहे। अपने इस कॉन्सेप्ट में वो 4 फ़सलों को इस तरह ऑर्गनाइज़ करते हैं कि चारों फ़सलें एक साथ सही तरीके से विकसित हो सके।

कैसे करते हैं फ़सलों का चुनाव? (How do you choose crops?)

फ़सलों के कॉम्बिनेशन के सिद्धांत के बारे में आकाश का कहना है कि कौन सी फ़सल को नीचे और कौन सी फ़सल को ऊपर लगाना है ये कई बातों पर निर्भर करता है। पहला तो ये देखना होता है कि चार फ़सलें जो हम लगा रहे हैं उनका रूट ज़ोन एक जैसा नहीं होना चाहिए। दूसरा, प्रकाश की ज़रूरत भी चारों फ़सलों की अलग-अलग होनी चाहिए। तीसरा ये कि सभी फ़सलों के फल लगने का स्तर भी अलग-अलग होना चाहिए।

ऐसा नहीं कि सारी फ़सलें एक ही जगह पर फलने के लिए आ जाएगी। चौथा ये कि सभी फ़सल की उम्र अलग-अलग होनी चाहिए, कोई 2-3 महीने की होनी चाहिए, कोई 4-5 महीने की, कोई 7-8 महीने की और को साल भर की होनी चाहिए। इसी तरह सबकी पोषण संबंधी ज़रूरतें भी अलग होनी चाहिए। क्योंकि एक ही पोषण ज़रूरत वाले पौधे लगाने से उनमें उस खास पोषक तत्व की कमी हो सकती है। पौधों के पोषक तत्व की ज़रूरत का पता लगानने के लिए आकाश ने कई एक्सपेरिमेंट्स किए हैं। 

खरीफ में लगने वाले पौधे (Plants to be grown in Kharif season)

अगर कोई किसान खरीफ के मौसम में मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) करना चाहता है तो आकाश उन्हें सलाह देते हैं कि वो एक रूट क्रॉप जैसे हल्दी, अरबी, सूरन, अदरक लगाएं। उसके ऊपर लता वाली फ़सल जैसे लौकी, तुरई, ककड़ी, करेला, परवल, कुंदरू आदि लगा सकते हैं। इसके ऊपर पपीता, सहजन, आम, चीकू, मौसबी, संतरा के पेड़ लगा सकते हैं।

यदि कोई किसान 4-5 लेयर में करना चाहता है तो इसके लिए फरवरी का मौसम सबसे अच्छा होता है, क्योंकि तब तापमान बहुत अधिक नहीं होता तो अंकुरण अच्छी तरह से हो जाता है और जैसे-जैसे पौधों की प्रकाश की ज़रूरत बढ़ती जाती है तो मौसम भी गर्म होता जाता है। इसके अलावा साल के किसी और सीज़न में 2 या 3 फ़सल ही एक साथ लगा सकते हैं। 

किसान कैसे आपसे जुड़ सकते हैं? (How can farmers connect with you?)

आकाश बताते हैं कि 2013 में उन्नत कृषि अभियान परिषद नाम से उन्होंने एक एनजीओ बनाया है जिसके तरह वो हर महीने की 27-28 तारीख को मुफ्त वर्कशॉप आयोजित करते हैं। इसका आयोजन वो मध्यप्रदेश के सागर जिले के कपूरिया गांव जो झांसी रोड पर स्थित है, वहीं अपने खेत में करते हैं। इसके अलावा युवा किसानों को विस्तार से खेती के बारे में जानकारी देने और प्रैक्टिकल नॉलेज के लिए 7 दिन का कोर्स भी वो आयोजित करते हैं। कोई भी किसान फोन के ज़रिए उनसे संपर्क कर सकता है। आकाश का कहना है कि युवाओं को मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) का कॉन्सेप्ट बहुत पसंद आ रहा है। बहुत से लोग इसे अपना रहे हैं।

10 डिसमल से 28 एकड़ तक का सफर (The journey from 10 decimals to 28 acres)

आकाश का कहना है कि उन्होंने 10 डिसमल से खेती की शुरुआत की थी और अब वो 28 एकड़ में खेती कर रहे हैं। जिसमें 5 एकड़ में मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) कर रहे हैं और बाकी में अलग-अलग तरीके की खेती करते हैं, जैसे मल्टीक्रॉपिंग, मिक्स क्रॉपिंग, मोनो क्रॉपिंग आदि। लगभग 70 फ़सलों पर वो काम करते हैं जिसमें मिलेट्स, सब्ज़ियां, फल, दलहनी फ़सलें सब शामिल हैं।

प्राकृतिक खेती में क्या-क्या इस्तेमाल करते हैं? (What is used in natural farming?)

आकाश का कहना है कि प्रकृति की व्यवस्था के साथ जुड़कर काम करना प्राकृतिक खेती का एक हिस्सा है और इसका एक अह्म सिद्धांत है रिसाइकलिंग। अनाज के अपशिष्ट और गोबर से वो चार खाद बनाते हैं। एक डीएपी का विकल्प है- जो रॉक फॉस्फेट पाउडर और गाय के गोबर को कंपोस्ट बनाकर तैयार किया जाता है। दूसरा पोटैशियम का विकल्प है जिसे अनाज के अपशिष्ट और नमक को कंपोस्ट करके बनाया जाता है।

तीसरा यूरिया का विकल्प है, इसमें जितने भी हरे अपशिष्ट होते हैं उसे पानी में डालकर गलाया जाता है और तरल खाद के रूप में उपयोग करते हैं। चौथा माइक्रो न्यूट्रिएंट्स के विकल्प के रूप में गुड़, उड़द दाल का आटा, गोमूत्र और सरसों की खली को, गोबर आदि को मिलाकर एक मटके में घोल बनाया जाता है। मिट्टी की पोषण संबंधी ज़रूरतों को गोबर और फ़सल के अपशिष्ट से पूरा करके अच्छा उत्पादन लिया जाता है। 

कैसे करते हैं मार्केटिंग? (How to do marketing?)

आकाश का कहना है कि प्राकृतिक खेती का बाज़ार बनाने के लिए समाज में जागरुकता लाने की ज़रूरत है। किसान तो जागरुक हो रहा है, लेकिन मार्केटिंग बहुत अहम है, क्योंकि इसके बिना किसानों को फ़सल की सही कीमत नहीं मिलेगी। इसलिए लोगों को ये बताना ज़रूरी है कि जैविक फ़सल आपकी सहेत के लिए अच्छी है, इसे खाने से आप बीमार नहीं पड़ेंगे और ये काम वो अपने कैंपेन के ज़रिए कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब लोग देसी पद्धति से उपजे अन्न को अपने भोजन में शामिल करेंगे तभी किसानों को फ़सल की सही कीमत मिलेगी और समाज बीमारियों से दूर रहेगा।

म्यूज़िक थेरेपी का इस्तेमाल (use of music therapy)

लोग जैसे अपना तनाव दूर करने के लिए म्यूज़िक थेरेपी का सहारा लेते हैं, आकाश वैसे ही पौधों का तनाव दूर करने के लिए म्यूज़िक थेरेपी का सहारा ले रहे हैं। उनका कहना है कि भौंरों की गुन-गुन अब सुनाई नहीं देते हैं जो पौधों में फूल लाने में मददगार होती थी, ऐसे में उन्होंने म्यूज़िक थेरेपी का इस्तेमाल करके पौधों को स्वस्थ जीवन देने की कोशिश की और इससे उत्पादन भी बढ़ा। इसके लिए 9 साल तक उन्होंने अलग-अलग ध्वनियों के साथ एक्सपेरिमेंट किया और 6 गाने सेलेक्ट किए। उनका कहना है कि पौधों की अलग-अलग उम्र के हिसाब से अलग-अलग गाने सिलेक्ट किए हैं।

उनका कहना है कि म्यूज़िक थेरेपी से पौधे स्वस्थ जीवन जीते हैं, बीमारियां कम होती है और उत्पादन अधिक होता है। पौधों के साथ ही उन्होंने केंचुओं और गायों पर भी इसका इस्तेमाल किया है उनका कहना है कि इसकी मदद से केंचुए जो काम 60 दिन में करते थे उसे 45 दिनों में ही करने लगे।

यही नहीं जो गाय पहले 3 लीटर दूध देती थी, गाना सुनकर 4.5 लीटर देने लगी। उन्होंने पूरे खेत में साउंड सिस्टम लगा रखा है। वो बताते हैं कि सुबह 5-8 बजे तक फ़सलों को गाना सुनाते हैं, रात के 8 से सुबह के 5 बजे तक केंचुओं को गाना सुनाते हैं और सुबह 6 से 7 बजे तक गायों को गाना सुनाते हैं। इससे सबके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

मिल चुके हैं कई अवॉर्ड्स (Many awards have been received)

मल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) के लिए आकाश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा विज्ञान भवन में ग्राम मित्र युवा सम्मान का खिताब उन्हें मल्टीलेयर के इनवेंशन और एक्सटेंशन के लिए दिया गया था। GSPL फाउंडेशन की ओर से भी उन्हें सम्मान मिल चुका है, महिंद्रा एंड महिंद्रा की ओर से महिंद्रा युवा समृद्धि का खिताब दिया गया। कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार के साथ ही उन्हें 5 अंतरराष्ट्रीय 5 अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं।

पारंपरिक बीजों के संरक्षण के लिए काम (Work for conservation of traditional seeds)

प्राकृतिक खेती के लिए पारंपरिक बीजों का सरंक्षण ज़रूरी है। इसलिए 2014 के बाद से आकाश ने इस दिशा में काम शुरू किया। उनका कहना है कि 2014 से लेकर अब तक उन्होंने 200 लुप्त हो रहे भारतीय बीजों का संग्रहालय बनाया है। साथ ही किसानों के दिमाग से ये बात हटाने की कोशिश की है कि देसी बीज़ों से उत्पादन अधिक नहीं होता है। उनका कहना है कि एक सिलेक्शन प्रोसेस के ज़रिए बीजों का चुनाव करने से अच्छे बीज मिलेंगे। यानी जिस पौधे का फल अच्छा हो उसका ही बीज बनाना शुरू कर देना चाहिए। अब तक वो पौने 4 लाख किसानों को बीज बांट चुके हैं।

कितनी होती है कमाई? (How much is the earning?)

आकाश का कहना है कि 28 एकड़ की खेती से उनका सालाना टर्नओवर 40-50 लाख रुपए का होता है। इसके अलावा वो किसानों की फ़सलों को प्रोसेस भी करते हैं जिससे आमदनी भी होती है और किसानों की मदद भी। वो कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर सही तरीके से युवा 8-10 घंटे हर दिन खेती में दे तो अच्छी आमदनी के साथ ही उसे शांति, समृद्धि और सुकून भी मिलेगा। उनके हिसाब से खेती से अच्छा कोई प्रोफेशन नहीं है, क्योंकि इसमें संतुष्टि मिलती है। 

प्रोसेसिंग भी है ज़रूरी (Processing is also important)

आकाश कहते हैं कि जो फ़सलें वो खेतों में उगाते हैं, उसे बेचने के बाद अगर वो अधिक बच जाए तो उसकी प्रोसेसिंग भी करते हैं। जैसे मान लीजिए कि पालक का उत्पादन अधिक हो गया है तो उसे कम दामों में बाज़ार में बेचने की बजाय उसे डिहाइड्रेड करके पाउडर बना देते हैं। सब्ज़ियों को सुखाने के लिए उन्होंने सोलर ड्रायर लगाया हुआ है।

पालक के पत्तों का पाउडर बनाकर वो इसे लोगों तक पहुंचाते हैं और उन्हें बताते हैं कि बरसात में जब पालक नहीं मिलेगा तो इसे सूप या कोई दूसरी रेसिपी में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी तरह वो दूसरी सब्ज़ियों को भी ड्राय करके बेचते हैं। इसके अलावा वो अनाज, मिलेट्, दालों आदि की भी प्रोसेसिंग करते हैं। उनका कहना है कि इसके लिए वो जाते का इस्तेमाल करके हैं, मगर नो हाथ से नहीं चलती है बल्कि इसे लो आरपीएम की मशीन से घुमाया जाता है। वो फूड चेन का ध्यान रखते हैं ताकि उगाने से लेकर थाली में जाने तक अनाज की गुणवत्ता खराब न हो।

आकाश का कहना है कि किसानों को खेती सिर्फ़ फ़सल उगाने तक ही सीमित नहीं समझना चाहिए, बल्कि उन्हें नवाचार के साथ काम करना चाहिए और फ़सल उगाने के साथ ही वो प्रोसेसिंग भी करें। आकाश का मिशन है कि लोगों को विष मुक्त अन्न मिले और अपने इस मिशन को पूरा करने की दिशा में वो लगातार आगे बढ़ रहे हैं और अपने साथ और भी लोगों को जोड़ते जा रहे हैं ताकि पूरे देश की थाली को केमिकल वाले अन्न से मुक्त किया जा सके।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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