श्री विधि तकनीक से साहिबगंज में धानखेती को मिला नया आयाम, किसानों की आमदनी में हो रही बढ़ोतरी
साहिबगंज के किसान श्री विधि तकनीक से धानखेती कर रहे हैं। इस विधि से कम लागत, अधिक उत्पादन और गुणवत्तापूर्ण फ़सल मिल रही है।
साहिबगंज के किसान श्री विधि तकनीक से धानखेती कर रहे हैं। इस विधि से कम लागत, अधिक उत्पादन और गुणवत्तापूर्ण फ़सल मिल रही है।
राजस्थान का हनुमानगढ़ जिले में इस बार किसानों ने पारंपरिक तरीके को छोड़कर एक नई तकनीक अपनाई है, डायरेक्ट सीडेड राइस (Direct Seeded Rice) यानि DSR विधि अपनाई है। ये तकनीक न सिर्फ पानी की बचत (Direct Seeded Rice and Water Saving) कर रही है, बल्कि किसानों की मेहनत और लागत भी कम कर रही है।
चावल भारत में मुख्य भोजन है, और इसकी खेती देश के करोड़ों किसानों की आय का मुख्य स्रोत है। इसके अलावा, भारत की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिति भी काफी हद तक चावल के उत्पादन पर निर्भर करती है। इसलिए चावल की किस्मों का महत्व सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि ये पूरे देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत धान उत्पादन में विश्व के अग्रणी देशों में से एक है। यहां की खेती में समय के साथ कई सुधार किए गए हैं, जिनमें वैज्ञानिक तरीक़ों से धान की उन्नत किस्मों (Top Rice Varieties) का विकास भी शामिल है। इन धान की किस्मों को अधिक पैदावार, बेहतर पोषण और पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित किया गया है। कृषि विज्ञान और अनुसंधान संस्थानों ने चावल की कई नई और उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हुई हैं।
चावल की खपत सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत अधिक है। ऐसे में वैश्विक आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैदावार बढ़ाना ज़रूरी है, मगर कीट और रोग धान की खेती में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
सेहत और किसानों के लिए फ़ायदेमंद लाल चावल की खेती हिमाचल में फिर से बड़े पैमाने पर की जा रही है। जानिए लाल चावल से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
भूरा चावल जिसे ब्राउन राइस भी कहा जाता है कि खेती भारत, थाइलैंड और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों में की जाती है। पिछले कुछ सालों में सेहत के प्रति सचेत लोगों के बीच इसकी मांग बहुत बढ़ी है, क्योंकि इसे सफेद चावल की बजाय हेल्दी माना जाता है।
भारत और एशियाई देशों में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। वैसे तो हमारे देश में धान की कई किस्में उगाई जाती है, लेकिन सबसे ज़्यादा लोकप्रिय बासमती धान ही है। देश के साथ ही विदेशों में भी इसकी अच्छी मांग है, लेकिन किसान अगर इसमें कीटनाशकों का इस्तेमाल सावधानी से नहीं करेंगे तो ऐसे में नुकसान होने का खतरा रहता है।
धान की सीधी बुआई तकनीक से 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। यानी, कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। इस तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है, क्योंकि पिछली फसल का अवशेष वापस खेत में ही पहुँचकर उसमें मौजूद कार्बनिक तत्वों की मात्रा में इज़ाफ़ा करता है। इस तकनीक से धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। खरीफ मौसम में धान की सीधी बुआई को मॉनसून के दस्तक देने से 10-12 दिन पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है।
एमबीए फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री होल्डर विपिन कुमार आज की तारीख में अपने क्षेत्र के किसानों के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। विपिन कुमार ने काले चावल की खेती को अपनी अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया बनाया है।
‘स्वर्ण शक्ति’ धान की ऐसी उन्नत और अर्धबौनी किस्म है जो न सिर्फ़ सूखा सहिष्णु है बल्कि अन्य प्रचलित किस्मों की तुलना में पैदावार भी ज़्यादा देती है। इसकी रोपाई के लिए कीचड़-कादो और जल-जमाव की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिए इसकी खेती सीधी बुआई के ज़रिये सूखाग्रस्त और उथली ज़मीन पर भी हो सकती है। धान की खेती के लिए ये किस्म क्यों अच्छी है? जानिए इस लेख में।
जुलाई माह में बहुत से ज़िलों में बारिश नहीं होने के कारण धान की खेती काफ़ी प्रभावित हुई। किसानों को हो रहे इस नुकसान से बचाव के लिए ICAR के संस्थान एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट कानपुर (अटारी) के डायरेक्टर डॉ. यूएस गौतम ने कुछ सुझाव दिए हैं। जानिए क्या हैं वो सुझाव।
विजयगिरी अपने खेत में काले, हरे, लाल, मैजिक और अम्बे मोहर चावल के साथ-साथ कई अन्य चावल की किस्मों की खेती करते हैं। वो इन चावलों की खेती पूरी तरह से जैविक तरीके से करते हैं।
धान की फसल जूलाई से लेकर अक्टूबर तक कई तरह के कवक और जीवाणु रोगजनकों से प्रभावित होती है। कैसे धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों से किसान छुटकारा पा सकते हैं? इस पर किसान ऑफ़ इंडिया की उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केंद्र आजमगढ़ के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से ख़ास बातचीत।
इस समय धान की फसल का रोपाई का कार्य चल रहा है। ध्यान रखने वाली बात है कि धान की फसल में कई तरह के कीटों का प्रकोप होने का खतरा रहता है। इस खतरे से कैसे निपटा जाए, इसको लेकर कृषि विज्ञान केंद्र गौतमबुद्ध नगर के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ और प्रमुख डॉ. मयंक कुमार राय से ख़ास बातचीत।
इस समय धान की रोपाई का कार्य तेज़ी से चल रहा है। धान की खेती में कई अहम बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है। मसलन धान की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को 5 से 85 प्रतिशत तक आंका गया है।जबकि कभी-कभी ये नुकसान 100 फ़ीसदी तक हो सकता है। कैसे करें धान की फसल का सही प्रबंधन? भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह से ख़ास बातचीत।
कर्नाटक के तुमकुर ज़िले के किसान महेश एम.एन. एरोबिक विधि से धान की खेती कर रहे हैं और उन्हें उपज भी अच्छी प्राप्त हो रही है।एरोबिक विधि के क्या फ़ायदे है, जानिए इस लेख में।
इस तकनीक के तहत धान की खेती के लिए जमा पानी में ही मछली पालन किया जाता है। धान संग मछली पालन प्रणाली में धान के खेत में जहां मछलियों को चारा मिलता है, वहीं मछली द्वारा निकलने वाले वेस्ट पदार्थ धान की फसल के लिए जैविक खाद का काम करते हैं।
डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की परम्परागत प्रजातियों में अपेक्षाकृत कम नाइट्रोजन की ज़रूरत होती है। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच और फसल की मांग के आधार पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए। ऐसी ही बासमती धान की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां जानिए डॉ. रितेश शर्मा से।
बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जलधारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। नर्सरी में बीज बोने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। ऐसी ही कई महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत की।