Testing of irrigation water: क्यों खेती की कमाई बढ़ाने के लिए ज़रूरी है सिंचाई के पानी की जाँच?
सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से उसकी तासीर जानकर फ़सल का सही चयन करें, जिससे मिट्टी स्वस्थ रहे और खेती में बेहतर उत्पादन हो।
सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से उसकी तासीर जानकर फ़सल का सही चयन करें, जिससे मिट्टी स्वस्थ रहे और खेती में बेहतर उत्पादन हो।
प्राकृतिक ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) से कीटनाशकों की निर्भरता घटाएं, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं – किसान इसे घर पर आसानी से बना सकते हैं।
सरकार किसानों को सिंचाई, फसल सुखाने और उपकरणों के संचालन जैसे कृषि कार्यों में सौर ऊर्जा अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
सरसों की जैविक खेती (Bio mustard farming) से कम लागत में अधिक मुनाफ़ा संभव है। नए शोध से साबित हुआ है कि जैविक तरीक़े से उपज को साल दर साल बढ़ाया जा सकता है।
झरबेरी की खेती से हरी और सूखी पत्तियां पशुधन के लिए उत्तम चारा प्रदान करती हैं। यह बकरियों का प्रमुख चारा है और शुष्क मौसम में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
कटुआ कीट आमतौर पर रात में फ़सलों को क्षति पहुंचाते हैं। इसकी सुंडियां दिन में मिट्टी की ऊपरी सतह में छिपकर रहती हैं। रात में बाहर आकर छोटे पौधों के कोमल तनों, टहनियों और पत्तों को कुतरकर खा जाते हैं। काटे गये पौधों के अवशेष को ज़मीन के अन्दर ले जाते हैं, जहाँ दिन में उसे खाते हैं। इसीलिए कटे हुए पौधों के अलावा और मिट्टी में दबे हुए पौधों के अवशेष भी कटुआ कीट की खेतों में मौजूदगी का साफ़ संकेत देते हैं। अपने ऐसे स्वभाव की वजह से ही ये ‘कटुआ कीट’ कहलाते हैं।
भारतीय गेहूं और जौ अनुसन्धान संस्थान ने जौ की उपज की DWRB-219 किस्म ईज़ाद की है, जिसकी पैदावार परम्परागत किस्मों के मुक़ाबले दोगुनी है।
कपास की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली (Intercropping System) की तकनीक बेहद उपयोगी और किफ़ायती साबित होती है।
मक्के की फ़सल में पोषक तत्वों (Maize Crop Nutrients) की कमी कई समस्याओं का कारण बन सकती है, जिससे उत्पादन में गिरावट आ सकती है।
विलायती बबूल, गाजरघास और पंचफूली – जैसे पर्यावरण के दुश्मन बुनियादी तौर पर विदेशी घुसपैठिये हैं। लेकिन आज इनका साम्राज्य देश में करोड़ों हेक्टेयर तक फैल चुका है। ये तेज़ी से हमारी मिट्टी को बंजर बनाकर हज़ारों देसी पेड़-पौधों की प्रजातियों को ख़त्म कर चुके हैं। इसके प्रकोप से खेती की उत्पादकता भी बहुत कम हो जाती है। ऐसे आतंकियों का फ़ौरन सफ़ाया बेहद ज़रूरी है।
जैविक खेती की ओर लौटने के लिए वर्मीवॉश, एक बेहद शानदार, किफ़ायती और घरेलू विकल्प है। पैदावार बढ़ाने वाली जैविक खाद के अलावा वर्मीवॉश, एक प्राकृतिक रोगरोधक और जैविक कीटनाशक की भूमिका भी निभाता है। इसका उत्पादन केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) निर्माण के दौरान ही या फिर अलग से भी किया जाता है। जानिए वर्मीवॉश उत्पादन से लेकर इसके बारे में अन्य जानकारियां।
जैविक खेती बेहद किफ़ायती और पर्यावरण-हितैषी है। इसके उत्पाद ज़्यादा पौष्टिक, स्वादिष्ट और सेहतमन्द भी होते हैं। भारत समेत पूरी दुनिया में जैविक कृषि उत्पादों की भारी मांग है। जैविक कृषि उत्पादों के निर्यात से किसानों की आमदनी काफ़ी बढ़ जाती है।
जैविक खाद के कुटीर उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और फ़ायदेमन्द है। इससे हरेक किस्म की जैविक खाद का उत्पादन हो सकता है। इसे अपनाकर किसान ख़ुद भी जैविक खाद के कुटीर और व्यावसायिक उत्पादन से जुड़ सकते हैं।
कड़कनाथ मुर्गी पालन (Kadaknath Chicken Farming): जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे-वैसे मुर्गियों की बढ़वार धीमी पड़ने लगती है क्योंकि वो आहार कम खाती हैं और पानी ज़्यादा पीती हैं। या यूँ कहें कि तापमान परिवर्तन से जूझने के लिए मुर्गियों को ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होती है। इसकी भरपाई प्रोटीन, अमीनो अम्ल और खनिज लवणयुक्त ऐसे आहार से ही हो सकती है जो सस्ता भी हो। अजोला इन सभी शर्तों पर कड़कनाथ मुर्गीपालन के आहार के रूप में ख़रा उतरता है।
सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो किसान अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
क़रीब आधा बीघा खेत में नेपियर घास की खेती करके 4-5 पशुओं को पूरे साल हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है। यदि किसान नेपियर घास की खेती अपनी ज़रूरत से ज़्यादा रक़बे में करे तो इससे नगदी फ़सल वाली कमाई भी हो सकती है।
अपने अनमोल गुणों की वजह से महोगनी की पत्तियों और बीजों के तेल का इस्तेमाल मच्छर भगाने वाली दवाईयों और कीटनाशकों के अलावा साबुन और पेंट-वार्निस जैसे उत्पादों में भी किया जाता है। ज़ाहिर है, महोगनी की खेती उत्तर भारत के मैदानी इलाके के किसानों के लिए कमाई बढ़ाने का शानदार ज़रिया बन सकते हैं।
धान की सीधी बुआई तकनीक से 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। यानी, कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। इस तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है, क्योंकि पिछली फसल का अवशेष वापस खेत में ही पहुँचकर उसमें मौजूद कार्बनिक तत्वों की मात्रा में इज़ाफ़ा करता है। इस तकनीक से धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। खरीफ मौसम में धान की सीधी बुआई को मॉनसून के दस्तक देने से 10-12 दिन पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है।
किसानों को बीज अंकुरण परीक्षण के बारे में बारीक़ बातों को ज़रूर समझना चाहिए क्योंकि यदि किसानों को सही वक़्त पर बीजों की गुणवत्ता का भरोसा नहीं मिला तो खेती में लगने वाला सारा धन-श्रम आख़िरकार घाटे का सौदा बन जाता है। बीजों की अंकुरण क्षमता की सही जानकारी होने से बुआई के समय बीजों की सही दर को तय करना आसान होता है।
भारत में सुगन्धित तेलों के उत्पादन में रोशा घास तेल का एक महत्वपूर्ण स्थान है। देश में बड़े पैमाने पर इसकी इसकी व्यावसायिक खेती होती है। भारत ही इसका सबसे बड़ा उत्पादक है। इससे प्रथम वर्ष में प्रति हेक्टेयर डेढ़ लाख रुपये से ज़्यादा का शुद्ध लाभ मिल सकता है। इससे आगामी वर्षों में मुनाफ़ा और बढ़ता है। रोशा घास की खेती करने के लिए सीमैप, लखनऊ और इससे जुड़े केन्द्रों की ओर से किसानों की भरपूर मदद की जाती है। उन्हें बीज के अलावा ज़रूरी मार्गदर्शन भी उपलब्ध करवाया जाता है।