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वर्मीवॉश, एक तरल जैविक खाद है। जैविक खेती में वर्मीवॉश, पैदावार बढ़ाने वाली खाद के अलावा प्राकृतिक रोगरोधक और जैविक कीटनाशक की भूमिका भी निभाता है। वर्मीवॉश उत्पादन केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) निर्माण के दौरान ही या फिर अलग से भी किया जाता है। इसका रंग गहरा भूरा होता है और इसका सेवन पर्यावरण हितैषी होता है। इसके इस्तेमाल से खेती को चौतरफ़ा लाभ होता है और फ़सल की लागत घटती है।
वर्मीवॉश उत्पादन करने वाले केंचुओं को ‘किसान का सबसे बड़ा दोस्त’ और ‘प्रकृति का हलवाहा’ कहा गया है। केंचुए जब खेतों में रहते हैं तो वहाँ की कंकरीली-पथरीली मिट्टी को खाकर जिस मल-मूत्र त्याग करते हैं उससे मिट्टी उपजाऊ बनती है। केंचुए के बिल खेत की मिट्टी को नीचे से ऊपर लाकर उसे भुरभुरा भी बनाते हैं। इससे मिट्टी की नमी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है। केंचुए, खेतों से बाहर भी जैविक कचरे को परिवर्तित करके उपजाऊ खाद ‘वर्मीकम्पोस्ट’ का उत्पादन करते हैं।
क्या है वर्मीवॉश?
वर्मीकम्पोस्ट की तरह वर्मीवॉश को भी किसान ख़ुद बेहद कम लागत में तैयार कर सकते हैं। दोनों की उत्पादन प्रक्रिया में ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। दोनों ही केंचुओं के मल-मूत्र से प्राप्त होते हैं। ठोस वर्मीकम्पोस्ट को जहाँ मिट्टी में मिलाया जाता है, वहीं तरल वर्मीवॉश का फ़सल पर छिड़काव किया जाता है। ताकि ये खाद के अलावा प्राकृतिक रोगरोधक और जैविक कीटनाशक की भूमिकाएँ कारगर ढंग से निभा सके।
वर्मीवॉश, एक क्षारीय तरल है। इसमें पौधों को आसानी से उपलब्ध होने वाला घुलनशील जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा, ज़िंक और मैंगनीज के अलावा साइटोकाइनिन हार्मोन, अनेक विटामिन, अमीनो अम्ल और प्रोटीएज, एमाइलेज, यूरीएज तथा फॉस्फेटेज जैसे एंजाइम भी पाये जाते हैं। माइक्रो-बॉयोलॉजिकल अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि वर्मीवॉश में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले एजोटोबैक्टर, एग्रोबैक्टीरियम और फॉस्फोरस घोलक जीवाणु भी पाये जाते हैं। ये सभी प्राकृतिक उर्वरक हैं।
कुलमिलाकर, मिट्टी और फ़सल की सेहत सुधारने में केंचुओं का योगदान अतुलनीय है। वर्मीवॉश के इस्तेमाल से जहाँ मिट्टी की उर्वरा शक्ति में टिकाऊ सुधार होता है, वहीं 10 से 15 फ़ीसदी तक पैदावार भी ज़्यादा मिलती है। वर्मीवॉश के प्रयोग से पैदा हुई उपज की गुणवत्ता और स्वाद भी उम्दा होता है। इससे पैदावार का बाज़ार में बढ़िया दाम भी मिलता है।
लाल केंचुआ की अद्भुत देन
भारत में बहुतायत से पाये जाने वाले केंचुए की प्रजाति का नाम ‘आइसीनिया फोटिडा’ (Eisenia fetida) है। इसे लाल केंचुआ भी कहते हैं। ये मिट्टी की जगह कार्बनिक अपशिष्ट को खाकर न सिर्फ़ गन्दगी और कूड़ा-कचरे की सफ़ाई करता है, बल्कि इस प्रक्रिया में अपने मल-मूत्र से अति उपयोगी वर्मीकम्पोस्ट तथा वर्मीवॉश का उत्पादन करता है जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसीलिए वर्मीवॉश के इस्तेमाल से पैदावार में बढ़ोत्तरी होने के अलावा मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है। इसका कोई अवशेष मिट्टी के लिए हानिकारक नहीं होता।
वर्मीवॉश बनाने की विधि
केंचुओं का शरीर तरल पदार्थों से भरा होता है। उनका शरीर इसका लगातार उत्सर्जन करता रहता है। इसीलिए केंचुए जब वर्मीकम्पोस्ट बनाने के कच्चे माल में सुरंग बनाते हुए अपना भोजन करते हैं तो सुरंगों में नमी बढ़ती जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर यही नमी तरल रूप में बर्तन की तलहटी की ओर बहने जमा होने लगती है। यही तरल पदार्थ वर्मीवॉश कहलाता है। इसे ही अलग बर्तन में इकट्ठा करके फ़सल पर छिड़काव के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ज़्यादा मात्रा में वर्मीवॉश बनाने के लिए अधिक ड्रम या बर्तनों तथा पालतू केंचुओं की ज़रूरत पड़ती है।
वर्मीवॉश उत्पादन के समय इस बात का ध्यान रखें कि वर्मीवॉश को छायादार जगह पर ही बनाना चाहिए। इसके लिए 200 लीटर या कम-ज़्यादा क्षमता वाले प्लास्टिक के ड्रम या मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए। बर्तन में नीचे की तरफ टोटी लगाने के बाद 5 से 8 सेंटीमीटर तक कंकरीट की सतह और फिर इतनी ही मोटी ही बालू की सतह बिछानी चाहिए। ताकि वर्मीवॉश पर्याप्त छना हुआ प्राप्त हो। इसके बाद 30 से 40 सेंटीमीटर में रसोई का कूड़ा या सब्जी वग़ैरह के छिलके, जूठन आदि को 10 से 15 दिन पुराने गोबर के साथ मिलाकर भर देना चाहिए। अब 200 से 300 लाल केंचुओं को ऊपर से डालकर पुआल से ढक दें।
इसके 15-20 दिन बाद बर्तन या ड्रम के ऊपर एक पानी से भरा घड़ा या बाल्टी वग़ैरह लटकाकर उसकी पेंदी में छेद करके ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे बूँद-बूँद करके पानी बर्तन में गिरता रहे। ऐसा करने के दो-तीन बाद से टोटी से तरल वर्मीवॉश भी बूँद-बूँद करके टपकने लगेगा। इसे किसी अन्य बर्तन में जमा करने का इन्तज़ाम करना चाहिए।
वर्मीवॉश के उपयोग की विधि
वर्मीवॉश की एक लीटर मात्रा और 5 लीटर पानी का घोल बनाकर इसका सिर्फ़ शाम को ही खड़ी फ़सल की पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए। इससे गर्मियों वाली सब्जियों में जल्दी से फूल निकलने और फल बनने की प्रक्रिया तेज़ होती है तथा उत्पादन भी बढ़ता है। वर्मीवॉश के छिड़काव की ये प्रक्रिया जहाँ सभी फ़सलों के लिए शानदार खाद की भूमिका निभाती है, वहीं फ़सल के विभिन्न रोगों की रोकथाम के लिए एक लीटर वर्मीवॉश में एक लीटर गौमूत्र और 10 लीटर पानी को अच्छी तरह मिलाकर रात भर के लिए छोड़ने के बाद अगले दिन छिड़काव करने से बहुत लाभ होता है।
वर्मीवॉश उत्पादन से जुड़ी सावधानियां
वर्मीवॉश उत्पादन के दौरान सुनिश्चित करें कि ड्रम पर साफ़ पानी लगातार टपकता रहे। वर्मीवॉश इकाई को उचित स्टैंड या ऊँचाई पर ऐसे रखें जिससे वो आसानी से जमा हो सके। वर्मीवॉश इकाई को हमेशा छायादार जगह पर रखें ताकि केंचुए धूप से बच सकें। वर्मीवॉश उत्पादन के लिए केंचुओं की उचित प्रजाति का उपयोग करें और ताज़ा गोबर का उपयोग कभी नहीं करें। इससे केंचुए मर जाते हैं। केंचुओं की सुरक्षा के लिए साँप, मेंढक और छिपकली आदि से बचाव का उचित इन्तज़ाम रखें। क़रीब 20 दिन बाद जब ड्रम में डाला गया कार्बनिक पदार्थ और गोबर पूरी तरह से वर्मीकम्पोस्ट में बदल जाए तो उसे निकालकर पूरी प्रक्रिया को फिर से दोहराएँ ताकि वर्मीवॉश उत्पादन थमे नहीं और केंचुओं को पर्याप्त भोजन मिलता रहे।
वर्मीवॉश के लाभ
वर्मीवॉश से इस्तेमाल से पौधों की बढ़वार तेज़ होती है। इसके सेवन से सब्जियों में फूल-फल बनने की प्रक्रिया भी बढ़ती है और उसकी गुणवत्ता भी उम्दा बनी रहती है। मिट्टी की नमी सोखने की क्षमता बढ़ती है तो सिंचाई की लागत में कमी आती है। खेती में रोगरोधी दवाईयों का खर्च घटता है। इस तरह वर्मीवॉश के सेवन से खेती की उत्पादन लागत घटती है और ऊर्जा की बचत होती है। वर्मीवॉश से उत्पादित फ़सल का स्वाद भी उत्तम कोटि का होता है। अनाज और दलहनी फ़सलों की गुणवत्ता बढ़ाने में वर्मीवॉश बेहद उपयोगी साबित होता है। वर्मीवॉश की मदद से उत्पादित पैदावार का बाज़ार में बेहतर दाम मिलता है।
मिट्टी सुधारक भी है वर्मीवॉश
वर्मीकम्पोस्ट की तरह वर्मीवॉश में भी ऐसी तमाम ख़ूबियाँ मौजूद हैं जिसके नियमित उपयोग से मिट्टी की उस उर्वरा शक्ति को भी बहाल किया जा सकता है, जिसे रासायनिक खाद के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल से गहरा आघात पहुँचा हो। हम जानते हैं कि वर्ष 1965 के बाद आयी हरित क्रान्ति के दौर में रासायनिक खाद और कीटनाशक के अन्धाधुन्ध उपयोग से मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में ज़बरदस्त गिरावट आयी है। उपज की गुणवत्ता और स्वाद का स्तर भी ख़ासा गिरा है। यहाँ तक कि खाद्य पदार्थों के ज़रिये हमारे भोजन में भी ज़हरीले तत्व पहुँचने लगे हैं। ऐसी चुनौतियों का समाधान सिर्फ़ यही है कि किसान वापस जैविक खेती की ओर लौटें। वर्मीवॉश, इसका शानदार, घरेलू और किफ़ायती विकल्प है।
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