गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांग
भारत में एक बहुमूल्य फसल का उत्पादन होता है जो अपनी परम्परागत तरीके के लिए भी जानी जाती है। इसका […]
भारत में एक बहुमूल्य फसल का उत्पादन होता है जो अपनी परम्परागत तरीके के लिए भी जानी जाती है। इसका […]
दलहन भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और पूरी दुनिया में दलहन का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। किसानों के लिए भी इसकी खेती फ़ायदेमंद है। इसलिए दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर किसान दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो राइज़ोबियम कल्चर उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
इन नई किस्मों में से एक किस्म ऐसी है जो किसान एक साल में अलग-अलग दो फसलें के साथ लगा सकते हैं। उन किसानों के लिए ये सोयाबीन की नई किस्में पहली पसंद हो सकती है। इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान के भारतीय संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक संजय गुप्ता ने इस किस्म को विकसित किया है।
मूंग एक प्रमुख दलहनी फसल है, जिसकी खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों मौसम में की जा सकती है, लेकिन जायद यानी गर्मियों में मूंग की खेती करना किसानों के लिए अधिक फायदेमंद है। इससे खेती की लागत कम और आमदनी अधिक होती है।
भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक, प्रमुख चना-उत्पादक राज्य हैं। लेकिन पैदावार में 14.56 क्विंटल/ हेक्टेयर के साथ तेलंगाना सबसे ऊपर है तो 6 क्विंटल/हेक्टेयर के साथ कर्नाटक सबसे नीचे। जबकि राष्ट्रीय औसत 10.55 क्विंटल/ हेक्टेयर है। हालाँकि, देश में 20 से 30 क्विंटल/ हेक्टेयर पैदावार देने वाली चने की अनेक उन्नत और रोग प्रतिरोधी नस्लें मौजूद हैं। लिहाज़ा, किसानों को जल्द से जल्द चने की उन्नत खेती के नुस्खे अपनाने चाहिए।
आज की तारीख में जयश्री कोलाटे पाटिल सालाना 7 से 8 लाख रुपये की आमदनी कर रही हैं। साथ ही किसानों की उपज का मूल्य भी बढ़ा है।
कई पोषक तत्वों से भरपूर दाल न सिर्फ़ सेहत को लाभ देती है, बल्कि मिट्टी को भी उपजाऊ बनाती है। World Pulses Day के मौके पर जानिए इससे जुड़ी अहम बातें।
बीज अच्छी गुणवत्ता का हो तो फसल भी अच्छी होती है और बीज उत्पादन के व्यवसाय से किसानों की अच्छी कमाई भी हो जाती है। गुजरात के सुरेंद्रनगर ज़िले के करमाड गांव के किसान यही कर हैं। काबुली चने की खेती में उन्नत किस्म का चयन कर कैसे आमदनी और कमाई में इज़ाफ़ा हुआ, जानिए इस लेख में।
पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले की रहने वाली तापसी पात्रा जिस क्षेत्र से आती हैं, वहां ज़्यादातार किसानों में खेती की उन्नत तकनीकों के में जानकारी का अभाव था। आज इसी क्षेत्र के कई किसान उड़द दाल की खेती में अच्छी पैदावार ले रहे हैं।
जुलाई माह में बहुत से ज़िलों में बारिश नहीं होने के कारण धान की खेती काफ़ी प्रभावित हुई। किसानों को हो रहे इस नुकसान से बचाव के लिए ICAR के संस्थान एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट कानपुर (अटारी) के डायरेक्टर डॉ. यूएस गौतम ने कुछ सुझाव दिए हैं। जानिए क्या हैं वो सुझाव।
मूंग-उड़द की फसल को प्रमुख रोगों एवं हानिकारक कीटों से कैसे बचाया जाए, इस पर किसान ऑफ़ इंडिया की कृषि विज्ञान केन्द्र आजमगढ़ के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से विशेष बातचीत।
अरहर की परम्परागत किस्में जहाँ 9 महीने में परिपक्व होती हैं, वहीं उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली बोनसाई अरहर ‘आशा मालवीय 406’ की फसल साढ़े सात महीने में ही तैयार हो जाती है। जानिए अरहर की खेती के लिए ये किस्म कितनी अनुकूल है।
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ आर.पी. सिंह ने बताया कि अरहर की फसल में से हानिकारक कीटों की रोकथाम के लिए किसानो को गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए। बीजों को उपचारित करके बुआई करना चाहिए। इसके अलावा, ऐसी कौन-कौन सी दवाइयां है, जिनका इस्तेमाल किसान कर सकते हैं, जानिए इस लेख में।
उचित भंडारण व्यवस्था नहीं होने की वजह से सालाना औसतन देश का करीब 10 प्रतिशत अनाज बर्बाद हो जाता है। ये नुकसान बहुत बड़ा है और इसे पूरी ताक़त लगाकर रोका जाना चाहिए।
अरहर की वैज्ञानिक और व्यावसायिक खेती करके ज़्यादा से ज़्यादा उपज लेने के लिए मिट्टी से लेकर बीज, खाद, निराई, सिंचाई, बीमारियों से रोकथाम, कटाई, भंडारण जैसे हरेक बारीक़ से बारीक़ पहलू के मानक तैयार किये गये हैं। अन्य दलहनों के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। ताकि किसान अरहर समेत बाक़ी दलहनों का रक़बा और उपज बढ़ाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकें और देश को दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता दिला सकें।
अरहर की खेती के 10 दुश्मनों को पहचाने और सही वक़्त का उनका सही उपचार करने से ही इस कीमती दलहन की खेती करने वाले किसानों की कमाई बढ़ायी जा सकती है। लेकिन चाहे अरहर के किसानों का सामना इन बीमारियों से पड़े या नहीं पड़े, लेकिन इतना तो साफ़ है कि उन्नत किस्म की रोग प्रतिरोधी प्रजातियों वाले बीजों और सही वक़्त पर फसल की बुआई करने ही किसानों को अच्छी उपज और मुनाफ़ा मिल सकता है।
अरहर के 10 प्रमुख दुश्मन हैं। इनमें से 6 बैक्टीरिया, वायरस और फंगस (कवक) जनित रोग हैं तो 4 बीमारियाँ ऐसी हैं जो अपने कीटों के ज़रिये अरहर की फसल को भारी नुकसान पहुँचाती हैं। ये नुकसान इतना ज़्यादा होता है कि पैदावार गिरकर आधी रह जाती है। इससे किसान को भारी नुकसान होता है। इसीलिए अरहर के दुश्मनों का वक़्त रहते सफ़ाया करना बेहद ज़रूरी है।
केन्द्र सरकार ने मसूर की दाल के दाम में आ रहे उछाल को थामने और घरेलू बाज़ार में इसकी आपूर्ति बढ़ाने के लिए मसूर की दाल पर आयात शुल्क (Custom duty) को घटाकर शून्य करने और इस पर लागू एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस (AIDC) को भी घटाकर आधा किया गया है।
केन्द्र सरकार ने महज 17 दिनों में ही दालों के स्टॉक सीमा पर लगायी उस रोक को वापस ले लिया, जिसकी मियाद 31 अक्टूबर तक थी। माना जा रहा है कि सरकार के इस फ़ैसले से दलहन के किसानों को फ़ायदा होगा। हालाँकि, स्टॉक लिमिट हटने की वजह से आम उपभोक्ताओं के लिए दालों के दाम बढ़ने का ख़तरा पैदा हो गया है। वैसे नये सरकारी आदेश के बावजूद दाल मिल मालिकों, दालों के थोक विक्रेताओं और दालों के आयातकों को केन्द्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग की निर्धारित वेबसाइट पर अपने स्टॉक की जानकारियाँ पहले की तरह ही देनी पड़ेगी।
नये ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’ के प्रावधानों के अनुसार जब तक दालों का खुदरा बाज़ार भाव से साल भर पहले की तुलना में 50 प्रतिशत से ज़्यादा ऊपर नहीं चला जाता, तब तक सरकार ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ के नाम पर व्यापारियों पर स्टॉक सीमा नहीं थोप सकती है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, एक साल पहले के मुकाबले दालों के दाम में अभी तक जो बढ़ोत्तरी हुई है वो 22-23 प्रतिशत की है। इसका मतलब ये हुआ कि नया क़ानून व्यापारियों के प्रति बहुत ज़्यादा उदार है। इसीलिए किसान नेता इसे जन-विरोधी करार देते हैं और इसे वापस लेने की माँग कर रहे हैं।