Contour Farming: पहाड़ों पर फ़सल उगाने का बेहतरीन तरीका है समोच्च खेती, मिट्टी का कटाव रोकने में है मददगार

समोच्च खेती (contour farming) पहाड़ी इलाकों में मिट्टी के कटाव को रोकने और सिंचाई को बेहतर बनाने की प्रभावी तकनीक है, जो किसानों की खेती में मदद करती है।

Contour Farming समोच्च खेती

पहाड़ी इलाकों में ढलान के कारण तेज़ बारिश में पानी खेतों में रुक नहीं पाता और पानी के तेज़ बहाव में मिट्टी की ऊपरी परत के साथ ही पोषक तत्व भी बहकर चले जाते हैं, जिससे खेती संभव नहीं हो पाती, इसी समस्या से समोच्च खेती (contour farming) के द्वारा निपटा जा सकता है।

पहाड़ी क्षेत्रों में किसानो के लिए खेती करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि बारिश का पानी ढलान की वजह से खेतों में रुकता नहीं है और तेज़ बहाव में मिट्टी का कटाव भी तेज़ी से होता है। ऐसे में इन इलाके के किसानों को खेती की पारंपरिक तकनीक से हटकर कुछ नए तरीकों की ज़रूरत महसूस हुई, जिसके परिणामस्वरूप Contour Farming का विकास, जो मिट्टी के कटाव को कम करने के साथ ही ढलानों पर समान रूप से सिंचाई करने में भी मददगार है। भारत में समोच्च खेती क्या है, इसमें कौन सी फ़सलें उगाई जाती है और इसके क्या फायदे हैं? आइए, जानते हैं।

भारत में समोच्च खेती (Contour farming in India)

भारत में समोच्च खेती कृषि की एक तकनीक है जिसमें बारिश के पानी और मिट्टी के कटाव को खेत में रोका जाता है। ऐसा करने के लिए खेत की ढलानों पर टाइलिंग की जाती है। साथ ही खेत में ढलान वाली ज़मीन पर व्हील ट्रैक, नाली और बीज पंक्तियों को बनाया जाता है, जिससे बारिश के पानी को रोकन और इस पानी और पोषण को मिट्टी समान रूप से बांटने में मदद मिलती है, इससे मिट्टी और भूमि का कटाव रुकता है।

समोच्च खेती और सीढ़ीनुमा खेती में अंतर (Difference between contour farming and terrace farming)

समोच्च खेती और सीढ़ीनुमा खेती में मुख्य अंतर पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने का तरीका है। Contour Farming में ज़मीन की ढलान में खांचे काटकर पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है, जबकि सीढ़ीनुमा खेती में भूमि की ढलान पर समतल प्लेटफॉर्म बनाकर पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है।

दूसरा अंतर ये है कि सीढ़ीनुमा खेती में पहाड़ी की ढलान वाली ज़मीन को छोटे-छोटे सपाट टुकड़ों में बांटकर उसे सीढ़ियों के रूप में बदल दिया जाता है। हर सपाट टुकड़े के किनारों को ऊपर उठा दिया जाता है ताकि इसमें पानी भरा रहे। सबकि समोच्च खेती में बारिश और मिट्टी के कटाव को खेत में रोकने के लिए खेत की ढलानों पर टाइलिंग की जाती है। इसी तरह खेत में ढलान वाली ज़मीन पर व्हील ट्रैक, नाली और बीज पंक्तियों को बनाया जाता है। जिससे बारिश के पानी और मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिलती है।

समोच्च खेती के फ़ायदे (Advantages of contour farming)

पहाड़ी ढलानों पर समोच्च खेती में मक्का, सोयाबीन, गेहूं, घास और फलियों की खेती की जा सकती हैं। पहाड़ी इलाकों में उगाई जाने वाली फ़सले ज़्यादा पौष्टिक होती है, क्योंकि शुद्ध होती हैं। मैदानी इलाकों की तुलना में यहां कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल बहुत कम होता है।

इसका एक सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि ये मिट्टी के कटाव से निपटने में मदद करती है। जानकारों का मानना है कि खेती की इस तकनीक से ढलानों पर मिट्ट के कटाव को 50 फीसदी तक कम किया जा सकता Contour Farming से बहते पानी के प्रवाह को धीमा करने में मदद करती है और पानी को मिट्टी में अच्छी तरह से अवशोषित होने का समय मिलता है। मिट्टी का कटाव इसलिए हानिकारक माना जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में मिट्टी की ऊपरी परत हट जाती है, जो खेती के लिए बहुत आवश्यक होती है। इसकी वजह से फ़सल की पैदावर कम हो जाती है।

इसका एक अन्य लाभ ये होता है कि सिंचाई के दौरान मिट्टी में पानी वितरण समान रूप से होता है। क्योंकि इस विधि में सिंचाई का पानी धीरे-धीरे बहता है इसलिए ये नाली/खाई में गहराई से जाता है, जिससे मिट्टी पानी को अच्छी तरह अवशोषित कर लेती है। जब एक बार नालीदार धाराएं समायोजित (एडजस्ट) हो जाती हैं, तो पारंपरिक डाउन-स्लोप सिंचाई कि तुलना में भारत में Contour Farming में सिंचाई के लिए कम श्रमिकों की ज़रूरत पड़ती है, जिससे खेती की लागत कम होती है। इसके साथ ही इस विधि में उत्पादन भी अधिक होता है।

कहां की जानी चाहिए समोच्च खेती? (Where should contour farming be done?)

समोच्च खेती वैसे तो ढलान वाले क्षेत्रों के लिए ही है, मगर ये सभी तरह की ढलान और जलवायु में नहीं की जा सकती। इसके लिए ढलान प्रवणता 2%-10% के बीच होनी चीहिए, और इलाके में पर्याप्त बारिश भी होनी चाहिए।

कैसे करें समोच्च खेती की शुरुआत? (How to start contour farming?)

भारत में अगर कोई किसान Contour Farming शुरू करना चाहता है, तो उसे पता होना चाहिए कि इसे किस क्रम में शुरू करना है।

भूमि का मूल्यांकन (Land valuation)

सबसे पहले किसान को उस भूमि का मूल्यांकन करना होगा जहां वो खेती करने वाला है। भूमि की ढलान, जल निकासी की पहचान करनी होगी। साथ पानी के बहाव और मिट्टी के प्रकार की भी जांच करनी चाहिए। इससे भूमि की जुताई में मदद मिलती है।

समोच्च रेखाएं चिह्नित करना (Marking contour lines)

दूसरे चरण में समोच्च रेखाएं बनाना शामिल है। इसमें ढलानों पर रेखाएं बनाई जाती हैं, इस बात का ध्यान रखा जाता है कि रेखाओं के बीच उचित दूरी हो। रेखाओं को चिह्नित करने के लिए GPS, A-फ़्रेम और लेजर लेवल उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है।

छतों को डिज़ाइन करना (Designing the Roofs)

तीसरे चरण में छतों को डिज़ाइन किया जाता है। टेरेस फ़ार्मिंग का मतलब है दीवारें बनाना और प्राकृतिक ढलान के आकार को बदलना ताकि एक सपाट सतह बनाई जा सके, जिससे पानी को रोककर मिट्टी के कटाव को कम किया जा सके।

वनस्पति आवरण (Vegetation cover)

इस चरण में वनस्पति पौधों और घास के साथ-साथ टेरेस और समोच्च रेखाएं बनानी होती है। वनस्पति आवरण तेजी से बहने वाली पानी को रोकता है, जिससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है। वनस्पति पौधों का चुनाव स्थानीय जलवायु के अनुसार करना चाहिए।

जल संरक्षण उपाय (Water conservation measures)

भारत में Contour Farming शुरू करते समय आपको जल संरक्षण उपाय करना ज़रूरी है। अगर आप समोच्च जुताई शुरू कर रहे हैं तो इसके लिए स्वेल, चेक डैम या समोच्च बांध बनाना ज़रूरी है। ये संरचनाएं मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ाने के साथ ही बारिश के पानी के अवशोषण को भी बढ़ाती हैं।

जल और मृदा प्रबंधन (Water and Soil Management)

समोच्च खेती वहीं की जानी चाहिए जहां खांचे/नालियां समोच्च रेखाओं के साथ बनाई गई हों। खेती में यह समोच्च विधि पानी को रोकती और तेज़ बहाव को नीचे की ओर जाने से रोकती है।

उपयुक्त फ़सलों का चयन (Selection of suitable crops)

आपको फ़सलों का सही चुनाव करने भी आना चाहिए। इस कृषि तकनीक में, आपको ठोस प्रकार, पानी की आवश्यकता, जलवायु परिस्थितियों और अन्य कारकों के अनुसार ही फ़सलों का चुनाव करना चाहिए।

खेती की पद्धति का चुनाव (choice of farming method)

इसके तहत आपको यह चुनाव करना होगा कि आप कृषि वानिकी, फ़सल चक्र और अंतर-फ़सल किस तरह की पद्धति को अपनाना चाहते हैं। ये पद्धतियां जैव विविधता को बढ़ाती हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

सभी काम करने के बाद आपको नियमित रूप से फ़सलों की निगरानी करनी होती है। साथ ही मृदा संरक्षण और जल प्रबंधन कितना असरदार है इसका भी मूल्यांकन करना होगा ताकि उसके अनुसार बदलाव किए जा सके।

अगर किसान सभी बातों का ध्यान रखते हुए समोच्च खेती करते हैं, तो यकीनन उन्हें अच्छा उत्पादन मिलता है।

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