Table of Contents
भारत धान उत्पादन में विश्व के अग्रणी देशों में से एक है। यहां की खेती में समय के साथ कई सुधार किए गए हैं, जिनमें वैज्ञानिक तरीक़ों से धान की उन्नत किस्मों (Top paddy Varieties) का विकास भी शामिल है। इन धान की किस्मों को अधिक पैदावार, बेहतर पोषण और पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित किया गया है। कृषि विज्ञान और अनुसंधान संस्थानों ने चावल की कई नई और उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हुई हैं। ये किस्में न सिर्फ़ बेहतर उत्पादन देती हैं, बल्कि अलग-अलग जलवायु परिस्थितियों और रोगों से लड़ने में भी सक्षम हैं। हर किस्म की अपनी विशेषताएं होती हैं, जो कृषि की अलग-अलग परिस्थितियों में किसानों की मदद करती हैं।
आइए, वैज्ञानिक तरीके से विकसित की गई धान की कुछ प्रमुख किस्मों के बारे में जानते हैं:
1. सवर्णा / Swarna (MTU 7029)
इस धान की किस्म का सही नाम “सवर्णा” (Swarna) ही है। इसे वैज्ञानिक रूप से MTU 7029 कहा जाता है, और ये विशेष रूप से पूर्वी भारत में लोकप्रिय है। इसे आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था।
सबसे ज़्यादा उगाई जाने वाली धान की किस्मों में से एक ‘सवर्णा’ विशेष रूप से पूर्वी भारत में लोकप्रिय है। इसे आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था।
– मुख्य विशेषताएं: ये किस्म 145-150 दिन में तैयार होती है। इसका उत्पादन अधिक होता है और ये जलभराव या बाढ़ के प्रति सहनशील है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 5-6 टन।
– विशेषता: ये किस्म पूर्वी राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है, खासकर जहां बाढ़ और जलभराव की समस्या अधिक होती है।
2. IR-64
‘आईआर-64’ भारतीय धान की प्रमुख किस्मों में से एक है, जिसे अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) द्वारा विकसित किया गया है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये किस्म जल्दी तैयार होती है (110-120 दिन) और रोग प्रतिरोधक होती है, खासकर ब्लास्ट और बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट जैसी बीमारियों के खिलाफ।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4.5-5.5 टन।
– विशेषता: ये किसान समुदाय के बीच अपनी जल्दी तैयार होने और रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण काफी लोकप्रिय है।
3. बीटीईएम (BPT 5204) – संपूर्ण
बीटीईएम धान को ‘सम्पूर्ण’ नाम से भी जाना जाता है, और ये मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगाई जाती है। इसकी लंबी चावल की किस्में निर्यात के लिए भी उपयुक्त मानी जाती हैं।
– मुख्य विशेषताएँ: ये मध्यम अवधि (140-145 दिन) में पकने वाली किस्म है। ये चावल स्वादिष्ट और लंबा होता है, इसलिए इसकी बाज़ार में मांग ज्यादा होती है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 5-6 टन।
– विशेषता: ये उच्च गुणवत्ता के चावल के रूप में प्रसिद्ध है और बासमती की तरह दिखता है, हालांकि ये बासमती नहीं है।
4. PR-14
PR-14 किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है, और ये पंजाब के साथ-साथ हरियाणा में भी उगाई जाती है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये जल्दी पकने वाली किस्म है (135-140 दिन)। ये उच्च तापमान और सूखे के प्रति सहनशील है, इसलिए जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में इसे उपयुक्त माना जाता है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 6-7 टन।
– विशेषता: इसकी प्रमुख विशेषता इसकी कम पानी की जरूरत है, जो पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श है।
5. सहभाग्यम (IET 17430)
‘सहभाग्यम’ धान की किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित की गई है। ये किस्म रोग प्रतिरोधक और सूखे के प्रति सहनशील मानी जाती है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये जल्दी पकने वाली किस्म (125-130 दिन) है, जो विशेष रूप से सूखे क्षेत्रों के लिए अनुकूलित है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4-5 टन।
– विशेषता: ये किस्म सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है, और ये काफी पोषण से भरपूर मानी जाती है।
6. Pusa Basmati 1121
पूसा बासमती 1121 सबसे अधिक प्रीमियम बासमती चावल की किस्मों में से एक है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये 140-145 दिनों में पकने वाली किस्म है, जो लंबाई में काफी बड़ी होती है। इसके चावल की खुशबू और गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मांग में है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 3.5-4 टन।
– विशेषता: ये कम पानी में उगाई जा सकती है, और इसकी खुशबू और लंबाई इसे निर्यात बाजार में लोकप्रिय बनाती है।
7. Samba Mahsuri (BPT 3291)
ये किस्म विशेष रूप से दक्षिण भारत में लोकप्रिय है। इसे आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये मध्यम अवधि में तैयार होने वाली (140-145 दिन) किस्म है। ये किस्म रोग प्रतिरोधक है और इसका चावल गुणवत्ता में काफी अच्छा होता है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4-5 टन।
– विशेषता: ये चावल कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) के कारण मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है।
8. DRR Dhan 44
ये धान की किस्म ड्राई डायरेक्ट सिडिंग के लिए उपयुक्त है, जिसका विकास ड्राई डायरेक्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (DRR) ने किया है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये किस्म सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए आदर्श है। इसे कम पानी में भी उगाया जा सकता है और ये जल्दी पकने वाली किस्म है (110-115 दिन)।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 5-6 टन।
– विशेषता: ये सूखे के प्रति सहनशीलता के साथ बेहतर पैदावार देती है।
9. बीटीईआर-1 (BTER-1)
बीटीईआर-1 सूखा सहनशील किस्म है, जिसे उन क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है जहां पानी की कमी होती है। ये किस्म कम पानी में भी उन्नत पैदावार देती है, जिससे किसानों को सूखे जैसी समस्याओं से लड़ने में मदद मिलती है।
– मुख्य विशेषताएँ: कम पानी की आवश्यकता वाली यह किस्म सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है और मध्यम अवधि (125-130 दिन) में तैयार होती है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4-5 टन।
– विशेषता: ये किस्म विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में उगाई जाती है।
10. सम्राट
‘सम्राट’ एक उन्नत किस्म है, जो सूखा और गर्मी सहनशील होने के साथ-साथ उच्च उत्पादन देती है। इस किस्म का विकास दक्षिण भारत के किसानों की समस्याओं को ध्यान में रखकर किया गया है, जो जलवायु में अचानक परिवर्तन का सामना करते हैं।
– मुख्य विशेषताएँ: ये जल्दी पकने वाली (110-115 दिन) किस्म है, जो सूखे और गर्मी को सहन कर सकती है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 5-6 टन।
– विशेषता: सूखा और गर्मी से प्रभावित राज्यों, जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक में इसे व्यापक रूप से उगाया जाता है।
11. राजेंद्र सुवर्णा
राजेंद्र सुवर्णा बिहार और झारखंड में विशेष रूप से लोकप्रिय धान की किस्म है, जिसे उन क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है जहां मिट्टी की गुणवत्ता कमजोर होती है और वर्षा की मात्रा कम होती है। ये किस्म कम पोषण वाली मिट्टी में भी अच्छी पैदावार देती है और किसानों के लिए फायदेमंद है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये मध्यम अवधि में पकने वाली (135-140 दिन) किस्म है और वर्षा पर निर्भर इलाकों में खेती के लिए उपयुक्त है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4-5 टन।
– विशेषता: बिहार और झारखंड जैसे क्षेत्रों के लिए ये किस्म आदर्श है, जहां मिट्टी की गुणवत्ता कम होती है और पानी की उपलब्धता सीमित रहती है।
12. पूसा 44
पूसा 44 एक और लोकप्रिय धान की किस्म है, जिसे विशेष रूप से उत्तरी भारत में उगाया जाता है। ये बेमौसम बारिश और गर्मी जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये मध्यम अवधि में पकने वाली (140-145 दिन) किस्म है, जो उत्तरी भारत की मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 6-7 टन।
– विशेषता: इस किस्म की खेती हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में की जाती है, और ये बेहतर गुणवत्ता और स्वाद के लिए जानी जाती है।
13. शरबती
शरबती एक प्रकार की लंबी दाने वाली धान की किस्म है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा उगाई जाती है। इसका चावल बासमती की तरह ही दिखता है और स्वाद में भी उत्कृष्ट होता है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये किस्म लंबी अवधि (150-155 दिन) में तैयार होती है और इसकी मांग भारतीय बाजार के साथ-साथ निर्यात बाजार में भी अधिक है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4-5 टन।
– विशेषता: ये किस्म मुख्य रूप से घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों के लिए महत्वपूर्ण है, और इसका स्वाद बासमती के करीब होता है।
14. लाल धान (Red Rice)
लाल धान की किस्म को विशेष रूप से जैविक और प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में महत्व दिया गया है। ये असम, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में उगाया जाता है। लाल धान पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसमें आयरन और फाइबर की मात्रा अधिक होती है।
– मुख्य विशेषताएं: ये मध्यम अवधि (120-130 दिन) में तैयार होने वाली किस्म है और जैविक खेती के लिए उपयुक्त है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 3-4 टन।
– विशेषता: लाल धान का उपयोग स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है, क्योंकि ये आयरन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसकी खेती मुख्य रूप से जैविक फार्मिंग करने वाले किसान करते हैं।
15. सीता (SITA)
सीता किस्म एक और सूखा-सहनशील किस्म है, जिसे खासकर उन क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है जहां पानी की कमी और जलवायु में तेजी से बदलाव की समस्या होती है।
– मुख्य विशेषताएँ: ये जल्दी पकने वाली (115-120 दिन) किस्म है, जो सूखा-सहनीय होने के साथ कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है।
– पैदावार: प्रति हेक्टेयर 4-5 टन।
– विशेषता: सूखा प्रभावित क्षेत्रों, जैसे राजस्थान और गुजरात में, इस किस्म की खेती की जाती है।
भारत में वैज्ञानिक तरीकों से विकसित की गई धान की किस्में न केवल किसानों की आजीविका में सुधार करती हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने में भी अहम भूमिका निभाती हैं। इन किस्मों की विविधता और खासियतें किसानों को समस्याओं का सामना करने में मदद करती हैं, जैसे कि सूखा, बाढ़, रोग और कीट। नई तकनीकों और अनुसंधानों से विकसित ये किस्में न केवल भारत की चावल उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय चावल की मांग बढ़ा रही हैं।