रमेश गेरा: जब एक इंजीनियर ने Saffron Farming में रचा इतिहास

साल 2019 में, रमेश गेरा जी ने एक ऐसा सपना देखा जिसे पूरा करना नामुमकिन माना जाता था। उन्होंने ठान लिया कि वो केसर यानी 'सैफरन'  (Saffron Farming)को नोएडा,उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर उगाएंगे, वो भी बिना किसी खेत के। जी हां, उन्होंने रेफ्रिजरेटर और एक बंद कमरे में एयरोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करके कश्मीर जैसा माहौल तैयार किया।

Saffron Farming

अगर इंसान के इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुश्किल राह आसान हो सकती है। कुछ ऐसी ही कहानी है हरियाणा के पंचकुला में रहने वाले रमेश गेरा जी की, जिन्होंने खेती की दुनिया में ऐसा चमत्कार कर दिखाया है, जो हर किसी के लिए मिसाल बन चुका है। हिम्मत और लगन से कुछ भी असंभव नहीं है। रमेश गेरा जी वो किसान, जिन्होंने रेफ्रिजरेटर (Refrigerator) और बंद कमरे में कश्मीरी केसर (Saffron Farming) उगाने का कमाल किया है।

कौन हैं रमेश गेरा?

रमेश गेरा जी का सफर साधारण से असाधारण बनने की कहानी है। वो पहले एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर थे और 35 साल तक अलग-अलग देशों में काम किया। लेकिन जब जिंदगी ने उन्हें चुनौती दी, तो उन्होंने खेती को अपना जुनून बना लिया। पत्नी की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपनी ऊर्जा खेती में लगाई और इसे एक मिशन बना लिया। आज उनकी सालाना आमदनी 31 से 40 लाख रुपये के बीच है।

कैसे हुई शुरुआत?

साल 2019 में, रमेश गेरा जी ने एक ऐसा सपना देखा जिसे पूरा करना नामुमकिन माना जाता था। उन्होंने ठान लिया कि वो केसर यानी ‘सैफरन’  (Saffron Farming)को नोएडा,उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर उगाएंगे, वो भी बिना किसी खेत के। जी हां, उन्होंने रेफ्रिजरेटर और एक बंद कमरे में एयरोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करके कश्मीर जैसा माहौल तैयार किया।

पहले दो साल उनकी जिंदगी के सबसे कठिन साल रहे। हर प्रयोग असफल होता गया। लाखों रुपये खर्च हो गए, लेकिन नतीजा ज़ीरो रहा। बावजूद इसके उन्होंने हार मानने से इनकार कर दिया। दिन-रात मेहनत की, नई-नई तकनीकों को समझा और अपनी कोशिशों को जारी रखा।

सफलता की ओर पहला कदम

साल 2021 में, रमेश गेरा जी ने श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी का रुख़ किया। वहां उन्होंने विशेषज्ञों से सलाह ली, तमाम परेशानियों का सामना किया, लेकिन आखिरकार सफलता उनके कदम चूमने लगी। आज वो बंद कमरे में सैफरन उगाने में पूरी तरह से सफल हैं। उनकी उपज और गुणवत्ता कश्मीर के बेहतरीन सैफरन  (Saffron Farming)से बिल्कुल मेल खाती है।

खेती से बढ़ाया रोजगार और ज्ञान का दायरा

रमेश गेरा जी की मेहनत यहीं नहीं रुकी। उन्होंने किसानों को भी नई तकनीक सिखाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने पंचकुला में एक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोला, जहां अब तक 350 से ज्यादा किसानों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। उनकी ट्रेनिंग में न केवल भारत से, बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। खास बात यह है कि गरीब किसानों के लिए ट्रेनिंग बिल्कुल मुफ्त है। यहां तक कि उनके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था भी रमेश गेरा जी खुद करते हैं।

नोएडा से पंचकुला तक का सफर

पहले वो नोएडा में सैफरन फार्मिंग (Saffron Farming) करते थे। लेकिन पंचकुला में उन्होंने न केवल खुद को स्थापित किया, बल्कि एक ऐसा मंच तैयार किया, जहां किसान अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। इसके साथ ही साथ रमेश गेरा जी जेपी इन्फ्राटेक के साथ जुड़े हुए हैं। एग्रीकल्चर एडवाइज़र के तौर पर वो अपना काम बख़ूबी कर रहे हैं। 

संघर्ष से सफलता तक का सफर

रमेश गेरा जी के लिए ये सफर आसान नहीं था। पहले वो नोएडा में सैफरन की खेती करते थे, लेकिन पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने पंचकुला में अपने इस मिशन को नई दिशा दी। खेती में नई तकनीकों के साथ उन्होंने बांस (बैंबू) की खेती और हाइड्रोपोनिक्स पर भी रिसर्च शुरू की।  उनका उद्देश्य है कि किसान आधुनिक तकनीक अपनाकर अपने जीवन स्तर को बेहतर बना सकें।

 सम्मान और पहचान

उनकी मेहनत और समर्पण को दूरदर्शन ने किसान दिवस के मौके पर सम्मानित किया। जर्मनी के नेशनल टीवी ने भी उनके इंटरव्यू को प्रसारित किया। वो अपनी सफलता के लिए सरकार से किसी प्रकार की मदद नहीं लेते, बल्कि अपनी मेहनत और लगन के दम पर ही सब कुछ कर रहे हैं।

किसानों के लिए प्रेरणा

रमेश गेरा जी के इस अनोखे सफर ने किसानों को एक नई दिशा दिखाई है। उन्होंने साबित कर दिया कि नई तकनीक और सही सोच के साथ कोई भी अपनी किस्मत बदल सकता है। उनका सपना सिर्फ अपनी सफलता तक सीमित नहीं है। वो चाहते हैं कि भारत के किसान भी आधुनिक तकनीक को अपनाएं और अपने जीवन में बदलाव लाएं।

प्रेरणा और सफलता का संदेश

रमेश गेरा जी की कहानी हमें सिखाती है कि हिम्मत, मेहनत और सही सोच के साथ आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं। वो सिर्फ एक किसान नहीं, बल्कि बदलाव की मिसाल हैं। उनकी कोशिशों ने सैकड़ों किसानों को प्रेरित किया है और दिखाया है कि खेती सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि इनोवेशन का जरिया भी हो सकती है। रमेश गेरा जी का ये सफर हमें सिखाता है कि कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता। अगर हौसला और हिम्मत का संगम हो, तो हर सपना हकीकत बन सकता है।

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